8 मार्च 2011 को विश्व महिला दिवस सारी दुनिया में मनाया जाता है। मैं यहां तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अस्काबाद में विश्वभाषा संस्थान में हिन्दी विभाग में प्रोफेसर हूँ, नया विभाग खुला है, मेरी यह दूसरी विदेश यात्रा है,पांच महिने गुजर चुके हैं यहां पर। महिला दिवस पर इस देश का माहौल देखकर आश्चर्य हो रहा है और उसी अनुभव को मैं साझा करना चाहती हूँ। यह देश पहले समाजवादी सोवियत संघ का हिस्सा था। इन दिनों संप्रभु राष्ट्र है। बेहद सम्पन्न हैं यहां के लोग।
करीब पांच छः रोज पहले मेरी तुर्कमेन दोस्त शमशाद ने वायदा किया है कि वो इस दिन मुझसे मिलने आएगी और मुझे एक सरप्राइज गिफ़्ट( मेरी एक पेंटिंग) देगी। मुझे हठात् 8 मार्च का प्रसंग ध्यान नहीं आया तो उसने याद दिलाया कि मंगलवार को 8 मार्च है। तब तक मुझे उम्मीद नहीं थी कि 8 मार्च का दिन तुर्कमेनिस्तान में इस तरह बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। 6 मार्च से ही राष्ट्रीय चैनलों पर बार-बार बधाई संदेश दिखाया जा रहा है। महिला दिवस मुबारक हो। राष्ट्रपति ने सभी महिलाओं और देशवासियों को इस दिन की बधाई दी है। कल 8 मार्च को राष्ट्रीय अवकाश है।
आज 7 मार्च से ही सारे दिन 'यास्लिक' नाम के राष्ट्रीय चैनल पर महिलाओं के लिए तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। इसमें सक्रिय सरकारी भागीदारी है। मैंने महिला दिवस पर ऐसा कोई दृश्य अन्य किसी चैनल पर नहीं देखा , इस कारण सुखद आश्चर्य हुआ।
वैसे भी तुर्कमेनिस्तान उत्सवप्रिय देश है। उत्सवधर्मिता यहां के लोगों की रग़-रग़ में है, थोड़ा शर्माकर सुंदर तरीके से कहते भी हैं कि हमारे देश में उत्सव बहुत हैं। पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इस तरह का उत्सवपूर्ण आयोजन देखना बहुत ही प्रीतिकर है। आम तौर पर अन्य अंतर्राष्ट्रीय चैनल बहस और रिपोर्टें दिखाते हैं, महिलाओं की स्थिति का वैश्विक आकलन प्रस्तुत करते हैं उनमें उत्सवधर्मिता और उल्लास कहीं ग़ायब हो जाता है। मैं ये नहीं कह रही कि बहसों और आंकड़ों की जरुरत नहीं। इनकी जरूरत है, कांगो में बलात्कार का युद्ध के अस्त्र के रुप में इस्तेमाल, मध्य पूर्व के देशों में महिलाओं द्वारा हाल के जनांदोलनों में भागीदारी पर और इस तरह के अन्य मसलों पर बहस की जरूरत है।
लेकिन उत्सव की तरह इस दिन को मनाए जाने का अपना रचनात्मक और प्रतीकात्मक महत्व है। आज के कार्यक्रम की विशेषता है कि पूरा कार्यक्रम पुरुषों द्वारा पेश किया जा रहा है। इनमें किशोर हैं , युवा हैं और वृद्ध भी। वे ही काव्य-पाठ कर रहे हैं, नाच रहे हैं, वाद्य बजा रहे हैं। जबकि अमूमन किसी भी अन्य कार्यक्रमों में महिलाओं की बराबर भागीदारी होती है। वे गाती हैं, वाद्य भी बजाती हैं, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश करती हैं। पर आज हर उम्र की महिला को कार्यक्रम का केवल आनंद लेते देखा जा सकता है। उनके सम्मान में कार्यक्रम पेश किया जा रहा है मेल जेंडर के द्वारा। पुरुष मंडली नाच-गा कर महिला समाज की मेहरबानियों का बखान कर अपना आभार प्रकट कर रही है। स्त्री के अवदानों के प्रति यह एक कृतज्ञ समाज की सही भंगिमा है। बहस और रिपोर्टें भी हैं, चर्चाएं भी,महिलाओं की प्रतिक्रिया भी। सब समानुपातिक।
समाजवादी समाज के ढ़ांचे के अंदर विकसित स्त्रीवादी सरोकारों को यहां देखा जा सकता है। यहां औरतों को सरकारी स्तर पर कई तरह की सुविधाएं हासिल हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए विशेष रूप से प्रावधान है कि पूरी नौकरी के दौरान दो बार वे गर्भधारण के दौरान मिलने वाली सरकारी सहूलियतें ले सकती हैं। जच्चा –बच्चा दोनों के लिए ही नौकरीपेशा और गैर नौकरीपेशा महिलाओं के लिए सरकारी सुविधाएं दी जाती हैं। मां और शिशु को मासिक तौर पर दो वर्षों तक धन दिया जाता है साथ ही बच्चे की पढ़ाई –लिखाई का खर्चा भी मिलता है। पूरी नौकरी के दौरान यदि महिला ने दो बार गर्भ धारण किया है तो वह समय उसकी नौकरी में तरक्की में बाधा नहीं होता। यही नहीं वह चाहे तो गर्भधारण के समय को नौकरी की पूरी अवधि में से घटाकर पूरे पेंशन के साथ रिटायरमेंट ले सकती है।
