सोमवार, 7 दिसंबर 2009

साइबर संस्कृति और जागरूकता




 मौजूदा दौर मीडिया का नहीं साइबर मीडिया का है। मीडिया के युग का अंत हो चुका हैं। हमारे सारे विमर्श मीडिया के संदर्भ,प्रिंट संस्कृति के संदर्भ में तैयार हुए थे,किंतु आज स्थिति बदल चुकी है। साइबर मीडिया प्रिंट संस्कृति के विकास की अगली सीढ़ी है। साइबर मीडिया की जड़ें इलैक्ट्रोनिक संस्कृति के साथ जुड़ी हैं। मैकलुहान ने लिखा '' इलैक्ट्रोनिक हिस्सेदारी में हमारी गति निजी और सार्वजनिक जागरूकता को अन्तर्गृथित भाव से जन्म दे रही है।


 आज हम सूचना और संचार के युग में जी रहे हैं,क्योंकि इलैक्ट्रोनिक मीडिया निरंतर सहजजात रूप से संपर्क का समूचा क्षेत्र तैयार कर रहा है जिसमें सभी लोग हिस्सेदारी कर सकें।'' इलैक्ट्रोनिक मीडिया का हमेशा से अन्तर्विरोधी प्रभाव रहा है। वह एक ही साथ विश्रृंखलित और टिकाऊ बनाता है। मैकलुहान ने विश्रृंखलित तत्व को प्रिंट संस्कृति और मशीन युग से जोड़ा, वहीं टेलीविजन के साथ उच्च गति समानान्तरता को जोड़ा जिसके कारण लोग एक ही जगह ,एक ही साथ बैठकर टीवी देखते हैं। इसे ही मैकलुहान ने उच्चगति समानान्तरता का नाम दिया। विश्रृंखलित समाज में टेलीविजन ने एक मीडियम के तौर पर टिकाऊ भाव पैदा किया, इससे यह भाव पैदा हुआ कि सभी चीजें एक दूसरे से संबध्द हैं, किंतु कनेक्शन के बारे में कभी विचार नहीं किया गया।





         
 इंटरनेट के आने के बाद उसकी तरह-तरह से मीमांसा की जा रही है किंतु उसकी बुनियादी विशेषताएं हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए,इंटरनेट ग्लोबल है, इसके सभी विधा रूप ग्लोबल हैं। यह स्वतंत्र है। इस पर किसी का नियंत्रण नहीं है। इंटरनेट की तेज गति इसे अन्य माध्यमों से गुणात्मक तौर पर अलग करती है। सचमुच में दुनिया को ग्लोबल विलेज में रूपान्तरित करती है। 




   अब तक जितने माध्यम विकसित हुए हैं उनमें इंटरनेट सबसे ज्यादा ताकतवर है,यह माध्यमों में एक माध्यम नहीं है, बल्कि माध्यमों का सरताज है। इसमें व्यक्तिगत चयन के अनुरूप रूपान्तरित कर लेने की विलक्षण क्षमता है। साथ ही व्यक्तिगत हिस्से को नष्ट करने और पुराना बनाने की विलक्षण क्षमता है। इसकी ऑथरिटी को अपदस्थ करने,बदलने की किसी के पास क्षमता नहीं है।  व्यक्तिगत तौर पर कम्प्यूटर की क्षति से इसकी गति और सत्ता पर कोई असर नहीं पड़ता।




    इंटरनेट को तब ही बंद कर सकते हैं जब उसके समस्त कनेक्शन बंद कर दें। उसका एक भी कनेक्शन चालू रहने की अवस्था में उसे बंद करना संभव नहीं है। इंटरनेट की गति को सुपरफास्ट गति कहा जाता है। इसकी गति 200 हजार किलोमीटर प्रति सैकिण्ड आंकी गयी है। यह रोशनी की समग्र गति से कुछ कम गति से चलता है। इसी अर्थ में इस रीयल टाइम  स्पीड में चलने वाला माध्यम है। 
         
    इंटरनेट स्वभावत: सामाजिक है,यह प्रत्येक को समान अवसर देता है,समान सूचनाएं देता है,समान क्षमताएं देता है। यह सबके प्रति साझा प्रोटोकोल लागू करता है। यह सभी कम्प्यूटरों को समान क्षमता के साथ इस्तेमाल करने का अवसर देता है। यह सभी  उपभोक्ताओं  को सस्ते दाम पर ऑडियो,वीडियो, डाटा आदि प्रदान करता है। यह ग्लोबल बाजार है। यह ग्लोबल स्तर पर व्यापार और अभिव्यक्ति की आजादी को लागू करता है। इसका साझा क्षेत्र है सार्वजनिक स्थान। 




