शुक्रवार, 18 मार्च 2011

केदारनाथ अग्रवाल जन्म शताब्दी के मौके पर विशेष- फगुआ के दो व्यंग्य



मैना-

गुम्बज के ऊपर बैठी है,कौंसिल घर की मैना।

सुंदर सुख की मधुर धूप है,सेंक रही है डैना।।

तापस वेश नहीं है उसका ,वह है अब महारानी।

त्याग-तपस्या का फल पाकर, जी में बहुत अघानी।।

कहता है केदार सुनो जी ! मैना है निर्द्वंद्व।

सत्य-अहिंसा आदर्शों के, गाती है प्रिय छंद।।
 जनरक्षा-
आजादी है:जनता-रक्षा का हौआ एक बनाओ। 
सभी जनों को हड़ताली कह,जल्दी जेल पठाओ।। 
टाटा,बिड़ला,डालमिया को,भुज-बंधन में भेंटों। 
गोली,आंसू -गैस मारकर,मजदूरों को मेटो।। 
कहता है केदार सुनो जी ! तुम भी बेचो त्याग। 
भेष बदलकर जी भर खेलो,आजादी का फाग।।


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