शनिवार, 17 मई 2014

मोदी की जीत से निकलती संभावनाएं


अन्ना आंदोलन के आने के साथ अस्मिता की राजनीति की विदाई का सिलसिला शुरु हुआ तो मोदी की जीत के साथ अस्मिता की राजनीति के समापन का मध्याह्न है। मोदी की जीत के साथ नए किस्म की चुनौती सामने आई है।मोदी स्वयं अस्मिता की पैदाइश थे और अंत में स्वयं अस्मिता के खिलाफ खड़े हुए। कहने का अर्थ है अस्मिता हमेशा अस्मिता को ही खाती है। मोदी ने हिन्दुत्व की अस्मिता का अंत करके संघ के बड़े प्रकल्प का समापन किया है।

लोकसभा चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि अस्मिता की राजनीति जा रही है और आक्रामक नव्य उदारीकरण की राजनीति आने वाली है। यह राजनीति से वकील,दलील और प्रतिवाद के अंत की शुरुआत है।

मायावती का जाना, लालू-नीतीश का पराभव ,मोदी का विकास को प्रमुख और हिंदुत्व को प्रच्छन्न बनाना नए किस्म के नजरिए और लामबंदी की मांग करता है।उल्लेखनीय है राममंदिर आंदोलन से अस्मिता की राजनीति परवान चढ़ी थी और संघ के मोदी प्रकल्प ने ही अस्मिता की राजनीति का अंत कर दिया है।

मोदी की जीत का सकारात्मक पक्ष है ज्योतिषी झूठे साबित हुए ,नामांकन के दिन को दोष था उसका भी कोई मोदी पर असर नहीं हुआ। कुल मिलाकर ज्योतिषी और ज्योतिष असत्य साबित हुई।लोकसभा चुनावों को 18देशों के 43प्रतिनिधियोंने देखा।

इसबार के लोकसभा चुनाव में जनता ने कांग्रेस को हराया है साथ ही उनकी बनायी जनविरोधी नीतियों को भी ख़ारिज किया है। सवाल यह है मोदी क्या मनमोहन सिंह की जनविरोधी नीतियों का विकल्प पेश करेंगे ? यदि वे नई नीति पेश नहीं करते तो इसका यही अर्थ होगा कि उनके पास देश के विकास का मनमोहन मार्ग छोड़कर और कोई मार्ग नहीं है। क़ायदे से मोदी नई नीतियाँ लेकर आएँ । भाजपा की जीत में मोदी की निश्चित रुप से महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन यह जीत मूलतःवैचारिक जीत है।यह व्यक्तिविशेष की जीत नहीं है। यह नव्य उदार नीतियों की अब तक की सबसे बड़ी जीत है।लंबे समय के बाद पहलीबार किसी दल को पूर्ण बहुमत मिला है। मोदी की जीत इस अर्थ में महत्वपूर्ण है क्योंकि मोदी को इन नीतियों को लागू करने के लिए पूर्ण बहुमत मिला है।

जनता महान है, जनता कभी गलत नहीं करती, इस पूजाभाव से जनता को न देखें। लोकतंत्र में वोट का महत्व है। लेकिन जरुरी नहीं है कि जनता का फैसला सही ही हो। इसका अर्थ यह होगा कि आम जनता ने मनमोहन सिंह या कांग्रेस को 2बार चुनकर नव्य आर्थिक उदारीकरण के कार्यक्रम को स्वीकार कर लिया था। जबकि सच्चाई यह नहीं है।

मोदी के नेतृत्व में एनडीए की जीत वस्तुतः नव्य आर्थिक उदारीकरण की जीत है ।वे ताकतें हारी हैं जो विकल्प खोज रही थीं । मोदी को मिला बहुमत निश्चित रुप से उदारीकरण की मुहिम को तेज करेगा,इससे उदारीकरण के अधूरे कामों को पूरा करने का अवसर मिलेगा। संसद चलेगी,सरकार दौडेगी,पूंजीपति चैन की नींद सोएंगे। युवा सपने देखेंगे।

