बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

हिंसक फैंटेसी और मोदी का आनंद






    गुजरात में मोदी की सन् 2002 में जब जीत हुई तो सारा देश स्तब्ध रह गया था और जब पांच साल बाद पुन: मोदी जीता तो धर्मनिरपेक्ष लोग विश्वास नहीं कर पा रहे थे और अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। मोदी की जीत के पीछे एक खास किस्म की फैंटेसी काम रही है। जिसे हम हिंसक या हत्यारी फैंटेसी कहते हैं। यह ऐसे लोगों की फैंटेसी है जो संख्या में ज्यादा हो गए हैं कल तक इनकी संख्या कम थी किंतु विगत पन्द्रह सालों में इनकी संख्या बढ़ी है। हत्यारी फैंटेसी के बारे में सामान्यतौर पर एक ही बात जेहन में आती है कि उसे दबाया जाए। किंतु हम अच्छी तरह जानते हैं कि उसे दबाया नहीं जा सकता।

     साम्प्रदायिकता शैतान है। उसका लक्ष्य है भारत पर एकच्छत्र शासन स्थापित करना। इस लक्ष्य को हासिल करने में साम्प्रदायिकता ने कभी आलस्य नहीं दिखाया। साम्प्रदायिक ताकतें जानती हैं कि वे प्रतीकात्मक रणनीति के तहत सक्रिय हैं, प्रतीकों के जरिए ही हमला करती हैं और आमलोगों के आलस्य का दुरूपयोग करती हैं।

 अमूमन साम्प्रदायिक संगठन के प्रतीक हमलों के प्रति हम आलस्य और उपेक्षा का भाव दिखाते हैं। इसके विपरीत संघ परिवार कभी भी अपने प्रतीकात्मक हमलों को लेकर आलस्य अथवा उपेक्षाभाव नहीं दिखाता। काफी लंबे समय से संघ परिवार के एजेण्डे पर मुसलमान और ईसाई हैं। इस्लाम और ईसाई धर्म है। अब ये हमले वाचिक हमले की शक्ल से आगे जा चुके हैं।

भूमंडलीकरण और नव्य-उदारतावाद के दौर में संघ के प्रतीकात्मक हमले तेज हुए हैं। मोदी इन्हीं हमलों की पैदाइश है। संघ की प्रतीकात्मक जंग का महानायक है मोदी। संघ के प्रतीकात्मक हमलों के निशाने पर जहां एक ओर अल्पसंख्यक हैं वहीं दूसरी ओर ग्लोबलपंथी ताकतें और ग्लोबल प्रतीक और ग्लोबल उत्सव भी हैं।

 हमारे दैनन्दिन जीवन में जिस तरह विध्वंस की इमेजों की फिल्मों के जरिए खपत बढ़ी है ,विध्वंस हमें अच्छा लगने लगा है और उसमें मजा आता है। हमारे इसी विध्वंस और हिंसा प्रेम को हिन्दुत्व ने अपने विध्वंसात्मक कर्मों की वैधता का  विचारधारात्मक अस्त्र बनाया है।

हिन्दुत्ववादी संगठनों के विध्वंसात्मक कर्मों को देखकर अब हमें गुस्सा नहीं आता बल्कि मजा आता है,रोमांचित होते है और ऐसे ही घटनाक्रमों की और भी ज्यादा मांग करने लगे हैं ।यह वैसे ही है जैसे हम हिंसक फिल्में देखते हुए और भी ज्यादा हिंसक फिल्मों की मांग करते हैं। यह वैसे ही है जैसे पोर्नोग्राफी देखकर आप और पोर्नोग्राफी की मांग करते हैं।
      हमने अपने को सहजजात संवृत्तियों के हवाले कर दिया है। सहजजात संवृत्तियों के प्रति हमारे आकर्षण ने संघ के हमलों के प्रति सहिष्णु,उदार और अनुयायी बना दिया है।

जब मुस्लिम बस्तियों पर हमले किए गए और मुसलमानों को जिंदा जलाया गया तो हम भूल ही गए कि ऐसा करके संघ परिवार ने देश की आम जनता को संकेतों के जरिए समझा दिया है कि तुम्हारा हिंसक आनंद का सारा सामान हमारे पास है। अब वे हिंसा के नए खेल के नियम तय कर रहे हैं। नए नियम के मुताबिक संघ परिवार अब ज्यादा उन्मादी,बेलगाम और हिंसक हो गया है। साम्प्रदायिक ताकतें आज इतनी ताकतवर हैं कि वे कहीं पर भी हमला करती हैं और उनके संगठन के मुखिया अथवा हत्यारे लोग खुलेआम घूमते रहते हैं। पहले की तुलना में वे अब ज्यादा असहिष्णु ,आक्रामक और बर्बर हो गए हैं। आज उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है। उनकी किसी के प्रति जबावदेही नहीं है।
    

