(महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा)
बोलेविया में चे की मृत्यु को लेकर आ रही परस्पर अंतर्विरोधी खबरों और सूचनाओं के बीच फिदेल ने 15 अक्टूबर 1967 को क्यूबाई टेलीविजन पर यह भाषण दिया।
आप सभी ने अंदाजा लगा लिया होगा कि (मेरे) इस संबोधन का कारण क्या है। इसका कारण 9 अक्टूबर से बोलेविया से आ रही खबरें हैं। पिछले कुछ दिनों में ये खबरें समाचारपत्रों में प्रकाशित भी हुई हैं।मैं अपनी बात कुछ इस तरह से शुरू करूंगा कि अर्नेस्टो चे ग्वेरा की मृत्यु के संबंध में आ रही खबरों से हम इत्तफाक रखते हैं। यह पीड़ादायक है, लेकिन सच है। वैसे पहले भी कई अवसरों पर इस तरह की खबरें आती रही हैं, लेकिन इस बार यह देखना आसान है कि ये खबर पूर्वोक्त की भांति नहीं हैं।
9 अक्टूबर को तार सेवाओं द्वारा उनकी मृत्यु संबंधी खबरें आईं। इन भेजे गए संदेशों की प्रकृति और घटनाक्रम तथ्यों की सचाई बयान कर रहे थे। लेकिन तब भी कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता था। ये खबरें 10 अक्टूबर को भी आती रहीं, लेकिन इन खबरों में भी ढेरों अंतर्विरोध विद्यमान थे। उदाहरण के लिए, कामरेड अर्नेस्टो चे ग्वेरा के बाएं हाथ पर एक घाव का निशान था, लेकिन किसी भी खबर में इस बात का जिक्र तक नहीं किया गया। इसके अलावा भी याद करें तो कामरेड अर्नेस्टो चे ग्वेरा के गले और हाथ पर भी एक घाव था, यह घाव एक युध्द में गोली लगने से हुआ था। और एक बार दुर्घटनावश उनके चेहरे पर भी एक जख्म हुआ था। लेकिन अब तक प्राप्त किसी भी विवरण में इन तथ्यों का जिक्र तक नहीं है। इस तरह के अंतर्विरोधों को देखते हुए बोलेविया से आ रही खबरों पर अविश्वास करने की सामान्य धारणा विद्यमान थी। इसलिए 10 अक्टूबर की दोपहर तक हममें से हर किसी ने खबरों की सत्यता पर गहरा संदेह ही व्यक्त किया था।
इसके बाद कुछ अन्य तथ्य सामने आने शुरू हुए, जैसे कि उनके चित्र। उनका पहला चित्र 10 अक्टूबर की रात को प्राप्त हुआ। लेकिन उसमें और कामरेड ग्वेरा के बीच कोई गहरी साम्यता नहीं प्रतीत होती थी। इसी कारण जब लोगों ने इसे पहलीबार देखा, तो यह मानने से इनकार कर दिया कि यह चित्र (फोटो) कामरेड अर्नेस्टो चे ग्वेरा का है।
हमारी प्रत्याशा यह थी कि यदि यह झूठी खबर फैलाने की कोशिश है और इसमें कोई गलती है तो फोटो में जो आकृति होगी, वह भिन्न किस्म की होगी। इससे हमारा सरोकार इस कारण था क्योंकि इस फोटो के साथ कुछ सादृश्यताएं भी प्रतीत ही रही थीं। इसी कारण न तो हम यह मान पा रहे थे कि उक्त फोटो चे का है, न ही इस बात से इनकार ही कर पा रहे थे कि वह फोटो चे का नहीं है।
वह फोटोग्राफ यह (एक फोटोग्राफ दिखाते हुए) है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह टी.वी. कैमरों द्वारा स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा होगा, इसके अलावा वह फोटो भी बहुत साफ नहीं है। शायद कुछ ही घंटों के बाद, हमें एक दूसरा फोटोग्राफ प्राप्त हुआ। इस फोटोग्राफ में चेहरा बहुत स्पष्टता से दिखाई दे रहा है। वैसे यह फोटो भी बहुत काला है, लेकिन एक ही झलक में आप इसे पहचान सकते हैं....हममें से अधिकतर ने जब इसे देखा, तब हमने सोचा कि खबर सही हो सकती है। या कि यह पहला अवसर था, जब हम सहमत हो पा रहे थे कि आने वाली खबरें सच हैं। वह फोटो यह है (एक फोटो दिखाते हैं)।इसके बाद एक तीसरा फोटो भी प्राप्त हुआ। इसमें एक स्टेचर पर उनका शरीर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। वैसे यह भी एक ऐसा फोटो था जिसे बहुत निश्चयात्मक नहीं माना जा सकता था। यह भी एक धुंधला फोटो ही था (फोटो दिखाते हुए)।
