बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

मिस्र में जनता के प्रतिवाद का भविष्य


    मिस्र में लोकतंत्र के लिए आंदोलन चल रहा है बड़े पैमाने पर जनता राष्ट्रपति हुसनी मुबारक के खिलाफ सड़कों पर निकल आयी है। 150 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। सैंकड़ों लोगों को जेलों में डाल दिया गया है। मुबारक के बारे में यह सब जानते हैं कि वह अमेरिका के पिट्ठू शासक हैं और सेना के बल पर शासन चला रहे हैं।
     मध्यपूर्व में इस्राइल के बाद मिस्र दूसरा देश है जिसे अमेरिका के द्वारा सबसे ज्यादा आर्थिक मदद दी जाती है। मुबारक के शासन को सालों से सालाना 2बिलियन डॉलर की मदद मिलती रही है। यह पैसा मिस्र में विकासकार्यों पर खर्च नहीं होता। यह पैसा कहा जाता रहा है ? इस पैसे से मिस्र केशासक सैन्य सामग्री, खरीदते रहे हैं। न्यू अमेरिका फाउण्डेशन के अनुसार  “It’s a form of corporate welfare for companies like Lockheed Martin and General Dynamics, because it goes to Egypt, then it comes back for F-16 aircraft, for M-1 tanks, for aircraft engines, for all kinds of missiles, for guns, for tear-gas canisters [from] a company called Combined Systems International, which actually has its name on the side of the canisters that have been found on the streets there.”
हाल ही में प्रकाशित एक किताब, “Prophets of War: Lockheed Martin and the Making of the Military-Industrial Complex.” में हर्तुंग ने लिखा है- “Lockheed Martin has been the leader in deals worth $3.8 billion over that period of the last 10 years; General Dynamics, $2.5 billion for tanks; Boeing, $1.7 billion for missiles, for helicopters; Raytheon for all manner of missiles for the armed forces. So, basically, this is a key element in propping up the regime, but a lot of the money is basically recycled. Taxpayers could just as easily be giving it directly to Lockheed Martin or General Dynamics.” मिस्र की जनता सैनिक तानाशाही से तंग आ चुकी है और इस मौके का भी अमेरिका मध्यपूर्व में अपने हितों के विस्तार के लिए लाभ उठाना चाहता है।
     अनेक लोग यह भी कह रहे हैं कि मिस्र में संचार क्रांति के उपकरणों इंटरनेट, मोबाइल आदि के साथ अलजजीरा की बड़ी भूमिका है। यह सच है कि संदेशों के आदान-प्रदान में संचार तकनीक से मदद मिली है लेकिन संचार तकनीक के जरिए प्रतिवाद पैदा नहीं हुआ है प्रतिवाद की जननी है मिस्र की जनता।
    मिस्र की जनता को मुबारक ने भरोसा दिया है वह आगामी 30 सितम्बर को राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ेगे। लेकिन जनता तुरंत राष्ट्रपति पद छोड़ने की मांग कर रही है। कुछ लोग यह तर्क भी दे रहे हैं मिस्र में जनता सड़कों पर इसलिए उतर आयी है क्योंकि मिस्र में आर्थिक असमानता बहुत है। आर्थिक असमानता के पैमाने से देखें तो सारी दुनिया में असमानता की सूची में मिस्र का 90वां स्थान है और अमेरिका का 42वां। आज अमेरिका के हालत काफी बदतर हैं। अमेरिका में कई स्थान ऐसे हैं जिनकी तुलना हित्ती और जिम्बाबे से की जा सकती है। जिन देशों में लोकतंत्र है वहां पर गरीब और अमीर के बीच में भयानक अंतर है। आखिर क्या करें ?
     मिस्र और ट्यूनीशिया में जो व्यापक जन प्रतिवाद हो रहा है उसमें प्रसिद्ध मार्क्सवादी स्लावोज जीजेक के अनुसार गरीबी और भ्रष्टाचार प्रधान कारण हैं। जीजेक का भी मानना  हैं कि वहां फंडामेंटलिस्ट ताकतें इस संघर्ष में नहीं हैं। इससे यह भी मिथ टूटता है कि मिस्र आदि मध्यपूर्व के देशों में फंडामेंटलिस्ट और राष्ट्रवादी ताकतें ही जनता को गोलबंद कर सकती हैं।
    प्रसिद्ध मार्क्सवादी जीजेक का मानना है मिस्र और ट्यूनीशिया में ''old regime survives but with some liberal cosmetic surgery, this will generate an insurmountable fundamentalist backlash. In order for the key liberal legacy to survive, liberals need the fraternal help of the radical left. Back to Egypt, the most shameful and dangerously opportunistic reaction was that of Tony Blair as reported on CNN: change is necessary, but it should be a stable change. Stable change in Egypt today can mean only a compromise with the Mubarak forces by way of slightly enlarging the ruling circle. This is why to talk about peaceful transition now is an obscenity: by squashing the opposition, Mubarak himself made this impossible. After Mubarak sent the army against the protesters, the choice became clear: either a cosmetic change in which something changes so that everything stays the same, or a true break.''
जो लोग मिस्र में क्रांति देख रहे हैं वे द्विवा-स्वप्न देख रहे हैं। यह सच है जनता सड़कों पर है लेकिन मुश्किल यह है कि मुबारक के विरोध में जो लोग आ रहे हैं उनके अमेरिका के साथ और भी गहरे संबंध हैं। मसलन उपराष्ट्रपति और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अल बरदाई को अमेरिकी गुलामी करते हुए इस संगठन में अनेक मर्तबा देख चुके हैं। अमेरिका कोशिश में है कि सत्ता मुबारक के हाथ में रहे या विपक्ष के हाथ में रहे लेकिन उसे अमेरिकापंथी होना चाहिए।  

1 टिप्पणी:

  1. jagdishwar ji aap ka lekh kabile tareef hai ..main to chahta hoon ki yah bada hi achha mauka hai isi samay gulf mein sabhi muslim deshon sabhi jagah dharmik shanshahi ko ukhad fenkna chahiye ...loktantra par kale dhabbe hain ye desh

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