सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

नरक और मोक्ष के द्वंद्व में फंसे बाबा रामदेव


        बाबा रामदेव ने कल रामलीला मैदान में शानदार मीटिंग की। उस मीटिंग में अनेक स्वनामधन्य लोग जैसे संघ के गंभीर विचारक गोविन्दाचार्य,भाजपा नेता बलबीर पुंज, नामी वकील रामजेठमलानी,सुब्रह्मण्यम स्वामी,स्वामी अग्निवेश,किरण बेदी आदि मौजूद थे। बाबा रामदेव ने यह मीटिंग किसी योगाभ्यास के लिए नहीं बुलायी थी। यह विशुद्ध राजनीतिक मीटिंग थी। इस मीटिंग में बाबा रामदेव के अलावा अनेक लोगों ने अपने विचार रखे। यह मीटिंग कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह बाबा रामदेव की राजनीतिक आकांक्षाओं को साकार करने वाली मीटिंग थी।
     एक नागरिक के नाते बाबा में राजनीतिक आकांक्षाएं पैदा हुई हैं यह संतसमाज और योगियों के लिए अशुभ संकेत है। बाबा का समाज में सम्मान है और सब लोग उन्हें श्रद्धा की नजर से देखते हैं।उनके बताए योगमार्ग पर लाखों लोग आज भी चल रहे हैं। योग की ब्रॉण्डिंग करने में बाबा की बाजार रणनीति सफल रही है। मुश्किल यह है कि जिस भाव और श्रद्धा से बाबा को योग में ग्रहण किया गया है राजनीति में उसी श्रद्धा से ग्रहण नहीं किया जाएगा।
     बाबा रामदेव को यह भ्रम है कि वे जितने आसानी से योग के लिए लिए लोगों को आकर्षित करने में सफल रहे हैं उसी गति से राजनीतिक एजेण्डे पर भी सक्रिय कर लेंगे । बाबा राजनीतिक तौर पर जिन लोगों से बंधे हैं और जिन लोगों को लेकर वे राजनीतिक मंचों से भाषण दे रहे हैं उनमें अनेक किस्म के स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता और नेता हैं। किरणबेदी से लेकर स्वामी अग्निवेश आदि इन सबकी सीमित राजनीतिक अपील है और ये लोग दलीय राजनीति में विश्वास नहीं करते। वरना अपना दल बनाते।
     भारत में लोकतंत्र दलीय राजनीति से बंधा है और दलीय राजनीति कोई करिश्माई चीज नहीं है। राजनीति रैली की भीड़ इकट्ठा करने की कला नहीं है,भाषणकला नहीं है। दलीय राजनीति की समूची प्रक्रिया बेहद जटिल और अंतर्विरोधी है। मसलन योग सिखाते हुए बाबा रामदेव को धन मिलता है। जो सीखना चाहता है उसे पैसा देना होता है। राजनीति में बाबा को रैली करनी है ,अपने राजनीतिक विचार व्यक्त करने हैं,प्रचार करना है तो उन्हें अपनी गाँठ से धन खर्च करना होगा अथवा किसी सेठ-साहूकार-तस्कर-माफिया-भ्रष्ट पूंजीपति से मांगना होगा और कहना होगा कि मेरी मदद करो। आम जनता से पैसा जुगाडना और राजनीति करना यह आज के जमाने की कीमती राजनीति में संभव नहीं है।
     बाबा जानते हैं राजनीति का मतलब राजनीति है, फिर और कोई गोरखधंधा नहीं चल सकता। राजनीति टाइमखाऊ और पैसाखाऊ है। योग में बाबा को जो आनंद मिलता होगा उसका सहस्रांश आनंद उन्हें राजनीति में नहीं मिलेगा। अभी से ही बाबा ने राजनीति के चक्कर में शंकर की बारात एकत्रित करनी आरंभ कर दी है । मसलन दिल्ली में कल जो रैली बाबा ने की उसमें मंच पर बैठे जितने भी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे उनकी आम जनता में कितनी राजनीतिक साख है यह बाबा अच्छी तरह जानते हैं। इनमें कोई भी जनता के समर्थन से चुनकर विधानसभा-लोकसभा तक नहीं जा सकता। रामजेठमलानी- सुब्रह्मण्यम स्वामी की एक-एक आदमी की पार्टी है नाममात्र की। बाकी दो भाजपानेता मंच पर थे जिनका कोई जनाधार नहीं है। किरनबेदी और स्वामी अग्निवेश कहीं पर नगरपालिका का चुनाव भी नहीं जीत सकते। यही हाल अन्य लोगों का है। बाबा रामदेव आज अपनी सारी चमक,प्रतिष्ठा और भव्यता के बाबजूद यदि अपने मंच पर इस तरह के जनाधारविहीन नेताओं के साथ दिख रहे हैं तो भविष्य तय है कि कैसा होगा। कहने का यह अर्थ नहीं है कि रामजेठमलानी, अग्निवेश,सुब्रह्मण्यम स्वामी आदि जो लोग मंच पर बैठे थे उनकी कोई प्रप्तिष्ठा नहीं है। निश्चित रूप से ये लोग अपने सीमित दायरे में यशस्वी लोग हैं। लेकिन राजनीति में ये जनाधाररहित नेता हैं। राजनीति में मात्र साख से काम नहीं चलता वहां जनाधार होना चाहिए।
