भारत में एक विषय है जिस पर मध्यवर्ग से लेकर संसद तक ,नेताओं के बयानों से लेकर सरकारी सर्कुलरों तक अ-गंभीर भाव दिखता है वह है गरीबी। गरीबी की इन सबकी अपनी-अपनी व्याख्याएं और परिभाषाएं हैं।इन सभी व्याख्याओं में गरीबी से जान छुडाने का भाव है । लेकिन गरीबी पीछा छोडने को तैयार नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि इन सबकी गरीबी से लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
हाल ही में गुजरात के गरीबभक्त नरेन्द्र मोदी की सरकार का गरीबप्रेम उजागर हुआ है।गुजरात में गांवों में 324 रुपये और शहर में 501 रुपये से ज्यादा कमाने वालों को गरीब नहीं माना जाता। यानी 11 रुपये रोज कमाने वाला ग्रामीण गरीबी रेखा से ऊपर माना जाता है। 'नई दुनिया' में छपी खबर के मुताबिक गुजरात सरकार के खाद्य-आपूर्ति विभाग की ओर से जारी एक निर्देश में कहा गया है कि शहरी इलाकों में 16 रुपये 80 पैसे रोजाना और ग्रामीण इलाकों में 10 रुपये 80 पैसे रोजाना से कम कमाने वालों को ही बीपीएल कार्ड के योग्य माना जाए।
कुछ अर्सा पहले केंद्रीय योजना आयोग अपने गरीबप्रेम को उजागर करते हुए बता चुका था कि देश में शहर में 32 रुपये और गांव में 26 रुपये रोजाना कमाने वाला गरीब नहीं होता। हमारी समझ में यह नहीं आता कि मोदी योजना आयोग के दायरे में रहते हैं या उसके बाहर रहते हैं ?
हम तो यही कहेंगे भारत में रहने वाले सभी गरीब हैं ! यहां अमीर नहीं रहते ! फिर यह अमीर-गरीब की परिभाषा का झंझट ही खत्म हो जाएगा !! या फिर मान लें कि सब अमीर रहते हैं तो गरीब को खोजने के पचड़े से बच जाएंगे !! या फिर यह मान लें कि भारत में रहने वाले सभी नागरिक बीपीएल कार्ड के हकदार हैं ! इसके बाद तो देश में अमीर-गरीब सदभाव के साथ देश में रह सकेंगे!!
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