सोमवार, 7 मार्च 2011

चे ग्वेरा की मौत पर फिदेल कास्त्रो-3-


      स्रोत के मुताबिक 'हमारे पास सबसे अच्छी खबर यह है कि ग्वेरा जीवित हैं और हम इससे सहमत हैं कि वे पूरी तरह से घिर चुके हैं।' वैसे इस स्रोत ने अपनी इस मान्यता के आधार को नहीं बताया है। इसी स्रोत के मुताबिक, सेनाओं द्वारा कम्युनिस्ट गुरिल्लाओं को एक छोटी सी घाटी में दो पहाड़ियों के बीच घेर लिया गया है।वैसे इस जानकारी की पुष्टि नहीं हो पाई है।
इस घाटी के दोनों निकासों को जंगल में युध्द के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित की गई बोलेवियाई सेना द्वारा अवरुध्द कर दिया गया है। इस सेना में अधिकतर सैनिकों को अमरीकी (यू.एस.) सैन्य प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित किया गया है और फौज के कई लोग तो वियतनाम युध्द में भी भागीदारी कर चुके हैं। यहां दर्ज करने लायक बात यह है कि इस घाटी के पार्श्व और आधार दोनों ही बहुत घने हैं। लेकिन ऊंचाई वाले हिस्से किसी भी तरह के आसन्न युध्द के लिए अवरोध से मुक्त हैं।इसी स्रोत के अनुसार, 'सेना का खोजी दस्ता इस सप्ताह की शुरुआत से ही सकारात्मक ढंग से खोजबीन शुरू कर चुका है।'
यह 29 तारीख का डिस्पैच है, जो एक ऐसे कठिन क्षेत्र के बारे में बताता है जहां जंगली घाटीएक किस्म की तंग घाटी, दर्रा है और पहाड़ियों के बीच या ऊंचाई के स्थानों के बीच जहां बिलकुल भी वनस्पति नहीं है। यह एक ऐसी जगह है जहां से निकलने की अनिवार्यता है, वहीं दूसरी ओर इस घाटी से निकलने के सारे रास्ते बंद थे। क्योंकि घेराबंदी में फंसे हुए गुरिल्लाओं को निकलने या उनके किसी भी संचालन या भूस्थिति में बदलाव के लिए जंगलों या वनस्पतियों का होना अनिवार्य होता है।
यह डिस्पैच विशिष्ट भूमिका रखता है, क्योंकि यह एक भूक्षेत्र के बयान के साथ शुरू होता है। आगे प्राप्त हुए सभी डिस्पैचों में इसी भूक्षेत्र का जिक्र हुआ है। लेकिन इस डिस्पैच में जिन परिस्थितियों का जिक्र किया गया है, वह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि गुरिल्ला बल का नेतृत्व कमांडर अर्नेस्टो चे ग्वेरा कर रहे थे।
एक खबर यह भी है कि गुरिल्लाओं में एक भगोड़ा भी था। एक दूसरे स्रोत से यह डिस्पैच 30 सितंबर को प्राप्त हुआ था। इसके अनुसार :इस तेल क्षेत्र से प्राप्त होने वाली खबरों के मुताबिक कास्त्रोवादी कम्युनिस्ट क्रांतिकारी नेता अर्नेस्टो 'चे' ग्वेरा गंभीर रूप से बीमार हैं और भारी सुरक्षा के बीच अन्य गुरिल्लाओं द्वारा स्टेचर पर ले जाए जा रहे थे।
यह खबर भूतपूर्व बोलेवियाई गुरिल्ला अंतोनियो रोड्रिग्ज फ्लोरोस से प्राप्त हुई है।अंतोनियो रियो ग्रांडा के फौजी शिविर में इस शर्त के बाद आधिकारिक रूप से आत्म समर्पण कर चुके हैं कि समर्पण के बाद उनके जीवन की रक्षा की जाएगी। इन सभी ने बोलेविया की सरकार के खिलाफ हथियार उठाए थे। 25 से 30 सितंबर के बीच एक भगोड़ा सामने आयाऔर शायद संकट एक समान तीव्रता के साथ ही आता है, भगोड़े ने शत्रुओं को सभी जानकारी उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया। स्वाभाविक रूप से इन सूचनाओं में शत्रुओं को रुचि हो सकती थी। बिना किसी नैतिक संकोच के, या बिना किसी संशय के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया होगा। शत्रुओं के साथ भगोड़े के सहयोग का प्रस्ताव तुरंत स्वीकार किया गया होगा क्योंकि एक भगोड़ा अनैतिक क्रांतिकारी या छद्म क्रांतिकारी की तरह ही होता है। वह क्रांति से खेलना चाहता है। यह बिलकुल विवादहीन है कि यदि गुरिल्लाओं के बीच कोई भगोड़ा हो तो यह कोई असामान्य बात नहीं होती। यहां तक कि हमारी ही क्रांति के दौरान भगोड़ों की ढेरों घटनाएं देखने में आईं। यह सामान्य घटना से भिन्न बात नहीं है।
