डा.श्याम बिहारी राय हिन्दी प्रकाशन जगत का जाना-पहचाना चेहरा है।हिन्दी का आदर्श प्रकाशक कैसा हो और उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए,प्रकाशन के जरिए मार्क्सवाद का प्रचार -प्रसार कैसे करें,इन सब सवालों के उत्तर लेने हैं तो राय साहब से मिलो।
राय साहब बेहद सुलझे मार्क्सवादी हैं,एमए पीएचडी हैं,हिन्दी के प्रख्यात आलोचक नंददुलारे बाजपेयी के छात्र रहे हैं।अनेक वर्ष केन्द्र सरकार के संस्थान नीपा में काम करने के बाद प्रकाशन में लगे हुए हैं।उनसे मैं जब भी मिलता हूँ,मुझे मन में शांति मिलती है।उनके साथ मेरा परिचय तकरीबन 35सालों से हैं।मैं जब जेएनयू पढ़ने आया तो उनसे मेरी मुलाकात हुई ,मित्रता हुई,हम दोनों लंबे समय तक एक-दूसरे के सुख-दुख के साझीदार भी रहे हैं।राय साहब जैसा बेहतरीन मनुष्य,बेहतरीन निष्ठावान मार्क्सवादी मैंने नहीं देखा।
इस समय राय साहब ग्रंथ शिल्पी के नाम से प्रकाशन चलाते हैं।संभवतः भारत में यह अकेला प्रकाशन है जो सिर्फ अनुवाद छापता है।समाजविज्ञान, शिक्षा, साहित्य,मीडिया,दर्शन आदि की तकरीबन 300 से ज्यादा विश्व विख्यात किताबें अकेले राय साहब ने छापी हैं।इतनी किताबें भारत का कोई भी बड़ा प्रकाशक नहीं छाप पाया है।
राय साहब ने जिस निष्ठा के साथ हिन्दी की सेवा की है वह अपने आपमें विरल चीज है।ईमानदारी से प्रकाशन करना,लेखक और अनुवादक को नियम से हर साल रॉयल्टी देना,पेशेवर ढ़ंग से प्रकाशन चलाना ,ये ऐसे गुण हैं जिनको देखकर राय साहब का मित्र होने पर गर्व होता है।
राय साहब बहुत थोड़ी पूंजी से प्रकाशन चलाते रहे हैं।लेकिन ईमानदारी और पेशेवर नजरिए को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।मेरी किताबों के प्रकाशन में उनकी केन्द्रीय भूमिका रही है।
इन दिनों राय साहब बुजुर्ग हो गए हैं लेकिन सुबह नौ-साढ़े नौ बजे ठीक दुकान पर पहुँच जाते हैं और शाम को पांच बजे निकल देते हैं।संभवतःभारत में कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी इतनी मार्क्सवाद की किताबें नहीं छापी हैं जितनी अकेले राय साहब ने छापी हैं।हम यही चाहते हैं राय साहब इसी तरह सक्रिय रहें और मार्क्सवाद की सेवा करते रहें।
राय साहब बेहद सुलझे मार्क्सवादी हैं,एमए पीएचडी हैं,हिन्दी के प्रख्यात आलोचक नंददुलारे बाजपेयी के छात्र रहे हैं।अनेक वर्ष केन्द्र सरकार के संस्थान नीपा में काम करने के बाद प्रकाशन में लगे हुए हैं।उनसे मैं जब भी मिलता हूँ,मुझे मन में शांति मिलती है।उनके साथ मेरा परिचय तकरीबन 35सालों से हैं।मैं जब जेएनयू पढ़ने आया तो उनसे मेरी मुलाकात हुई ,मित्रता हुई,हम दोनों लंबे समय तक एक-दूसरे के सुख-दुख के साझीदार भी रहे हैं।राय साहब जैसा बेहतरीन मनुष्य,बेहतरीन निष्ठावान मार्क्सवादी मैंने नहीं देखा।
इस समय राय साहब ग्रंथ शिल्पी के नाम से प्रकाशन चलाते हैं।संभवतः भारत में यह अकेला प्रकाशन है जो सिर्फ अनुवाद छापता है।समाजविज्ञान, शिक्षा, साहित्य,मीडिया,दर्शन आदि की तकरीबन 300 से ज्यादा विश्व विख्यात किताबें अकेले राय साहब ने छापी हैं।इतनी किताबें भारत का कोई भी बड़ा प्रकाशक नहीं छाप पाया है।
राय साहब ने जिस निष्ठा के साथ हिन्दी की सेवा की है वह अपने आपमें विरल चीज है।ईमानदारी से प्रकाशन करना,लेखक और अनुवादक को नियम से हर साल रॉयल्टी देना,पेशेवर ढ़ंग से प्रकाशन चलाना ,ये ऐसे गुण हैं जिनको देखकर राय साहब का मित्र होने पर गर्व होता है।
राय साहब बहुत थोड़ी पूंजी से प्रकाशन चलाते रहे हैं।लेकिन ईमानदारी और पेशेवर नजरिए को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।मेरी किताबों के प्रकाशन में उनकी केन्द्रीय भूमिका रही है।
इन दिनों राय साहब बुजुर्ग हो गए हैं लेकिन सुबह नौ-साढ़े नौ बजे ठीक दुकान पर पहुँच जाते हैं और शाम को पांच बजे निकल देते हैं।संभवतःभारत में कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी इतनी मार्क्सवाद की किताबें नहीं छापी हैं जितनी अकेले राय साहब ने छापी हैं।हम यही चाहते हैं राय साहब इसी तरह सक्रिय रहें और मार्क्सवाद की सेवा करते रहें।
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