सोमवार, 19 मई 2014

लोकतंत्र के पुंसवादीतंत्र में औरतें

लोकसभा चुनावों में नेताओं के बंद दिमाग़ से बाहर निकलकर औरतों की ओर भी हमें नज़र डालने की ज़रुरत है। सन् १९५२में संसद में ४९९सीट थीं जिसमें २२महिला सांसद थीं। यानी ४.४फीसदी सीटों पर महिलाएँ क़ाबिज़ थीं। लेकिन २००९ में ५४३सीटों में मात्र ५८महिलाएं सांसद बनीं।
सन् २००४ में छह राष्ट्रीय दलों ने १,३५१उम्मीदवार खड़े किए जिसमें महिला प्रत्याशियों की संख्या ११० थी। इसमें मात्र ३०महिलाएं चुनाव जीत पायीं। कांग्रेस ने ४१७उम्मीदवार खड़े किए जिसमें ४५ महिलाएँ थीं। भाजपा ने ३६४उम्मीदवार खड़े किए जिसमें ३० महिलाएँ थीं।
सन् २००९ में हुए लोकसभा चुनाव में छह राष्ट्रीय दलों ने कुल १,६२३ उम्मीदवार खड़े किए जिनमें मात्र १३४ महिलाएँ थीं। यानी मात्र ८फीसदी महिलाएँ मैदान में थीं। इनमें से मात्र ४३ महिलाएँ ही चुनाव जीत पायीं।
२०१४ के चुनाव में अब तक कांग्रेस की दो लिस्ट आ चुकी हैं जिनमें २६५ के नाम हैं जिनमें ३९महिलाओं को लोकसभा का उम्मीदवार बनाया गया है। भाजपा की सूची में अब तक मात्र १४ महिलाओं को टिकट मिला है। आम आदमी पार्टी ने मात्र २३ महिलाओं को टिकट दिया है। इस मामले में वामदलों की अवस्था बेहतर नहीं है।

कहने का तात्पर्य यह है कि मौजूदा चुनाव में औरतों को राष्ट्रीयदलों ने हाशिए के बाहर खदेड़ दिया है और यह इस बात का संकेत भी है कि कुलमिलाकर लोकतंत्र पुंसवादी होता जा रहा है। लोकतंत्र में ऐसी अवस्था में महिलाओं पर अत्याचार रोकना और भी मुश्किल हो जाएगा।
16वीं लोकसभा में 61 महिलाएं सांसद बनकर आई हैं लेकिन एक बड़ा हिस्सा है जहां पर महिलाओं को अभी बंदिशें तोड़नी हैं। 

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