बांग्ला में बुद्धिजीवियों का एक वर्ग वाम विरोध के बहाने मिथ्याचार पर उतर आया है। यह सच है माकपा ने अनेक गलतियां की हैं और उन गलतियों का विरोध करना जरूरी है । लेकिन माकपा के खिलाफ विवेकहीन उन्माद पैदा करना बौद्धिक अनाचार है। बांग्ला के जो बुद्धिजीवी ममताभक्ति में माकपा का अंधविरोध कर रहे हैं। उसके तराने गा रहे हैं वे सचेत ढ़ंग से बौद्धिक अपराध कर रहे हैं। यहां हम कुछ ऐसी बातों की ओर ध्यान खींचना चाहते हैं जो ममता बनर्जी के भ्रष्टाचारण और सत्ता के दुरूपयोग की कोटि में आते हैं।
मसलन ममता बनर्जी और उनके दल का मानना है लालगढ़,सालबनी,गोलटोर, झाडग्राम आदि में माकपा के तथाकथित हरमदवाहिनी के कैंप हैं। यह बात सत्य से मेल नहीं खाती। इसका सबसे बड़ा सबूत है हाल ही में सीआरपीएफ की 50 वीं बटालियन के कमांडेंट द्वारा दिया गया बयान। सीआरपीएफ कमांडेंट शंकरसेन गुप्त ने गृहमंत्री पी.चिदम्बरम् के द्वारा भेजी 'हरमदवाहिनी' (गुण्डावाहिनी) के तथाकथित कैंप की सूची की मौके पर जाकर तहकीकात की और पाया कि जिन जगहों पर 'हरमद' कैंप होने की बात कही गयी है वहां कोई कैंप नहीं हैं। सीआरपीएफ ने सूची में बताए स्थानों की तीन दिनों तक गहरी छानबीन की और पाया कि संबंधित इलाकों में कोई 'हरमद' कैंप नहीं है। यहां तक कि माकपा के लालगढ़ इलाके में अचानक अनेक नेताओं के घरों और माकपा पार्टी दफ्तरों पर भी छापे मारे गए लेकिन कोई अस्त्र-शस्त्र बरामद नहीं हुआ। सीआरपीएफ की छानबीन किसी तरह स्थानीय पुलिस अफसरों से प्रभावित न हो इसके लिए मिदनापुर के एसपी मनोज वर्मा और झाडग्राम के एसपी प्रवीण त्रिपाठी तीन दिन की छुट्टी पर चले गए। इन तीन दिनों में ही संयुक्त सशस्त्रबलों ने गृहमंत्री के द्वारा भेजी 'हरमद' कैंप सूची की चप्पे-चप्पे पर जाकर छानबीन की और पाया कि वहां कोई 'हरमद' कैंप नहीं है। बल्कि कुछ शरणार्थी कैंप जरूर हैं। इस छानबीन के आधार पर केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के कमाण्डेट ने जो बयान दिया है वह एक ही साथ कई काम कर गया है। उल्लेखनीय है सीआरपीएफ को सीधे केन्द्रीय गृहमंत्रालय नियंत्रित करता है और उसके अफसर सीधे उसके प्रति जबाबदेह हैं। सीआरपीएफ कमाण्डेंट शंकरसेन गुप्त के बयान का अर्थ है कि हरमद कैंपों के बारे में गृहमंत्री चिदम्बरम और ममता बनर्जी ने जो बयान दिए हैं वे एकसिरे से गलत और असत्य हैं।
दूसरा फलितार्थ है बांग्ला मीडिया में अंध माकपा विरोध के नामपर हरमदवाहिनी पर छपी खबरें कपोलकल्पित हैं। यह बांग्ला मीडिया की असत्य रिपोर्टिंग है। सीआरपीएफ के कमाण्डेंट के बयान से मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और माकपा की साख में सुधार आएगा। तीसरा फलितार्थ यह कि बांग्ला बुद्धिजीवियों के द्वारा जो हरमदभजन चल रहा है वह असत्य है।
