बुधवार, 16 मार्च 2011

भाषा, इतिहास और वर्गसंघर्ष- समापन किश्त- डेविड मेक्नेलि


भाषा और मुक्ति
भाषा के संबंध में कुछ मार्क्सवादी विवेचनाओं से होकर किए गए इस संक्षिप्त भ्रमण से हम क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? सबसे पहले, हमने देखा कि मार्क्सवाद जीवन के अनुभवों की एकता पर बल देता है। चेतना के समान ही भाषा भी मानव अस्तित्व का कोई अलग तथा विलगित क्षेत्र नहीं; बल्कि यह उस अस्तित्व की अभिव्यक्ति का एक आयाम है। अत: इसका प्रसार द्वंद्वों, तनावों तथा वास्तविक जीवन के अंतर्विरोधों द्वारा होता है। नव आदर्शवाद इन सब चीजों को नहीं देखता। बख्तिन के शब्दों में, आदर्शवाद भाषा को 'विचारधारात्मक रूप से संतृप्त, अंतर्विराधग्रस्त, तनावपूर्ण समझने के बजाए इसे अमूर्त व्याकरण की श्रेणियां' समझकर भाषा, जीवन, इतिहास तथा समाज के बीच के संबंधों के बारे में हमारी समझ को कमजोर करता है। नव आदर्शवाद विचारधारा, द्वंद्व, अंतर्विरोध तथा प्रतिरोध को समझने का दावा कर सकता है लेकिन न केवल भाषा को अमूर्त रूप देकर तथा बल्कि वास्तव में स्वयं समाज को एक भाषिक-तंत्र में परिवर्तित करके यह एक अर्थ में पुराने आदर्शवाद से एक कदम आगे निकल गया है।
बाख्तिन का तर्क है कि शब्द 'एक कथोपकथन की दृष्टि से उत्तेजित तथा अजनबी शब्दों, मूल्य निर्णयों तथा स्वराघातों के तनावग्रस्त वातावरण में प्रवेश करता है; जटिल अंतर्संबंधों को बुनता तथा उससे बाहर निकलता है, कुछ के साथ मिलता और अन्यों के साथ मिलने से झिझकता है...' शब्द और कथन कभी तटस्थ नहीं होते। वे हमेशा तनावों, संघर्षों, द्वंद्वों से पूर्ण संदर्भों में अवस्थित होते हैं। 'एक अमूर्त व्याकरणीय तंत्र' के रूप में भाषा एकांगी और अध्ययन का एक बंद विषय माना जा सकता है। लेकिन ऐसा करना इसे 'इतिहास निर्माण की अबाधित प्रक्रिया, जो कि सभी जीवित भाषा का लक्षण है, से अलग रखकर समझना होगा'
अत: भाषा सामाजिक और ऐतिहासिक है। इसके अर्थ केवल अन्यों के साथ हमारे संबंध में मौजूद होते हैं; और ये अन्य ठोस संरचित सामाजिक संबंधों में उपस्थित होते हैं। ये सामाजिक संबंध स्वयं गतिशील होते हैं; इनमें वर्चस्व और प्रतिरोध संबंधी संघर्ष तथा शक्ति और सत्ता के बदलते संतुलन शामिल होते हैं। इसलिए अर्थ भी ऐतिहासिक हैं; वे 'इतिहास निर्माण' की प्रक्रिया में अंतर्निष्ठ होते हैं, जिसमें संबंध स्थायी नहीं होते और जिसमें अतीत और वर्तमान भविष्य की ओर हमारे पूर्वाभिमुखीकरण में अंतर्गुथित होते हैं।
मेरे लिए भाषा व्याकरणपरक संबंधों और अर्थों की एकल संरचना प्रस्तुत नहीं करता। इसके विपरीत इसमें मेरी भागीदारी विषय वस्तुओं, स्वराघातों और अर्थों, जो हमेशा प्रतिस्पध्र्दारत रहते हैं तथा कभी भी बंद नहीं होते, के एक सामाजिक और ऐतिहासिक क्षेत्र में मेरी तल्लीनता की मांग करती है। जो शब्द मैं चुनता हूं, जो कथन मैं संप्रेषित करता हूं, वह क्षेत्र विशेष में मेरी अवस्थिति दरशाता है। अपने अनुभवों, विचारों और आकांक्षाओं को व्यक्तकरने का मेरे पास हमेशा वैकल्पिक रूप होता है। जब बख्तिन लिखते हैं कि 'चेतना स्वयं ही अनिवार्यत: एक भाषा को चुनने की आवश्यकता को महसूस करती है,' तो उनका यही अभिप्राय होता है।12
मैं मेजर लीग बेसबॉल खिलाड़ियों द्वारा हड़ताल के संबंध में समाचारपत्र के हाल की एक खबर का उदाहरण लेता हूं। एक खेल संवाददाता लिखता है, 'स्थानापन्न खिलाड़ियों, जिन्हें आप यदि शिष्टोक्ति का इस्तेमाल नहीं करना पसंद करते तो गद्दार या हड़तालभंजक कह सकते हैं, ने अपने पहले स्प्रिंग ट्रेनिंग का लड़खड़ाता हुआ अभ्यास आरंभ कर दिया है।' संवाददाता यहां पाठकों को विकल्प दे रहा है। उसने जो हमें विकल्प दिए हैं वे हैं : स्थानापन्न खिलाड़ी, गद्दार, हड़तालभंजक। स्पष्ट है कि जो विकल्प हम चुनते हैं वह तटस्थ नहीं है, वह सामाजिक तथा राजनीतिक दृष्टि से आवेशित है। और मार्क्सवादी परंपरा, जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं, में यह सभी कथनों, सभी सामान्य बोली (सजीव भाषा) के लिए लागू होता है।
