शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

राष्ट्रवादी नंगई के प्रतिवाद में

        कल से मोदी के अंधभक्तों ने फेसबुक से लेकर टीवी चैनलों तक जो राष्ट्रवादी नंगई दिखाई है वह शर्मनाक है।ये सारी चीजें हम सबके लिए बार-बार आगाह कर रही हैं कि देश को हमारी जनता ने कितने खतरनाक लोगों के हाथों में सौंप दिया है.इससे एक निष्कर्ष यह भी निकलता है कि टीवी न्यूज चैनल समाचार देने के लक्ष्य से काफी दूर जा चुके हैं।जो लोग मोदी के हाथों में देश को सुरक्षित देख रहे थे ,वे भी चिन्तित हैं कि किस कम-अक्ल नेता के पल्ले पड़े हैं !

सवाल किए जा रहे है आप सर्जीकल स्ट्राइक के पक्ष में हैं ॽआप इसका स्वागत करते हैं ॽमेरा मानना है ये दोनों ही सवाल बेतुके और गलत मंशा से प्रेरित हैं। लेखकों-बुद्धिजीवियों और अमनपसंद जनता कभी भी इस तरह के सवालों को पसंद नहीं करती।लेखक के नाते हम सब समय जनता के साथ हैं और शांति के पक्ष में हैं।हमारे लिए राष्ट्र,राष्ट्रवाद,सेना आदि से शांति का दर्जा बहुत ऊपर हैं।जेनुइन लेखक कभी भी सेना ,सरकार और युद्ध के साथ नहीं रहे।जेनुइन लेखकों ने हर अवस्था में आतंकियों और साम्प्रदायिक ताकतों का जमकर विरोध किया।सिर्फ भाड़े के कलमघिस्सु ही युद्ध और उन्माद के पक्ष में हैं ।

जेनुइन लेखक की चिन्ताएं सत्य और शांति के साथ जुड़ी हैं,इस सत्य को फेसबुक और मीडिया में सक्रिय मतांधों की भीड़ नहीं समझ सकती। दिलचस्प पहलू यह है टीवी मीडिया इन मतांधों को व्यापक और अहर्निश कवरेज दे रहा है इसने देश में शांति के वातावरण को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त किया है। टीवी न्यूज चैनल और मोदी के अंधभक्त,जिनमें पेड नेटदल भी शामिल है,उनकी विगत तीन साल से यह कोशिश है कि हर हालत में अशान्ति बनाए रखी जाय,दुखद बात यह है केन्द्र सरकार भी इन मतांधों के इशारों पर हरकतें कर रही है। केन्द्र सरकार के मंत्री भी मतांधों की तरह बोल रहे हैं।

भारत-पाक के बीच के तनाव में हम सब यही चाहते हैं कि शान्ति हर हाल में बहाल हो।लेकिन संघ परिवार यह चाहता है कि अशान्ति बनाए रखी जाय।इसके लिए पाक विरोधी घृणा पैदा करने के लिए संघ के प्रचारतंत्र के जरिए रोज नए मुद्दे छोड़े जा रहे हैं ,इन मुद्दों को नियोजित ढ़ंग से टीवी न्यूज चैनलों से प्राइम टाइम में प्रक्षेपित किया जा रहा है,अधिकांश टीवी चैनलों के टॉक टाइम की ठेके पर खरीददारी हो चुकी है,हर चैनल संघी झूठ का बेहतरीन प्रस्तोता बनने की होड़ में लगा है।संघी प्रचारतंत्र का इस तरह इलैक्ट्रोनिकतंत्र खड़ा कर दिया गया है ।हम सबके लिए यह गंभीर चुनौती है।हमने कभी सोचा ही नहीं था कि टीवी न्यूज चैनल इस तरह संघी प्रचारतंत्र का अंग बनकर अहर्निश आम जनता के ऊपर हमले करेंगे,शांति के पक्षधरो पर हमले करेंगे.जनता के ऊपर ये हमले सभी किस्म के संचार के नियमों और संहिताओं को तोड़कर किए जा रहे हैं।कायदे से टीवी न्यूज चैनलों के इस तरह के रवैय्ये के खिलाफ संयुक्त भाव से लेखकों-बुद्धिजीवियों और मीडियाकर्मियों को एकजुट होकर प्रतिवाद करना चाहिए।आम जनता में रोज इन चैनलों को बेनकाब करना चाहिए।राज्यों से लेकर जिलों तक न्यूज चैनलों के खिलाफ कन्वेंशन और सभाएं आयोजित की जानी चाहिए।आम जमता को इन न्यूज चैनलों की हरकतों के खिलाफ सचेत करने और गोलबंद करने की सख्त जरूरत है।आज माध्यम साक्षरता को प्रधान एजेण्डा बनाने की जरूरत है।

भारत-पाक में सामान्य संबंध कैसे बहाल हों इस पर सरकार सोचे,लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही देशों में सरकारें उन्मादियों,आतंकियों और साम्प्रदायिक ताकतों के हाथों में हैं।ये लोग अमेरिका के पिछलग्गू हैं।अमेरिका चाहता है भारत और उसके आसपास के मुल्कों में मित्रतापूर्ण वातावरण खत्म हो जाय।संयोग से दोनों सरकारें सचेत रूप से भारतीय उपमहाद्वीप का माहौल बिगाडने में लगी हैं।



