सोमवार, 21 मार्च 2011

इतिहास, वर्ग और मार्क्सवादी महाख्यान-1- ब्रायन डी. पामर


     इतिहास क्या है? हेनरी फोर्ड के अनुसार एक शायिका। जॉयस ने इसे एक दु:स्वप्न माना। नीत्से ने गुर्राकर इसे झूठ का पुलिंदा कहा। फ्रेडरिक जेमसन ने उत्तर दिया, 'एक बड़ा जख्म'। हमारे बच्चे इसे 'बो-रिं-ग' कहते हैं। वे इतिहास शब्द का प्रयोग खारिज, समाप्त, मृत जैसे अर्थ के लिए करते हैं। फिर इस 'चीज', जिसे इतिहास कहते हैं, का बचाव क्यों किया जाए?
अधिकांश समकालीन सिध्दांत प्राय: अंतर्निष्ठ रूप से लेकिन स्पष्ट आदेश के साथ उत्तर देती है, 'नहीं।' प्रचलित थ्योरी अब प्राय: अमूर्त तथा विखंडित समयुगीनता को इतिहास का स्थल मानती है जो सजीव, प्रतीयमानत: कारणत्व से अलग, शाश्वत वर्तमानों की शृंखला है। ऐसा लगता है कि यह व्याख्या विश्लेषण को 'ऐतिहासिक विचारों' के सभी रूपों से मुक्त करने के सश्रम प्रयास से आरंभ होती है। इतिहास,जो वर्तमान पर निर्भर, अपनी किसी संपूर्णता से दूर, एक साधारण विषय है और उत्तरसंरचनावाद की अंतिम सामाजिक रचना है, सदैव ही अंतर्मुखता के क्षण का परिणाम होता है।
एक स्तर पर यह विशेष रूप से नया नहीं है। लेकिन उत्तरआधुनिकतावादियों
उत्तर-संरचनावादियों ने इतिहास के प्रति अपने विरोध को अनेक बौध्दिक सम्मोहक पुनरुक्तियों में समेटा है जो ऐतिहासिक प्रक्रिया के मौलिक प्रश्नों को खड़ा करती हैं। इस दृष्टिकोण के केंद्र में विवेकशील विचारों के उत्तर-प्रबोधन तंत्रों की अस्वीकृति है जिन्हें एक रूप, आख्यान और एक पदार्थ, यानी बुर्जुआ शासन के समायोजन में सीमित कर दिया जाता है। यह बुर्जुआ शासन इस प्रकार के 'ज्ञान' को विभिन्न प्रकार के दमन के साथ सह-अपराधिता की श्रेणी में ला देता है।
ऐसा लगता है मानो उत्तर-संरचनावाद गहरे ऐतिहासिक अतीत की एक व्यापक सामाजिक पुनर्संरचना में समस्त अठारहवीं सदी के क्रांति युग, को विलुप्त देखना चाहेगा जो कि निश्चित तौर पर एक बुर्जुआ परियोजना था। आदर्शवाद के कुछ लड़खड़ाते हुए छलांग में यह उन्नीसवीं सदी, औपनिवेशिक विद्रोह के अनुभव तथा प्रथम मजदूर राज्य (1917)
पर मेंढक कूद करते हुए 1776, 1789, 1792 और औद्योगिक क्रांति से संबंधित वर्ग अंतर्वस्तुओं तथा विचारों के परिवर्तनों के ऊपर से पोल-वॉल्ट करना चाहता है। पुनश्च: ये घटनाएं ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में हुईं और 'ब्लैक और बीथोवन से लेकर मार्क्स तक' तथा 'मंच' से लेकर वेबलेन और वॉन गॉख तक आधुनिक समयों की राजनीति तथा संस्कृति में अर्थ की समृध्द आख्यानपरक संरचनाएं हैं। प्रबोधन परियोजना कितनी भी अपूर्ण क्यों न हो, यह अपनी उत्पत्ति में इस बुर्जुआ घोषणा से समझौता कर चुकी थी कि समतावाद संपत्ति पर आधारित एक वैधानिक अधिकार है न कि परिपूर्णता की एक सामाजिक स्थिति। अत: यह सामंती व्यवस्था से परे एक क्रांतिकारी पारगमन थी। यह सदियों से सामाजिक अवस्था की जाति जैसी अवधारणाओं तथा अंधविश्वास जैसी विचारों में कैद थी।
