शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

इस्लाम,मध्यपूर्व ,बहुराष्ट्रीय कारपोरेट मीडिया और एडवर्ड सईद -6-




मध्यपूर्व के बारे में मीडिया कवरेज को सबसे अच्छे ढ़ंग से बायनरी अपोजीशन की धारणा के तहत समझा जा सकता है। इस धारणा के इस्तेमाल का प्रधान कारण है सईद के द्वारा स्वयं इसका व्यापक प्रयोग। स्टुअर्ट हॉल के अनुसार ''भिन्नाता को रेखांकित'' करना सभी संस्कृतियों की विशेषता रही है। भिन्नाताओं को बनाए रखने में बायनरी अपोजीशन मदद करता है। उसके आधार पर सांस्कृतिक अर्थ की सृष्टि की जाती है। भिन्नाता को जब आधार बनाते हैं तो स्पष्ट विभाजन रेखा रहती है। उसे अस्पष्टता पसंद नहीं है। अस्थिरता अथवा मिश्रितस्पेस पसंद नहीं है जिसमें एक-दूसरे पर निर्भरता दरशायी जाए। स्टुअर्ट हाल के मुताबिक '' टिकाऊ संस्कृति हमेशा अपने तयशुदा स्थान में रहती है,प्रतीकात्मक सीमाओं में केटेगरी की शुध्दता बनाये रखती है। जिससे संबंधित संस्कृति को पहचान और अर्थ प्रदान किया जा सके। जबकि अस्थिर संस्कृति को स्थान के बाहर पेश किया जाता है ,उसे हमारी संस्कृति के अलिखित नियमों और कोड के तोड़क के रूप में पेश किया जाता है।
    इस क्रम में संस्कृति का शुध्दीकरण अनिवार्य होता है। संस्कृति से किसी चीज को बहिष्कृत करना ,सहन न करना, नस्लवाद आदि वैध हो जाता है। इस प्रक्रिया में संस्कृति उन लोगों के लिए हाशिए की अस्मिता भी प्रदान करती है ये वे लोग हैं जो संस्कृति की वैधता को अस्वीकार करते हैं। जो संस्कृति के प्रचलित मूल्यों को वैधता प्रदान नहीं  करते। इस परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाए तो भिन्नाता को बनाए रखने के लिए प्रतीकात्मक (सिम्बॉलिक) प्रस्तुतियां अनिवार्य हो जाती हैं। स्टुअर्ट हॉल ने लिखा प्रतीकात्मक सीमाएं प्रत्येक संस्कृति में केन्द्रीय महत्व रखती हैं। ''भिन्नता'' का निर्माण हम प्रतीकात्मक रूप में ही कर पाते हैं। इससे एकजुटता पैदा करते हैं,संस्कृति को शेयर करते हैं,उन तमाम चीजों को रेखांकित करते हैं जो अशुध्द हैं, उन्हें कलंक के रूप में चिन्हित करते हैं। ये प्रस्तुतियां आकर्षक इसलिए लगती हैं क्योंकि ये टेबू को भुला देती हैं, उन चीजों को विस्मृत कर देती हैं जिनसे संस्कृति को खतरा हो सकता है।
     मध्यपूर्व की मीडिया प्रस्तुतियां मूलत: पश्चिमी जगत की ऑडिएंस को केन्द्र में रखकर तैयार की जाती हैं। यह कवरेज बुनियादी तौर पर नकारात्मक और स्टीरियोटाईप है, यह तथ्य आपकी समझ में तब ही आएगा जब आप अमरीका,इजरायल और मध्यपूर्व की सांस्कृतिक व्याख्याओं को सामने रखकर देखें। अमरीकी इतिहासकार हमेशा अमरीकी विदेशनीति को रेशनल परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करते हैं और इस क्षेत्र में अमरीकी हितों को वरीयता देते हैं। इस संदर्भ में संस्कृति हमेशा मातहत की भूमिका अदा करती है।
    'नाइन इलेवन' की घटना और इराक पर हमले के बाद से अमरीकी मीडिया में मध्यपूर्व का नकारात्मक प्रचार और प्रस्तुतियां बढ़ी हैं। उन्हें अमरीकी सांस्कृतिक इमेजरी के जरिए पेश किया जा रहा है। मीडिया संस्थानों के द्वारा ऐसे मीडिया मॉडल और अवधारणाओं के निर्माण पर कम ध्यान दिया जा रहा है जिससे अमरीका और मध्यपूर्व के जटिल राजनीतिक,सांस्कृतिक और मीडिया संबंधों को समझने में मदद मिले। इसकी बनिस्पत स्टीरियोटाईप इमेजरी और प्रतीकों के निर्माण पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। अमरीका में विगत दो सौ सालों में अरबों का व्यापक योगदान रहा है। इसके बावजूद अरबों की स्टीरियोटाईप प्रस्तुति ने उन्हें अमरीका में दोयमदर्जे का नागरिक बना दिया है। पश्चिमी विश्वदृष्टिकोण्ा और धर्मनिरपेक्ष विचारों के साथ उन्हें जोड़कर नहीं देखा जाता।