लोकसभा परिणामों में पुंसवाद महान होकर आया है औरतों का प्रतिनिधित्व देखें जरा।औरतें हाशिए पर चली गयी हैं,अल्पसंख्यक संसद में कम हो गए हैं। गोवा से 2 में से कोई सांसद महिला नहीं। झारखंड में 14 में से कोई महिला सांसद नहीं। कर्नाटक में 28 में सिर्फ 1 महिला सांसद है।  इसबार संसद में 61 महिला सांसद चुनी गयी हैं। यह आंकड़ा हमारे लोकतंत्र के स्त्री विरोधी चरित्र को सामने लाता है और हम गर्व करते हैं कि माँ का सम्मान करते हैं,बहन को प्यार करते हैं। अरे भाई जरा लोकतंत्र में औरत की जगह तो तय करके दे दो ।जिस लोकतंत्र में औरत हाशिए के बाहर हो वह लोकतंत्र पुंसवाद की उर्वर भूमि है।यह गर्व की नहीं शर्म की बात है।छत्तीसगढ़ से 11 सांसदों में मात्र 1 महिला सांसद चुनी गयी है। यह कैसा विकास है जो महिलाओं को घर में ठेल देता है।हिमाचल से कोई नहीं,अंडमान -निकोबार से कोई नहीं,आंध्र से 1 महिला संसद पहुँची है।म.प्र. से 4महिलाएं चुनी गयीं,राजस्थान से1 महिला , हरियाणा से कोई महिला नहीं,बिहार से 2,गुजरात से 1 महिला चुनी गयी है लोकसभा के लिए।लोकसभा के लिए केरल से कोई महिला नहीं चुनी गयी, बेहतर शिक्षा का नतीजा है या कुछ और कारण हैं।

यूपी,बिहार-म.प्र.,राजस्थान में लोकतंत्र में बहुसंख्यकवाद का नया प्रयोग हुआ है । यह लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत है।मुस्लिम प्रतिनिधित्व ग़ायब है।

मोदी की जीत मुग्धभाव से देखने की बजाय आँखें खोलकर देखें। यूपी में जो मोदी हवा चली है उसमें विकास के साथ साथ अन्य वैचारिक मान्यताएं प्रच्छन्न रुप में काम करती रही हैं।
यह कैसे हो सकता है कि यूपी से कोई मुसलमान न जीते। यह प्रच्छन्न तरीकों से चलाए गए बहुसंख्यकवाद के नए किस्म के ध्रुवीकरण की अभिव्यक्ति है। इसे विकास और जनता की आकांक्षा की आड़ में छिपाने की कोशिश की जा रही है। पहलीबार ऐसा हुआ है कि जो ऐसा दल केन्द्र में सत्ता में बहुमत लेकर आया है उसके सांसदों में अल्पसंख्यक हाशिए के बाहर हैं। यह फिनोमिना चिंता की चीज है।

एक अन्य चीज मैं अभी तक समझ नहीं पाया हूँ कि अदानी के बारे में सबसे पहले अरविंद केजरीवाल के बोलने के बाद ही चुनाव में उसकी ओर ध्यान गया। सवाल यह है कि विगत दस साल में किसी भी वामनेता ने अदानी के मसले को देश के सामने क्यों नहीं रखा। कभी देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने उसके बारे में केजरीवाल के बोलनेके पहले जनता को क्यों नहीं बताया ?

लोकसभा चुनाव में कितनी जनता किसके कार्यक्रम के साथ है यदि इसे देखा जाए तो 125करोड़ की आबादी में भाजपा की बहुत सुखद स्थिति नहीं है।भाजपा को मात्र 17 करोड़ वोट मिले हैं,यानी 31.3फीसदी वोट मिले हैं। इसके अलावा बाकी जनता भाजपा के कार्यक्रम के साथ नहीं है। यह स्थिति तब है जबकि भाजपा ने बेशुमार पैसा प्रचार और अन्य मेनीपुलेशन के साधनों पर खर्चकिया। यह आंकड़ा चुनाव कमीशन का है। इसलिए हमें कम से कम समझ साफ रखनी चाहिए कि बहुसंख्यक जनता अभी भी भाजपा के साथ नहीं है। इसके बावजूद यह सच है कि भाजपा जीत गयी है,सरकार बनाएगी।हमें इंतजार करना होगा कि वे क्या करते हैं और किनके हित में काम करते हैं।





















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