उभरते सर्वहारा वर्ग की परिपक्व होती विश्वदृष्टि के रूप में मार्क्सवाद का उद्देश्य प्रबोधन विवेकशीलता को प्राप्त करना तथा इसे रैडिकल बनाना, समाज के इस या उस विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग तक ही नहीं बल्कि इसकी संभावनाओं को संपूर्ण मानवता तक पहुंचाना था। जिस प्रकार मैरी वॉल्सटन क्राफ्ट ने प्रबोधन के समानता के भानुमति के पिटारे में निहित संभावनाओं को पहचाना और फ्रांस की क्रांति तथा थॉमस पेन के 'राइट्स आफ मैन' का बचाव महिला अधिकारों की नारीवादी अभिव्यक्ति के रूप में किया, जो बुर्जुआ विचारों तथा आचारों में पितृसत्ता की शक्तिशाली उपस्थिति से काफी आगे तक गया; ठीक उसी प्रकार मार्क्स ने प्रबोधन आदर्शवाद का उपयोग करके इसकी विरोधात्मक चुनौती, ऐतिहासिक भौतिकवाद का निर्माण किया। उत्तर-संरचनावाद प्रबोधन विचारों में इस प्रकार के विभेदों और परिवर्तनों की अनुमति नहीं देता। यह विमर्श के सभी उत्तर-प्रबोधन रूपों की दमन की परियजना के साथ समझौतापरस्त मान कर भर्त्सना करता है।
वर्तमान सिध्दांत में विशेष रूप से संदिग्ध प्रबोधन 'महाख्यान' है जिसका कुछ महान आख्यानों के प्रति सुस्पष्ट आग्रह है जैसे 'आत्मा का द्वंद्ववाद, अर्थ का भाष्य-विज्ञान, विवेकशील या मेहनतकश व्यक्ति की मुक्ति या धन का सृजन'। यह अप्रचलित विमर्श, जो कि पराभौतिक दर्शन के आधुनिकतावादी संकट का कल्पित उत्पाद है, इस प्रकार के आख्यानों के विखंडन को तथा उत्तरआधुनिकता की उद्दात तर्कमूलकता के अस्थिर बादलों में उनके बिखराव को महज छिपाता है। अत: उत्तरआधुनिकतावादी उत्तर-संरचनावादी अपने रूपवादी तथा अंतिम (अल्टीमेटिस्ट) अस्वीकृति में उल्लेखनीय विरोधात्मक महत्व की भिन्नताओं को अस्वीकार करते हैं। वे कांट, हीगेल और मार्क्स को भी अस्वीकार करते हैं जिनमें सभी किसी न किसी महाख्यान पर निर्भर करते हैं। वे इस प्रकार की विचार पध्दतियों को अलग करने वाले मौलिक विभेदों को भी कोई खास महत्व नहीं देते। जिस प्रकार एक अराजकतावादी तर्क दे सकता है कि सभी राज्य महज राज्य हैं इसलिए दमनकारी हैं; (वोलशेविकों का पतन हो!) शांतिवादी कह सकते हैं कि सभी युध्दों की भर्त्सना की जानी चाहिए (हम वियतनाम में किसी के भी पक्ष में नहीं); उसी प्रकार उत्तर-संरचनावादी घोषणा करते हैं, सभी महाख्यान संदिग्ध और मध्यमार्गीय हैं क्योंकि विश्लेषणात्मक प्राधिकार की कोई सर्वमान्य श्रेणी नहीं (सभी अधिनिरूपणात्मक कीटों को समाप्त करो)।
आगे की टिप्पणी में मैं मार्क्सवादी 'महाख्यान' पर अपना ध्यान केंद्रित करूंगा, जो कि प्रबोधन विवेकशीलता को क्रांतिकारी बनाने की अपूर्ण परियोजना है और जिसे बहुत से समयुगीन सिध्दांत ऐतिहासिक भौतिकवाद को अस्वीकार करने के क्रम में इनकार करते हैं। विडंबना यह है कि मार्क्सवादी महाख्यान ठीक उस ऐतिहासिक क्षण में अस्वीकृत की गई है जब इसकी अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि यह भौतिक हितों द्वारा प्रेरित पहचानने योग्य संरचनाओं तथा एजेंसियों के अनुक्रम के रूप में, 'वर्ग' के पद के रूप में इतिहास के अध्ययन पर इसका जोर अतीत से वर्तमान तक के आंदोलन की व्याख्या के लिए अत्यावश्यक है, विशेष रूप से समकालीन जीवन के संदर्भ में, जहां मानवता शोषण और दमन के भूमंडलीय आयामों में अधिकाधिक जुड़ी हुई है।