एक ऐसा समय भी था, जब लोग गुरिल्ला संघर्ष में सहभागी होना चाहते थे, और उन लोगों ने गुरिल्ला संघर्ष में भाग भी लिया। वे गुरिल्ला शिविरों में संघर्ष में भागीदारी के लिए भारी संख्या में आए भी। वास्तव में उस समय स्थिति ऐसी थी कि जितने लोगों के पास हथियार थे, उससे भी अधिक लोग गुरिल्ला संघर्ष में भागीदार होना चाहते थे। इन सभी लोगों में जो लोग हमारे साथ शामिल हुए उनमें से कई लोगों ने बाद में बेहतरीन भूमिका निभाई। वे शानदार सिपाही हैं, शानदार क्रांतिकारी हैं। हमारी गुरिल्ला सेना के पास कोई 'भर्ती कार्यालय' या कोई इस तरह की चीज नहीं होती है। हमारी समस्या उन लोगों के प्रति होती है, जो हमारे संघर्ष में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास उनके लिए हथियार नहीं होते हैं। लेकिन हमारी विद्रोही सेना के 95 प्रतिशत से अधिक लड़ाके अपने हथियार अपने साथ ही लाए थे। दूसरों को भी हमारे पास व्यवस्थित तरीके से भेजा था। हमारी सेना आम लोगों से बनी थी, और यही लोग संघर्ष में शामिल हुए।
लेकिन, बेशक जो लोग हमसे प्रभावित होकर हमारे संघर्ष में शामिल हुए थे, उन्हें गुरिल्ला युध्द का न तो कोई पूर्व अनुभव था, न ही इस संघर्ष के साथ जुड़े हुए बलिदानों के प्रति उनकी स्पष्ट राय थी। और जब वे हमारे साथ लंबे समय तक रहे, पहाड़ों पर चढे अौर परेशानियों का सामना किया, तब वे इस संघर्ष के साथ जुड़ी तकलीफों के चलते उससे बड़े ही कायराना अंदाज में अलग हो गए। एक भगोड़ा हमेशा एक देशद्रोही ही होता है। यदि वह शत्रुओं के पास चला जाता है तो वह उन्हें न केवल सभी चीजों के बारे में सूचना देता है, बल्कि गुरिल्लाओं के विषय में भी सारे विवरणों को जाहिर कर देता है।
एक डिस्पैच चे की बीमारी के बारे में बताता है। इसका तात्पर्य यह होना चाहिए कि चे वहां अल्पकालिक रूप से बीमारी से ग्रस्त हो गए थे। प्रकाशित हो चुकी डायरी के एक हिस्से के मुताबिक (फोटोप्रतियों के द्वारा) पहली सितंबर को यह टिप्पणी दर्ज है : 'सितंबर के पतझड़ की बुरी स्थिति के अलावा कुछ दुर्घटनाओं के बाद हम खच्चरों पर सवार होकर जल्द ही नीचे उतरे। डाक्टर अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाया है, लेकिन मैं ठीक हो चुका हूं और अच्छी तरह से चल-फिर सकता हूं और खच्चरों को हांक सकता हूं।' इसके अलावा भी उन्होंने कई अन्य चीजों का उल्लेख किया है।
यह पहली सितंबर की बात है, जिसमें उन्होंने बताया है कि वह किस तरह ठीक हुए और उसके बाद वह अच्छा महसूस कर रहे हैं। अपनी मृत्यु से दो दिन पहले की तारीख में उन्होंने दर्ज किया है कि वह एक स्वस्थ व्यक्ति की भांति बातचीत करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो यह सच नहीं है कि वे उस समय बीमार थे।
