रविवार, 13 मार्च 2011

विकीलीक और अमेरिकी साम्राज्यवाद-3-


विकीलीक का स्रोत -
    अब तक विकीलीक ने छह लाख से ज्यादा गोपनीय दस्तावेज प्रकाशित किए हैं। अमेरिका में गोपनीय दस्तावेजों को अवर्गीकृत करके प्रकाशित करने की परंपरा है और पिछले साल अमेरिकी प्रशासन ने 183,244 गोपनीय दस्तावेज प्रकाशित किए हैं। जबकि विकीलीक अकेले  छह लाख गोपनीय दस्तावेज प्रकाशित कर चुका है। इस संदर्भ में रोचक बात यह है कि अमेरिकी प्रशासन ने जितने गोपनीय दस्तावेज प्रकाशित किए हैं उससे कहीं ज्यादा अवर्गीकृत किए हैं। विगत 2009 के साल में ही अवर्गीकृत दस्तावेजों की संख्या 55 मिलियन है और ये सरकारी ऑफिसों में रखे हुए हैं जिन्हें सामान्य सी जोड़तोड़ के जरिए कोई भी हासिल कर सकता है।
    एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में 560 मिलियन पेज प्रतिवर्ष क्लासीफाइड किए जाते हैं। अमेरिकी कांग्रेस लाइब्रेरी में करोड़ों पन्ने क्लासीफाइड करके प्रतिवर्ष रखे जाते हैं। उसी तरह हार्वर्ड लाइब्रेरी सिस्टम में प्रतिवर्ष 60 मिलियन पन्ने क्लासीफाइड रूप में दर्ज किए जाते हैं। पीटर गिलीसन (हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर) ने लिखा है कि 1970 से अमेरिका में कई अरबों-खरबों की संख्या ट्रिलियन संख्या में दस्तावेजों के जरिए क्लासीफाइड सूचनाएं दी गयी हैं। इन सूचनाओं के लिए अमेरिकी कांग्रेस में जितने लिखित कागज और किताबें हैं उसका 220 गुना ज्यादा कागज लगेगा।
साइबर युद्ध का नकली हल्ला-
मीडिया में और इंटरनेट में विकीलीक के दस्तावेजों के आने के बाद से अचानक उन वेबसाइट पर हैकरों के हमले हुए जहां से विकीलीक के दस्तावेजों को आर्थिक भुगतान के जरिए प्राप्त किया जा सकता था। इनमें प्रमुख हैं मास्टरकार्ड,वीसा कार्ड,  पायपल आदि। इनके वेबसाइट पर जब हैकरों के हमले हुए तो मीडिया में पंडितों ने कहाकि विकीलीक के दस्तावेज आने के साथ ही साइबर युद्ध आरंभ हो गया है। कोई इसे सूचना युद्ध कह रहा था। लेकिन सच यह है कि विकीलीक के दस्तावेजों के आने के साथ जिन वेबसाइट पर हमले हुए और उन्होंने विकीलीक का कारोबार बंद कर दिया और हैकरों का उन पर निरंतर हमला होता रहा उसके पीछे साइबर युद्ध या सूचना युद्ध जैसा कुछ नहीं था। बल्कि इसे साइबर उन्माद कहें तो ज्यादा ठीक होगा।
     हैकरों ने उन वेबसाइट पर हमले किए जो विकीलीक प्रकाशित कर रही थीं, इन्हें तथाकथित "distributed denial of service" (DDoS) कहा गया । ‘सेवा से इंकार’ करने वालों का इंटरनेट पर लंबा-चौड़ा हिसाब किताब फैला हुआ है। इस टैग के साथ हमलाकरने वाले हैकरों का संबंध किसी सरकार या देश या माफिया गिरोह से नहीं है बल्कि यह हाईस्कूल-इंटरमीडिएट स्तर के विद्यार्थियों की हैकर गतिविधि का सामान्य हिस्सा है। ये हैकर अपने हमलों के जरिए निशाने पर लगी वेबसाइट को स्लो कर देते हैं। घंटों सेवाएं ठप्प रखते हैं।
