शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

रियलिटी टीवी की कलाबाजियाँ -1


                       
       अमरीकी समाज में जीवन के सभी क्षेत्रों में महायथार्थ और टीवी का वर्चस्व है। अमरीकी समाज का सबसे चमत्कृत रूप राष्ट्रपति चुनाव अथवा युध्द के समय दिखाई देता है। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उम्मीदवार की जीतने वाली इमेज को ही प्रक्षेपित किया जाता है। इस इमेज के आधार पर ही मतदान की प्रकृति तय होती है। मतदाता की मनोदशा निर्मित होती है। साथ ही टीवी इमेजों के माध्यम से अमरीकी राजनीतिक शक्ति का महिमामंडन किया जाता है। अमरीकी चुनाव में अमूमन अन्तर्वस्तु और मुद्दे की बजाय प्रक्रिया और इमेज के सवाल हावी रहते हैं। अमरीकी राजनीति हमेशा ऐतिहासिक राजनीतिक सच्चाई की उपेक्षा करती है। राष्ट्रपति प्रत्याशी की महाइमेज बनायी जाती है। यह उम्मीदवार की असली इमेज को छिपाती है। फलत: प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार राष्ट्रपति के प्रचार अभियान में असली इमेज के उद्धाटन का प्रयास करते हैं। जिससे उम्मीदवार के अंदर दाखिल हुआ जा सके। इस चक्कर में उम्मीदवार के आंतरिक और अंदरूनी विवादों और पहलुओं को उजागर करने पर जोर दिया जाता है।
          हाइपररियलिटी का सबसे बड़ा खेल टेलीविजन इमेजों में चल रहा है। टीवी इमेजों के माध्यम से हमारे बीच रियलिटी शो भी पहुँच रहे हैं। रियलिटी टेलीविजन के जरिए हाइपररीयल और रीयल के बीच का भेद खत्म हो गया है। टेलीविजन अब हाइपररीयल इमेजों को ही प्रक्षेपित कर रहा है। यथार्थ और फैंटेसी के बीच फर्क भूल गए हैं। बगैर सोचे समझे फैण्टेसी के जाल में उलझ जाते हैं। ऐसी अवस्था में हम जान ही नहीं पाते कि क्या कर रहे हैं। हाइपररीयल की चारित्रिक विशेषता है यथार्थ को समृध्द करना। इस प्रसंग में देरिदा का तर्क है यथार्थ को समृध्द करने के नाम पर कृत्रिमता को पेश किया जाता है और उसको ही दर्ज किया जाता है। दर्ज से अर्थ है घटनाविशेष की प्रस्तुति । इस तरह की प्रस्तुतियां पुंसवाद में इजाफा करती हैं और निजता (प्राइवेसी) पर हमला करती हैं। बौद्रिलार्द ने ''Ecstasy of Communication''  में लिखा इससे ऑबशीन के प्रति हमारे आकर्षण में इजाफा होता है। देखने की इच्छा का ही परिणाम है कि अन्य देखने के लिए आएं।
      रियलिटी शो में हम अपनी सुविधाओं और आराम का महिमामंडन करते हैं। रियलिटी शो या खबरों में अन्य के कष्टों को देखकर परपीडक आनंद लेते हैं। टेलीविजन इमेज यथार्थ से भी बेहतर नजर आती हैं, बौद्रिलार्द कहता है अब हम टेलीविजन नहीं देखते बल्कि टेलीविजन हमें देखता है। रियलिटी टेलीविजन की सफलता के बाद बौद्रिलार्द का उपरोक्त कथन ज्यादा प्रामाणिक नजर आने लगा है। रियलिटी टेलीविजन हमें अच्छा इसलिए लगता है क्योंकि इसमें ''जीवंत'' (लाइव) प्रस्तुतियां होती हैं। ये टेली प्रस्तुतियां हैं।
      देरिदा के शब्दों में घटनाओं के आगमन का 'स्पेस' तैयार किया जा रहा है। उम्मीदों को गैर-उम्मीद बनाया जा रहा है।  