शुक्रवार, 3 जून 2011

फेसबुक की चुनौतियां और अलगाव


हिन्दी फेसबुक पर बड़े पैमाने पर युवालोग लिख रहे हैं। इनमें सुंदर साहित्य, अनुवाद,विमर्श आदि आ रहा है। इनमें आक्रामक और पैना लेखन भी आ रहा है। साथ ही फेसबुक पर बड़े पैमाने पर बेबकूफियां भी हो रही हैं। फेसबुक एक गंभीर मीडियम है इसका समाज की बेहतरी के लिए,ज्ञान के आदान-प्रदान और सांस्कृतिक- राजनीतिकचेतना के निर्माण के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। अभी हिन्दी का एक हिस्सा फेसबुक पर अपने सांस्कृतिक पिछड़ेपन की अभिव्यक्ति में लगा है। वे निजी भावों की अभिव्यक्ति से ज्यादा इस मीडियम की भूमिका को नहीं देख पा रहे हैं। एक पंक्ति के लेखन को वे गद्यलेखन के विकास की धुरी मानने के मुगालते में हैं।

फेसबुक में कुछ भी लिखने की आजादी है ,इसका कुछ बतखोर लाभ ले रहे हैं,यह वैसे ही है जैसे अखबार और पत्रिकाओं का गॉसिप लिखने वाले आनंद लेते हैं। इससे अभिव्यक्ति की शक्ति का विकास नहीं होता। बतखोरी और गॉसिप से मीडियम ताकतवर नहीं बनता। मीडियम ताकतवर तब बनता है जब उस पर आधुनिक विचारों का प्रचार-प्रसार हो। सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों और समस्याओं के साथ मीडियम जुड़े। हिन्दी में फेसबुक अभी हल्के-फुल्के विचारों और भावों की अभिव्यक्ति के साथ जुड़ा है। कुछ लोगों का मानना है कि यह पासटाइम मीडियम है। वे इसी रूप में उसका इस्तेमाल भी करते हैं। फेसबुक एक सीमा तक ही पासटाइम मीडियम है । लेकिन यह सामाजिक परिवर्तन का भी वाहक बन सकता है। किसी भी मीडिया की शक्ति का आधुनिकयुग में तब ही विकास हुआ है जब उसका राजनीतिक क्षेत्र में इस्तेमाल हुआ है। हिन्दी में ब्लॉगिंग से लेकर फेसबुक तक राजनीतिक विषयों पर कम लिखा जा रहा है। ध्यान रहे प्रेस ने जब राजनीति की ओर रूख किया था तब ही उसे पहचान मिली थी। यही बात ब्लॉगिंग और फेसबुक पर भी लागू होती है। जो लोग सिर्फ साहित्य,संस्कृति के सवालों पर लिख रहे हैं या सिर्फ कविता,कहानी आदि सर्जनात्मक साहित्य लिख रहे हैं उनकी सुंदर भूमिका है। लेकिन इस माध्यम को अपनी पहचान तब ही मिलेगी जब हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लॉगर और फेसबुक लेखक गंभीरता के साथ देश के आर्थिक-राजनीतिक सवालों पर लिखें, किसी न किसी जनांदोलन के साथ जोड़कर लिखें । हिन्दी में अभी जितने भी बड़े ब्लॉगर हैं उनमें से अधिकांश देश ,राज्य और अपने शहर के राजनीतिक हालात पर लिखने से कन्नी काट रहे हैं या उनको राजनीति पर लिखना पसंद नहीं है।

