मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

शीतयुद्ध में मुसलमानों के खिलाफ संघ और अमेरिका भाई भाई


साम्प्रदायिकता का आक्रामक उभार और विकास हमारे देश में शीतयुध्द के साथ तेजी से हुआ है। यह विश्व में उभर रही आतंकी-साम्प्रदायिक विश्व व्यवस्था का हिस्सा है। यह दिखने में लोकल है किंतु चरित्रगत तौर ग्लोबल है। इसकी ग्लोबल स्तर पर सक्रिय घृणा और नस्ल की विचारधारा के साथ दोस्ती है। याराना है। भारत में राममंदिर आंदोलन का आरंभ ऐसे समय होता है जब शीतयुद्ध चरमोत्कर्ष पर था।
      शीतयुद्ध के पराभव के बाद अमरीका ने खासतौर पर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ हमलावर रूख अख्तियार किया है। इसके नाम पर अंतर्राष्ट्रीय मुहिम भी चल रही है, ग्लोबल मीडिया इस मुहिम में सबसे बड़ उपकरण बना हुआ है। मुसलमानों और इस्लामिक देशों पर तरह-तरह के हमले हो रहे हैं। इस विश्वव्यापी इस्लाम -मुसलमान विरोधी मुहिम का संघ परिवार वैचारिक-राजनीतिक सहयोगी है। फलत: ग्लोबल मीडिया का गहरा दोस्त है।
बहुराष्ट्रीय मीडिया कंपनियों और संघ परिवार ने इस्लाम धर्म और मुसलमानों को हमेशा विदेशी ,अनैतिक ,शैतान और हिंसक माना । इसी अर्थ में वे इस्लाम और मुसलमान के खिलाफ अपने संघर्ष को देवता अथवा भगवान के लिए किए गए संघर्ष के रूप में प्रतिष्ठित करते रहे हैं। अपनी जंग को राक्षस और भगवान की जंग के रूप में वर्गीकृत करके पेश करते रहे हैं। शैतान के खिलाफ जंग करते हुए वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन तमाम राष्ट्रों के साथ हैं जो शैतानों के खिलाफ जंग चला रहे हैं। इस अर्थमें संघ परिवार ग्लोबल पावरगेम का हिस्सा है। चूंकि इस्लाम-मुसलमान ‘हिंसक’ होते हैं अत: उनके खिलाफ हिंसा जायज है,वैध है। हिंसा के जरिए ही उन्हें ठीक किया जा सकता है। वे मुसलमानों पर हमले इसलिए करते हैं जिससे हिन्दू शांति से रह सकें। हिन्दुओं के शांति से रहने के लिए मुसलमानों की तबाही करना जरूरी है और यही वह तर्क है जो जनप्रियता अर्जित करता जा रहा है। दंगों को वैध बना रहा है। दंगों को गुजरात में बैध बनाने में इस तर्क की बड़ी भूमिका है। 'शांति के लिए मुसलमान की मौत' यही वह साम्प्रदायिक स्प्रिट है जिसमें गुजरात से लेकर सारे देश में दंगों और दंगाईयों को वैधता प्रदान की गई है। यही वह बोध है जिसके आधार पर साम्प्रदायिक हिंसा को वैधता प्रदान की जा रही है।
     संघ परिवार पहले प्रतीकात्मक हमले करता है और बाद में कायिक हमले करता है। प्रतीकों के जरिए संघ परिवार जब हमले करता है तो प्रतीकों के दबाव में सत्ता को भी ले आता है। वे कहते हैं यदि एक हिन्दू मारा गया तो बदले में दस मुसलमान मारे जाएंगे। वे मौत का बदला और भी बड़ी भयानक मौत से लेने पर जोर देते हैं। वे मुसलमानों की मौत के जरिए व्यवस्था को चुनौती देते हैं। हिन्दुओं में प्रेरणा भरते हैं। व्यवस्था को पंगु बनाते हैं। अपने हिंसाचार को व्यवस्था के हिंसाचार में तब्दील कर देते हैं। साम्प्रदायिकता आज पिछड़ी हुई नहीं है। बल्कि आधुनिकता और ग्लोबलाईजेशन के मुखौटे में जी रही है। मोदी का विकास का मॉडल उसका आदर्श उदाहरण है। इस्लाम,मुसलमान के प्रति हिंसाचार, आधुनिकतावाद और भूमंडलीकरण ये चारों चीजें एक-दूसरे अन्तर्गृथित हैं। इस अर्थ में साम्प्रदायिकता के पास अपने कई मुखौटे हैं जिनका वह एक ही साथ इस्तेमाल कर रही है और दोहरा-तिहरा खेल खेल रही है।