खास किस्म के वैविध्य,भिन्नता और स्वर्त:स्फूत्ताता को टेली स्क्रिप्ट के माध्यम से बनाए रखा जाता है। रियलिटी टेलीविजन की स्क्रिप्ट स्वर्त:स्फूत्ताता का आभास देती है। यह अ-निर्देशित है । जिसके कारण ''प्रामाणिक'' को कैद करना,चरित्रों के छिपे हुए आयामों को कैमरे में कैद करना इसका लक्ष्य होता है। इसके कारण यह स्वर्त:स्फूत्ता लगती है। देरिदा ने इस प्रक्रिया को messianism  नाम दिया है। देरिदा ने Echographies of Television  में लिखा है कि messianism  के द्वारा घटना को निर्देशित किया जाता है। भविष्य का वायदा किया जाता है। इसका खुलापन इस बात की संभावनाओं के द्वार खोलता है कि हम आनंद ले सकें। लाइव टेलीविजन में पुष्टि और सत्य का तत्व रहता है। जिससे इसे लिखित स्क्रिप्ट वाले कार्यक्रमों जैसे-टॉक शो आदि से अलग करने में मदद मिलती है। यह सारा लाइव रीयल टाइम में सम्पन्न होता है। इस तरह के कार्यक्रम में एकल विलक्षणता होती है। देरिदा ने लिखा इसमें जिस आकार के क्षणों को बांधने की कोशिश की जाती है वे वर्तमान का अपरिवर्तनीय रूप हैं। इसमें यह तथ्य छिपा है कि '' यह चीज तो वहां थी। '' यह भी तर्क दिया जा सकता है कि जिसे सम्बोधित किया जा रहा है वह खुश होता है कि उसे रियलिटी टेलीविजन के द्वारा सम्बोधित किया जा रहा है। किंतु ग्रहणकत्तर्ाा इसके अर्थनिर्माण में हिस्सा नहीं लेता। आत्मस्वीकारोक्ति के दृश्य ही यथार्थ होते हैं। वैसे ही जैसे प्रसारित कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग का प्रधान लक्ष्य होता है दर्शकों को कार्यक्रम में व्यस्त रखना, बांधे रखना। कार्यक्रम में दर्शकों की 'शिरकत' को सुनिश्चित बनाने का तरीका है एसएमएस के जरिए इण्डियन आइडल जैसे कार्यक्रमों में दर्शकों को भागीदारी के लिए उद्बुध्द करना। दर्शक जिसके पक्ष में एसएमएस करते हैं उस पसंदीदा कलाकार की प्रस्तुतियां देखते हैं, उत्तोजित होते हैं, अपनी राय का इजहार करते हैं,संवाद करते हैं। इसी को देरिदा ने 'यथार्थ प्रभाव'' कहा है।
         बौद्रिलार्द के शब्दों में रियलिटी टेलीविजन देखते समय आमलोग पारदर्शी रूप में देखते हैं। इसकी पोर्नोग्राफी और अश्लीलता के साथ तुलना की जा सकती है। अश्लीलता के नग्न दृश्य के साथ बौद्रिलार्द ने रियलिटी टीवी की जो तुलना की थी तो इसे गैर महत्व का माना था। यह बर्बरता के नाटक का एकदम विलोम है। यह हिंसा जैसी बर्बरता नहीं है, किंतु यह बर्बरता है जब अभिनेता समस्त कपड़े उतार देता है,अपने मुखौटे उतार देता है और सत्य को दर्शक के सामने पेश करता है। यह ऐसा सत्य है जिसे दर्शक देखना नहीं चाहते। इसका पाठ ,अर्थ पर हावी रहता है।
    बौद्रिलार्द के शब्दों में हाइपररियलिटी का अर्थ है मिट्टी पैदा करना है। रियलिटी शो में नाटकीयता के जरिए विलक्षण और विशिष्ट भाषा निर्मित की जाती है। विचार,भावभंगिमा को अवधारणा की शक्ल प्रदान की जाती है। इस प्रक्रिया में रियलिटी टीवी कब हस्तक्षेप करता है ? वह जब हस्तक्षेप करता है तब बर्बररूप में ही हस्तक्षेप करता है। चाहे वर्चुअल रूप में ही सही।
     



3 टिप्‍पणियां:

  1. क्या समाज व्यवस्था, प्रशासन, कानून हायपररियालिटी नहीं है? मानव वानर का एक रूप है और वह प्राकृतिक रूप से वनमानुसों की तरह छोटे कबीलों में रहने के लिए बना है , उसका प्राकृतिक निवास जंगली इलाके हैं. मानव शहरों में या बहुत बड़े झुंडों में रहने के लिए नहीं बना है, वह अपने मूल परिवेश से जितना दूर आता जाता है उसमे उतनी ही विकृतियाँ आ जाती हैं. आपकी यह पोस्ट डेसमंड मोरिस की पुस्तक नेकेड ऐप की याद दिला गई.

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  2. क्या हायपररियलिटी माया है? क्या मेट्रिक्स (मायाजाल) फिल्म छुपी हुई उपमा के माध्यम से हायपररियलिटी की तरफ संकेत करती है. क्या हम मेट्रिक्स या मायाजाल में जी रहे हैं?

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  3. रियलटी शो! कुछ नहीं जी, एक धोखा है जो दर्शक खा रहे हैं:)

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