मिस्र के जनांदोलन की तस्वीर और भी ज्यादा जटिल रूप ग्रहण करती जा रही है और राष्ट्रपति हुसैनी मुबारक की राजनीतिक चालें पिटती चली जा रही हैं। सेना और प्रतिवादियों में मुठभेड़ को टालने के लिए लिहाज से मुबारक ने अपने समर्थकों को मैदान में उतारा ,जगह-जगह उनके समर्थकों ने रैलियां की और मुबारक विरोधियों से मुठभेडें कीं, जिनमें आठ लोग मारे गए और सैंकड़ों घायल हुए हैं।
जब बृहत्तर जनसमूह मुबारक के खिलाफ मैदान में था और सेना ने सीधे कार्रवाई से मना कर दिया तो ऐसे में मुबारक समर्थकों का रैलियां आत्मघाती कदम ही कहलाएगा। इस एक्शन के गलत परिणाम निकले है और कल मिस्र के प्रधानमंत्री ने इन मुठभेड़ों के लिए माफी मांगी है।
नवनियुक्त प्रधानमंत्री अहमद शफ़ीक़ ने देश में हुई घटनाओं के लिए माफ़ी मांगी है.उल्लेखनीय है राष्ट्रपति समर्थक और विरोधी गुटों की बीच झड़पों में आठ लोग मारे गए हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. उन्होंने हिंसा की जाँच का वादा किया है.
प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं इस घटना के लिए सबके सामने खुलकर माफ़ी माँगता हूँ इसलिए नहीं कि यह मेरी ग़लती थी या किसी और की. मैं तो इस बात से दुखी हूँ कि मिस्र के ही लोग इस तरह आपस में लड़ रहे हैं. फूट तो परिवारों में भी होते हैं लेकिन कल जो हुआ वह किसी योजना का हिस्सा नहीं था, मैं उम्मीद करता हूँ कि इंशा अल्लाह सब ठीक हो जाएगा।"
जनांदोलन का ही दबाब है कि मिस्र के शासनाध्यक्ष संविधान में जरूरी परिवर्तन की बात कह रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने टेलीविजन से प्रसारित अपने संदेश में कहा, "हम संवैधानिक और विधायिका संबंधी सुधार लागू करेंगे और हर मुद्दे के अध्ययन के लिए एक समिति का गठन करेंगे. इसके बाद हम इसकी भी जाँच करेंगे कि ऐसी घटनाएँ क्यों हुई.।"
मुश्किल यह है कि जनता लोकतंत्र की मांग कर रही है और लोकतंत्र का संविधान में प्रावधान ही नहीं है। लोकतंत्र से कम पर वह कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है। मुबारक को हटाने की मांग उनकी पहली मांग है लेकिन असल मांग है मिस्र में लोकतंत्र की स्थापना की जाए। मुबारक और उनके समर्थक यदि संविधान संशोधन करके लोकतंत्र की स्थापना का संकल्प व्यक्त करते हैं तो उसका कुछ असर भी होगा।
मुबारक और अमेरिका की रणनीति है कि किसी तरह आंदोलनकारी जनता को शांत किया जाए और उन्हें तहरीर स्क्वेयर से वापस घर भेजा जाए। लेकिन आंदोलनकारी वापस जाने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। आंदोलनकारियों को शांत करने के लिहाज से अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष अल बरदाई,उपराष्ट्रपति सामी अनान,सेना के मुखियाओं की मदद लेने का फैसला किया है साथ ही कैमिस्ट्री में नोबेल पुरस्कार प्राप्त अहमद जुएल की भी मदद ली जा रही है लेकिन अभी तक कोई अनुकूल परिणाम नहीं मिले हैं। इसका प्रधान कारण है अलबरदाई और अहमद जुएल का मिस्र में आंदोलनकारियों में कोई जनाधार नही है।
तहरीर चौक पर सेना और टैंकों की घेराबंदी बनी हुई है। चौक पर आंदोलनकारी जमे हुए हैं। आंदोलन के दबाब में मुबारक ने पुराने मंत्रीमंडल को भंग करके जो नया मंत्रीमंडल बनाया है उसमें बड़े पैमाने पर सेना के बड़े अफसरों को रखा गया है इससे एक बात तो यह निकलती है कि अमेरिका मिस्र में आने वाले समय में जनता का शासन नहीं चाहता बल्कि नग्न सैन्यशासन चाहता है क्योंकि ये सारे परिवर्तन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के इशारे पर हो रहे हैं।
मुबारक और उनके साथी यह हौव्वा खड़ा कर रहे हैं कि मिस्र में ब्रदरहुड नामक फंडामेंटलिस्ट संगठन के सत्ता में आ जाने का खतरा है अतः सेना की मदद बेहद जरूरी है। असल में मिस्र के मौजूदा प्रतिवाद को संगठित किया है लोकतांत्रिक शक्तियों ने,इसमें बड़े पैमाने पर मजदूरों संगठनों की भी भूमिका है। यह सच है मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन मिस्र का सबसे बड़ा मुबारक विरोधी संगठन है और वह इस प्रतिवाद में शामिल है लेकिन जनता के और भी तबके शामिल हैं प्रतिवाद में।
मुबारक विरोधियों की मांग है कि सबसे पहले राष्ट्रपति इस्तीफा दें और उसके बाद एक सभी गुटों को मिलाकर एक राष्ट्रीय सरकार का गठन किया जाए और आंदोलनकारियों की मांगों पर विचार किया जाए।
मिस्र के प्रतिवादी आंदोलन में आम जनता पर व्यापक हमले हुए हैं साथ ही मीडिया पर भी हमले हुए हैं। यहां तक कि विदेशी पत्रकारों को गिरफ्तार और उत्पीडित किया गया है।अब तक24 पत्रकार गिरफ्तार किए गए हैं और 21 पत्रकारों पर हमले हुए हैं। पांच मामलों में पत्रकारों के उपकरण सेना ने जब्त कर लिए हैं। मुबारक प्रशासन का सबसे ज्यादा गुस्सा अल जजीरा टीवी चैनल पर है। सेना ने उसके 3 पत्रकारों को बंद कर दिया है,चार पर हमला हुआ है और एक पत्रकार लापता है। अलजजीरा के अनुसार सेना ने दर्जनों पत्रकारों के कैमरा और दूसरे संचार उपकरण छीनकर नष्ट कर दिए गए हैं।
गृहयुद्ध के आसार लगने लगे हैं :(
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