मैं नहीं जानता कि इस समय जेएनयू छात्रसंघ के चुनाव में किन मुद्दों पर बहस हो रही है।लेकिन एक बात तय है कि जेएनयू के छात्र आंदोलन के सामने गंभीर संकट है।यह संकट ´वैचारिक´ज्यादा है। फरवरी जेएनयू आंदोलन के बाद जो व्यापक छात्र एकता लोकतांत्रिक सवालों और लोकतांत्रिक हकों पर निर्मित हुई है,वह इसबार के चुनाव में अपनी पहली बड़ी परीक्षा से गुजरेगी।सुखद बात यह है कि ´देशद्रोह´के मसले पर हाल ही में सुप्रीमकोर्ट ने जो फैसला दिया है उससे जेएनयू छात्र आंदोलन को बहुत बड़ी मदद मिलेगी।हमने फेसबुक पर पहले देशद्रोह के प्रसंग में जो कुछ लिखा था सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उसको अपने नए आदेश से पुष्ट किया है।किसी भी किस्म की नारेबाजी,सरकार के खिलाफ आलोचना आदि देशद्रोह नहीं है।देशद्रोह तब बनता है जब हिंसा की जाय या फिर हिंसा के लिए उकसाया जाय।महज भाषण या लेखन को हिंसा नहीं कहते,देशद्रोह नहीं कहते।
जेएनयू छात्र आंदोलन की दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि है जेएनयू प्रशासन के द्वारा जिन छात्रनेताओं और छात्रों के खिलाफ फरवरी आंदोलन के संदर्भ में अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी उसको लागू करने पर अदालत ने रोक लगा दी है।जबकि इस अनुशासनात्मक कार्रवाई के जरिए वि वि प्रशासन अपने एक्शन को वैध ठहराने की कोशिश कर रहा था।ये दो बड़ी कानूनी जीत हासिल करके जेएनयू का छात्र आंदोलन फिर से नई परीक्षा के लिए तैयार खड़ा है।
इस समय जमीनी हकीकत क्या है मैं नहीं जानता लेकिन इतना कहना चाहूंगा कि एसएफआई-आईइसा के संयुक्त मोर्चे के प्रत्याशियों को हर हालत में जिताना चाहिए।यह वह मोर्चा है जिसने सभी छात्रों को एकजुट रखकर जेएनयू प्रशासन और मोदी सरकार की छात्र विरोधी,लोकतंत्र विरोधी नीतियों का जमकर विरोध किया और उपरोक्त दो बहुत बड़ी कानूनी जीत चुनाव के पहले हासिल करके छात्र आंदोलन के इतिहास में नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
केन्द्र सरकार के दमन के खिलाफ जेएनयूछात्रसंघ की उपरोक्त दो कानूनी विजय असाधारण हैं,इस जीत की हर हालत में रक्षा की जानी चाहिए।जेएनयू प्रशासन पूरी शक्ति लगाकर छात्रों को बांटने की कोशिश करेगा।तरह-तरह के नए प्रपंच खड़े किए जाएंगे।इन सबसे बचने की जरूरत है। एक मजबूत वामपंथी छात्र राजनीति ही जेएनयू में छात्रों के व्यापक हितों की रक्षा कर सकती है।मौजूदा आइसा-एसएफआई मोर्चे ने विगत फरवरी आंदोलन के दौरान जिस परिपक्वता,कौशल और राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देकर मोदी सरकार और उसके गुर्गों को राजनीतिक तौर पर परास्त किया है वह हम सबके लिए गौरव की बात है।जेएनयू के छात्रों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे आइसा-एसएफआई मोर्चे बड़ी संख्या में वोट देकर दिताएं।क्योंकि ये लोग आपके संघर्ष के साथी है,संघर्ष के नायक हैं।
जेएनयूएसयू के मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व की जीत को किसी भी तरह के द्ग्भ्रमित नारों और राजनीतिक मंचों के कारण कम नहीं किया जाना चाहिए।जेएनयू को वाम चाहिए।वाम छात्र राजनीति फौलादी एकता से बनी है और विभिन्न संघर्षों में उसकी परीक्षा हुई है और हर परीक्षा में वह खरी उतरी है। हमें उम्मीद है कि इसबार के छात्रसंघ के चुनाव में आईएसा-एसएफआई मोर्चे को भारी बहुमत से छात्र समुदाय जीत दिलाएगा।
जेएनयू छात्र आंदोलन की दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि है जेएनयू प्रशासन के द्वारा जिन छात्रनेताओं और छात्रों के खिलाफ फरवरी आंदोलन के संदर्भ में अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी उसको लागू करने पर अदालत ने रोक लगा दी है।जबकि इस अनुशासनात्मक कार्रवाई के जरिए वि वि प्रशासन अपने एक्शन को वैध ठहराने की कोशिश कर रहा था।ये दो बड़ी कानूनी जीत हासिल करके जेएनयू का छात्र आंदोलन फिर से नई परीक्षा के लिए तैयार खड़ा है।
इस समय जमीनी हकीकत क्या है मैं नहीं जानता लेकिन इतना कहना चाहूंगा कि एसएफआई-आईइसा के संयुक्त मोर्चे के प्रत्याशियों को हर हालत में जिताना चाहिए।यह वह मोर्चा है जिसने सभी छात्रों को एकजुट रखकर जेएनयू प्रशासन और मोदी सरकार की छात्र विरोधी,लोकतंत्र विरोधी नीतियों का जमकर विरोध किया और उपरोक्त दो बहुत बड़ी कानूनी जीत चुनाव के पहले हासिल करके छात्र आंदोलन के इतिहास में नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
केन्द्र सरकार के दमन के खिलाफ जेएनयूछात्रसंघ की उपरोक्त दो कानूनी विजय असाधारण हैं,इस जीत की हर हालत में रक्षा की जानी चाहिए।जेएनयू प्रशासन पूरी शक्ति लगाकर छात्रों को बांटने की कोशिश करेगा।तरह-तरह के नए प्रपंच खड़े किए जाएंगे।इन सबसे बचने की जरूरत है। एक मजबूत वामपंथी छात्र राजनीति ही जेएनयू में छात्रों के व्यापक हितों की रक्षा कर सकती है।मौजूदा आइसा-एसएफआई मोर्चे ने विगत फरवरी आंदोलन के दौरान जिस परिपक्वता,कौशल और राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देकर मोदी सरकार और उसके गुर्गों को राजनीतिक तौर पर परास्त किया है वह हम सबके लिए गौरव की बात है।जेएनयू के छात्रों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे आइसा-एसएफआई मोर्चे बड़ी संख्या में वोट देकर दिताएं।क्योंकि ये लोग आपके संघर्ष के साथी है,संघर्ष के नायक हैं।
जेएनयूएसयू के मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व की जीत को किसी भी तरह के द्ग्भ्रमित नारों और राजनीतिक मंचों के कारण कम नहीं किया जाना चाहिए।जेएनयू को वाम चाहिए।वाम छात्र राजनीति फौलादी एकता से बनी है और विभिन्न संघर्षों में उसकी परीक्षा हुई है और हर परीक्षा में वह खरी उतरी है। हमें उम्मीद है कि इसबार के छात्रसंघ के चुनाव में आईएसा-एसएफआई मोर्चे को भारी बहुमत से छात्र समुदाय जीत दिलाएगा।
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