    बाबा रामदेव की एक और मुश्किल है वे राजनीति करना चाहते हैं साथ ही योग-भोग और राजनीति का संगम बनाना चाहते हैं। राजनीति संयासियों-योगियों का काम नहीं है । यह एक खास किस्म का सत्ताभोगी कला,शास्त्र,और सिस्टम है।बाबा को भोग से घृणा है फिर वे राजनीति में क्यों जाना चाहते हैं ?  राजनीति लंगोटधारियों का खेल नहीं है। राजनीति उन लोगों का काम भी नहीं जो घर फूंक तमाशा देखते हों। राजनीति एक उद्योग है।एक सिस्टम है। जिस तरह योग एक सिस्टम है।
    बाबा योग के सिस्टम से राजनीति के सिस्टम में आना चाहते हैं तो इन्हें अपना मेकअप बदलना होगा। वे योगी के मेकअप और योग के सिस्टम से राजनीति के सिस्टम में नहीं आ सकते। उन्हें सिस्टम बदलना होगा। राजनीतिक सिस्टम की मांग है कि अब योगाश्रम खोलने की बजाय राजनीतिक दल के ऑफिस खोलें। अपने कार्यकर्ताओं को शरीरविद्या और योगविद्या की बजाय दैनंदिन राजनीतिक फजीहतों में उलझाएं। योगचर्चा की बजाय राजनीतिक चर्चाएं करें। स्वास्थ्य की बजाय अन्य राजनीतिक सवालों पर प्रवचन दें। इससे बाबा के अब तक के कामों का अवमूल्यन होगा। बाबा नहीं जानते राजनीति में हर चीज का अवमूल्यन होता है। व्यक्तित्व,मान-प्रतिष्ठा,पैसा,संगठन आदि सबका अवमूल्यन होता है।
   यह सच है राजनीति और सत्ता की चमक बड़ी जबर्दस्त होती है लेकिन राजनीति में एक दोष है अवमूल्यन का। इस अवमूल्यन के वायरस का सभी शिकार होते हैं वे चाहे जिस दल के हों,जितने भी ताकतवर हों। राजनीति में निर्माण और अवमूल्यन स्वाभाविक प्रक्रिया है। बाबा रामदेव की राजनीति के प्रति बढ़ती ललक इस बात का संकेत है कि वे अब अवसान की ओर जाना चाहते हैं। वैसे योग का उनका कारोबार अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुका है। वे योग से जितना निचोड़ सकते थे उसका अधिकतम निचोड चुके हैं। जितने योगी बना सकते थे उतने बना चुके हैं।
    आज बाबा रामदेव का योग ब्राण्ड सबसे पापुलर ब्राँण्ड है और इसकी चमक योग तक ही अपील करती है। योग की आंतरिक समस्याएं कई हैं,मसलन् योग में राजनीति का घालमेल करने से फासिज्म पैदा होता है। बाबा रामदेव जानते हैं या जानबूझकर अनजान बन रहे हैं,योग वस्तुतः धर्म है और धर्म और राजनीति का घालमेल अंततः फासिज्म के जिन्न को जन्म दे सकता है। भारत 1980 के बाद पैदा हुए राममंदिर के नाम से पैदा हुए खतरनाक राजनीतिक खेल को देख चुका है।
   बाबा रामदेव को लगता है कि वे भ्रष्टाचार से परेशान हैं तो वे योग को कुछ सालों के लिए विराम दें और खुलकर राजनीति करें। राजनेता बनें,कुर्ता-पाजामा पहनें,पेंट-शर्ट पहनें, अपना ड्रेसकोड बदलें। जिस तरह योगियों का अपना ड्रेसकोड है,संतों का है,पुजारियों का है,उसी तरह राजनीतिज्ञों का भी है। बाबा अपना ड्रेसकोड बदलें। संत जब तक संत के ड्रेसकोड में है वह धार्मिक व्यक्ति है और यदि वह धर्म और राजनीति में घालमेल करना चाहता है तो यह स्वीकार्य नहीं है । राममंदिर आंदोलन की विफलता सामने है। भाजपा ने संतों का इस्तेमाल किया आडवाणी जी संत नहीं बन गए। वे रामभक्त राजनीतिज्ञ बने रहे,रामभक्त संत नहीं बने।
   संतों की पूंजी पर भाजपा के अटलबिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री के पद पर पहुँचे थे लेकिन भाजपा ने अपने सांसदों में बमुश्किल 10 प्रतिशत सीटें भी संतों को नहीं दी थीं। बाद में जो संत भाजपा से चुने गए उनका इतिहास सुखद नहीं रहा है। संतों की ताकत से चलने वाले आंदोलन,जिसका पीछे से संचालन आरएसएस कर रहा था, का हश्र सामने है।