लेकिन स्वाभाविक रूप से भगोड़े या भेदिए ने कई अन्य बातों के अलावा उनके बीमार होने से पहले की स्थिति के बारे में ही बताया। इस सबके अलावा शत्रु इस घात में था कि वह (भगोड़ा या भेदिया) क्षेत्र के उस स्थान को बिलकुल ठीक उस स्थान को चिह्नित करे, जहां गुरिल्ला दस्ता मौजूद हो। यह तथ्य ही इस बात का स्पष्टीकरण देता है कि 29 सितंबर को क्या इस क्षेत्र में शत्रुओं की फौजों का बाहुल्य हुआ।
भगोड़े के विषय में सार्वजनिक रूप से सूचना 30 सितंबर को प्रकाशित हुई। संभव यही है कि वह भेदिया तीन-चार दिन पहले से शत्रुओं के पास हो, और उसी समय से फौजों को रवाना करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी हो। कोई भी दमनकारी फौज जब किसी किस्म की संभावनाओं का अवसर पाती है, अपनी फौजें ही रवाना करती है; बेशक, अकसर उन लोगों की यह कोशिश निष्फल ही साबित होती है, बिना किसी परिणाम के ही होती है। लेकिन गैर-प्रश्नांकित रूप से इस बार उनके लिए भारी संभावनाओं का अवसर था, क्योंकि वे बिलकुल उस क्षेत्र में पहुंच गए थे जहां गुरिल्ला दस्ते मौजूद थे। इसलिए शत्रुओं ने इस क्षेत्र में भारी संख्या में फौजों को ले जाना शुरू कर दिया था, और उन्होंने यह इस उच्च आशा के साथ किया था कि वे गुरिल्लाओं के विरुध्द भारी रणनीतिक विजय दर्ज करने में कामयाब हो जाएंगे।
9 अक्टूबर को न्यूयार्क टाइम्स में एक विचित्र लेख प्रकाशित हुआ यानी संघर्ष की पूर्व संध्या पर। यह लेख रविवार यानी 8 अक्टूबर के संस्करण में प्रकाशित हुआ यह संघर्ष की सुबह थी। इस लेख का शीर्षक था, 'चे ग्वेरा'स लास्ट स्टैंड?' इसके अनुसार :कामिरी, बोलेवियाब्लीक कुल दे साक जैसे स्थान, जहां इंडस नदी अमेजन की घाटी में गिरती है, वहां से चे ग्वेरा जैसे आदमी के लिए कहीं और जाना बहुत मुश्किल है।
इस धूल भरी घाटी में रोज सुबह सूरज धधकना शुरू होता है, कच्ची मिट्टी और भूरी-काली झाड़ियों को जलाता रहता है। यहां की स्थितियों में दीर्घजीवी पहाड़ी पतंगे और मच्छर, मकड़ियां, डंकदार मक्खियां विद्यमान हैं। यह एक ऐसी घाटी है, जहां हर वक्त मौत का सन्नाटा पसरा रहता है।
यह लेख इस क्षेत्र की भूस्थिति का भी कुछ-कुछ विवरण देता है :गर्मी, धूल-मिट्टी और यहां के कीट-पतंगों के काटने से यहां मानव शरीर की त्वचा की दुर्गति हो जाती है। खतरनाक वनस्पतियां और सूखी और कंटीली झाड़ियां मानव की गुप्त गतिविधियों के लिए आदर्श स्थान हो सकता है। लेकिन नदी, घाटी और हमलों के बीच यह असंभाव्य है।
सैन्य रिपोर्टों के अनुसार क्यूबाई मेजर और उनके साथ के अन्य थके हुए 16 गुरिल्ला साथी इस घाटी में फंस चुके हैं। पिछले दो सप्ताहों से सेना ने अपना घेरा बहुत अधिक कस दिया है। बोलेवियाई सेना का विश्वास है कि मेजर ग्वेरा यहां से जीवित नहीं निकल पाएंगे।
कामिरी के सैन्य अड्डे से 120 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित इस घाटी में अनेक मायनों में मेजर ग्वेरा और उनके गुरिल्ला साथियों की स्थिति नारकीय हो चुकी है। ध्यान रहे कि कामिरी वह स्थान है, जो सशस्त्र क्रांति का प्रतीक बन चुका है।
