गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

- मोदी और गुजराती अस्मिता की राजनीति - 1-


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का विगत विधानसभा चुनाव में सबसे चर्चित नारा था ''पांच करोड़ गुजरातियों की अस्मिता'' को वोट दो।  स्वयं को गुजराती अस्मिता का वारिस घोषित किया। मोदी और संघ के अलावा सब इसके दायरे के बाहर हैं। पराए हैं। खारिज करने लायक हैं। यह अनेकार्थी नारा है। फासीवादी नारा है।

इस नारे का पहला संदेश , पांच करोड़ गुजराती खुश हैं, वे मेरा समर्थन कर रहे हैं अत: तुम भी समर्थन करो। यानी लोगों की खुशी को मोदी को चुनने के साथ जोड़ देते हैं।

दूसरा संदेश, यदि आप खुश होना चाहते हैं तो पांच करोड़ की कतार में शामिल हों अथवा दुख के लिए तैयार रहें। पांच करोड़ की कतार में शामिल हैं तो आपका परिवार और संसार सुखी है वरना तुम सोच लो।
तीसरा संदेश, मोदी के पांच करोड़ के संसार में सब सुखी हैं। कोई भी दुखी नहीं। अर्थात् मोदी के पांच करोड़ में दुखियों के लिए कोई जगह नहीं है। वंचितों और बेकारों के लिए कोई जगह नहीं है। जो पांच करोड़ में शामिल नहीं वह खुश नहीं।

    ''पांच करोड़ गुजराती'' के रूपक के बहाने मोदी वस्तुत: धर्मनिरपेक्ष पहचान पर हमला बोलते हैं। लोकतांत्रिक विवेक को निशाना बनाते हैं। सामाजिक तनाव में इजाफा करते हैं। सामाजिक तनाव में प्रतीयमान अर्थ के जरिए इजाफा करते हैं।
       मोदी का ''पांच करोड़ गुजराती अस्मिता'' का नारा फासिस्ट नारा है। इसका मोदी ने रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया है। समृद्धि और खुशहाली के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया है। इस नारे के तहत मोदी सामाजिक तनाव और घृणा को बरकरार रखते हैं। यह एक तरह से घृणा की विचारधारा का पुनर्रूत्पादन है। ''पांच करोड़ गुजराती'' को मोदी एक परिवार के रूप में पेश करते हैं। समूचे राज्य को परिवार बनाकर मोदी राज्य और गुजराती परिवारों के बीच जो अन्तर्विरोध हैं उन पर पर्दादारी करते हैं। पूंजीवाद के अन्तर्विरोधों को छिपाते हैं। भूमंडलीकरण और गुजराती जनता के अन्तर्विरोधों को छिपाते हैं। लोकतंत्र और संघ के बीच के अन्तर्विरोधों को छिपाते हैं। संघ और अल्पसंख्यकों के बीच के अन्तर्विरोधों को छिपाते हैं।
    इस नारे का एक अन्य अर्थ है कि ''पांच करोड़ गुजराती'' मोदी के राज्य में सुखी हैं। वे मोदी के साथ हैं। पांच करोड़ का परिवार सुखी परिवार है, जो सुखी परिवार है वही सब कुछ पाने का हकदार है। अर्थात् समाज में जो लोग सुखी नहीं हैं वे पाने के हकदार नहीं हैं। पाने के हकदार वे ही हैं जो सुखी हैं। इस तरह मोदी अपना वंचितों के खिलाफ एजेण्डा भी बरकरार रखते हैं। वंचितों के प्रति अपने विरोध भाव को बरकरार रखते हैं।

इस प्रक्रिया में मोदी मध्यवर्ग की प्रतिरोध क्षमता को कुंद बनाते हैं,भ्रमित करते हैं और वंचितों में भी विभ्रम पैदा करने में सफल हो जाते हैं। ''पांच करोड़ गुजराती'' के नारे का इस्तेमाल करते हुए मोदी यह भी बताते हैं कि हम अपनी दुनिया कैसे बनाएं ? दुनिया को बनाने के लिए अन्तर्विरोधों में जाने की जरूरत नहीं है। इस तरह वे सामाजिक परिवर्तन के मूलगामी सवालों से ध्यान हटाने में सफल हो जाते हैं। मोदी का मूलत: जोर इस बात पर है कि ''पांच करोड़'' की दुनिया को कैसे बरकरार रखा जाए। उसकी अस्मिता को कैसे बनाए रखा जाए।
    यह नारा एक और काम करता है वह गुजराती जाति के आंतरिक अन्तर्विरोधों पर पर्दादारी। गुजराती जाति कोई इकसार जाति समूह नहीं है। बल्कि उसमें जातिप्रथा के रूप में जातियां हैं और उन जातियों के अपने अन्तर्विरोध भी हैं। इसके अलावा गुजरात में मुसलमान भी रहते हैं जिनके राज्य के साथ अन्तर्विरोध हैं। इन सभी समूहों के आंतरिक अन्तर्विरोधों को चालकी के साथ '' पांच करोड़ गुजराती की अस्मिता'' के नाम पर छिपा लिया गया है और गुजरात की एक सरलीकृत इमेज पेश की गई । गुजरात की अन्तर्विरोधपूर्ण,संश्लिष्ट और जटिल प्रकृति को इससे छिपाने में मदद मिली है।