     एनडीए की सरकार बनने पर राममंदिर एजेण्डा नहीं था। यह संतों के साथ भाजपा का विश्वासघात था। भाजपानेता जानते थे राममंदिर एजेण्डा रहेगा तो केन्द्र सरकार नहीं बना सकते, अटलजी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते और फिर क्या था रामभक्तों ने आनन-फानन में राममंदिर को तीन चुल्लू पानी भी नहीं दिया और सरकार में जा बैठे। संतसमाज का इतना बडा निरादर पहले कभी किसी दल ने नहीं किया।
    कायदे से भाजपा को अड़ जाना चाहिए था कि राममंदिर को हम अपने प्रधान लक्ष्य से नहीं हटाएंगे,लेकिन सत्ता सबसे कुत्ती चीज है उसे पाने के लिए राजनेता किसी भी नरक में जाने को तैयार रहते हैं और एनडीए का तथाकथित मोर्चा तब ही बना जब राममंदिर के सवाल को भाजपा ने छोड़ दिया। संतों के राजनीतिक पराभव और भाजपा के राजनीतिक उत्थान के बीच यही अंतर्क्रिया है। संतों ने शंख बजाए भाजपा ने सत्ता पायी।
    संदेह हो रहा है कि कहीं बाबा रामदेव नए रूप में संतसमाज को फिर से राजनीतिक गोलबंदी करके एकजुट करके भाजपा को सत्ता पर बिठाने की रणनीतियों पर तो नहीं चल रहे ?
     बाबा रामदेव को जितनी भ्रष्टाचार से नफरत है उन्हें विभिन्न दलों और खासकर भाजपा के बारे में अपने विचार और रिश्ते को साफ करना चाहिए। मसलन बाबा ने कांग्रेस को भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार ठहराया है और वे बार-बार उसके खिलाफ बोल रहे हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में कुछ महिने पहले बाबा आए थे,कोलकाता में उन्होंने खुलेआम कहा वे ममता बनर्जी के लिए वोट मांगेगे। बाबा जानते हैं कि उनके बयान का अर्थ है कि कांग्रेस के लिए ही वोट मांगेगे। किनके खिलाफ वोट मानेंगे ? बाबा वाममोर्चे के खिलाफ वोट मांगेंगे। वे जानते हैं वाममोर्चा कालेधन के खिलाफ संघर्ष तब से कर रहा है जब बाबा का योगी के रूप में जन्म नहीं हुआ था। यदि बाबा अपने विचारों पर अडिग हैं और उन्हें भ्रष्टनेताओं से चिड़ है तो वे बताएं कि वामशासन में 35 सालों में किस मंत्री या मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप आए ? इनदिनों वाममोर्चा अपनी अकुशलता और नाकामी की वजह से जनता में अलगाव झेल रहा है।
     एक अन्य सवाल इठता है कि बाबा गेरूआ वस्त्र पहनकर,संत के बाने के साथ ही राजनीति क्यों करना चाहते हैं ?क्या इससे वोट ज्यादा मिलेंगे ? जी नहीं,रामराज्य परिषद नामक राजनीतिक दल का पतन भारत देख चुका है। किसी ने भी उस पार्टी को गंभीरता से नहीं लिया जबकि उसके पास करपात्री महाराज जैसा शानदार संत और विद्वान था।
   संत का मार्ग राजनीति की ओर नहीं मोक्ष की ओर जाता है। बाबा रामदेव एक नयी मिसाल कायम करना चाहते हैं कि संतमार्ग को राजनीति की ओर ले जाना चाहते हैं। संत यदि राजनीति में जाते हैं यो यह संत के लिए अवैधमार्ग है। संत का वैध मार्ग राजनीति नहीं है। राजनीति में जो संत हैं वे संतई कम और गैर-संतई के धंधे ज्यादा कर रहे हैं। राजनीतिविज्ञान की भाषा में संत का राजनीति में आने का अर्थ धर्म का राजनीति में आना है और इससे राजनीति नहीं साम्प्रदायिकता यानी फासिज्म पैदा होता है।
    धर्म का राजनीति में रूपान्तरण धर्म के रूप में नहीं होता। धर्म के आधार पर विकसित राजनीति कारपोरेट घरानों की दासी होती है। भाजपा के नेतृत्व में बनी सरकारों के कामकाज इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। भाजपा ने संतों और धर्म को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया है और राजनीति में नव्य आर्थिक उदारीकरण की नीतियों और मुक्तबाजार के सिद्धांतों को खुलेआम लागू किया है। बाबा रामदेव राजनीति करना चाहते हैं तो भाजपा, संघ परिवार की नीतियों, मुक्तबाजार और नव्य़ आर्थिक उदारीकरण के बारे में अपने एजेण्डे का लिखित में खुलासा करें। साथ ही संत और योग को विराम दें और राजनीति करें। जब तक वे यह पैकेज लागू नहीं करते वे अपना शोषण कराने के लिए अभिशप्त हैं वैसे ही जैसे राममंदिर आंदोलन के नाम पर संघ परिवार और भाजपा ने संतों का शोषण किया था।   