जो बुद्धिजीवी माकपा का विरोध करना चाहते हैं और ममता बनर्जी का साथ देना चाहते हैं उन्हें ऐसा करने का लोकतांत्रिक हक है । लेकिन वे माकपा विरोध के नाम पर असत्य के प्रचारक का काम कर रहे हैं जो पश्चिम बंगाल की जनता और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के खिलाफ है। बुद्धिजीवी जब असत्य का प्रचार करने लगे,पार्टी के आदेश पर लिखने और बोलने लगे तो वह सत्य को सही रूप में देख ही नहीं पाता। ये बुद्धिजीवी शौक से ममता बनर्जी का साथ दें लेकिन असत्य न बोलें। वे माकपा का विरोध करें लेकिन तृणमूल के भ्रष्टाचारण का हिस्सा न बनें। ये ही वे बुद्धिजीवी हैं जिन्हें माकपा की गलतियां 33 साल तक नजर नहीं आयीं और इनमें से अधिकांश ने वाममोर्चा सरकार की मलाई खाई है लेकिन अचानक इनकी नंदीग्राम-सिंगूर की घटना के बाद तन्द्रा टूटी और कहने लगे कि माकपा में यह गलत है वह गलत है।
एक विवेकशील और ईमानदार बुद्धिजीवी वह है जो गलती की ओर सही समय पर ध्यान खींचे। वाम बुद्धिजीवी इस दुविधा में चुप रहते हैं कि बोलें या न बोलें। माकपा या वाममोर्चा गलती करे तो उसका खुलकर प्रतिवाद करना चाहिए लेकिन वे ऐसा नहीं करते ,वे मान बैठे हैं कि हम बोलेंगे तो पार्टी निकाल देगी। लेकिन सच यह है कि वे सार्वजनिक तौर पर बोलते तो माकपा और वाममोर्चे की आज यह दुर्दशा न होती। ठीक यही मनोदशा तृणमूल कांग्रेस का अंध समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों की है। वे ममता बनर्जी के अच्छे-बुरे सभी कामों का अंध समर्थन कर रहे हैं। वे ममता बनर्जी की गलत नीतियों पर चुप्पी लगाए हुए हैं और यह आभास दे रहे हैं कि ममता बनर्जी पक्षपातरहित और ईमानदार है। लेकिन सत्य और यथार्थ इसकी पुष्टि नहीं करता।
ममताभक्त बांग्ला बुद्धिजीवियों को रेलवे के प्रथमश्रेणी के मुफ्त पास मुहैय्या कराए गए हैं। देश में अन्य भाषाओं के बुद्धिजीवियों को ये पास क्यों नहीं दिए गए ? यह सार्वजनिक संपत्ति के दुरूपयोग और पक्षपातपूर्ण वितरण का प्रमाण है। बांग्ला के ममताभक्त बुद्धिजीवियों में यह नैतिक साहस होना चाहिए कि वे रेलवे के मुफ्त पास वापस कर दें।
बांग्ला मीडिया में छपी खबरें बताती हैं कि ममता बनर्जी अपने भक्त बुद्धिजीवियों को रेलवे की तथाकथित बोगस कमेटियों में रखकर मासिक मेहनताने के रूप में प्रतिमाह मोटी रकम दे रही हैं। इन खबरों का ममता बनर्जी और ममताभक्त बांग्ला बुद्धिजीवियों ने कभी खंडन नहीं किया। ममता बनर्जी की मंत्री के नाते इस तरह की हरकतें पक्षपात और भ्रष्टाचरण की कोटि में आती हैं। यह बुद्धिजीवियों को क्रीतदास बनाकर रखने की कोशिश है। इसके अलावा ममता बनर्जी मंत्री बनने के बाद सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही रेल उदघाटन का काम कर रही हैं। बाकी देश में भी रेल पटरियों और स्टेशनों पर समस्याएं हैं सवाल उठता है उन्हें कभी देश के बाकी हिस्सों की याद क्यों नहीं आती ? क्या हिन्दी भाषी प्रान्तों में रेलवे लाइनों के अपग्रेडेशन की जरूरत नहीं है ? क्या रेल मंत्रालय प्रांत मंत्रालय है ? उद्योगमंत्रालय का विकल्प है ? क्या बेकारी दूर करने की रामबाण दवा रेलमंत्रालय के पास है ?
आज ही समाचार पढा कि मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृहमंत्री से बंगाल की हत्याओं के लिए क्षमा मांगी:)
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