बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

मीडिया का गॉसिपतंत्र और असहाय माकपा


   मीडिया में व्यक्तित्वहनन एक बड़ा फिनोमिना है। यह मीडिया का चूरन है। गॉसिप है। कुछ लोग इसे चरित्रहनन और अपमान भी कहते हैं। लेकिन यह न तो अपमान है और न निंदाचार है बल्कि गॉसिप है। यह संबंधित व्यक्ति की सार्वजनिक पहचान का कैरीकेचर है। मीडिया यह सब उनके साथ ज्यादा करता है जो चर्चित , सैलीब्रिटी , मंत्री, नेता ,सांसद,विधायक हैं। व्यक्तित्वहनन मीडिया का संक्रामक रोग है। यह पढ़ा खूब जाता है लेकिन टिकाऊ नहीं है। हाल ही में पश्चिम बंगाल से माकपा की एक भू.पू. सांसद के यहां आयकर के छापों के बाद बांग्ला मीडिया में गॉसिप की बाढ़ आ गई। इसका असर हिन्दी मीडिया पर भी पड़ा। इस चक्कर में मीडिया वाले व्यक्तित्वहनन और आर्थिक अपराध में अंतर भूल गए।
    आर्थिक अपराध में जो लोग शामिल हैं उन पर तथ्यपूर्ण और खोजी खबरों का मीडिया में महत्व है लेकिन गॉसिप और तथाकथित गुमनाम व्यक्ति के हवाले से लिखे को खबर नहीं गॉसिप कहते हैं। उसका प्रचार से ज्यादा कोई महत्व नहीं है। इस तरह की खबरें गॉसिप हैं और तथाकथित सूत्रों के हवाले से तब तक चलती हैं जब तक इन खबरों के संचालक ठंडे नहीं पड़ जाते। मीडिया में पहले गॉसिप फिल्मी पत्रिकाओं में छपा करता था। लेकिन अब गॉसिप ने मीडिया की सभी विधाओं को घेर लिया है। खासकर खबर को गॉसिप ने हजम कर लिया है। यह मीडिया भ्रष्टाचार है जो राजनीतिक भ्रष्टाचार से भी ज्यादा खतरनाक है। गॉसिप को खबर बनाने के कारण ही आज कोई भी पत्रकार प्रमाणों के बिना कुछ भी लिखने के लिए स्वतंत्र है । इसका राजनीति पर भी असर हो रहा है नेताओं पर दबाब पड़ रहा है कि वे बोलें।एक्शन लें। उल्लेखनीय है कोलकाता में जब भू.पू.सांसद के घर आयकर विभाग का छापा पड़ा तो आयकर विभाग के अधिकारियों ने मीडिया को कुछ नहीं बताया। सारी सूचनाएं कयास, अनुमान और 'सूत्रों' के हवाले से गॉसिप फार्मेट में लिखी गयीं। इसे मीडिया की भाषा में  फेकखबर कहते हैं।          
        किसी भी खबर को लिखने के पहले संवाददाता को यह सोचना चाहिए कि यह खबर कब तक पूरी शक्ल लेगी ? आयकर छापे की खबर आर्थिक अपराध की कोटि में आती है यह खबर छापे से आरंभ होती है लेकिन इसे खत्म होने में काफी समय लगता है। संवाददाता के पास इतना धैर्य नहीं होता कि वह इंतजार करे और वह ताबड़तोड़ ढ़ंग से सूत्रों के हवाले से कल्पना की उडानें भरना आरंभ कर देता है। आयकर छापे की खबर में गॉसिप या अनुमान से ज्यादा सत्य का महत्व होता है। सत्य सिर्फ आयकर विभाग के अधिकारी जानते हैं। वे जब नहीं बोलते तो सुत्रों के हवाले से मीडिया गॉसिप फेंकता है। सांसद और उसके रिश्तेदारों के यहां आयकर विभाग के छापे पड़े और कितने स्थानों पर छापे पड़े यह आयकर अधिकारियों ने मीडिया को बताया है। इसके अलावा आयकर छापे के बारे मे जो कुछ छपा है वह काल्पनिक है। आयकर विभाग जब नहीं बता रहा है तो वैसी स्थिति में छापे के बारे में छपी सारी खबरें बोगस हैं।