इसके आगे भी बहुत कुछ लिखा गया है। दूसरे शब्दों में, फौजी टुकड़ियों के आगे बढ़ने की जानकारी देने वाले 29 सितंबर के डिस्पैच का विवरण इस बात को पुष्ट करता है कि इस सारे मामले की खबर एक भेदिए द्वारा ही पहुंची, यही डिस्पैच 30 सितंबर को समाचारपत्रों में प्रकाशित हुआ, और इसे ही विदेशी प्रेस में प्रातिनिधिक रूप से दोहराया गया। इन सबका गहरा गठबंधन सैन्य अधिकारियों (नेतृत्व) और उन सबसे था, जो घाटी, जंगलों और उन स्थानों से भलीभांति परिचित थे, साथ ही यह भी जानते थे कि घाटी में कहां छिपने के लिए स्थान नहीं है।
भविष्य की सफलता का पूर्वाभास, एक आशा वहां के वातावरण में विद्यमान थी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपेक्षित परिणाम हमेशा वास्तविकता में तब्दील ही होते हैं। किसी भूभाग की जानकारी हुए बिना, घाटी के आकार-प्रकार की जानकारी के बिना, इसकी लंबाई, चौड़ाई की जानकारी के बिना, घटनाक्रमों की पूरी शृंखला के बारे में कुछ भी कहना असंभव ही होता है। जाहिर है कि इन जानकारियों के बिना किसी वास्तविक उद्देश्य के बारे में पूर्ण विश्वास के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। यह तो आशाओं के समुद्र में डुबकी लगाने के समान ही होगा। वैसे भी दमनकारी फौजों की ओर से हमेशा ही कहा जाता है कि गुरिल्ला फौजें पूरी तरह से घिर गई हैं।
उदाहरण के लिए, दमनकारी फौजें हमेशा ही कहती हैं कि गुरिल्ला फौजें पूरी तरह से घिर चुकी हैं। लेकिन इस बार सच यही था। हम अपने पीछे जहां समुद्र पा रहे थे, तो आगे मैदान और धान के खेत थे। हमारा मानना है कि हमारी गतिविधियों का क्षेत्र 10 किलोमीटर चौड़ा और लगभग 20 किलोमीटर लंबा था। साथ ही साथ बहुत ही अल्प दूरी से लोग हम पर छापामारी कर रहे थे। 1957 के पूरे साल से लेकर 1958 के मध्यमान तक, उनका प्रत्येक हमला हमारे विरुध्द ही होता था। यहां तक आखिरी हमले में भी भारी पैमाने पर फौजें शामिल थीं और कार्रवाई का क्षेत्र 10 किलोमीटर चौड़ा और 20 किलोमाटर लंबा ही था। लेकिन यह एक ऐसा क्षेत्र था जिसे हम बहुत अच्छी तरह से जानते थे। और उस वक्त हमारे साथ 300 आदमी थे।
लेकिन सामान्य तौर पर कहा जा रहा है कि गुरिल्ला फौजें पूरी तरह से घिरी प्रतीत होती थीं। गुरिल्ला दल को विभिन्न सैन्य फौजों द्वारा घेर लिया गया था। लेकिन रणनीतिक घेराबंदी बहुत खतरनाक होती है। इसमें गुरिल्ला इकाइयों को शत्रु सैनिकों द्वारा घेर लिया जाता है। लेकिन इन भयावह परिस्थितियों में भी कई बार पूर्वोक्त किस्म की घेराबंदी को तोड़ा भी गया है। इसी कारण घाटी की स्थिति, जिसके बारे में वे लोग बातचीत कर रहे हैं, के बारे में कोई नहीं कह सकता या अपनी राय नहीं व्यक्त कर सकता कि गुरिल्ला दल उस क्षेत्र में कितने खतरे में थे।
लेकिन समस्त परिस्थितियां स्पष्ट रूप से इंगित करती हैं क्योंकि बाद में उन्होंने फिर इस क्षेत्र के बारे में बताया है और इस विषय में उन लोगों की दृढ़ निश्चयता में वृध्दिकारक बेतार संदेशों को भी शामिल किया जा सकता है। जाहिर सी बात है कि शत्रुओं ने किसी स्थान पर अपनी सारी शक्ति का संकेद्रण कर लिया था। इसका यह मतलब कतई नहीं हो सकता कि इन परिस्थितियों में संघर्ष का जन्म होना अवश्यंभावी ही था, या गुरिल्लाओं द्वारा समर्पण किया ही जाता। इन सारे विवरण से मात्र उन परिस्थितियों के बारे में पता चलता है, जिसमें वह उस समय थे। साथ ही साथ फौजों के उस क्षेत्र की ओर संचालन का पता चलता है, जो अब युध्दक्षेत्र में तब्दील होने जा रहा था।