इतना ही नहीं भाषा हमें उन अर्थों के निर्माण के लिए संसाधन प्रदान करती है जो भविष्य की ओर अग्रसर होते हैं। ये उन संभावनाओं की ओर इशारा करते हैं जो वर्तमान में हमारे अनुभव से परे होती है। और कई संसाधन जो भाषा हमें उपलब्ध कराती है, अतीत के उन अर्थों से व्युत्पन्न होते हैं जो हमारे लिए समाप्त हुए नहीं रहते, बल्कि वे हमारी भाषा में, हमारी संस्कृति में, हमारे अनुभव में जीवित रहते हैं। चूंकि भाषा के समान ही मनुष्य भी 'ऐतिहासिक संभवन' (हिस्टोरिकल बिकमिंग) की स्थिति में रहता है। इसीलिए भाषा हमें भविष्य की ओर उन्मुख रहते हुए अतीत में जाने में सक्षम बनाती है। अतीत के अनुभव लाभ-हानि, जय-पराजय, खुशी-गम, वर्तमान की परिस्थिति के बारे में कुछ कह सकते हैं; वे प्रेरणा, सबक तथा वर्तमान के लिए उम्मीद की किरण दे सकते हैं। भविष्य में पहुंचने के क्रम में हम अतीत में वापस आ सकते हैं, और ऐसा करने में भाषा हमारी मदद करती है। क्योंकि भाषा व्यक्तिगत तथा ऐतिहासिक स्मरण की वस्तु है। यह मुझे न केवल वर्षों के स्थायी आत्म-अनुभव को संजोने में सक्षम बनाती है बल्कि भविष्य में अपने आपको अवस्थित करने में, ऐतिहासिक स्मरण का उपयोग करने में सहायता करती है। मैं 'तुसेंट एल ओवर्चर' तथा दास सेना जिसने औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ संघर्ष किया, 1871 के पारीसियन कम्युनाड्र्स, 1917 के सेंट पीटर्सबर्ग सोवियत आफ वर्कर्स डिपुटिज, 1937 के फ्लिंट डाऊन स्ट्राइकर्स, 1956 के हंगरी के आंदोलनकारियों, 1968 के फ्रांसीसी छात्र और मजदूर आंदोलनों...का स्मरण करने में सक्षम हूं।
अत: ऐतिहासिक भौतिकवाद की दृष्टि से भाषा के अंत:क्षेत्र में होने का अर्थ है इतिहास में या 'ऐतिहासिक संभवन' में निरूपित होना। वैकल्पिक संभावनाओं की समाप्ति के बजाए ऐतिहासिक जीव के रूप में हमारे अस्तित्व का अर्थ है कि हम अतीत का स्मरण करने तथा एक ऐसे भविष्य की कल्पना करने में सक्षम हैं जो वर्तमान से भिन्न है। भाषा महज प्रभुत्वशाली विचारों की धरोहर नहीं; यह एक आयाम भी है जिसमें वर्चस्व केखिलाफ संघर्षों  को संजोया और स्मरण किया जा सकता है; जिसमें प्रतिरोध की संकल्पना की जा सकती है और इसे संगठित किया जा सकता है।
भाषा को इस रूप में देखने का अर्थ है कि कोई इसे मुक्ति के सार्थक विचार के रूप में सिध्दांत बना सकता है, हालांकि नव आदर्शवादी ऐसा नहीं करते। इसका मतलब है कि परिस्थितियां कितनी भी खराब क्यों न हो, मुक्ति हमेशा संभव है। क्योंकि हमारी व्यावहारिक गतिविधि और हमारी भाषा उन विषयवस्तुओं, स्वराघातों, आकांक्षाओं का वहन करती है जो लोगों के बीच विभिन्न संबंधों को तथा जो कार्य वे करते हैं, उन्हें व्यक्त करती हैं। जब तक पदसोपान, वर्चस्व, शोषण आदि हैं तब तक प्रतिरोध और विध्वंस की क्रियाएं होती रहेंगी तथा ये अपने निशान भाषा में छोड़ती रहेंगी। भाषा कोई बंदीगृह नहीं, बल्कि यह एक संघर्षस्थल है। वास्तव में संघर्ष होते हैं और अंतत: बहुत वास्तविक भौतिक संरचनाओं जैसे कार्यस्थलों, बंदीगृहों, सेनाओं आदि के क्षेत्र में सैध्दांतिक रूप में इन्हें सुलझाया जाता है। लेकिन संघर्ष का स्थल कोई भी हो, भाषा वहां एक आयाम के रूप में मौजूद होगी, जिसमें सामाजिक अनुभव को जीया जाता है। और जो लोग दमन और शोषण से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वे अकसर भाषा में ही एक बेहतर विश्व के लिए अपने संघर्ष को अभिव्यक्त करने, स्पष्ट करने तथा संगठित करने के लिए शब्द, अर्थ और थीम्स पाएंगे।

1 टिप्पणी:

  1. ‘और जो लोग दमन और शोषण से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वे अकसर भाषा में ही एक बेहतर विश्व के लिए अपने संघर्ष को अभिव्यक्त करने, स्पष्ट करने तथा संगठित करने के लिए शब्द, अर्थ और थीम्स पाएंगे’

    दुनिया के मज़दूर एक हो.....ऐसा स्लोगन हर मज़दूर संघ देता आ रहा है, फिर एक क्यों नहीं होते?

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