खेलूँगी कभी न होली
उससे जो नहीं हमजोली।
यह आँख नहीं कुछ बोली,
यह हुई श्याम की तोली,
ऐसी भी रही ठठोली,
गाढ़े रेशम की चोली-
अपने से अपनी धो लो,
अपना घूँघट तुम खोलो,
अपनी ही बातें बोलो,
मैं बसी परायी टोली।
जिनसे होगा कुछ नाता,
उनसे रह लेगा माथा,
उनसे हैं जोडू-जाँता,
मैं मोल दूसरे मोली
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