छह छोटी कविताएँ
[१]
चली गयी है कोई श्यामा
आँख बचाकर, नदी नहाकर
काँप रहा है अब तक व्याकुल
विकल नील जल।
[२]
इकला चाँद
असंख्यों तारे,
नील गगन के
खुले किवाड़े.
कोई हमको
कहीं पुकारे
हम आयेंगे
बाँह पसारे।
[३]
न इश्क
न हुस्न
गये हैं दोनों बाहर
अवमूल्यन में
कर्ज़ चुकाने
[४]
छूट गयी 'बस'
रह गया मैं
पाँव पर खड़ा,
चाकू-सा
खुला दिन
मेरी देह में गड़ा।
[५]
हे मेरी तुम !
पेड़
न फूले--
नहीं हँसे
खड़े हुए हैं मौन डसे ।
[६]
हे मेरी तुम !
कुछ न हुआ, अब
बूढ़ा हुआ सुआ ।
पखने हुए भुआ ।
देखो,
काल ढुका ;
मन सहमा;
तन काँपा, और झुका ।
---
[१]
चली गयी है कोई श्यामा
आँख बचाकर, नदी नहाकर
काँप रहा है अब तक व्याकुल
विकल नील जल।
[२]
इकला चाँद
असंख्यों तारे,
नील गगन के
खुले किवाड़े.
कोई हमको
कहीं पुकारे
हम आयेंगे
बाँह पसारे।
[३]
न इश्क
न हुस्न
गये हैं दोनों बाहर
अवमूल्यन में
कर्ज़ चुकाने
[४]
छूट गयी 'बस'
रह गया मैं
पाँव पर खड़ा,
चाकू-सा
खुला दिन
मेरी देह में गड़ा।
[५]
हे मेरी तुम !
पेड़
न फूले--
नहीं हँसे
खड़े हुए हैं मौन डसे ।
[६]
हे मेरी तुम !
कुछ न हुआ, अब
बूढ़ा हुआ सुआ ।
पखने हुए भुआ ।
देखो,
काल ढुका ;
मन सहमा;
तन काँपा, और झुका ।
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बूढ़ा हुआ सुआ ।
जवाब देंहटाएंपखने हुए भुआ ।
देखो,
काल ढुका ;
मन सहमा;
तन काँपा, और झुका ।
........मोहक और अद्भुद रचनाएँ ... आभार
Ishk, husn dono bahari hain, awmulyit hain, krjdar ho gye hain...krj chukane ka upkrm jaree hai... Behtreen kwitayen.Dhnyawad.
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