     इस तरह के हैकर हमलों की कारगुजारियों का मूल्यांकन करते हुए क्रेग लावोविट्ज ( अरवोर नामक इंटरनेट सुरक्षाकंपनी ,मैसाचुसैट्स , नेटवर्क के प्रधान वैज्ञानिक ) ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि विकीलीक के ताजा रहस्योदघाटन पर हुए हैकरों के हमले साइबर युद्ध नहीं है बल्कि यह कॉलेज के बच्चों की शैतानियां हैं। मसलन आपरेशन पेबैक अपने वेब संचालन के लिए ‘वोटनैट’ नामक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता है। इसके आधार पर कम्प्यूटर ऑटोमेटिक चलता है। इस सॉफ्टवेयर का अपराधी इस्तेमाल करते हैं। इससे वे स्पाम और क्म्प्यूटर वायरस वितरित करते रहते हैं साथ ही वेब के जरिए व्यापारियों से धन वसूली करते रहते हैं।
     सीमेंटिक के अनुसार सारी दुनिया में सक्रिय ‘वोटनैट’ की संख्या 3.5 मिलियन से लेकर 5.4 मिलियन के बीच है। अधिकांश ‘वोटनैट’ का कम्प्यूटर मालिकों की सहमति के बाद ही इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि Anonymous एनॉनिमस के अनुसार ‘वोटनैट’ एक तरह का "distributed denial of service" (DDoS) पर हमला करने वाला सिस्टम है। यह स्वैच्छिक हमलावर सिस्टम है।जो भी चाहे इसका इस्तेमाल कर सकता है। ये वे लोग हैं जो इंटरनेट की स्वतंत्रता को हरहालत में बचाए रखना चाहते हैं। वे किसी भी किस्म की सेंसरशप नहीं चाहते यहां तक कि वे विकीलीक की भी सेंसरशिप के खिलाफ हैं।
    मुश्किल यह है स्वैच्छिक हैकरों को हमेशा के लिए एकजुट नहीं किया जा सकता । वे कुछ समय के बाद गायब हो जाते हैं। स्वैच्छिक हैकरों ने “Low Orbit Ion Cannon” or LOIC  नामक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है और यह सॉफ्टवेयर जो भी मांगता है उसे एनानिमस ग्रुप मुहैय्या करा देते हैं।  LOIC   को इंटरनेट से डाउनलोड किया जा सकता है। जो लोग इसका इस्तेमाल करते हैं वे सोचते हैं कि हम हमला कर रहे हैं,हम गुमनाम हैं.हमें कोई पकड़ नहीं सकता लेकिन ऐसा नहीं है उनके आईपी पते पकड़ में आ जाते हैं।एक अनुमान के अनुसार LOIC नामक सॉफ्टवेयर एक लाख से ज्यादा यूजरों ने डाउनलोड किया है। लेकिन विकीलीक के दस्तावेज जिस समय इंटरनेट पर प्रकाशित किए जा रहे थे उस अवधि के दौरान बहुत कम यानी कुछ सौ लोगों ने LOIC को डाउनलोड किया है।
     लाबोविट्ज ने लिखा है विकीलीक के पक्ष और विपक्ष में हमला करने वाले हैकर पेशेवर हैकर नहीं हैं बल्कि स्कूली छोकरे थे इसलिए इसे साइबर युद्ध कहना सही नहीं होगा। इसे साइबर गुंडागर्दी कहना समीचीन होगा। विकीलीक विरोधी हैकरों ने ‘जुम्बी’ का इस्तेमाल किया तो विकीलीक समर्थकों ने सोशल मीडिया के जरिए ‘एनानिमस’ के जरिए हजारों इंटरनेट वालंटियर जुगाड़ किए। इन दोनों ही ग्रुप में काम करने वालों को साइबर में भाडे के सैनिक भी कह सकते हैं।वे हैकिंग के लिए जिस औजार का इस्तेमाल कर रहे थे उसे आमतौर पर अपराधी इस्तेमाल करते हैं।ये दोनों ही हैकर हैं और सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर कम्प्यूटरों को निशाना बनाते हैं।
