शनिवार, 19 मार्च 2011

जनकवि मनमोहन की छह कविताएँ

                                               (कवि मनमोहन)
जिन्होंने मरने से इन्कार किया 
जिन्होंने मरने से इन्कार किया
और जिन्हें मार कर गाड़ दिया गया
वे मौका लगते ही चुपके से लौट आते हैं
और ख़ामोशी से हमारे कामों में शरीक हो जाते हैं

कभी-कभी तो हम घंटों बातें करते हैं
या साथ साथ रोते हैं

खा खाकर मर चुके लोगों को यह बात पता चलनी
जरा मुश्किल है
जो बड़ी तल्लीनता से अपने भव्य मकबरे बनाने
और अधमरे लोगों को ललचाने में लगे हैं


फिर भी मेरा क्या भरोसा

मैं साथ लिया जा चुका हूँ
फ़तह किया जा चुका हूँ
 फिर भी मेरा क्या भरोसा !
 बहुत मामूली ठहरेंगी मेरी इच्छाएँ

औसत दर्जे़ के विचार
ज्यादातर पिटे हुए

मेरी याददाश्त भी कोई अच्छी नही

लेकिन देखिए ,फिर भी,कुत्ते मुझे सूँघने आते हैं
और मेरी तस्वीरें रखी जाती हैं



ईश वन्दना
धन्य हो परमपिता ‍!

सबसे ऊँचा अकेला आसन
ललाट पर विधान का लेखा
ओंठ तिरछे
नेत्र निर्विकार अनासक्त
भृकुटि में शाप और वरदान
रात और दिन कन्धों पर
स्वर्ग इधर नरक उधर

वाणी में छिपा है निर्णय

एक हाथ में न्याय की तुला
दूसरे में संस्कृति की चाबुक

दूर -दूर तक फैली है
प्रकृति

साक्षात पाप की तरह।

ग़लती

 उन्होंने झटपट कहा
हम अपनी ग़लती मानते हैं
ग़लती मनवाने वाले खुश हुए
कि आख़िर उन्होंने ग़लती मनवा कर ही छोड़ी
उधर ग़लती ने राहत की साँस ली
कि अभी उसे पहचाना नहीं गया

मेरी ओर   
मैं तुम्हारी ओर हूँ

ग़लत स्पेलिंग की ओर
अटपटे उच्चारण की ओर

सही -सही और साफ़ -साफ़ सब ठीक है
लेकिन मैं ग़लतियों और उलझनों से भरी कटी-पिटी
बड़ी सच्चाई की ओर हूँ

गुमशुदा को खोजने हर बार हाशिए की ओर जाना होता है
कतार तोड़कर उलट की ओर
अनबने अधबने की ओर

असम्बोधित को पुकारने
संदिग्ध की ओर
निषिद्ध की ओर ।

यक़ीन 
 एक दिन किया जाएगा हिसाब
जो कभी रखा नहीं गया
हिसाब
एक दिन सामने आएगा
जो बीच में ही चले गए
और अपनी कह नहीं सके
आएँगे और
अपनी पूरी कहेंगे
जो लुप्त हो गया अधूरा नक्शा़
फिर खोजा जाएगा

4 टिप्‍पणियां:

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...