    अब तक के जितने भी साझा मंच पैदा हुए हैं उनमें यह सबसे बड़ा साझा मंच है। यह ऐसा साझा मंच है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अभिनेता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कह सकता है, कर सकता है, साथ ही एक व्यापक समुदाय का हिस्सा भी बना रह सकता है। यही वजह है कि इंटरनेट पर किसी समुदाय विशेष की इच्छाएं,शर्तें थोपी नहीं जा सकतीं। साझा हितों और साझा संचार के आधार पर इंटरनेट संबंधों को बनाता है। संबंधों में स्वतंत्रता अथवा स्वायत्तता बनाए रखता है। 




  इंटरनेट की धुरी है डिजिटल बाइटस ,यही डिजिटल संचार का मूलाधार है। डिजिटल डाटा आपको हेय नहीं बनाता,अनालॉग सिस्टम और डिजिटल सिस्टम ये दोनों ही आईने की तरह एक- दूसरे की इमेज साफ पेश करते हैं। डिजिटल में निर्मित सूचना को विकृत नहीं किया जा सकता,नष्ट नहीं किया जा सकता। इसकी उम्र अनंत है,इसके डाटा एक-दूसरे के साथ गड्डमड्ड नहीं करते, खासकर जब वे दूर से भेजे जाते हैं। 
     
     मैकलुहानपंथी और विख्यात मीडिया विशेषज्ञ डगलस रुस्कॉफ ने लिखा ''अमेरिका ने कम्प्यूटर संचालित माध्यमों के जरिए अवचेतन पर उपभोक्ता फासीवाद का हमला बोल दिया है। हमें शिक्षित किया गया कि हमारी मशीन प्रौपेगैण्डा करेगी। वेब साइट और अन्य माध्यमों को इस तरह बनाया गया है कि वे हमारा ध्यान खीचें। कम्प्यूटर का कार्यक्रम इस तरह बनाया गया है कि वह अनुकरणमूलकता पैदा करे। यह वन-टू-वन मार्केटिंग की तकनीक है। इसमें जो कुछ छनकर आ रहा है उसमें मिलावट हो रही है। सूचनाओं का स्थापत्य सम्मोहित कर रहा है।  कम्प्यूटर हमारी प्रतिक्रियाओं को दर्ज करता है जिससे इन तकनीकों को और परिष्कृत किया जा सके। यह काम स्वचालित ढ़ंग से अथवा मनुष्य के हस्तक्षेप के बिना किया जा सकता है। इसकी सफलता का रहस्य है इसमें लगे विज्ञापन और वेब साइट की आर्थिक गतिविधियां। उसका लक्ष्य है उपभोग और उत्पादन। वह अपने यूजर मनुष्य को विषय के तौर पर समाहित कर लेता है।''
     
    मीडिया की संरचनाएं मीडिया के द्वारा इस तरह डिजायन की गई हैं कि उनकी खर्च के ऊपर जोर देने के अलावा कोई अन्य प्राथमिकता ही नहीं होती। कम्प्यूटर पर जब आप काम करते हैं तो आपकी चुपचाप फीडबैक भी तैयार कर ली जाती है। मशीन ज्यों ही काम शुरू करती है मनुष्य स्वत: ही वैसे काम करने लगता है। कार्यक्रमों को रीयल टाइम में एडजेस्ट कर लिया गया है। यूजर प्रतिक्षण क्या कर रहा है इसका हिसाब रखा जाता है,वह मस्तिष्कविहीन रेस्पांस लेती है। 




     कम्प्यूटर तकनीक हमें शामिल होने के लिए प्रेरित करती है,जबकि हम उसमें घुलते चले जाते हैं,सहजजात रूप में घुलते चले जाते हैं, चिन्तनहीन निष्क्रियता के शिकार बन जाते हैं। जो लोग इसके सामने प्रतिरोध करते हैं उन्हें वह पुरस्कृत करती है, जो अपनी स्वाभाविक शक्ति को समर्पित कर देते हैं ,उनका यह कार्यक्रम बनाती है। जो विचारों में सक्रिय बने रहना चाहते हैं,उनके बारे में यह प्रचार करती है ये कम्युनिस्ट हैं,उदार हैं, '' फैशनरहित निष्क्रिय हैं।''सबसे बुरी बात यह है उन्हें नादान शत्रु के रूप में रेखांकित किया जाता है,नादानगी को अमेरिकी अर्थव्यवस्था के विकास के ईश्वरीय विधान के रूप में पेश किया जाता है। अंतत: ऐसी कहानियां आए दिन छपती रहती हैं, इन कहानियों में बिडम्बना छिपी है। ये अमूर्त बौध्दिक परिश्रम का परिणाम हैं। इसीलिए ये हमारा ध्यान नहीं खीच पातीं।
         