 ''पांच करोड़ गुजराती की अस्मिता'' के नाम जिस जनता का मीडिया ने बार-बार चेहरा दिखाया,बयान सुनाए और भाजपा ने जिस जनता को पांच करोड़ के साथ एकमेक करके पेश किया,हमें उसकी चेतना के बारे में भी गंभीरता के साथ सोचना होगा।

       भारत में जनता का जयगान बहुत होता है। मोदी का जयगान उससे भिन्न नहीं है , बल्कि एक कदम आगे जाकर मोदी ने अस्मिता को पांच करोड़ के साथ जोड़ दिया है। ध्यान रहे  ‘जनता की चेतना’ के नाम पर अमूमन चेतनता का विरोध किया जाता है। ‘जनता की चेतना’ वस्तुत: अचेतनता ही है जिसका बुर्जुआ पार्टियां दोहन करती हैं। यह ऐसी चेतना है जो शिरकत के भाव से वंचित है अथवा जिसके पास शिरकत का अवसर ही नहीं है। अथवा जिसमें किसी भी किस्म की इच्छी ही नहीं है। अथवा जो अपनी इच्छाओं को दबा लेती है। जो कुछ वास्तव में हो रहा है उसे नोटिस ही नहीं लेती। चुप रहती है। अथवा सब कुछ जानते हुए भी नहीं बोलती।

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुना है कलकता में हिन्दी के प्रोफ़ेसर है आप, वो कहावत तो फिर आप जानते ही होंगे " खिंसियाई बिल्ली खम्बा नोचे "

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  2. गोदियालजी.आप भी दिलचस्प आदमी हैं. मोदी के बीच में बिल्ली काहे को ले आए ,यह महज मूल्यांकन है,बिल्ली नहीं।

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  3. चतुर्वेदी जी,
    मैं तो खैर हूँ ही दिलचस्प मगर मेरा वह कहने का तात्पर्य सिर्फ यह था कि यह जो आप यहाँ अपने लेखो में उजागर कर रहे है, उसे इमानदार शब्दों में कुंठित मानसिकता कहते है ! अभी मैं पाकिस्तान के एक न्यूज़ साईट पर एक लेख पढ़ रहा था , हालांकि मुझे हंसी आ रही थी लेकिन कहीं अपने आस-पास अपने देश के लोगो का मूल्यांकन कर उसमे सत्यता भी दीख रही थी कुछ हिस्सा यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ आपके लिए और साथ में उस लेख का लिंक भी दे रहा हूँ !कभी ठन्डे दिमाग से सोचना कि अगर आपके लेख इतने ही मौलिक और उच्च कोटि के है तो प्रबद्ध लोग इस पर आपसे बहस क्यों नहीं करते?? !!!!
    http://www.paktribune.com/news/index.shtml?224906

    ".....During 1000 years rule of India by the Muslims, the Hindus served the Muslim masters most submissively despite their intense hatred for the Muslims. No sooner the British took over; the Hindus became their most obedient servants and joined hands with the new masters to persecute the Muslims...."

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  4. चतुर्वेदी जी, वामपंथी फ़िनोमिना के बारे में भी लिखेंगे? किस तरह से बंगाल और केरल के गाँव-गाँव में उनका कैडर आतंक फ़ैलाता है? किस तरह से वाम पार्टी का जिला महासचिव जिला कलेक्टर से बड़ा होता है? किस तरह से उद्योगपतियों से हड़ताल के नाम पर ब्लैकमेल करके चन्दा वसूली की जाती है… इस फ़िनोमिना के बारे में भी लिखियेगा, आभारी रहेंगे… :)

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  5. गोदियाल जी, आपकी दिक्कत क्या है, मैं नहीं जानता,मैं हाइपररियलिटी के परिप्रेक्ष्य में मोदी और संघ की भूमिका के बदले स्वरुप की चर्चामात्र कर रहा हूँ और रही बात प्रबुद्धों की चर्चा की तो यह तो वे ही जानें कि पढ़ रहे हैं या नहीं, लेकिन आप तो पढ़ रहे हैं और असहमति भी व्यक्त कर रहे हैं और यही तो संवाद है,संघ की विचारधारा से जो प्रभावित हैं उन्हें लेखों से बदलना संभव नहीं है। दूसरी बात यह है कि आप आरएसएस के बदले मिजाज पर कुछ कहते तो अच्छा लगता,आप बात करते करते पाक काहे चले गए,संघ पर जमकर लिखें ,अंत में ,लेखन कुण्ठा में संभव नहीं है। लेखन कला है। कुण्ठा कला नहीं है।

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  6. सुरेश चिपलूनकर जी, जरुर लिखूँगा, मेरी किताब है, नंदीग्राम पर। इसी ब्लॉग पर अनेक लेख हैं ,कृपया पढ़ें।

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  7. हिन्‍दी ब्‍लॉग पर मोदी पर लिखना स्‍वयं में साहस की बात है...या कहें दुर्भाग्‍य से अब ऐसा हो गया है। इस लिहाज से ये लेख महत्‍वपूर्ण है ये अलहदा बात है कि लेख आपके अन्‍य लेखों की ही तरह छापे कर प्रकृति का ही है इसलिए संवाद की गुंजाइश नहीं छोड़ता। मसलन मौजूं क्‍या है स्‍पष्‍ट नहीं होता... आज मोदी पर क्‍यों? और बिना किसी लिंकन के क्‍यों ?
    मोदी खुद को गुजराती अस्मिता का वारिस घोषित करते हैं, करें पर हमें नहीं लगता कि गुजराती या देशवासी उन्हें गुजराती अस्मिता का वारिस मानते हैं।

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