यह एक उदार मुस्लिम बहुल समाज है। धर्म को लेकर कहीं से भी कट्टरता का प्रदर्शन दिखाई नहीं देता। खान-पान, पहनावा, आचार-व्यवहार सबमें उदारता दिखाई देती है। मैंने यहां लगभग 6 महीनों में लोगों को जोर-जोर से बोलते या झगड़ा करते नहीं सुना। मेरे पड़ोस में रहनेवाली महिलाओं में भी मैंने कभी कोई कटु प्रसंग नहीं देखा। लड़की पैदा होने पर मां-बाप निश्चिंत होते हैं। लड़की स्वयं लड़का पसंद करती है। लड़की वाले शादी से पहले एक बार भी लड़के का घर देखने नहीं जाते। लड़के के घरवाले ही आते हैं और प्रस्ताव देते हैं।
वैवाहिक संबंधों के न चल पाने की स्थिति में तलाक यहां स्टीग्मा नहीं है। तलाक की स्थिति में घर पर स्त्री का ही अधिकार होता है, उसे घर नहीं छोड़ना पड़ता। सबसे महत्वपूर्ण यह कि यहां स्त्रियां जितने भी सर्विस सेक्टर हैं उनमें बड़ी संख्या में काम करती हैं। केयरटेकर, बाज़ार में दुकानदारी, विदेशों से सामान आयात करके व्यापार, मिलों-कारखानों और दस्तकारी के कामों विशेषकर कालीन बनाने और यहां के राष्ट्रीय पोशाक – 'कोईनेक' (कशीदाकारी)की कढ़ाई, सिलाई सभी कामों में स्त्रियों की ही भागीदारी है। अपवाद रूप में भी पुरुष दिखाई नहीं देते।
यहां 'मॉल' हैं उनमें पूरे दुकान की जिम्मेदारी स्त्रियों पर ही है। सेल्सगर्ल से लेकर कैश काउंटर तक वे ही हैं। 'बिज़नेस वूमन' की अवधारणा यहां आम है। पुरुष भवनों के निर्माण कार्य में या ऑफिसों में काम करते हैं। बाज़ार का पूरा अर्थतंत्र स्त्री के हवाले है। इस श्रम के अलावा इन स्त्रियों का घरेलू श्रम भी जुड़ा हुआ है। सदियों से चले आ रहे पितृसत्ताक विचारों के घुन ने इस समाज को भी खाया है। इतनी बड़ी संख्या में हर तरह के कामों में भागीदारी के बावजूद राजनीति और व्यापारिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण जगहों पर महिलाओं की भागीदारी समुचित नहीं है।
भारत में इतनी बड़ी संख्या में बाज़ार की संचालक शक्ति के रूप में स्त्री को देखना मुश्किल है। वे दिखाई देती हैं उपभोक्ता के रूप में। विशेषकर शहरों में तो यही दृश्य है। घर और बाहर के कामों का पितृसत्ता के नियमों के अनुसार सख़्त बंटवारा स्त्री को व्यक्तित्व के विकास के बहुत सारे अवसरों से तो बाधित करता ही है बहुत सी रुढ़ियों की समाप्ति की प्रक्रिया को भी विलंबित करता है।
मैं अभी तक तय नहीं कर पाई हूं कि अपनी उस छात्रा-मित्र द्वारा दी गई शिवरात्रि की बधाई का क्या प्रत्युत्तर दूं , उसी दिन शमशाद ने याद दिलाया था कि क्यों वह 8 मार्च को ही सरप्राइज देना चाहती है। पार्वती की कठिन 12 बरसों की तपस्या के बाद शिव प्रसन्न हुए थे और पार्वती से विवाह किया था। 'शिवरात्रि' के दिन कन्याएं इच्छित वर पाने के लिए और सुहागिनें सात जन्मों तक वर्तमान पति को पाने के लिए व्रत करती हैं।
भारतीय स्त्रीवाद की विडंबना है कि यहां शिवरात्रि और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ही पैराडाइम में मौजूद हैं। भारत में महिला आंदोलन अभी तक इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित नहीं करा पाया है लेकिन पूर्व समाजवादी समाज के मुस्लिम बहुल देश तुर्मेनिस्तान में राष्ट्रीय अवकाश है।शरीयत की जगह आधुनिक संविधान है,कानून है। यहां औरत के लिए जिस तरह के अधिकार,सामाजिक सम्मान और सामाजिक सुरक्षाएं उपलब्ध हैं ,उन्हें देखकर यही इच्छा होती है कि काश !भारत की औरतों के पास इस तरह के अधिकार होते । (नई रोशनी ब्लॉग से साभार )
aaj ke is bade din par jo icha aapki hai wahi hamari bhi .aapne muslim samaj mein stri ke aise roop aur shakti se parichay karakar humko bhi usi shakti ko pane ke liye utsahit kiya .dhanyavaad
जवाब देंहटाएंachcha laga padhkar...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंजानकारी के किये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस पर अभिनन्दन
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस पर अभिनन्दन|