यहां सुस्पष्ट को दोहराना सार्थक है क्योंकि सुस्पष्ट वही है जिसका उत्तर-संरचनावाद उत्तर आधुनिकतावाद प्राय: खंडन करता है या जिसे अस्वीकार भी करता है। समकालीन सिध्दांत की मार्क्सवादी तथा ऐतिहासिक भौतिकवादी आलोचना तथा राजनीति और वर्ग के ऐतिहासिक रूप से केंद्रीय आचरणों पर इसका जोर देना केवल अस्वीकृतियों की श्रृंखलाओं पर आश्रित नहीं है। उदाहरण के लिए ज्ञानसत्ता युग्मन, जो फूको से संबंधित है, का महत्व मार्क्सवादी विधि के लिए शायद ही अजनबी है। मार्क्सवाद हमेशा से ही प्रत्ययों, वर्चस्व और सामाजिक परिवर्तन के संबंध के प्रति सजग रहा है। प्रतिनिधित्व, बिंब, विमर्शों तथा पाठों के बारे में शायद ही यह कहा जा सकता है कि ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिध्दांत तथा आचरण में इन्हें कम महत्व दिया गया है। ऐतिहासिक भौतिकवादी ने आधार बाह्य संरचना के रूपक के अर्थ, जिसे समस्या बना दिया गया है, का कभी अच्छे के लिए तो कभी बुरे के लिए लगातार सामना किया है। ये रूपक क्रिस्टोफर हिल, एडवर्ड थाम्पसन, रोडनी हिल्टन तथा वी.जी. किएर्नन जैसे ब्रिटिश मार्क्सवादी इतिहासकारों के समृध्द लेखनों में तथा रेमंड विलियम्स एवं टेरी इगल्टन से संबंधित ऐतिहासीकृत साहित्यिक आलोचना की परंपरा में सर्वाधिक द्रष्टव्य हैं। अंतत: यह दावा करने के लिए कि मार्क्सवाद विश्लेषणात्मक महत्व का महाख्यान है, जो स्पष्टतया उत्पादक शक्तियों के कारणत्व तथा मूल रूप से आर्थिक संबंधों द्वारा निर्धारित नियामक सीमाओं पर निर्भर करता है, नस्ल तथा लिंग जैसे आत्म-परिचय के अन्य बिंदुओं के महत्व को अस्वीकार करना आवश्यक नहीं है।
तथापि सभी सर्वमान्य संवर्गों के प्रति उत्तरआधुनिकतावादी अविश्वसनीयता से मार्क्सवादी महाख्यान को अलग करने वाला विवरण यह या वह नहीं है। बल्कि एक भौतिक शक्ति के रूप में ऐतिहासिक संदर्भ के प्रति दो परंपराओं की सोच के विश्लेषणात्मक समुद्रों में महत्वपूर्ण विभाजन है। इस भौतिक शक्ति के रूप में ऐतिहासिक संदर्भ के भीतर मुक्ति के सभी संघर्ष तथा दमन के सभी कार्य होते हैं।
   उत्तर-संरचनावाद उत्तरआधुनिकतावाद इतिहास को एक लेखक के सृजन के रूप में देखता है। यह इसे वर्तमान की तर्कमूलक विषय वस्तु प्रस्तुत करने के लिए अतीत की कल्पना मानता है। अत: हो रही घटनाओं की अनिवार्यताओं से ही अतीत का पाठात्मक रूप में सृजन किया जा सकता है। मार्क्सवादी महाख्यान इस पर बल देता है कि इतिहास को हम अपने समय की प्रतिकूल प्रवृत्तियों में मुक्त रूप से बहने के लिए छोड़ देने के बजाए अतीत की संभावनाओं को भौतिक जगत में प्रासंगिक बनाएं। अपने इस आग्रह में मार्क्सवादी महाख्यान धुंधलाए सामाजिक संबंधों पर ध्यान देकर तथा दमित इतिहास के उन कोनों को संभावनाओं के अपेक्षाकृत बड़े समुच्चय में स्थापित कर अतीत को पुनरुज्जीवित करने का प्रयास करती है, जो स्थापित अभिलेखागार संबंधी रिकॉर्ड की विचारधारात्मक कहानी से कहीं अधिक थी। क्योंकि यह आम तौर पर सत्ता के सहजवृत्तिमूलक परिरक्षणवाद के प्रति सजग है। फिर भी, मार्क्सवाद का महाख्यान अतीत के नायकों के प्रति सत्य होने का प्रयास करता है। वे नायक वर्ग विभाजन के चाहे जिस ओर भी हों। ऐसा यह इस विश्वास के साथ करता है कि इस प्रकार की प्रक्रिया जिस प्रकार दुर्बोध या विकृत बनाई जा सकती है ठीक उसी तरह इसका स्थान भी पता किया जा सकता है।
