मैना-
गुम्बज के ऊपर बैठी है,कौंसिल घर की मैना।
सुंदर सुख की मधुर धूप है,सेंक रही है डैना।।
तापस वेश नहीं है उसका ,वह है अब महारानी।
त्याग-तपस्या का फल पाकर, जी में बहुत अघानी।।
कहता है केदार सुनो जी ! मैना है निर्द्वंद्व।
सत्य-अहिंसा आदर्शों के, गाती है प्रिय छंद।।
आजादी है:जनता-रक्षा का हौआ एक बनाओ।
सभी जनों को हड़ताली कह,जल्दी जेल पठाओ।।
टाटा,बिड़ला,डालमिया को,भुज-बंधन में भेंटों।
गोली,आंसू -गैस मारकर,मजदूरों को मेटो।।
कहता है केदार सुनो जी ! तुम भी बेचो त्याग।
भेष बदलकर जी भर खेलो,आजादी का फाग।।
फाग खेलिए भेष अपने आप बदल जायेगा :)
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