मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

मिस्र का राजनीतिक संकट और अमरीकी खेल


      मीडिया प्रस्तुतियों में मिस्र का मौजूदा आंदोलन स्वतःस्फूर्त्त लगता है लेकिन यह संगठित और पूर्व नियोजित प्रतिवाद है। इसे सीआईए,पेंटागन और विदेश विभाग के योजनाकारों ने तैयार किया था और इसकी तैयारियां काफी पहले से चल रही थीं। ग्लोबल रिसर्च डॉट कॉम के अनुसार इसकी योजना तीन साल पहले बना ली गयी थी। इस योजना में सीआईए ने नागरिक संगठनों,ब्रदरहुड और विपक्ष के अन्य संगठनों को शामिल कर लिया था और ठीक योजना के अनुसार ही चीजें घटित हुई हैं। साथ ही इस योजना के बारे में अमेरिका के सत्तापक्ष और विपक्ष की भी सहमति ले ली गयी थी। इस समूची योजना का बुनियादी लक्ष्य था मध्यपूर्व में अमेरिकी हितों की रक्षा और विस्तार करना।
   आम जनता को दिग्भ्रमित करने के लिए मीडिया में अमेरिका के छुटभैय्या नेताओं ने हल्ला मचाया कि मिस्र में इतना बड़ा जनप्रतिवाद होने वाला था और अमेरिकी गुप्तचर संस्थाएं पहले से इसके बारे में बता नहीं पायीं। सच इसके एकदम विपरीत है। समूचा आंदोलन और उसके विभिन्न चरणों की योजना सीआईए-पेंटागन-विदेश विभाग ने बनायी थी। वे जानते थे मिस्र में आम जनता मुबारक के खिलाफ है और उन्हें हटाना चाहती है और इस गुस्से को चैनलाइज करने के लिए प्रिएम्टिव एक्शन के तौर पर जन प्रतिवाद आयोजित किया गया। सतह पर लगता है कि मिस्र की जनता के प्रतिवाद के बारे में अमेरिकी प्रशासन एकदम अंधेरे में था लेकिन सच यह नहीं है,मीडिया ने इसे अमेरिका की जासूसी संस्थाओं की असफलता कहा है और इस प्रचार को बहाने के रूप में इस्तेमाल करते हुए अमेरिकी प्रशासन मिस्र और दूसरे मध्यपूर्व के देशों में अपने जासूसी नेटवर्क को और भी पुख्ता बनाने में जुट गया है।
    मिस्र के जनांदोलन की विशेषता है कि इसे आरंभ किसी भी मंशा से किया गया हो और इसका नेतृत्व किसी भी गुट या राजनीतिक विचारधारा के हाथ में हो लेकिन इस इसके दूरगामी असर होंगे। आम मिस्रवासियों में लोकतंत्र की भावना मजबूत होगी,लोकतंत्र का रास्ता खुलेगा और सामान्य जीवन में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति आकर्षण बढ़ेगा।
     मिस्र के अभी के हालत में कोई सरकार संयुक्त मोर्चे के बिना नहीं बनेगी और सेना की उसमें प्रमुख भूमिका रहेगी ।यही बात अमेरिकी प्रशासन ,मिस्र की सेना और राष्ट्रपति मुबारक का दल चाहता है। इस आंदोलन में ऐसी भी ताकतें हैं जो चाहती हैं कि मिस्र में अमेरिकी वर्चस्व को खत्म किया जाए। दूसरी ओर इस्राइल और यहूदी लॉबी चाहती है कि मिस्र में सेना का प्रशासन में वर्चस्व बना रहे। अमेरिका भी अपने हितों के विस्तार के लिए मिस्र की सेना पर ही निर्भर है। यह बिडम्बना है कि अमेरिका मिस्र में सेना को सत्ता मे बने रहने देना चाहता है जबकि कायदे से मिस्र में नागरिक प्रशासन होना चाहिए और अमेरिका भी यदि लोकतत्र का पक्षधर है तो उसे नागरिक प्रशासन पर जोर देना चाहिए। लेकिन अमेरिका चाहता है किसी भी तरह सेना और फंडामेंटलिस्टों का समझौता हो जाए और लोकतांत्रिक शक्तियों को अलग-थलग कर दिया जाए। इस क्रम में ही फंडामेंटलिस्ट संगठन ब्रदरहुड को बातचीत के लिए बुलाया गया है।
