मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

'निराला' ,सरस्वती,बसंत और नए की तलाश

                                           (महाकवि स्व.सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला')
आज खुशी के कई मौके हैं। महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिन है, बसन्तपंचमी है और आज ही सरस्वती पूजा भी है। यह दिन कई अर्थ में महत्वपूर्ण है। यह नए के आह्वान का दिन है। हमारे समाज में नए के प्रति जो डर है,शंका है,संशय है,झिझक है उसको दूर भगाने का दिन है बसन्तपंचमी,यह नए के स्वागत का दिन है। आज के दिन हमारे परिवारों में सरस्वती पूजा होती है और शिक्षा,संस्कृति और सभ्यता के नए रूपों के आगमन की कामना की जाती है। निराला ने 'वर दे वीणावादिनी वरदे 'शीर्षक से बड़ी ही सुंदर कविता माँ सरस्वती पर लिखी है। आनंद लें-
    वर दे ,वीणावादिनी कर दे !
    प्रिय स्वतन्त्र-रव अमृत-मन्त्र नव
                भारत में भर दे !
    काट अन्ध -उर के बन्धन-स्तर
    बहा जननि ,ज्योतिर्मय निर्झर;
    कलुष -भेद-तम हर प्रकाश भर
            जगमग जग कर दे !

       नव गति,नव लय,ताल-छन्द नव,
   नवल कण्ठ ,नव जलद-मन्द्र रव;
   नव नभ के नव विहग-वृन्द को
             नव पर,नव स्वर दे !
  

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