अत: ई.पी. थामसन की 'दि मेकिंग आफ दि इंग्लिश वर्किंग क्लास'(1963) में द्रष्टव्य वर्ग निर्माण, संघर्ष तथा चेतना की अनिवार्य रूप से मार्क्सवादी समझ और 'दि लेंग्वेजेज आफ क्लास' (1983) में 'चार्टिज्म' (चार्टवाद) के गैरेथ स्टेडमैन जोन्स के उत्तर-संरचनात्मकता उन्मुख अध्ययन को इतिहास लेखन संबंधी एक प्रमुख विभेद अलग करता है। थामसन का राजनीतिक आचरण और सिध्दांत बिना कुछ सोचे समझे स्तालिनवादी तथा मुख्यधारा के सामाजिक जनतांत्रिक परिरोधनों को स्वीकार करता था। वह अंग्रेजी जनवादी आमूलपरिवर्तनवाद के हर अस्पष्ट पहलुओं की खोज करते हैं और उन्नीसवीं सदी के आरंभिक दशकों में संगठित सत्ता के सामने चल रहे भूमिगत विद्रोह की परंपरा को उजागर करते हैं, साथ ही वही बाद की पीढ़ी के मजदूर वर्ग के सुधारकों तथा उनके फेबियन इतिहासकारों के भावशून्य संविधानवाद के क्रांतिकारी रूप में बिलकुल आमने-सामने खड़े हैं। वह स्टेडमैन जोन्स से काफी दूर हैं। जोन्स की 1980 के दशक की राजनीति का निर्माण मेहनतकश वर्ग से दूर लेबर पार्टी के रूढ़िकारी तथा द्वेषपूर्ण बहाव के भीतर हुआ था। वह 'चार्टिज्म' की सफलताओं को 1830 के तथा 1840 के दशकों में जन आंदोलन की राजनीति के विरुध्द मानता है क्योंकि वह इस आंदोलन के विचारों और कार्रवाइयों में उस समय के वर्ग संघटन को नहीं बल्कि अठारहवीं सदी की राजनीति की खुमारी को पाता है जिसने ऐतिहासिक संदर्भ की वर्ग-वास्तविकताओं से अपने आपको किसी तरह अलग कर लिया। इसमें कोई संदेह नहीं कि थामसन की पुस्तक 'दि मेकिंग आफ दि इंग्लिश वर्किंग क्लास'' वर्तमान और अतीत के मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी आकांक्षाओं के प्रति अपनी प्रतिबध्दता से प्रेरित है लेकिन इससे उस पुस्तक की प्रामाणिकता कम नहीं होती क्योंकि अपनी तमाम विद्रोही प्रतिबध्दताओं के बावजूद यह उन्नीसवीं सदी के आरंभिक बरसों की भौतिक जगत की जटिलताओं से संबंधित है। इसके विपरीत स्टीडमैन जोन्स 'चार्टिज्म' के समय की विशिष्टताओं से अपने दूर रखने की राह की तलाश करते हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि स्टीडमैन जोन्स की पुस्तक का 'वर्तमान' थैचर के ब्रिटेन के साथ विचारधारात्मक अनुकूलन से ज्यादा कुछ भी नहीं है। यह अतीत का विस्थापन है जो मजदूर वर्ग के संघटन के एक बड़े इतिहास को निंदा और अस्वीकृति से व्युत्पन्न कोने के रूप में प्रस्तुत करता है। इसके बिलकुल विपरीत थामसन का 'वर्तमान' एक क्रांति का क्षण है जिसे विफल कर दिया गया, एक 'वीरतापूर्ण' चुनौती, जो अपनी विफलताओं के बावजूद मेहनतकश वर्ग के इतिहास तथा समयुगीन वामपंथी राजनीति के वर्ग संबंधी विषय वस्तु दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।(क्रमशः)

                        

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