    सवाल उठता है मिस्र के राष्ट्रपति हुसैनी मुबारक के साथ ओबामा प्रशासन के संबंध क्यों खराब हुए ? इसका प्रधान कारण है अमेरिका की ईरान नीति। ईरान का ओबामा ने जिस तरह विरोध किया और परमाणु कार्यक्रम के आधार पर ईरान विरोधी जो रूख अपनाया है ,मिस्र के राष्ट्रपति मुबारक ने उस नीति का समर्थन करने से मना किया और विरोध किया है। इसके कारण अमेरिकी प्रशासन ने मुबारक की पीठ पर से अपना हाथ हटा लिया और मुबारक के खिलाफ जनांदोलन को हवा दी और साफ कहा कि आंदोलन का दमन नहीं किया जाना चाहिए।
      मिस्र में इन दिनों इंटरनेट की खपत बढ़ी है। फेसबुक और ट्विटर के सदस्यों की संख्या 2009 में आठ लाख थी ,विगत दो सालों में इसमें इजाफा हुआ है। इस बार के आंदोलन में दो बड़े धड़े हैं जो सक्रिय रहे हैं पहला है किफाया ग्रुप और दूसरा है मुस्लिम ब्रदरहुड,इसके अलावा बड़े पैमाने पर मजदूर संगठनों की इसमें शिरकत रही है। मजदूर संगठनों की कोई राजनीतिक पहचानवाला नेता सामने नहीं आया है जबकि अन्य गुटों के नेता सामने आ चुके हैं।
   आरंभ में किफाया संगठन ने ही समूचा आंदोलन योजनाबद्ध ढ़ंग से तैयार किया था। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अल बरदाई का 2011 में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में उम्मीदवार के रूप में समर्थन की घोषणा कर चुका है और यह बेहद संगठित दल है और अत्याधुनिक संचार तकनीक और उसकी विभिन्न विधाओं में दक्ष कैडरवाहिनी इसके पास है। यह संगठन मिस्र में परिवर्तनों की मांग करता रहा है और पेंटागन और रैंड कारपोरेशन के साथ इसके गहरे संबंध हैं। किफाया का अर्थ है 'बहुत हुआ।' इसके कैडरों को अमेरिकी वित्तीय संस्थानों के कुशल लोगों ने प्रशिक्षित किया है।  
  उल्लेखनीय है कि National Endowment for Democracy  नामक संगठन बड़े पैमाने पर सन् 2001 से अप्रीका और मध्यपूर्व में विभिन्न सत्ताओं को अपदस्थ करने का काम करता रहा है। इस संगठन की वेबसाइट पर तिब्बत से यूक्रेन ,वेनेजुएला से लेकर अफगानिस्तान,इराक,ईरान तक के उन देशों के नाम दिए हैं जहां पर यह सक्रिय है,इसके अलावा मिस्र,ट्यूनीशिया,जोर्डन,कुवैत,लीबिया ,सीरिया,यमन,सूडान आदि में यह संगठन विभिन्न स्वयसेवी संस्थाओं के जरिए सक्रिय है। इस संगठन की वेबसाइट पर जानकारी दी गयी है कि किफाया नामक संगठन को National Endowment for Democracy से आर्थिक मदद मिलती रही है।
     उल्लेखनीय है National Endowment for Democracy को अमरीकी कांग्रेस से सीधे फंड मिलता है। संक्षेप में इसे 'नेड' कहते हैं, इस संगठन के निर्माता और प्रथम अध्यक्ष एलीन विंस्टीन ने 'वाशिंगटन पोस्ट' को 1991 में कहा था कि  “a lot of what we do today was done covertly 25 years ago by the CIA”
    'नेड' के निदेशकों में अमेरिका के भू.पू. रक्षासचिव,सीआईए के उपाध्यक्ष,कारयेले ग्रुप के फ्रेंक कारलूसी,नाटो के पूर्व जनरल वीसली क्लार्क,नव्य संकीर्णवादी युद्धपंथी जलमे खिलाजाद,ये जनाव बुश के जमाने में अफगानिस्तान पर हमले के योजनाकार और बाद में अफगानिस्तान में अमेरिकी राजदूत रहे हैं। मिस्र के मौजूदा आंदोलन में यह संगठन मूलाधार में बैठा हुआ है। 





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