फेसबुक रीयलटाइम मीडियम होने के कारण विकासमूलक और आंदोलनकारी या वैचारिक क्रांति में बड़ी भूमिका निभा सकता है। समस्या है फेसबुक का पेट भरने की। देखना होगा फेसबुक के मित्र- यूजर किन चीजों से पेट भर रहे हैं। खासकर हिन्दी के फेसबुक मित्र किस तरह की चीजों और विषयों के संचार के लिए इस माध्यम का इस्तेमाल कर रहे हैं ? अभी एक बड़ा हिस्सा गली-चौराहों की पुरानी बातचीत की शैली और अनौपचारिकता को यहां ले आया है। इससे जहां एक ओर पुरानी निजता या प्राइवेसी खत्म हुई है। वहीं दूसरी ओर वर्चुअल संचार में इजाफा हुआ है। हमें फेसबुक को शक्तिशाली मीडियम बनाना है तो देश की राजनीति से जोडना होगा। राजनीति से जुडने के बाद ही फेसबुक को हिन्दी में अपनी निजी पहचान मिलेगी और फेसबुक की बतखोरी,गॉसिप और बाजाऱू संस्कृति से आगे जाकर क्या भूमिकाएं हो सकती हैं उनका भी रास्ता खुलेगा। कोई भी मीडिया टिप्पणियों, प्रशंसा,निजी मन की बातें,निजी जीवन की दैनंदिन डायरी, पत्रलेखन से बड़ा नहीं बना, इनसे मीडिया को पहचान नहीं मिलती।ब्लॉगिग,फेसबुक आदि को प्रभावी बनाने के लिए इन माध्यमों का राजनीति से जुड़ना बेहद जरूरी है। फेसबुक यूजरों की संख्या 60 करोड़ से ऊपर है। आज फेसबुक पर गतिविधियां ज्यादा चल रही हैं। इसने गूगल की गतिविधियों को काफी पीछे छोड़ दिया है। इंटरनेट पर इस समय 40 हजार से ज्यादा सर्वर हैं जो सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे हैं। फेसबुक पर प्रतिमाह 4 बिलियन से सूचनाएं यूजरों के द्वारा साझा इस्तेमाल की जाती हैं। 850 मिलियन से ज्यादा फोटोग्राफ हैं और 8 बिलियन वीडियो हैं। ये सब गूगल के पास नहीं हैं। क्लारा शिन ने "दि फेसबुक एराः टेपिंग ऑनलाइन सोशल नेटवर्क्स टु बिल्ड बेटर प्रोडक्टस,रीच न्यू ऑडिएंशेज,एंड सेल मोर स्टफ” नामक किताब में लिखा है ऑनलाइन सोशल नेटवर्क के तेजी से विस्तार ने हमारी जीवनशैली,काम और संपर्क की प्रकृति को बुनियादी तौर पर बदल दिया है। इसने व्यापार के विस्तार की अनंत संभावनाओं को जन्म दिया है। फेसबुक विस्तार के तीन प्रधान कारण हैं। पहला, विश्वसनीय पहचान। दूसरा,विशिष्टता और तीसरा है समाचार प्रवाह। फेसबुक द्वारा डाटा और सूचनाओं के सार्वजनिक कर देने के बाद से इंटरनेट पर्दादारी का अंत हो गया है। सूचना की निजता की विदाई हुई है और वर्चुअल सामाजिकता और पारदर्शिता का उदय हुआ है। डाटा के सार्वजनिक होने से यूजर आसानी से पहचान सकता है कि वह किसके साथ संवाद और संपर्क कर रहा है।ब्लॉगिंग के साथ निजी सूचनाओं के सार्वजनिक करने की परंपरा आरंभ हुई थी जिसे फेसबुक ने नयी बुलंदियों पर पहुँचा दिया है। इसका यह अर्थ नहीं है कि सामाजिक जीवन से निजता का अंत हो गया है। इसका अर्थ सिर्फ इतना है कि इंटरनेट पहले की तुलना में और भी ज्यादा पारदर्शी बना है। साथ ही सामान्य लोगों में निजी बातों को सार्वजनिक करने की आदत बढ़ी है। निजी और सार्वजनिक बातों के वर्गीकरण के सभी पुराने मानक दरक गए हैं। फेसबुक ने प्राइवेसी का अर्थ बदला है पहले प्राइवेसी का अर्थ था छिपाना। लेकिन आज कुछ भी छिपाना संभव नहीं है। आज प्राइवेसी का अर्थ है संचार के संदर्भ का सम्मान करना। नकारात्मक पक्ष है वर्चुअल यथार्थ। यानी यथार्थ का विलोम। वर्चुअल संचार ने समाज में वर्चस्वशाली ताकतों को और भी ज्यादा ताकतवर बनाया है और सामान्यजन को अधिकारहीन,नियंत्रित और पेसिव बनाया है। इंटरनेट आने के बाद दरिद्रता और असमानता के खिलाफ राजनीतिक जंग कमजोर हुई है। वर्चस्वशाली ताकतों को बल मिला है। सामाजिक और राजनीतिक निष्क्रियता बढ़ी है। शाब्दिक गतिविधियां बढ़ी हैं,कायिक शिरकत घटी है। अब हम वर्चुअल में मिलते हैं और वर्चुअल में ही गायब हो जाते हैं।











6 टिप्‍पणियां:

  1. आपने फेसबुक जैसे अत्याधुनिक माध्यम का बेहतर समाज के लिए उपयोग हेतु अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है. लेख के लिए धन्यवाद.

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  2. आपके गंभीर लेखन का मैं कायल हूं, समाजवाद पर तीखे विश्लेषण हमेशा पढ़ता रहा हूं। सवाल यह भी है कि फेसबुक सोशल नेटवर्किंग साईट है, तो इसमें समाज में हो रही घटनाओं, रूढ़िवादिता, असमानता पर कितने लोग लिख रहे हैं। ऐसे गंभीर लेखन पर अपने विचार व्यक्त करने वाले महज 10 प्रतिशत लोग ही होंगे। समाज में सुधार तो हर कोई चाहता है, लेकिन उसके लिए कोशिश कोई नहीं करना चाहता। फेसबुक पर लिखे को कितने लोग पूरी गंभीरता से पढ़ते हैं, पढ़ते भी हैं या सिर्फ टाईमपास करते हैं, लाईक करके औपचारिकता निभाते हैं, चैटिंग करते हैं यह सोच का विषय है। लेखन के लिए बधाई।

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  3. ab isko bhi aap wimarsh tak na laye...fb bhi ab guide book padh ke koi istemal nahi karega...

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  4. सही तो कह रहे है आप । ब्लाग पर तो फिर भी कुछ पढने को मिल जाता है । फेस बुक पर तो 'आज मैने ठंडा पानी पिया' या सिनेमा के गाने या फोटो

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  5. Aawshykta hai wrchual yatharth ke baraks yatharth ki shakti ko samjhane ki. sanchar madhyam jimmedarana rawaiye ki maang krte hai.Mahatwapurna Post.

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  6. अभी हिन्दी का एक हिस्सा फेसबुक पर अपने सांस्कृतिक पिछड़ेपन की अभिव्यक्ति में लगा है।

    सही है आप!

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