आम्बेडकर
की पहली शादी के बारे में धनंजय कीर ने लिखा है “शादी के समय भीमराव की आयु सत्रह
वर्ष की थी।लड़की की आयु नौ वर्ष की थी।लड़की का ससुराल का नाम रमाबाई रखा
गया।लड़की उम्र में छोटी लेकिन स्वभाव से शांत और सुस्वभावी थी।वह गरीब लेकिन
सदाचारी घराने की थी।वह अपने पिता की कनिष्ठ लड़की थी। उसके पिता का नाम भिकू
धत्रे था।दाभोल के समीप स्थित वनंद गाँव का वह निवासी था। वह दाभोल बंदरगाह में
कुली का काम करता था। लड़की के बचपन में ही माँ-बाप चल बसे थे। उसका और उसके
भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी चाची और मामा ने किया था।” रमाबाई स्वभाव से सहृदय और
कर्तव्यदक्ष थी।वे लंबे समय तक बीमार रहीं और लंबी बीमारी के बाद उनका 27मई1935 को
निधन हो गया।
धनंजय कीर ने लिखा है कि पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार हो इसलिए बाबासाहब
ने काफी प्रयास किए,लेकिन उनको कोई दवा नहीं लगी। “ वैवाहिक जीवन के प्रारंभिक समय
में उन पर भुखमरी,शारीरिक कष्ट,दुःख और दरिद्रता की जो घटनाएं गुजरी थीं,उनका
मुकाबला उन्होंने अपने जन्मजात मनोबल से किया”, “जीवन का अधिकतर समय उस साध्वी ने
असह्य दरिद्रता ,पति की सुरक्षा के बारे में लगने वाली चिंता में व्यतीत किया था।इसके
लिए उस देवी ने उपवास,तप,जप,और अनुष्ठान किए थे।शनिवार को तो वे पूरी तरह से
निराहार रहती थीं।सिर्फ पानी और उड़द की दाल पर निर्वास कर वे ईश्वर की आराधना
करती थीं।वे पूनम के दिन उपवास करती थीं।अपने पतिराज पर ईश्वर का वरदहस्त
रहे,इसलिए वे हमेशा प्रार्थना करती रहती थीं।” रमाबाई की मृत्यु ने आम्बेडकर को
अंदर तक दुखी किया। आम्बेडकर अपनी पत्नी के विचारों,धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं को
पूरा सम्मान देते थे। उनकी मृत्यु पर उन्होंने बाकायदा हिंदू पद्धति के अनुसार
उनका अंतिम संस्कार करवाया।उनके बचपन के दोस्त थे शंभू मोरे ,वे महार उपाध्याय
थे,उन्होंने हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार कराया। पत्नी का अंतिम संस्कार कराने के लिए बाबासाहब ने मुंडन कराया,
भगवा कफनी पहनी । बाबासाहब अपनी पत्नी की मृत्यु से बेहद दुखी हुए थे और श्मशान से
लौटकर घर पर एक सप्ताह तक फूट-फूटकर रोए थे।
बाबासाहब
ने पत्नी के मृत्यु से तकरीबन सात साल पहले “बहिष्कृत भारत” में लिखा, “प्रस्तुत
लेखक जब विदेश में था,तब रात-दिन जिसने परिवार की देखभाल की और जिसे वह अब भी करनी
पड़ती है तथा उसके स्वदेश आने पर उसकी विपन्न दशा में गोबर का बोझ खुद के माथे पर
रखकर लाने का काम करने के लिए जिसने आगे पीछे नहीं देखा,उस अत्यंत ममत्व प्रधान
,सुशील,और पूज्य स्त्री के साथ दिन के 24 घंटों में से आधा घंटा भी वह बिता नहीं
सका।”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें