नव्य उदारीकरण में भारत के अधिकांश बुद्धिजीवियों ने अपने को पूंजीपरस्ती से बांध लिया है। युवा इस पूंजी के नारकीय खेल से पीड़ित हैं । औरतें इसमें पिस रही हैं। किसानों और मजदूरों के जीवन में तबाही मची हुई है। इसके बाबजूद वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी और उनकी भक्तमंडली दावा कर रही है कि भारत विकास कर रहा है और केन्द्र सरकार विकासकार्यों पर सबसे ज्यादा खर्च कर रही है। वास्तविकता यह है कि वित्तमंत्री ने एक भी बड़ा कारखाना खोलने का संकेत नहीं दिया है। बेकारी कम करने का एक भी नुस्खा नहीं बताया है। सवाल उठता है कि बेकारी कम नहीं होगी तो देश में सामाजिक असुरक्षा बढ़ेगी और ऐसी अवस्था में कानून और व्यवस्था की एजेंसियों की मदद की जरूरत ज्यादा पड़ेगी और इस संदर्भ में देखें तो बजट में सुरक्षा एजेंसियों का खास ख्याल रखा गया है। देश की वास्तविकता यह है कि भारत सरकार सुरक्षा एजेंसियों और सुरक्षा बलों के साथ- रक्षामद में ज्यादा खर्च करने जा रही है। यह इस बात का सबूत है कि देश में कानून-व्यवस्था के प्रबंधन पर ज्यादा व्यय होगा। मसलन वित्तमंत्री ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी,बाएसएफ,सीआरपीएफ आदि के लिए ज्यादा धन का आवंटन किया गया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के लिए बजट से 55.68 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। यानी पिछले साल की तुलना में 16.33 करोड़ रूपये ज्यादा आवंटित किए गए हैं। इस संस्था को गैर-योजनामद से 2009-10 में 11.91 करोड़ रूपये आवंटित किए गए थे जिसमें इस साल के लिए गैर-योजनामद से 42.06 करोड़ रूपये दिए गए हैं। इस संस्था को आतंकवाद से संबंधित घटनाओं पर काम करने,जांच करने,रोकने और केस चलाने का अधिकार दिया गया है। सीबीआई को पिछले साल की तुलना में इस साल कम फंड आवंटित किया गया है। बीएसएफ के लिए 7628.79 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं।सीआरपीएफ के लिए 7827.32 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं वित वर्ष की तुलना में 300 करोड़ रूपये ज्यादा है। नेशनल इंटेलीजेंस ग्रिड को 33.81 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। इस संस्था का काम है काउंटर टेररिज्म के खतरे पर निगरानी रखना,उसके डाटा की जांच-पड़ताल करना। वहीं दूसरी ओर कारपोरेट घरानों के लिए प्रत्यक्ष करों में 11,500 करोड़ रूपये के कंशेसन दिए गए हैं। इसके विपरीत साधारण जनता पर 11,300 करोड़ रूपये के नए कर लगाए गए हैं। कारपोरेट घरानों से केन्द्र सरकार ने स्वेच्छा से 2010-11 में 1,38,921 करोड़ रूपये के कर वसूल नहीं किए। इसी तरह 2009-10 में कारपोरेट घरानों से 1,18,930 करोड़ रूपये के कर वसूल नहीं किए गए थे। केन्द्र सरकार ने इस तरह कारपोरेट घरानों को पिछले तीन सालों में 4लाख करोड़ रूपये दिए हैं। इसी तरह किसानों के मद में आने वाली विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित धन में कटौती की गई है। केन्द्र सरकार का समग्र खर्चा 3लाख करोड़ के करीब बैठता है इसके लिए वह कर वसूली पर जोर नहीं दे रही है बल्कि विभिन्न तरीकों से कर्ज लेकर चला रही है। केन्द्र सरकार ने आम आदमी को और ज्यादा कंगाल बनाने के लिए तकरीबन 20हजार करोड़ रूपये की सब्सीडी कटौतियां इस बजट में की हैं। इसके अलावा विभिन्न वित्तीय क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश को आमंत्रण देकर मनमोहन सिंह सरकार ने एकसिरे से देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी वित्तीय संस्थानों के रहमोकरम पर गिरवी रख दिया है।
सैटेलाइट टीवी चैनलों के साथ प्रतिस्पर्धा में संचार माध्यमों को ,खासकर प्रसारभारती को खड़ा रखने की जरूरत है लेकिन मनमोहन सिंह सरकार अपने नव्य-उदार एजेण्डे पर आक्रामक ढ़ंग से बढ़ रही है और निजी चैनलों की मदद करते हुए उसने इसबार के बजट में प्रसारभारती के लिए आवंटित धन में कटौती कर दी है। पिछले साल की तुलना में इस साल प्रसारभारती को 300 करोड़ रूये कम आवंटित किए गए हैं। 2010-11 में 1,757.14 करोड़ रूपये दिए गए जो इस साल के बजट में घटाकर 1,484.01 करोड़ कर दिए गए हैं। इसबार के बजट की खूबी है 9प्रतिशत विकास दर ,भयानक बेकारी,मंहगाई में उछाल और देशी वित्तीय संस्थाओं में विदेशी पूंजीका अबाध प्रवेश यानी नए किस्म की आर्थिक गुलामी का आगमन।
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