    जब आप भय को खत्म कर देते हैं और सीधे शुभाकांक्षा अथवा आशीर्वाद पर चलते हैं तो आप हमेशा अच्छे परिणाम हासिल नहीं कर पाते।बुरे हालात तब आते हैं जब यह सब फासीवाद का भोजन बन जाता है। विगत चंद वर्षों में हमने इंटरनेट को जाने दिया है, इसके परिणाम स्वरूप हमें इलैक्ट्रोनिक दुकानदार या मॉल की सूची थमा दी गयी है, हम समझने लगे हैं कि सरकार हमारी शत्रु है।अत: उसे नेटवर्क के बाहर रखो।यही वह बिंदु है जहां बाजार की शक्तियां निर्द्वंद्व भाव से शासन कर रही हैं।  हमने हिसाब लगाना शुरू किया कि क्या इससे हमारा विकास हो रहा है।नए विचार आ रहे हैं, सांस्कृतिक तौर पर नए का निर्माण कर पा रहे हैं,यहां तक कि बाजार बगैर कुछ खोए अपनी समस्त उद्देश्यों को खो चुका है।




     रुस्कॉफ ने अपनी ताजा किताब ''गेट बेक इन दि बॉक्स'' में लिखा नयी तकनीक देखने के बाद सतह पर यही विचार आता है कि हमें नए को खोजने के लिए अंदर से बाहर जाना चाहिए,जबकि नया खोजने के लिए बाहर से अंदर जाने की जरूरत होती है। हममें से बहुत सारे लोग सोचते हैं कि बॉक्स के बाहर निकलें। जिससे नये की रचना कर सकें। अधिकतर मामलों में हम संदेह कर कर सकते हैं,असल खोज तो अंदर की बुनियादी क्षमता के विकास से ही आती है,मुझे लगता है कि बाहर जो कुछ चल रहा है उस पर किसी को भी विश्वास नहीं है। वे यह भी जानते हैं बाहर जो चल रहा है उसके कोड बताते हैं कि आपका दुरूपयोग हो रहा है। यह किताब गहराई में जाकर रैनेसां की ओर ले जाती है।  वह हमारे समाज का विशिष्ट क्षण था।




    रैनेसां के कारण हमारे परिप्रेक्ष्य में मूलगामी परिवर्तन हुआ, रैनेसां ने व्यक्ति को जन्म दिया, प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया।यह रैनेसां हमारे सामने सिर्फ मिली-जुली भूमिकाओं की संभावनाओं को लेकर आया है,जैसे नेटवर्क सामूहिकतावाद, लेखकों का समाज आदि। हमें यह देखना चाहिए कि व्यक्तिवाद किस तरह सामूहिक प्रयासों से अपने को जोड़ता है। इस अवस्था को हासिल करने में तकनीक बहुत बड़ा आधार है। अभी तक हम तकनीक को एकहरे ढ़ंग से  इस्तेमाल करते रहे हैं।  हमने तकनीक के संचालन और नियंत्रण पर ही ध्यान केन्द्रित किया है। स्टीम इंजन से लेकर फोर्ड असेम्बली लाइन  तक का हमारा सफर मैकेनिस्टिक मॉडल को आरोपित करता है। इसमें मैनेजर मशीन का नियंत्रण करता है। अथवा जनता पर मशीन के जरिए नियंत्रण रखा जाता है। हमें सामूहिक शिरकत को बढ़ावा देना होगा।
(लेखक- जगदीश्वर चतुर्वेदी, सुधा सिंह )


       

2 टिप्‍पणियां:

  1. ‘अब तक जितने माध्यम विकसित हुए हैं उनमें इंटरनेट सबसे ज्यादा ताकतवर है,यह माध्यमों में एक माध्यम नहीं है, बल्कि माध्यमों का सरताज है।’

    यह सही है कि इंटरनेट ग्लोबल है पर इतना विस्तृत कि पाठक क्या क्या देखें। शायद इसका फैलाव ही इसकी कमज़ोरी भी है। इसमें दो राय नहीं कि यह एक शक्तिशाली माध्यम है और निरंकुश भी:)

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