10 टिप्‍पणियां:

  1. यदि कोई व्यक्ति "कुछ" प्रयास कर रहा है तो आप नकारात्मकता क्यों बढ़ाना चाहते हैं? करने दीजिये उन्हें, ज्यादा से ज्यादा यही होगा कि असफ़ल होंगे, कम से कम कोशिश तो कर रहे हैं…। भाजपा-संघ के अंधे विरोध के बहाने कांग्रेस की गोद में जा बैठे लोगों से कई गुना बेहतर हैं बाबा रामदेव… उन्हें प्रयास करने दीजिये…

    आपकी "तकलीफ़" समझी जा सकती है, लेकिन पंगत लगने से पहले ही "रायता" फ़ैलाने की आदत बहुत ही गलत है…

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  2. Kya AAp ye soch rahe hai ki AAkash Fatega aur Uparse Bhagwan pragat hoge avam desh ki Vartmaan vyavstha ko ak chamatkaar se badal denge?
    Aree baba aisa kuch nahi hone wala.Desh ko vartman samasyao se nijat dilane ke liye BABA RAMDEV jaise Public ke bich mai jakar ground level par karya karne vale VEER HIMMATWALE aadmi hi chahiye.AAp ki ya meri tarah net par baith kar article likhne se samadhan nahi hoga.