      आज प्रत्येक मुसलमान संदेह की नजर से देखा जा रहा है। प्रत्येक मुसलमान को राष्ट्रद्रोही की कोटि में डाल दिया गया है। मुसलमान का नाम आते ही अपराधी की शक्ल, आतंकवादी की इमेज आंखों के सामने घूमने लगती है। कल तक हम मुसलमान को नोटिस ही नहीं लेते थे अब उस पर नजर रखने लगे हैं। इसे ही कहते हैं संभावित अपराधीकरण। इस काम को संघ परिवार और ग्लोबल मीडिया ने बड़ी चालाकी के साथ किया है। इसे मनोवैज्ञानिक साम्प्रदायिकता भी कह सकते हैं।
      साम्प्रदायिक दंगों को संघ परिवार साम्प्रदायिक दंगा नहीं कहता, बल्कि जबावी कार्रवाई कहता है। यही स्थिति भाजपा नेताओं की है वे भी साम्प्रदायिक दंगा पदबंध का प्रयोग नहीं करते। बल्कि प्रतिक्रिया कहते हैं। उनका तर्क है हिंसा हमेशा 'वे' आरंभ करते हैं। 'हम' नहीं। साम्प्रदायिक हिंसाचार अथवा दंगा कब शुरू हो जाएगा इसके बारे में पहले से अनुमान लगाना संभव नहीं है।  इसी अर्थ में दंगा भूत की तरह आता है। भूतघटना की तरह घटित होता है। दंगा हमेशा वर्चुअल रूप में होता है सच क्या है यह अंत तक नहीं जान पाते और दंगा हो जाता है। हमारे पास घटना के कुछ सूत्र होते हैं,संकेत होते हैं। जिनके जरिए हम अनुमान कर सकते हैं कि दंगा क्यों हुआ और कैसे हुआ। दंगे के जरिए आप हिंसा अथवा अपराध को नहीं रोक सकते। (संघ परिवार का यही तर्क है कि दंगा इसलिए हुआ क्योंकि मुसलमानों ने अपराध किया,वे हिंसक हैं) ,दंगे के जरिए आप भगवान की स्थापना अथवा लोगों की नजर में भगवान का दर्जा भी ऊँचा नहीं उठा सकते।
      दंगे के जरिए आप अविवेकपूर्ण जगत को विवेकवादी नहीं बना सकते।  मुसलमानों का कत्लेआम करके जनसंख्या समस्या का समाधान नहीं कर सकते। मुसलमानों को भारत में पैदा होने से रोक नहीं सकते। मुसलमानों को मारकर आप सुरक्षा का वातावरण नहीं बना सकते। मुसलमानों को पीट-पीटकर तटस्थ नहीं बनाया जा सकता। मुसलमानों की उपेक्षा करके ,उनके लिए विकास के सभी अवसर छीनकर भी सामाजिक जीवन से गायब नहीं कर सकते। हमें इस वास्तविकता को स्वीकार करना होगा कि मुसलमान और इस्लाम धर्म हमारी वैविध्यपूर्ण संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। आप इस्लाम और मुसलमान के खिलाफ चौतरफा आतंक और घृणा पैदा करके इस देश में सुरक्षा का वातावरण और स्वस्थ लोकतंत्र स्थापित नहीं कर सकते।   
       मुसलमान और इस्लाम लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है। लोकतंत्र को कभी अल्पसंख्यकों से खतरा नहीं हुआ बल्कि बहुसंख्यकों ने ही लोकतंत्र पर बार-बार हमले किए हैं। जिन दलों का बहुसंख्यकों में दबदबा है वे ही लोकतंत्र को क्षतिग्रस्त करते रहे हैं। आपात्काल, सिख जनसंहार,गुजरात के दंगे,नंदीग्राम का हिंसाचार आदि ये सभी बहुसंख्यकों के वोट पाने वाले दलों के द्वारा की गई कार्रवाईयां हैं। मुसलमानों के खिलाफ हिंसाचार में अब तक साम्प्रदायिक ताकतें कई बार जीत हासिल कर चुकी हैं। साम्प्रदायिक जंग में अल्पसंख्यक कभी भी जीत नहीं सकते बल्कि वे हमेशा पिटेंगे।
     