       मीडिया में 'सूत्र' के हवाले से जब भी खबर लिखी जाती है तो वह अप्रामाणिक होती है। गॉसिप होती है। इस तरह की रिपोर्टिंग के अपने फायदे और नुकसान दोनों हैं। इस तरह की रिपोर्टिंग पूरी तरह पकायी होती है और व्यापकस्तर पर मीडिया की साख नष्ट करती है। कुछ लोग सोचते हैं इससे संबंधित व्यक्ति का चरित्रहनन हो जाएगा। वह बर्बाद हो जाएगा। चरित्रहनन का आधार यदि सच है तो साख पर असर होगा । लेकिन चरित्रहहन का आधार गॉसिप है तो संबंधित व्यक्ति को इसका लाभ मिल सकता है। बांग्ला मीडिया इस खेल में लंबे समय से अव्वल रहा है और उसने ज्योति बसु को लांछित करने के लिए उनके पुत्र के बारे में तरह-तरह की मनगढ़ंत कहानियां बड़े पैमाने पर छापीं लेकिन ज्योति बाबू की साख पर कोई आंच नहीं आयी। क्योंकि वे मनगढ़ंत कहानियां तथाकथित सूत्रों के हवाले से लिखी गयी थीं। इसी तरह छापे में मिली चीजें जरूरी नहीं है अवैध हों ,वे वैध भी हो सकती हैं। कौन चीज वैध है ,अवैध है इसका फैसला आयकर विभाग अपनी जांच-पड़ताल के बाद ही कर सकता है ।ऐसी स्थिति में मीडिया को मूल्यनिर्णय से बचना चाहिए।
     सवाल उठता है मीडिया में इस तरह की गॉसिप आती कहां से है ? इसका स्रोत क्या है ? इस तरह की गॉसिप का कोई राजनीतिक-सामाजिक महत्व है ? क्या इससे समाज प्रभावित होता है ? यह असल में पीत पत्रकारिता है। इस तरह की खबरें संक्रामक होती हैं। वे जल्दी फैलती हैं। यदि किसी के घर पुलिस आयी है ,पुलिस ने जांच के लिए थाने बुलाया है,आयकर विभाग का नोटिस आया है, या आयकर छापा पड़ा है या अदालत से सम्मन आने का अर्थ अपराधी होना नहीं है। यह महज जांच है और जांच को अपराध नहीं कहते।
   खबरों का गॉसिप में रूपान्तरण मीडिया की विश्वसनीयता खत्म करता है।इससे सर्कुलेशन बढ़ता है,रेटिंग बढ़ती है, विज्ञापन मिलते हैं, लेकिन न्यूज और मीडिया की साख खत्म हो जाती है।  यह पीतपत्रकारिता है। उल्लेखनीय है आय से ज्यादा संपत्ति रखने के मामले में किसी भी दल ने आज तक किसी भी व्यक्ति को दल से नहीं निकाला है । इससे भी बड़ा सवाल है आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में किस कानून का पालन किया जाएगा ? गॉसिप मंडली का या आयकर विभाग का ? कायदे से मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य अपने सभी मंत्रियों ,सांसदों-विधायकों आदि की विगत 35 साल की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करें ? उल्लेखनीय है एनडीए ने अपने नेताओं को निजी संपत्ति घोषित करने के लिए कहा है, क्या भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) अपने सांसदों, विधायकों, भू.पू.सांसदों-विधायकों, उनके रिश्तेदारों, पार्टी सचिव और सक्रिय सदस्यों की संपत्ति का संपूर्ण ब्यौरा सार्वजनिक करने का जोखिम उठाने को तैयार है ? माकपा नेतृत्व जानता है कि वे इस संबंध में असहाय हैं‍ ,क्योंकि नौकरीपेशा कॉमरेड के बिना कोई अपनी सही आमदनी नहीं बताता,कोई संपत्ति का ब्यौरा नहीं देता। आय का संबंध देश से है पार्टी से नहीं इसलिए आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में आयकर विभाग के फैसलों का पालन होना चाहिए,पार्टी नेताओं की मनमानी का नहीं।

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