सोमवार, 14 मार्च 2011

विकीलीक और अमेरिकी साम्राज्यवाद-4-


पत्रकारिता पर असर- विकीलीक के आने के बाद पत्रकारिता का भी नक्शा बदलेगा। अब तक किसी गुप्त दस्तावेज के स्रोत को पत्रकार छिपाते थे लेकिन अब ऐसा कम होगा। पत्रकार जिन सरकारी स्रोतों से दस्तावेज हासिल करते थे उनके बारे में रहस्य बनाए रखते थे। यह काम पत्रकार और सरकारी स्रोत के साथ अघोषित समझदारी के आधार पर होता था। पत्रकार अपनी बात कहते थे,लेकिन दस्तावेज नहीं दिखाते थे,स्रोत नहीं बताते थे। हम अभी तक नहीं जानते कि बोफोर्स का रहस्योदघाटन करने वाले पत्रकारों चित्रा सुब्रह्मण्यम और एन.राम. ने बोफोर्स की दलाली वाले दस्तावेज कहां से और कैसे हासिल किए थे। उनके दस्तावेजों का स्रोत कौन था ?
     विकीलीक के प्रधान जूलियन असांजे ने ‘डेमोक्रेसी नाउ’ के रेडियो पर दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि अब पत्रकार को दस्तावेजों को लेकर इतनी एहतियात बरतने की जरूरत वहीं होगी। असांजे ने कहा "We don't see, in the case of a story where an organization has engaged in some kind of abusive conduct and that story is being revealed, that it has a right to know the story before the public, a right to know the story before the victims, because we know that what happens in practice is that that is just extra lead time to spin the story ."
    इस प्रसंग में अमेरिका की चिन्ताएं है कि इराक और अफगानिस्तान और अन्य देशों में अमेरिकी के लिए एजेंट का काम करने वालों के नाम बगैरह यदि विकीलीक उदघाटित कर देता है तो गंभीर संकट खड़ा हो सकता है और अमेरिका के लिए खुफिया तौर पर काम करने वाले लोग मारे जा सकते हैं या पकड़कर जेल भेजे जा सकते हैं अतः उन्होंने विकीलीक से विभिन्न मीडिया प्रतिष्ठानों के जरिए अपील की कि दस्तावेज प्रकाशित करते समय जनहानि न हो इसका ख्याल रखा जाना चाहिए । विकीलीक ने यह ध्यान रखा है। उसने अफगानिस्तान,इराक आदि देशों में काम करने वाले स्थानीय अमेरिकी एजेंटों और मुखबिरों के नाम उजागर नहीं किए हैं। उन केबलों और दस्तावेजों को संपादित कर दिया गया था जहां स्थानीय एजेंट का नाम लिखा था। इस तरह विकीलीक ने अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों का ख्याल रखा।
    उल्लेखनीय है 1971 में अमेरिकी प्रशासन ने टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट को गोपनीय दस्तावेज छापने से आधिकारिक तौर पर रोका गया। अमेरिका में रिवाज है कि कोई सरकारी दस्तावेज छापने के पहले सरकारी राय जानने की कोशिश की जाती है और उस समय सरकार ने वियतनाम युद्ध के दस्तावेजों को छापने से रोकने की काफी कोशिश की और उस समय अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने भी 6-3 से यह फैसला दिया था कि दस्तावेज छापने से रोकना फर्स्ट एमेंडमेंट का उल्लंघन है। लेकिन जजों ने कहा था कि 1950 के जासूसी कानून को इस प्रसंग में लागू किया जा सकता है। लेकिन अदालत ने सरकारी दस्तावेजों के प्रकाशन को रोकने से इंकार कर दिया। कानूनन गोपनीय सरकारी दस्तावेजों को प्रकाशित करना अपराध है। यह कानून शीतयुद्ध के दौरान बनाया गया था। लेकिन अमेरिका में लगातार गोपनीय सरकारी दस्तावेज प्रकाशित होते रहते हैं और कभी भी इस कानून को लागू नहीं किया गया। आमतौर पर अमेरिका के जासूसी कानून में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सूचनीओं’ और ‘विदेशी सरकार’ से संबंधित लीक छापना अपराध है।
    उल्लेखनीय है पहले कोई भी पत्रकार गोपनीय दस्तावेज सरकारी ऑफिस की चौहद्दी के बाहर लाता था उन्हें सुरक्षित जगह पहुँचाता था,संपादक को दिखाता था फिर चुनकर खबर बनाता था ,लेकिन विकीलीक के मामले में ऐसा नहीं हुआ है। सूचना संप्रेषक सरकारी गोपनीय दस्तावेज को किसी तरह प्राप्त करके सीधे जिप फाइल में सुरक्षित बनाकर ईमेल कर देता है। वह सरकार के सुरक्षा संबंधी किसी भी बाड़े को किसी तरह अतिक्रमित करके यह काम कर लेता है और उसके दस्तावेज सीधे प्रकाशित हो जाते हैं। इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि इंटरनेट,मोबाइल और कम्र्यूटर के विस्तार के साथ ही साथ बड़े पैंमाने पर विभिन्न देशों में सरकार का नागरिकों के जीवन में हस्तक्षेप बढ़ा है। अमेरिका में निजी मामलों में सरकार दखलंदाजी कर रही है। नागरिकों की संदेह के नाम पर ब्लैकलिस्ट बनायी गयी है। खास किस्म के लोगों ,जैसे मानवाधिकार के लिए काम करने वालों पर हमले और नजरदारी बढ़ी है।