12 टिप्‍पणियां:

  1. सादर वन्दे!
    आप जैसे लोग ही समाज में जहर घोलते हैं, अक्ल को खायी में धकेलकर पहाड़ पर खड़े हो जाते हैं और दुनिया को होसियारी सिखाते हैं, आप जिस दिन संघ को जान जायेंगे उस दिन ये सब नहीं लिखेंगे, पहले सोचा इस बेवकूफी परक्या जबाब दूँ लेकिन सहना कहने से ज्यादा गुनाह माना जाता है सो कह दिया. किसी धृष्टता के लिए क्षमा.
    रत्नेश त्रिपाठी

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  2. यह सब कोरी बकवासबाजी है, आपके विचारों से आप ही सहमत होंगें, शायद..

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  3. आज तक जितने भी बम मसलमानों ने फोड़े हैं उसके बारे में आप क्या कहेंगे।

    दुसरी बात आखिर सब मुसलमानो के ही दुश्मन क्यों है? कोई तो कारण होगा या आप को दिखता ही नहीं है।

    आप जैसे लोगों की बजह से निर्दोश लोग बम विस्फोटों में मारे जा रहै हैं।

    आप ये भी बताओ कि पाकिस्तान में जो रोज बम फट रहे हैं वो भी क्या संघ फोड़ रहा है? या फिर वहां पर संघ तालीबान के नाम से काम करता है।

    धन्य हैं आप जैसे लोग।।।।।

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  4. आपकी बौद्धिक ऊंचाई शायद एवेरेस्ट से ऊंची है. मेरी समझ मैच नहीं कर पाई. आपका लेख भी पल्ले नहीं पड़ा. आपके पाठक बहुत अलग होंगे. सारे बुद्धि से ओत-प्रोत.

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  5. सर जी
    लगता है आपने माई नेम इज खान फिल्म देख ली है

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  6. Bahut utkrisht aalekh.Hmare aaspas faily asshishnuta ne sachmuch hume andha bna diya hai.Hum kewal dusro ki aad me hinsa krne ki tarkibe khojte hai.DHANY hai SANGH aur AMERIKIVRCHSW jisne hume ye tk bhula diya ki pahle hum INSAN hai.AABHAR.

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  7. chahe sangh ho athwa koi anya wyakti rashtra me sampradayik unmad failane ka hak kisi ko nahi hai.IS post par aayi pratikriyaon par mujhe sirf itna kahna hai ki kisi film ke aadhar par kisi wishleshan par prashn uthana bilkul thik nahi hai.waise agar koi film kuchh achha sandesh de to use samjhna chahie na ki reactionary tippani deni chahie.baharhal my name is khan me sangh par hamla nahi bola gaya hai,kripya dubara film dekhen.

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  8. हा हा हा.. बहुत उदास मूड में बैठा हुआ था.. इसे पढकर खूब हंसा.. चलिए अब नींद तो अच्छी आएगी..

    बहुत-बहुत धन्यवाद अच्छी नींद देने के लिए.. :)

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. @आर्याजी, कुछ तो गुण गाने ही पड़ेंगे, वामपंथी मेहरबान जो है !

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  11. आपने उन लोगो को सही साबित कर दिया जो ये कहते हैं कि ब्लोग पर केवल बकवास छपती है....बिना कुछ जाने संघ के बारे मैं या किसी भी बात के बारे मैं इतना अधिकृत रूप से लिखने के लिए आप निश्चित रूप से साधुवाद के पात्र हैं.....आप अच्छे नेता बन सकते हैं....पर लेखक नहीं......

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  12. मेरे ब्लॉगर भाइयों,
    कृपया इस ब्लॉग के किसी पोस्ट टिप्पणी नहीं करें, क्योंकि ये महाशय सुर्खियों में रहने के लिए ही अनापशनाप लिखते हैं

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