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय चतुर्वेदी जी,
    मोदी की जीत के पीछे कथित फैंटेसी काम कर रही है, लेकिन क्या आप बताने की कृपा करेंगे कि माओवादियों के कत्लेआम के पीछे कौन फैंटैसी काम कर रही है.
    आपने बताया कि सांप्रदायिकता शैतान है, लेकिन छद्म धर्मनिरपेक्षता क्या है? पश्चिम बंगाल सरकार ने अल्पसंख्यकों(नहीं, नहीं, मुसलमानों को) जो दस प्रतिशत आरक्षण दिया है, वो क्या है, आपके कम्युनिष्ट और माओवादी मित्र क्या चाहते हैं, वो भी लिखिए, भारत की जमीन हड़पने वाले साम्राज्यवादी चीन के बारे में कहिए, तिब्बत पर कब्जा जमाने वाले, चीन से पूछिए. भारत को चारों और से घेर रहे चीन के बारे में पूछिए. पश्चिम बंगाल में सत्ता जाने लगा तो बुद्धदेब बौखला गए. चीन सिंगुर और नंदीग्राम में सीपीएम कार्यकर्ताओं ने सैंकड़ों लोगों की हत्या की उसके पीछे कौन की फैंटैसी काम कर रही है.
    जिस तरह आप कम्युनिष्टों ने देश के साहित्य, इतिहास और परोक्ष रूप से सत्ता पर कब्जा किया, माओवादी जिस तरह से देश में रक्तपात कर रहे हैं. आप विचारवादी कश्मीरी पंडितों को घाटी से भागने के लिए मजबूर कर कश्मीर को एक अलग पाकिस्तान बना रखा है, उसे क्या कहा जाए. क्या कहा जाए उन मिशनरियों को जो देश को ईसाई राष्ट्र बनाने के लिए बनाने के लिए तरह तरह का दुष्कर्म कर रहे हैं. क्या आपके मानवाधिकारवादियों ने कभी कश्मीरी पंडितों और सिख दंगों के पीड़ितों के लिए आवाज उठाई. नहीं न. फिर बताइए कौन एकछत्र शासन करना चाहता है.
    बताइये आपने कभी संघ के शाखा का अनुगमन किया है. नहीं न तो फिर आप संघ के बारे में क्या और कैसे जानते हैं
    आपको पता है कि संघ देश में कितने मानव कल्याण संस्थाएं चला रहा है. नहीं न.
    संघ चला रहा है तो क्यों
    क्यों आपके समर्थन वाले माओवादियों ने स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या की.
    क्या ईसाई और इस्लाम को छोड़ बाकी धर्मों को मानने वाला नर्क ही जाएगा.
    नहीं जाएगा तो क्यों वह विविधता वाले हिंदु धर्म को नष्ट कर रहे हैं.
    आप विचारवादी लोग हैं इसलिए मैं आपसे विचारों की वार्ता चाहता हूं.
    आपने लिखा मोदी प्रतीकात्मक हमले की पैदाईश हैं तो ये छद्म-धर्मनिरपेक्षता पंथी किसकी पैदाईश हैं.
    जब आप अनुवाशिकता विशेषज्ञ हैं तो सबके बारे में कष्ट-कलम चलाए.
    आपने ग्लोबल प्रतीकों के बारे में भी लिखा-
    क्या है ग्लोबल प्रतीक और क्या ग्लोबल उत्सव, कौन हैं ग्लोबल महापुरूष, कौन हैं ग्लोबल साहित्यकार,
    विचारधारात्मक दुर्गंध फैलाने में कम्युनिष्टों, छद्म-धर्मनिरपेक्षता वादियों और तथाकथित मानवाधिकारवादियों की कोई सानी है क्या.
    विदेशी पैसों पर पलने वाले मिशनरी, मैकाले, मुल्ला, मार्क्स के चक्षु चुंबन करने वालों ने दुनिया को गंदा करने में कौन सी कसर छोड़ी है.
    आपके मानवाधिकार वादियों ने और छद्म-धर्मनिरपेक्षियों ने कभी भी उन 58 कारसेवकों के परिजनों के पास जाने की कोशिश की, जिन्हें अल्लाह के बंदों ने ट्रेन में जलाकर मार दिया, क्या आपने उन कारसेवकों के चित्र देखें हैं.
    ताकतवर सांप्रदायिक ताकतें नहीं, आपकी छद्म-धर्मनिरपेक्षतावादी ताकते हैं, मानवाधिकारवादी, मिशनरी, और मार्क्सवादी हैं.

    अंत में,
    मैं इस तीक्ष्ण लेख नहीं लिखता हूं, लेकिन आपके उग्रवाद ने हमें दहशत में डाल दिया.
    क्षमा करेंगे.

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  2. pak mein hinduon ki 22% se ghat kar matr 2% sankhya reh gai. kashmir mein musalmaanon ne sab ko bhaga diya....bimaar mansikta ke shikaar hain aap.

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