बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

फिल्मी संगीत का नया पैराडाइम


 संगीत और समाज का द्वंद्वात्मक संबंध होता है। यह रिश्ता प्रभुत्व की शक्तियों और आम जनता के अंतर्विरोधों को व्यक्त करता है। प्रभुत्वशाली तबकों और वंचितों के बीच के अंतर्विरोधों का इस संबंध के विकास पर गहरा प्रभाव देखा जाता है। सामाजिक विकास की शक्तियों को किस तह नियंत्रित किया जाए ? वंचितों में दासत्वबोध और हारे हुए की भावना को कैसे निर्मित जाए ? सांस्कृतिक रूप में किस परिकल्पना के अनुकूल ढाला जाए, यही केंद्रीय चिंता लोकप्रिय संगीत में सक्रिय रहती है।
लोकप्रिय संगीत मूलत: बुर्जुआ संगीत है। आभिजात्य संगीत है। इसमें हमें फिल्मी संगीत, भक्ति संगीत, गैर-फिल्मी संगीत और पाश्चात्य संगीत ये चार तरह के संगीत
रूप मिलते हैं। संगीत के रूप जटिल और विलक्षण होते हैं। उनके बारे में सरलता का दृष्टिकोण असुविधा पैदा करता है। अंर्स्ट फिशर के शब्दों में कहें तो 'समस्त कलाओं में संगीत सबसे ज्यादा अमूर्त और रूपात्मक कला है।' संगीत पर विचार करते समय उसके रूप और किस तरह की सामाजिक अंतर्वस्तु से इसका अंतस्संबंध है, इसका विश्लेषण करना चाहिए। संगीत को संगीत के रूप में देखना रूपपरक दृष्टिकोण की ओर ले जाता है वहीं संगीत और उसकी सामाजिक अंतर्वस्तु के साथ जोड़कर देखने से संगीत के जटिल रूपों को उद्धाटित करने में मदद मिलती है।
हेगेल के शब्दों में सोचें तो 'संगीत की अंतर्वस्तु का अर्थ वही नहीं होता, जो हम दृश्यकलाओं या कविता की बात करते समझते हैं। इसमें जिस चीज का अभाव होता है, वह यही वस्तुपरक बाह्य वस्तु है, चाहे हम इसे कोई वास्तविक प्रपंच मानें, अबौध्दिक विचारों और बिंबों की वस्तुपरकता मानें।'
संगीत की अंतर्वस्तु वह अनुभव है जो व्यक्तिगत (संगीतकार का) होने के साथ-साथ सामाजिक भी होता है। वह संगीतकार के संदर्भ से जुड़ा होता है। संगीत की भूमिका समष्टिगत भावनाओं को उभारने की रही है। इसमें रचनाकार स्वचालित साहचर्यों का इस्तेमाल करता है।
लोकप्रिय फिल्मी संगीत मूलत: शहरी अर्द्धशिक्षित जनता के लोकप्रिय दृष्टिकोण को व्यक्त करता है। यह पेशेवर संगीतकारों की देन है। इसी तरह फिल्मी गीत भी पेशेवर गीतकारों की देन है। ये दोनों ही पेशेवर तबके मूलत: उच्चवर्गों पर निर्भर हैं। ये दोनों अभिजन की जन-कला के अंग हैं। यह जनता के लिए निर्मित कलारूप है। इसकी इकसार संगीतबोध पैदा करने में, माल के रूप में संगीत का बाजार तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

लोकप्रिय संगीत अत्याधुनिक माध्यम तकनीकी से निर्मित संगीत है। प्रविधि एवं प्रौद्योगिकी प्रगति से इसका गहरा संबंध है। यह संगीत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का स्रोत है। यह ऐसा कलारूप है जिसमें रचनाकार का प्रत्यक्ष स्पर्श महसूस नहीं होता। प्रत्यक्ष स्पर्श का यहां लोप हो जाता है। ध्यान रहे,  तकनीकी विकास का इतिहास जाने बगैर कला के इतिहास को समझना मुश्किल है। तकनीकी प्रक्रियाएं हमेशा से कलात्मक विचारों का अंतर्ग्रंथित हिस्सा ही हैं।

तकनीकी प्रगति सिर्फ आर्थिक रूप से ही लाभप्रद नहीं होती अपितु वह जनता के दैनिक जीवन, अभिरुचियों और मूल्यों का अंग रही है। अत: सामाजिक विकास के लिए तकनीकी विकास अनिवार्य शर्त है। तकनीकी विकास सामाजिक सांस्कृतिक विकास का उपकरण बने इसके लिए तकनीकी पर मास्टरी होना बेहद जरूरी है। जन-कला (मास आर्ट) के नियम कठोर, सुनिश्चित एवं अननुमेय होते हैं। लोकप्रिय संगीत-गीत पर भी यह बात लागू होती है। लोकप्रिय गीत और संगीत का निर्माता फॉर्मूलाबध्द सृजन करता है। उसके लिए जो लोकप्रिय है वह प्रासंगिक है। अगर कोई फॉर्मूला पिट चुका है तो वह कोई दूसरा फॉर्मूला खोज लेता है।

औद्योगिक जन-उत्पादन की यह विशेषता है कि उसका उत्पादक मानकीकृत और अंतर-विनिमय के तत्वों को एक जगह इकट्ठा करके वस्तु का निर्माण करता है। इसमें कम श्रम लगता है। यही स्थिति लोकप्रिय संगीत-गीत की भी है। तैयारशुदा हिस्सों या तत्वों का कम श्रम और लागत से संयोजन करके गीत या संगीत का निर्माण किया जाता है।

लोकप्रिय संगीत में फॉर्मूले से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है फॉर्मूले की पुनरावृत्ति की प्रभावशाली प्रस्तुति। पुनरावृत्ति के कारण संगीत का प्रभामंडल खंडित होता है। संगीत लोकतांत्रिाक, सहज, बोधगम्य और स्टीरियोटाइप हो जाता है। इसी क्रम में संगीत का विसंदर्भीकरण भी हो जाता है। पुनरावृत्ति के बार-बार अनुभव से गुजरने के कारण ही हमें विसंदर्भीकरण अब परेशान नहीं करता। धीरे-धीरे संदर्भरहित चिंतन के हम आदी हो जाते हैं और चीजों को अनैतिहासिक ढंग से देखने और सोचने के आदी हो जाते हैं। लोकप्रिय संगीत इस प्रक्रिया में तेजी से फैलता है, व्यवसाय करता है, अतिरिक्त मांग पैदा करता है और उन्माद की हद तक श्रोताओं में लगाव पैदा करता है।

अतिरिक्त मांग का संबंध संगीत की नई तर्ज के साथ है। अतिरिक्त मांग जितनी ज्यादा और तीव्रता के साथ पैदा होगी उतनी ही गति के साथ नई तर्ज एवं धुन निर्मित की जाती है। इस प्रक्रिया में पुनरावृत्ति का तत्व बना रहता है। नई तर्ज के कारण ही पुनरावृत्तिा के द्वारा सृजित इकसार प्रभाव को तोड़ने में मदद मिलती है। इसका यह कतई अर्थ नहीं है कि सिनेमा संगीत गतिशील होता है। इसके विपरीत अगतिशीलता और निर्वैयक्तिक कारीगरी यहां हावी रहती है। बौध्दिक रूप से यह जड़ एवं स्वतंत्रतारहित होता है। यह तयशुदा परिवेश के साथ संवाद करता है। इसी अर्थ में इसमें शिक्षित
करने की क्षमता नहीं है। व्यक्तित्व रूपांतरण करने में सफल नहीं होता।

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