विकीलीक के प्रधान असांजे ने न्यूयार्क टाइम्स के प्रमुख विदेश संवाददाता जॉन बर्न्स से बातचीत में कहा कि ‘मेरा पक्का विश्वास है कि दुनिया में अमेरिका सबसे बड़ी शैतानी ताकत है। वह लोकतंत्र का विध्वंसक है। ’ यह सच है कि विकीलीक के नियमित दस्तावेजी खुलासों ने अमेरिका की एक स्वस्थ और सभ्य लोकतंत्र की छवि के कालिमा मय अध्यायों को उदघाटित किया है। इन दस्तावेजों से अमेरिकी कूटनीति और उसकी ओट में चल रही दुरभिसंधियों और राजनयिक भ्रष्टाचारण को भी उजागर किया है। आखिरकार विभिन्न देशों में अमेरिकी राजनयिक किस तरह के कूटनीतिक,व्यापारिक और सांस्कृतिक पापाचार और भ्रष्टकर्मों में लिप्त हैं और किस तरह वे सोचते हैं,ये सारी चीजें उजागर हुई हैं।
   इन दस्तावेजों से यह भी उजागर हुआ है कि स्वीडन की सरकार स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र की तरह काम नहीं कर रही है बल्कि उसके ऊपर अमेरिका का जबर्दस्त दबाव है। यही हाल ब्रिटेन का है। असांजे के नए खुलासों के बाद अचानक तथाकथित उदार कहलाने वाला मीडिया का असली रवैय्या सामने आ गया है और वे भी असांजे की कामुक रातों के बारे में गंदे और घिनौने सवाल कर रहै हैं। मसलन बीबीसी लंदन के रिपोर्टर John Humphrys ने असांजे से साक्षात्कार में पूछा कि  ‘‘Are you a sexual predator?" इस असांजे ने कहा  "ridiculous" साथ ही कहा "Of course not", स्थिति यह थी कि संवाददाता उससे पूछ रहा था कि कितनी औरतों के साथ रातें गुजारी हैं। यही हाल अन्य नामी चैनलों का भी रहा है।
     विकीलीक के संदर्भ में यह विचारणीय है कि संदेश या सूचना अपने आप में सक्रिय नहीं होती। मसलन विकीलीक के लाखों-हजारों संदेश उपलब्ध हैं लेकिन जनता के बीच राजनीतिक गोलबंदी गायब है। विकीलीक के आधार क्या मांगें हो सकती हैं उन पर कोई राजनीतिक सरगर्मी नहीं है सिर्फ मीडिया सरगर्मी है। इस संदर्भ में देखें तो विकीलीक की सूचनाएं और संदेश निरर्थक हैं।
    वाटरगेट कांड के दस्तावेजों के आधार पर अमेरिका में राजनीतिक गोलबंदी हुई, मांगें तय की गईं,कुछ निष्कर्ष निकाले गए और उनके आधार पर जनता ने राष्ट्रपति से इस्तीफा मांगा था। लेकिन विकीलीक के प्रकाशन के बाद से चीन से लेकर अमेरिका तक कोई राजनीतिक मांग सामने नहीं आयी है और न किसी भी किस्म का राजनीतिक आंदोलन ही सामने आया है।
    इस प्रसंग में यह सवाल उठता है कि विकीलीक के राजनीतिक मायने क्या सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी मात्र से जुड़े हैं ? दूसरा सवाल यह है कि विकीलीक से किसे आर्थिक लाभ हो रहा है ? इंटरनेट से लेकर मीडिया तक बड़े कारपोरेट घराने इसके पीछे लगे हैं और धारावाहिक प्रकाशन हो रहा है ,करोड़ो पाठक इंटरनेट से पढ़ रहे हैं और डाउनलोड कर रहे हैं। मीडिया के अनेक बड़े घराने भी इस मामले में मैदान में कूद पड़े हैं। आज विकीलीक के पास  सरकारी दस्तीवेजों का सम्पदा आधिकार है जबकि इसमें वैध-अवैध दोनों ही तरह से अर्जित की गई सूचनाएं ,दस्तावोज,केबिल और संदेश हैं। इन्हें हासिल करने में विकीलीक ने धन खर्च किया है और जाहिरा तौर पर उसको इससे आर्थिक लाभ भी मिला है। क्या विकीलीक की सूचनाएं सार्वजनिक संपत्ति हैं ? यदि हां तो इससे लाभ कमाने का मीडिया और वेब कंपनियों को अधिकार कैसे मिल गया ? वे किसी अधिकार के साथ इतने व्यापक दस्तावेजों के जखीरे को नियंत्रित कर रहे हैं और उनके जरिए व्यापार कर रहे हैं ?  

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