    बायनरी अपोजीशन के आधार पर मीडिया ने मध्यपूर्व को बर्बरता और पिछड़ेपन के रूप में चित्रित किया है। स्टुअर्ट हॉल ने लिखा है '' सभी किस्म के वर्गीकरण के लिए बायनरी अपोजीशन जरूरी है जिससे भेदों को स्थापित किया जा सके। इससे नजरिए को वर्गीकृत करने में मदद मिलती है।''[1] वर्गीकरण की व्यवस्था विपरीतों के संबंध को सभ्य और असभ्य के रूप में सामने लाती है। इससे भय और असुविधा का वातावरण तैयार करके भिन्नाता को समृध्द करने में मदद मिलती है। इस तरह की प्रस्तुतियों का लक्ष्य है अन्य को नियंत्रित करना। इस संदर्भ में विकृत प्रस्तुति प्रभावी अस्त्र है राजनीतिक एजेण्डे को समृध्द करने का। पश्चिम का अब तक का इतिहास गवाह है कि उसने नकारात्मक प्रस्तुतियों के जरिए ही अपने साम्राज्यवादी प्रकल्प को आगे बढ़ाया है। इस तरह की प्रस्तुतियों के जरिए घरेलू इमेजीनेशन और साम्राजी नजरिए के बीच संबंध स्थापित किया।
    मध्यपूर्व को बर्बर, हिंसक , भावुक खून के प्यासे और उत्पाती के रूप में चित्रित किया जाता है,इस तरह की प्रस्तुतियां सांस्कृतिक विकृतीकरण पर निर्भर हैं। अरबों को हमेशा संस्कृति की तुलना में प्रकृति के ज्यादा करीब दिखाया जाता है। इसके जरिए यह संदेश संप्रेषित करने की कोशिश की जाती है कि वे जेनेटिकली सभ्य बनने में असमर्थ हैं। स्वाभाविक प्रस्तुतियों के नाम पर यह संदेश दिया जाता है कि अरबों में सभ्य और सांस्कृतिक बनने की क्षमता नही ंहै,वे सुसभ्य नहीं बन सकते। वे जैसे हैं वैसे ही रहेंगे। उन्हें सुनिश्चित सांस्कृतिक अर्थ और स्थान में कैद करके पेश किया जाता है। उन्हें इतिहास से परे और सांस्कृतिक मुक्ति अर्जित करने में पूरी तरह असमर्थ दरशाया जाता है।
    सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में ज्ञान और पावर या सत्ता के बीच का अन्तस्संबंध सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण है। मिशेल फूको के अनुसार पावर हमेशा संस्थानों और तद्जनित तकनीक के जरिए अपनी भूमिका अदा करती है। ये संस्थान ही हैं जो आत्म और अन्य के बीच में रणनीति बनाते हैं। साथ ही सांस्कृतिक अन्तर्विरोधों के बीच में अभिव्यक्त करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में मध्यपूर्व में ज्ञान के उत्पादन और अमरीकी मीडिया की वैचारिक अभिव्यक्तियों के फ्रेमवर्क को गंभीरता से विश्लेषित किया जाना चाहिए। अमरीका के स्कालरों का मध्यपूर्व के बारे में ज्ञानोत्पादन बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है,खासकर 'अन्य' के ज्ञान का उत्पादन। इसमें ओरिएण्ट छाया हुआ है। इन लोगों के द्वारा निर्मित इमेजों का ही वर्चस्व  है। सईद ने 'ओरिएण्टलिज्म' नामक किताब में विस्तार के साथ इस पहलू पर विचार किया है। 
          सईद के अनुसार जो समाज सर्वसत्तावादी नहीं है,उसमें कुछ सांस्कृतिक रूप अन्य पर वर्चस्व बनाए रखते हैं। ग्राम्शी के शब्दों में सांस्कृतिक नेतृत्व वर्चस्व को प्रतिबिम्बित करता है। पश्चिम के औद्योगिक समाजों को समझने के लिए यह अपरिहार्य अवधारणा है। वर्चस्व अथवा सांस्कृतिक वर्चस्व के परिणामस्वरूप ओरिण्टलिज्म अपने को टिकाऊ बनाता है। अपना शक्ति संचय करता है। प्राच्यवाद को यूरोप के विचार से काटकर नहीं देखा जा सकता। यूरोप को 'हम' और गैर यूरोपियनों को 'तुम' के रूप में वर्गीकृत किया गया। अन्य की तुलना में यूरोप के श्रेष्ठत्व का आधार उनकी यूरोपीय अस्मिता को बनाया गया,उनके सांस्कृतिक वर्चस्व को बनाया गया। यूरोपीय श्रेष्ठत्व को पूरब के पिछड़ेपन के साथ पेश किया गया। इसी ज्ञान के आधार पर पश्चिम की अन्य के बारे में समझ बनायी गयी। यह काम सैंकड़ों वर्षों से हो रहा है। इसी आधार पर मध्यपूर्व की भी समझ बनायी गयी और मीडिया प्रस्तुतियों को पेश किया गया। तथ्य और कल्पना में भेद पैदा किया गया। इमेजों का दुरूपयोग किया गया।  ऐसी इमेजों को पेश किया गया जो साम्राज्य की जरूरतों का हिस्सा थीं। ऐसी अवस्था में ''भिन्नता'' को रणनीतिक तौर पर इस्तेमाल किया जिससे सत्ता-ज्ञान के संबंध को पश्चिम और अन्य के संबंध में स्थायित्व प्रदान किया जा सके। इस संदर्भ में सांस्कृतिक वर्चस्व बनाए रखने में स्टीरियोटाईप प्रस्तुतियां महत्वपूर्ण उपकरण का काम करती हैं।
  (लेखक-जगदीश्वर चतुर्वेदी,सुधा सिंह)     



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