लेखकों की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वे मोदी सरकार और सेना के साथ खड़े हों।लेखकों की जिम्मेदारी है वे आम जनता के साथ खड़े हों।भारतीय उपमहाद्वीप की जनता के साथ खड़े हों।उन तमाम प्रयासों का समर्थन करें जिनसे इस उपमहाद्वीप में शांति बहाल करने में मदद मिले।सेना आतंकियों को मारे,देश की सीमाओं की रक्षा करे,यह उसका नियमित काम है।इसके लिए सेना की जय हो जय हो करने की जरूरत नहीं है।मसलन्,मैं एक शिक्षक हूँ,नियमित कक्षा में जाकर पढाना मेरी नौकरी का हिस्सा है,मैं यह काम करके कोई महान् कार्य नहीं करता,इसके लिए मेरी प्रशंसा नहीं होनी चाहिए।इसी तरह सेना का काम है सीमाओं की चौकसी करना,शांति बहाल रखना,आतंकियों के हमलों को विफल करना,सेना यह काम करती रही है।सेना ने पहले भी अनेक बार सर्जीकल स्ट्राइक की हैं।यह विशिष्ट किस्म की हमलावर कार्रवाई है,लेकिन इसके लिए युद्धोन्माद की कोई जरूरत नहीं है।भारत की शांतिपसंद जनता,धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों,जेएनयू,जादवपुर,हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों पर वैचारिक हमले करने की कोई जरूरत नहीं है।कल मैं जब टाइम्स नाउ देख रहा था तो अर्णव गोस्वामी को मैंने देश के शांतिपसंद लोगों पर हमले करते पाया,जेएनयू आदि पर हमले करते हुए पाया,इस तरह के हमले बताते हैं कि आरएसएस के लोग अंदर तक कितने बर्बर हो चुके हैं और दिमागी तौर पर दिवालिया हो चुके हैं,अर्णव गोस्वमी जब मतांधों की तरह बोलता है तो वह वस्तुतःवही कह रहा होता है जो आरएसएस के लोग उसे बोलने के लिए कहते हैं,वह तो बेचारा संघ का भोंपू है,उसके जरिए आप संघ की प्रचार प्रणाली,राष्ट्रविरोधी प्रचार सामग्री को सहज ही देख सकते हैं।हो सकता है इतने दिनों तक संघ के इशारों पर नाचते-नाचते वह स्वाभाविक तौर पर मतांध हो गया हो !

1 टिप्पणी:

  1. महाशय,
    सादर नमन. मैंने कल हिन्दी समारोह जो कि 15 वुड स्ट्रीट में आयोजित की गयी थी में बतौर मुख्य अतिथि आपको सुना और आपसे काफी प्रभावित हुआ. फिर इंटरनेट पर आपको ढूंढते—ढूंढते यहां तक आ पहुंचा. परंतु आपके इस लेख ने मुझे काफी निराश किया. यहां आपने लिखा है कि
    'हमारे लिए राष्ट्र,राष्ट्रवाद,सेना आदि से शांति का दर्जा बहुत ऊपर हैं। जेनुइन लेखक कभी भी सेना ,सरकार और युद्ध के साथ नहीं रहे।जेनुइन लेखकों ने हर अवस्था में आतंकियों और साम्प्रदायिक ताकतों का जमकर विरोध किया।सिर्फ भाड़े के कलमघिस्सु ही युद्ध और उन्माद के पक्ष में हैं ।'

    परंतु आज की परिस्थिति में शांति से अधिक सुरक्षा आवश्यक प्रतीत होती है। जैसा कि समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ कि वे सभी 38 आतंकी त्योहार के दौरान देश के भीतर कुछ खतरनाक घटनाओं को अंजाम देने वाले थे, तो समय रहते उनका समाधान करना उचित था। यह सब भी शांति के लिए ही किया गया। यदि सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह कदम नहीं उठाया गया होता तो शायद देश के भीतर शांति—व्यवस्था कायम रख पाना मुश्किल होता। मैं कोई मोदी जी का अंधभक्त नहीं हूं और न ही उनकी हर बातों से सहमति रखता हूं। कल आपके द्वारा विमोचित की गई पुस्तक में मैंने भी एक रचना प्रस्तुत करने का साहस किया है, इससे आपको इस बात की पुष्टि हो सकेगी। मैं उस रचना से सम्बंधित एक लिंक भी यहां शेयर कर रहा हूं आशा है आप इसे अवश्य पढेंगे — http://apnedilki.blogspot.in/2016/08/seventh-pay-commission.html
    जहां तक मैं मोदी जी के व्यावसायिक नीतियों व कर्मचारी विरोधी नीतियों का घोर विरोधी हूं। परंतु देशहित में उनके द्वारा उठाया गया ये कदम आलोचना के लायक नहीं बल्कि सराहना और प्रोत्साहन के लायक है।
    इस लेख में आपने लिखा है कि कोई भी जेनुइन लेखक युद्ध का समर्थक नहीं होगा। फिर आप डॉ0 हरिओम पंवार के बारे में क्या कहेंगे वे तो वीर रस के कवि हैं और कम से कम इस प्रकार की शांति के समर्थक तो नहीं हैं। युद्ध हमेशा विध्वंश के लिए ही नहीं होता है, शांति कायम रखने के लिए भी होता है।

    आपके आशीषों का आकांक्षी

    शुभेश कुमार
    sk_bhasker@yahoo.in

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