यह फिनोमिना अमेरिका से लेकर भारत तक देखा जा रहा है। विभिन्न देशों की सरकारें विभिन्न उपायों को लागू करने की कोशिश कर रही हैं जिनसे नागरिक की पूरी जासूसी और निगरानी की जा सके। राष्ट्रीय सुरक्षा ने नाम पर उन लोगों को परेशान किया जा रहा है जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। अनेक बार सरकारी गोपनीय दस्तावेजों के प्रकाशन से सरकारी ऑफीसर की भूलें सामने आती हैं,दुर्व्यवहार सामने आता है। संबंधित विभाग में क्या घोटाला चल रहा है यह सामने आता है।
     मसलन विकीलीक से पता चलता है कि अमेरिका के अनेक राजनयिक वस्तुत सीआईए के जासूस हैं। जबकि नियमानुसार राजनयिक का काम जासूसी करना नहीं है। दूतावास में जासूसों की गोपनीय नियुक्ति नहीं की जा सकती ,लेकिन अनेक देशों में अमेरिकी राजनयिक कूटनीति और जासूसी दोनों काम एक साथ कर रहे थे। एक और भी समस्या है कि जो राजनयिक अपने ऊपर वालों से केबल आदि के जरिए गोपनीय विचार-विमर्श करते हैं उनके लिए भी इस केबल एक्सपोजर ने गंभीर संकट पैदा कर दिया है। उनके आपसी विश्वास को हिला दिया है। एक-दूसरे से बात करने वाले अधिकारी नहीं जानते कि उनकी बातचीत कहीं लीक तो नहीं हो जाएगी और लीक होने की स्थिति में संबंधित अधिकारी की नौकरी से लेकर जिंदगी तक कुछ भी खतरे में पड़ सकती है।
विकीलीक को इंटरनेट के जरिए यूजर देख न पाएं इसकी ओर भी विभिन्न सरकारों ने चौकसी बढ़ा दी और पाबंदियां लगा दीं। अमेरिकी प्रशासन, अमेरिकी वायुसेना,पेंटागन, सरकारी ऑफिस और अनेक कॉरपोरट ऑफिसों में विकीलीक देखने पर पाबंदी लगा दी गयी। इसके अलावा चीन,थाइलैंड,आस्ट्रेलिया आदि ने भी पाबंदी लगा दी।
   विकीलीक के एक्सपोजर ने यह बात भी उजागर की है 21वीं सदी में सूचनाओं का रूप वैसा नहीं रहेगा जैसा 20वीं सदी में था। कल तक राजनयिकों की गतिविधियां गोपनीय होती थी लेकिन 21वीं सदी में गोपनीय नहीं रहेगी। जिन संस्थानों को गोपनीय माना जाता है वे भी अब गोपनीय नहीं रह जाएंगी। गोपनीयता को नए सिरे से परिभाषित करना होगा। खासकर गुप्तचर संस्थाओं के लिए बेहद गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
  विकीलीक के दस्तावेज जिस तरह आए हैं उनसे यह भी साफ है कि कौन जासूस है और कहां और किस पर जासूसी कर रहा है और किस तरह की सूचनाएं संकलित कर रहा है इसे आसानी से जान सकते हैं। सूचनाओं का इंस्टेंट स्थानान्तरण एक गंभीर समस्या है। 
     विकीलीक के एक्सपोजर ने एक बात साफ कर दी है कि सरकारों के पास दस्तावेजों और सूचनाओं को छिपाने की जितनी विकसिक तकनीक और बुद्धि है उससे ज्यादा विकसित तकनीक और बुद्धि विकीलीक के पास है। सरकार के बाहर आम लोगों के पास है। अभी यह शक्ति अमेरिका में रंग दिखा रही है कल को यह भारत में भी रंग दिखा सकती है। किसी भी सरकारी अधिकारी के सभी संवाद और फोन टेप करके सुनायी पड़ सकते हैं। राडिया टेप इसका आदर्श नमूना है। इसके अलावा सूचना एक्सपोज करने की पद्धति का शत्रु राष्ट्र भी इस्तेमाल कर सकता है। इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं के नग्नतम अत्याचारों का जिस तरह विकीलीक ने खुलासा किया है उससे 21वीं सदी में संचार की तकनीक का स्वाभाविक झुकाव जनता के हितों का ओर हो गया है। जनता के हितों पर हृमला करने के पहले सरकारें कईबार सोचेंगी।
    विकीलीक ने यह भी समस्या उठा दी है कि जासूस,मुखबिर,हमलावर कौन हैं और पीडित कौन हैं ? नए 3.0 इंटरनेट मानकों के अनुसार आप सूचना के स्थान और समय के बारे में जान सकेंगे। उस स्थान के बारे में भी जान सकेंगे जहां पर प्राइवेट गतिविधि चल रही है। इसका अर्थ है सूचना की दुनिया बुनियादी रूप से बदल गयी है।
    विकीलीक का पहला परिणाम यह है कि युद्ध अब गुप्त नहीं है। युद्ध में क्या हो रहा है ,कितना और किसका नुकसान हो रहा है,किस तरह मानवाधिकारों का हनन हो रहा है और किस तरह खून-खराबा संगठित किया जा रहा है, कौन जासूस हैं और वे क्या कर रहे हैं, कितनी सेना है, कितने टैंक है,कौन कौन से कारपोरेट घराने युद्ध में लिप्त हैं,व्यक्ति के रूप में कौन लोग काम कर रहे हैं, कितने युद्धास्त्र इस्तेमाल किए जा रहे है, आदि बातों के रहस्योदघाटन ने अब युद्ध की गोपनीयता को खत्म कर दिया है।
   

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