इसके अगले दिन कई अन्य फोटो प्राप्त हुए। इनमें से एक बहुत स्पष्ट था। वह फोटो यह था (फोटो दिखाते हुए)। यह इतना अधिक साफ है कि यदि इसे समाचारपत्रों में प्रकाशित किया जाए तो और भी अधिक स्पष्टता से नजर आएगा।
मुझे यह बताना चाहिए कि यह हमारे द्वारा फोटोग्राफों को सबूत के तौर स्वीकार करने जैसी बात नहीं है। बल्कि यह फोटोग्राफ एक घटनाक्रम का बयान कर रहे हैं जो कि मेरी राय मेंइसकी (खबर की) सत्यता को बयान कर रहे हैं। इन घटनाक्रमों की मैं आगे व्याख्या करूंगा।
पिछले दिनों में, बाहर से आने वाले समाचारपत्रों में नियमित रूप से अधिक से अधिक फोटोग्राफ देखने को मिले हैं। उनमें से एक यह भी है (फोटो दिखाते हुए)। इसे टेलीविजन पर साफ तौर पर देखना संभव नहीं है, क्योंकि यह समाचारपत्रों से लिए गए हैं। और स्वाभाविक रूप से कई सारे विवरण पहले ही खो चुके हैं।
इन चित्रों के साथ, भारी मात्रा में दूसरी सूचनाएं भी प्राप्त हुई हैं। स्वाभाविक रूप से हमारी कोशिश यही थी कि सभी तथ्यों को क्रमबध्द ढंग से एकत्र किया
जाए, और तब किसी निर्णय पर पहुंचा जाए। वह निर्णय, जो हमारी राय में अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचाए। यानी खबरों के मूल्यांकन में कहीं कोई संदेह न रह जाए। इसी उद्देश्य के लिए सभी सबूतों को, सभी फोटोग्राफों कोउन सभी को जो सीधे प्राप्त हुए या विदेशी समाचारपत्रों में प्रकाशित हुए। बाद में इन सबका बहुत सावधानीपूर्वक अध्ययन किया गया।
कुछ ही दिनों बाद हमें (चे की बोलेवियन) डायरी का पहला फोटोग्राफ प्राप्त हुआ। डायरी के बारे में कहा गया कि उसे 'सीज' कर दिया गया है। यहां उस डायरी के भी कुछ चित्र हैं (फोटो दिखाते हैं), ये दोनों ही चित्र उसी समय के हैं।
इस समय चे के परिवार का प्रश्न भी सामने था। उनके पिता, उनके भाईमैं अर्जेंटीना में विद्यमान उनके परिवार के बारे में जिक्र कर रहा हूं। खबरों के मुताबिक वे लोग बोलविया जाने की तैयारी कर रहे हैं। हमने तार्किक ढंग से सोचा कि उन लोगों को वास्तविकता देखने का अवसर मिलेगा। और इस तरह हमने उनकी राय का इंतजार किया। यह यात्रा हुई और इसी के साथ घटनाओं की एक लंबी शृंखला घटी। इसमें से कई घटनाओं से तो आप परिचित हैं। उन लोगों ने चे के परिवार को यह अवसर भी नहीं दिया कि वे चे के शरीर को देख पाएं।
हमने इससे पहले इतनी नाजुक स्थिति का कभी नहीं सामना किया था। ढेरों अनजान घटनाक्रमों के बीच, चे के अर्जेंटीना रिश्तेदारों की जानकारी के बिना चे के शरीर को दफना दिया गया, और उसके तुरंत बाद उस शरीर को जला भी दिया गया। इस तरह की घटनाओं के बीच कोई भी रिश्तेदार यही सोचेगा कि खबरें (मृत्यु संबंधी) एकदम झूठी हैं। यह बहुत अधिक स्वाभाविक और तार्किक है। वहीं दूसरी ओर हमारी ओर, हम अब बिलकुल निश्चित थे कि प्राप्त हुई खबरें सच हैं। लेकिन हम नहीं चाहते थे कि उनके रिश्तेदारों या मित्रों के बजाए हम पहले अपनी राय व्यक्त करें। हम यह सीखने में सक्षम हैं। इसके अलावा उनके पिता और अन्य रिश्तेदारों को अभी तक यही विश्वास है कि खबरें बिलकुल झूठी ही हैं।
