सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

सभ्यता की तबाही है सांस्कृतिक चक्काजाम -1-


मीडियाजनित जरूरतें प्रत्येक प्रचार अभियान के साथ बदल जाती हैं। इसी तरह मजूदरों को भी  बांट दिया जाता है। स्थायी मजदूर का अस्थायी मजदूर से भेद किया जाता है। बेकार से दूर रहने को कहा जाता है। ''सांस्कृतिक चक्काजाम''  फिनोमिना के तहत मजदूरों को हायरार्की से जोड़कर पेश किया जाता है। बिजनेस एग्जीक्यूटिव अपने को मालिक समझता है। उसका हायरार्की में सिर्फ जीवनशैलीनस्ल और लिंगभेद के अंतर को कम करके पेश किया जाता है। ''सांस्कृतिक चक्काजाम'' का प्रधान लक्ष्य है युवाओं का आर्थिक,राजनीतिक और वैचारिक शोषण करना।
        साम्राज्यवादी मनोरंजन और विज्ञापन के निशाने पर युवावर्ग है। इस प्रचार अभियान में सामान्य सांस्कृतिक संदेश दिया जाता है कि आधुनिकता अमेरिकी उत्पादों के उपभोग से जुड़ी है। युवाओं को लक्ष्य बनाने के दो लाभ हैं पहला आर्थिक लाभ है,दूसरा है, युवाओं के विद्रोही भाव को नियंत्रित करना, उसे नष्ट करना। यही वजह है कि युवाओं में सत्ताविरोधी भावबोध का क्षय हुआ है। अराजनीतिक भावबोध बढ़ा है।

अमेरिकी मीडियाजनित ''सांस्कृतिक चक्काजाम'' तीसरी दुनिया के देशों में दोहरे भ्रम की सृष्टि कर रहा है। पहला ' अंतर्राष्ट्रीय' का भ्रम, दूसरा 'वर्गातिक्रमण' का भ्रम। इसी तरह टेलीविजन की छद्म इमेजों के जरिए झूठी आत्मीयता और काल्पनिक संपर्क बनाया जा रहा है। इन संपर्कों के जरिए ही निजी समस्याओं के समाधान सुझाए जा रहे हैं। इस तरह की प्रस्तुतियों का संदेश साफ है ,जो पीड़ित है उसे ही अपनी गरीबी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सफलता को व्यक्तिगत प्रयास से जोड़कर पेश किया जा रहा है।
  
   '' सांस्कृतिक चक्काजाम'' का लक्ष्य है वाम को अलग-थलग करना,वर्चस्व को स्थापित करना। इसके लिए वाम को काटने के लिए भ्रष्ट राजनीतिक भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिससे पश्चिमी दुनिया के बड़े पूंजीवादी राष्ट्रों के द्वारा किए जा रहे हमलों, हिंसाचार आदि से ध्यान हटाया जा सके। वाम की भाषा में प्रतिक्रियावादी अंतर्वस्तु को बड़े पैमाने पर अस्सी के दशक में प्रक्षेपित किया गया। पूंजीवाद के पक्षधरों को 'रिफार्मर' ,'रिवोल्यूशनरी' आदि कहा गया। जबकि इनके विरोधियों को 'कंजरवेटिव' कहा गया।

'' सांस्कृतिक चक्काजाम '' वैचारिक भ्रम निर्मित करता है। राजनीतिक भाषा के जरिए राजनीतिक 'डिसओरिएंटेशन' पैदा करता है। राजनीति का अर्थ बदल देता है। इस राजनीतिक मेनीपुलेशन से बहुत सारे प्रगतिशील व्यक्तियों का भी नजरिया प्रदूषित कर देता है। परिणामत: वे सबसे ज्यादा असहाय होते हैं।

''सांस्कृतिक चक्काजाम'' ने 'दक्षिणपंथी' और 'वामपंथी' का अर्थ ही नष्ट कर दिया है। यह अर्थ अनेक तरीकों से नष्ट किया जा रहा है। फलत: इस अंतर का विचारधारा के लिहाज से कोई अर्थ ही नहीं रह गया है। वाम की भाषा को भ्रष्ट करके वे वाम और दक्षिण की साम्राज्यवाद विरोधी राजनीतिक अपील और व्यवहार को भी भ्रष्ट बना देता है।

'' सांस्कृतिक चक्काजाम'' की एक अन्य रणनीति है जनता को संवेदनहीन बनाना। पश्चिमी देशों की सेनाओं के द्वारा किए जा रहे हिंसाचार और हत्याओं को उसने रूटिन और सर्वस्वीकृत गतिविधि बना दिया है। इराक पर भीषण बमबारी को वीडियोगेम का रूप दे दिया है। मानवता के विरूद्ध किए जा रहे अपराधों को नाटकीय-मनोरंजक बना दिया है। आम जनता के पुराने विश्वास को नष्ट कर दिया है जिसके आधार पर वह सोचती थी कि मानवीय दुख बड़ी चीज है। आज मानवीय दुख बड़ी चीज नहीं रह गया है। मानवीय पीड़ा को अब हम गलत नहीं मानते। युध्द की नई तकनीक के आधार पर आधुनिकता को परिभाषित किया जा रहा है।
      
मासमीडिया में अभिजनों और पश्चिम के युद्धास्त्रों का महिमामंडन चल रहा है। ''सांस्कृतिक चक्काजाम'' की विचारधारा ने खबरों में जनसंहारक अस्त्रों को मानवीय निर्मिति के रूप में पेश किया है। इसके विपरीत तीसरी दुनिया के पीड़ितों का कहीं पर भी चेहरा नजर नहीं आता, उन्हें '' आक्रामक-आतंकवादी'' के रूप में पेश किया जा रहा है। ग्लोबल स्तर पर मेनीपुलेशन को बरकरार रखने के लिए राजनीति की भाषा को भ्रष्ट बना दिया गया है। अनुमान,सट्टेबाजी, माफिया गिरोहों द्वारा जमीन हथियाने की मुहिम, व्यापार और संपदा को हथियाने वालों को '' सुधारक '' के रूप में पेश किया जा रहा है।

'' लेबर फ्लैग्जिविलटी' के नाम पर मजदूरों के अधिकारों पर हमले तेज हो गए हैं। वे सबसे ज्यादा असुरक्षित और असहाय हो गए  हैं। इजारेदारी तोड़ने के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों को बहुराष्ट्रीय निगमों को सौंपा जा रहा है। '' रिकनवर्जन'' के नाम पर 19वीं शताब्दी में मजदूरों ने जो सामाजिक अधिकार हासिल किए थे उन्हें छीना जा रहा है। 'रिस्ट्रक्चरिंग' के नाम पर स्पेशलाइजेशन ,उत्पादन की आमदनी का सट्टा बाजार में निवेश किया जा रहा है। ' डिरेगूलेशन' के नाम पर राष्ट्रीय कल्याण के लक्ष्य को नियमित करने के लक्ष्य को तिलांजलि दे दी गयी है और उसकी जगह अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग,बहुराष्ट्रीय सत्ता से जुड़े अभिजन के हाथों सत्ता सौंप दी गयी है।

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