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  3. " संदेह हो रहा है कि कहीं बाबा रामदेव नए रूप में संतसमाज को फिर से राजनीतिक गोलबंदी करके एकजुट करके भाजपा को सत्ता पर बिठाने की रणनीतियों पर तो नहीं चल रहे ? "

    संघी जिस लगन और मजबूती से रामदेव का समर्थन कर रहे हैं उसका यही अर्थ निकलता है !

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बाबा फंस गए संघी राजनीति में। न रहेंगे बाबा न बन पाएंगे राजनीतिज्ञ। जनता राजनेताओं को नहीं बाबाओं की पूजा करती है। कहीं इनका हाल चंद्रास्वामी जैसा तो नहीं होने वाला है।

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  6. वृंदा करात का हश्र देखकर भी आप मार्क्सवादी लोग कुछ सीखते नहीं है। जब कोई मुद्दा नहीं मिला तो अपनी कलमघिस्सुआ प्रवृत्ति के वशीभूत हो अपनी नाक यहां भी घुसेड़ दी। अरे महाराज, जाके हिंदी ही पढ़ाइए, काहे राजनीति पढ़ा रहे हैं। और जब आप हर विषय-क्षेत्र में कूदने को आजाद हैं तो दूसरों को किस आधार पर नसीहत देने चले हैं। अब कोई आपकी इस "नाक घुसेड़न प्रवृत्ति" पर नहीं बोलता तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप बहुत बड़े फन्ने खां हैं। ये तो वही हुआ कि "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" ॥

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  7. दिवाकर जी, आप तो पढ़े लिखे व्यक्ति हैं फिर सामान्य से आलोचनात्मक लेख पर इतने आग-बबूला काहे को हो रहे हैं। बाबा के पक्ष में एक अच्छी टिप्पणी नहीं लिख सकते तो कम से कम बाबा के नाम पर अपनी अक्ल का इस तरह तमाशा क्यों कर रहे हैं ,इससे बाबा की आत्मा कष्ट पाएगी। बाबा को पूरा हक है वे जो इच्छा हो करें,लेकिन जनता को भी पूरा हक है उनका मूल्यांकन करने का। यदि आपने असहिष्णुता ही सीखी है तो योग करें ठीक हो जाएंगे।

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  8. इस देश के सबसे बड़े राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य हुए है, जो एक ब्रह्मिन गुरु थे, राजनीती को गन्दा बनाते है, गंदे लोग, लेकिन जो सही उद्देश्य से काम करता है वो ही कुशल राजनीतिज्ञ होता है, बाकि नेताओ का उद्देश्य किसी से छुपा नहीं है, कम से कम बाबा रामदेव सही उद्देश्य से राजनीती में आये है | मेरे विचार से उन्हें राजनीती से धन कमाने का लालच तो कतई नहीं होगा क्योकि उसके लिए लोगो द्वारा दिया गया दान ही बहुत ज्यादा है, रही बात समर्थन की तो उन्हें किसी राजनितिक पार्टी के समर्थन की जरुरत नहीं, केवल आम जनता का समर्थन उन्हें चाहिए | जनता का हक़ है सही या गलत का फैसला करना पर यदि जनता को इतनी समझ होती तो आज जो राजनीति की हालत है वो नहीं होती, मेरे ख्याल से कचरे को साफ़ करने के लिए कचरे में उतरना जरुरी है |

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  9. भाई साहब,अगर कोई कुछ करना चाहता है जिससे देश का भला हो तो आपको क्या समस्या हो रही है....कांग्रेश जैसी देश बेचने वाली पार्टी से तो ऐसे बाबा ही भले......शुभकामनाये न दे सके तो कोई बात नहीं,किसी की चुगली तो न करे......आर्टिकल निखने से एक तिनका भी नहीं हिलता है भाई साहब...

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