यदि यह कोई साधारण वैयक्तिक मामला मात्र होता, तब हम बिना किसी प्रश्न के आग्रही रूप में इस विषय के ऊपर नहीं सोचते, न ही हमें इस बात की ही आवश्यकता होती कि हम खबरों से जुड़े अंतर्विरोधों के बारे में सार्वजनिक रूप से चर्चा ही करें। लेकिन तथ्य यह है कि यह प्रश्न पूरे विश्व के लिए सार्वजनिक महत्व का है। इसके अलावा यह एक ऐसा प्रश्न है जो हम लोगों को गहराई से प्रभावित करता है। इन्हीं कारणों से हमने पाया कि इस विषय पर सार्वजनिक रूप से अपनी राय प्रकट करना हमारा कर्तव्य है।
इसके अलावा हमने पाया कि यदि कुछ भी दृष्टिगत संशय भी है तो भी हमारा दायित्व होगा कि हम अपने संशयों को व्यक्त करें। यदि हम यह सोचते हैं कि खबरें झूठी हैं, तब भी हमारा दायित्व होगा कि हम कहें कि खबरें झूठी हैं। और यदि हमारा आकलन होता है कि खबरें सच्ची हैं, तब भी ढेरों प्रश्न विद्यमान हैं।
सबसे पहले यह कह देना जरूरी है कि यह सब हमारे लिए कितना अधिक पीड़ाजनक है कि हमें एक एकतंत्रीय, प्रतिक्रियावादी, निरंकुश और अपने ही लोगों का दमन करने वाली साम्राज्यवाद की सहयोगी सरकार से आई खबरों के आधार पर अपनी राय व्यक्त करनी पड़ रही है। फिर भी हम स्वयं को ऐसी स्थिति में पाते हैं कि खबर की सत्यता की पुष्टि कर सकें और उसे सच मान सकें। मेरे खयाल से इस तरह की स्थिति किसी भी क्रांतिकारी के लिए हमेशा पीड़ादायक होती है।
पहले हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि खबरों के विषय में संशय उत्पन्न करके किसको लाभ होता है। घटनाक्रमों से असावधान होकर यदि हम यह मानते भी हों कि इस विषय में संशय रहने से कुछ लाभ भी होता हो, तब भी हमें सच कहने से अलग नहीं किया जा सकता। तथ्यों के मामले में हम इस तरह की किसी कार्रवाई का समर्थन नहीं करते, जो मात्र फायदे पर आधारित हो। मैंने आपके समक्ष यह सब एक अवधारणास्वरूप ही कहा है।
हालांकि अगर संशय को बरकरार रखा जाए तो यह अपेक्षाकृत फायदेमंद हो सकता है। लेकिन क्रांति कभी भी इस तरह के झूठ का सहारा नहीं लेती है। सच का भय और झूठ की सहअपराधिता एक ऐसा हथियार है, जिसका हम कभी सहारा नहीं ले सकते हैं। हम ऐसा किसी भी परिस्थिति में नहीं कर सकते हैं। हमारे सच बोलने के प्रति विश्वास करने की स्थिति में ऐसा करना न केवल दूसरे स्थानों के क्रांतिकारियों के साथ, बल्कि हमारे अपने लोगों के उस विश्वास के साथ अपराध होगा। वे सदैव विश्वास कर सकते हैं कि हम कभी झूठ नहीं बोलेंगे और जब एक सच सार्वजनिक रूप से कहा जाएगा, उसे हमेशा ही सार्वजनिक रूप से कहा जाएगा।
जैसा कि आप लोगों ने खबरों में पढ़ा कि कई क्रांतिकारी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि सरकार और पार्टी बताए कि सच क्या है और झूठ क्या है। इसलिए इस तरह के घटनाक्रम में हमने माना कि यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी राय सार्वजनिक रूप से व्यक्त करें। इसके अलावा, जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं, इस मामले में एक चीज बहुत ही संवेदनशील है, वह है कमांडर चे ग्वेरा के अर्जेंटीना में विद्यमान संबंधियों द्वारा व्यक्त की गई राय। हमें आशा है कि वे समझ पाएंगे कि कितना अधिक पीड़ाग्रस्त होकर यह सब कहा जा रहा है। यह कोई शिष्टाचार की कमी नहीं है, बल्कि स्वीकारने की क्षमता का अभाव है। यह सब कहने का उद्देश्य उनकी ओर ही है।(क्रमशः)
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