इसका मतलब है कि संघर्षयुध्द के लगभग दो सप्ताह पूर्व ही वहां एक किस्म का सुखाभास विद्यमान था और इसी भावना के अंतर्गत फौजों को उस क्षेत्र की ओर भेजा गया। वास्तव में यह क्षेत्र क्या है? हम नहीं जानते हैं। क्या अन्य दुर्गमताएं या प्राकृतिक अवरोध वहां विद्यमान हैं? हम नहीं जानते। क्या वहां वनस्पतियों से ढके हुए समानांतर मैदान हैं, या नहीं हैं या दुर्लंघ्य पहाड़ियां हैं कि नहीं? हम नहीं जानते। लेकिन यह स्पष्ट है कि फौजी टुकड़ियां उस क्षेत्र विशेष में भारी पैमाने पर पहुंचीं। भेदिए या भगोड़े की सूचना के अनुसार शत्रुओं की फौजों ने गुरिल्लाओं को बिलकुल ठीक उस स्थान पर घेरा था, जहां उनकी उपस्थिति थी। पुन: प्राप्त होने वाले डिस्पैचों की ओर आते हैं। ये डिस्पैच बताते हैं कि उस क्षेत्र में संघर्ष की शुरुआत हुई। इस क्षेत्र के बारे में बताया गया कि यह बहुत उबड़-खाबड़ भूभाग है, जहां चलना-फिरना भी बहुत मुश्किल है। घाटी में घने जंगल हैं, गहरे गङ्ढे हैं, गुफाएं हैं और जल-प्रपात हैं। 6 और 7 अक्टूबर को लिखे गए डायरी के पन्नों से भी इस क्षेत्र के बारे में कुछ सूचना प्राप्त होती है। उदाहरणस्वरूप, 6 अक्टूबर को लिखी गई इबारत के अनुसार : 'स्काउटिंग पेट्रोल (खोजी दस्ता) ने नजदीक ही एक घर खोजा है, लेकिन यह भी....' फोटोकापी किए हुए डायरी के ये पृष्ठ पठनीय नहीं हैं। चे का हस्तलेख छोटा और ऐसा होता है जिसे पढ़ना आसान नहीं होता है। फिर फोटो प्रतिलिपि तो बहुत हद तक अस्पष्ट है।
डायरी के अनुसार : '....तंग घाटी बहुत आगे तक प्रसारित है। इसके अंत में पानी है। हम....।' आगे का हिस्सा फिर अस्पष्ट है। '....और अंत में हम सबने खाना पकाया....।' फिर एक पंक्ति गायब है। इसके बाद, 'एक चट्टान के नीचे, जो एक छत की तरह थी....कि मैं....'
इसी के अनुसार : 'दिन की चमकीली रोशनी में तंग स्थानों, खोहों का सहारा लेते हुए इस स्थान को पार किया।' और फिर इसके बाद की कुछ पंक्तियां फिर गायब हैं।
आगे : 'खाना पकाने की तैयारियां करने में ही एक लंबा वक्त लग गया। हमने तय किया कि सुबह होते ही इस तंग स्थान (चट्टान) से चले जाएंगे और इसके बाद आगे के लिए खोजबीन करेंगे। तब....हम फैसला करेंगे कि आगे किस दिशा की ओर हम जाएंगे।'
आगे : 'क्रूज डेल सुर रेडियो ने एक साक्षात्कार में सूचना दी....आदमी.... ओरलांडों बहुत ही छोटा है।' यद्यपि यह बहुत बुध्दिमत्तापूर्वक कहा जा रहा है। इसके अलावा इसमें एक बोलेवियाई का जिक्र है कि उसने स्वयं को वहां की सत्ता के अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत कर दिया है। इस (भगोड़े या भेदिए) के बारे में पहले ही कहा जा चुका है। बाद में कहा गया कि उन्होंने इस व्यक्ति को बंदी बताया था। बहुत कुछ है, जो स्पष्ट नहीं है। उस तरह तो बिलकुल ही नहीं जैसी स्थिति अन्य मामलों में है।
आगे : 'चिली के रेडियो पर भी एक खबर प्रसारित हुई....यह कि इस क्षेत्र में 1,800 सैन्य टुकड़ियां विद्यमान हैं।'(क्रमशः)
(अपराजेय योद्धा चे ग्वेरा, फिदेल कास्त्रो,अनुवाद-जितेन्द्र गुप्ता,2011,ग्रंथ शिल्पी,नई दिल्ली से साभार)


1 टिप्पणी:

  1. lekhak aur blogger dono ko badhai.
    che ko dhoko unke frnench friend ne diya. che se unhe seekh lenee chahiye jo satta pane ke baad bangal main karoro kamane lage

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