गुरू वह जो सम्प्रेषक बनाए।फेसबुक इस अर्थ में हम सबका गुरू है ,उसने हम सबको कम्युनिकेटर बनाया है।कम्युनिकेशन की कलाओं से लैस किया है। जो लोग फेसबुक पर सक्रिय है उन सबका अप्रत्यक्ष रूप में फेसबुक गुरू है।यह हमारी दिमागी हरकतों का नियंत्रक और नियामक है।
हर मीडियम हमें सिखाता है।लेकिन हम उसे उपकरण से अधिक महत्व नहीं देते।वास्तविकता यह है आधुनिक युग में मीडियम हमारे गुरू हैं। पहले हम शिक्षक से सीखते थे लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद शुरू हुई तकनीकी क्रांति ने मीडियम को शिक्षक और छात्र के बीच में लाकर खड़ा कर दिया है।हम देखें फिल्म ने एक मीडियम के रूप में समाज को किस तरह सिखाया-पढ़ाया और सजाया-संवारा है।उसी तरह फेसबुक ने लेखन और अभिव्यक्ति के तौर-तरीकों के संबंध में हमारी नए सिरे से शिक्षा की है।
मैंने निजी तौर पर मीडियम के तौर पर फेसबुक से बहुत कुछ सीखा है,रोज कोई न कोई नई चीज हम यहां सीखते हैं।फेसबुक हमारा नया शिक्षक है।फेसबुक की वॉल जब सामने खुली होती है तो हर शिक्षित व्यक्ति लिखने के पहले छह बार सोचता है कि क्या लिखूँॽ लिखते हुए भय और संकोच में रहता है। भय-संकोच में वे लोग भी रहते हैं जो सुंदर-सटीक बोलने के लिए जाने जाते हैं।जिनके पास मेधा की कमी नहीं है।लेकिन फेसबुक पर आते ही उनकी सरस्वती गुम हो जाती है !
अभिव्यक्ति के रूपों में फेसबुक बेहतरीन माध्यम है,इसमें मित्र ही शिक्षक हैं,यूजर या पाठक ही शिक्षक है,जो गलती आप करते हैं,उसे दूसरा तुरंत बताता है,आप दुरूस्त कर लेते हैं।आप ऐसे व्यक्ति के कहे को मान लेते हैं जिसे आपने देखा नहीं,जाना नहीं,अनजाने व्यक्ति की आलोचना मानना,उससे सीखना यह फेसबुक का गुण है।बात करने के कौशल को कैसे विकसित करें,विभिन्न किस्म के लोगों में रहकर किस तरह संप्रेषण करें,यह कला फेसबुक पर रहकर ही सीख सकते हैं।फेसबुक की शिक्षण की कोई किताब नहीं है,वह पुराने किस्म के लेखन और अभिव्यक्ति रूपों का नया संस्करण लेकर आता है,हम यहां सब एकलव्य हैं।मित्रों की मदद से लिखकर सीखते हैं।यहां कोई गुरू नहीं है।शिक्षक नहीं है।
फेसबुक ने पहलीबार यह सिखाया कि मित्र ही गुरू है।सार्वजनिक संप्रेषण सामूहिक कला है। संप्रेषण तब ही सफल होता है जब उसे कोई पढ़े,सुने,गुने।फेसबुक इस मायने में हमें आत्मनिर्भर सम्प्रेषक बनाता है। वह पुराने सभी किस्म के संप्रेषण रूपों से भिन्न पैराडाइम में ले जाता है। यह मनुष्य की आत्मनिर्भर संप्रेषण शक्ति का चरमोत्कर्ष है।
हर मीडियम हमें सिखाता है।लेकिन हम उसे उपकरण से अधिक महत्व नहीं देते।वास्तविकता यह है आधुनिक युग में मीडियम हमारे गुरू हैं। पहले हम शिक्षक से सीखते थे लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद शुरू हुई तकनीकी क्रांति ने मीडियम को शिक्षक और छात्र के बीच में लाकर खड़ा कर दिया है।हम देखें फिल्म ने एक मीडियम के रूप में समाज को किस तरह सिखाया-पढ़ाया और सजाया-संवारा है।उसी तरह फेसबुक ने लेखन और अभिव्यक्ति के तौर-तरीकों के संबंध में हमारी नए सिरे से शिक्षा की है।
मैंने निजी तौर पर मीडियम के तौर पर फेसबुक से बहुत कुछ सीखा है,रोज कोई न कोई नई चीज हम यहां सीखते हैं।फेसबुक हमारा नया शिक्षक है।फेसबुक की वॉल जब सामने खुली होती है तो हर शिक्षित व्यक्ति लिखने के पहले छह बार सोचता है कि क्या लिखूँॽ लिखते हुए भय और संकोच में रहता है। भय-संकोच में वे लोग भी रहते हैं जो सुंदर-सटीक बोलने के लिए जाने जाते हैं।जिनके पास मेधा की कमी नहीं है।लेकिन फेसबुक पर आते ही उनकी सरस्वती गुम हो जाती है !
अभिव्यक्ति के रूपों में फेसबुक बेहतरीन माध्यम है,इसमें मित्र ही शिक्षक हैं,यूजर या पाठक ही शिक्षक है,जो गलती आप करते हैं,उसे दूसरा तुरंत बताता है,आप दुरूस्त कर लेते हैं।आप ऐसे व्यक्ति के कहे को मान लेते हैं जिसे आपने देखा नहीं,जाना नहीं,अनजाने व्यक्ति की आलोचना मानना,उससे सीखना यह फेसबुक का गुण है।बात करने के कौशल को कैसे विकसित करें,विभिन्न किस्म के लोगों में रहकर किस तरह संप्रेषण करें,यह कला फेसबुक पर रहकर ही सीख सकते हैं।फेसबुक की शिक्षण की कोई किताब नहीं है,वह पुराने किस्म के लेखन और अभिव्यक्ति रूपों का नया संस्करण लेकर आता है,हम यहां सब एकलव्य हैं।मित्रों की मदद से लिखकर सीखते हैं।यहां कोई गुरू नहीं है।शिक्षक नहीं है।
फेसबुक ने पहलीबार यह सिखाया कि मित्र ही गुरू है।सार्वजनिक संप्रेषण सामूहिक कला है। संप्रेषण तब ही सफल होता है जब उसे कोई पढ़े,सुने,गुने।फेसबुक इस मायने में हमें आत्मनिर्भर सम्प्रेषक बनाता है। वह पुराने सभी किस्म के संप्रेषण रूपों से भिन्न पैराडाइम में ले जाता है। यह मनुष्य की आत्मनिर्भर संप्रेषण शक्ति का चरमोत्कर्ष है।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति शिक्षक दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
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