शनिवार, 17 मई 2014

पश्चिम बंगाल में वाम की पराजय के सबक

वामदलों और खासकर माकपा का बड़ा आरोप यह है कि पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर चुनावों में धांधली, बूथदखल आदि की घटनाएं हुई हैं। उनके कार्यकर्ताओं और पोलिंग एजेण्टों पर हमले हुए हैं,जिसके कारण वे यह चुनाव हारे हैं। इन आरोपों में एक हद तक सच्चाई है। लेकिन कई अन्य चीजें भी हैं जिनको देखने की जरुरत है। मसलन्, वामदलों ने पश्चिम बंगाल में आधे मन से चुनाव लड़ा। कहीं पर कोई नारेबाजी नहीं,पोस्टर-बैनर आदि नहीं। कहीं पर प्रभावशाली दीवार लेखन नहीं । कोई नया नारा नहीं। कार्यकर्ताओं में कोई खास उत्साह नहीं। उनको देखकर यही लग रहा था की माकपा अपनी पराजय मानकर चल रही है और किसी दैवीय चमत्कार की उम्मीद में  चुनाव लड़ रही है। 
    यह सच है कि माकपा पर बेशुमार हमले हुए हैं लेकिन माकपा अपने सदस्यों की रक्षा नहीं कर पा रही है। यदि चुनाव आधे मन से लडना था या चुनावों में भयानक धांधली हुई है तो माकपा ने चुनावों का बहिष्कार क्यों नहीं किया ? जब चुनाव आयोग ने धांधली के आरोप नहीं माने तब तो माकपा चुनावों के बहिष्कार का निर्णय ले ही सकती थी। 
   लोकसभा के चुनाव परिणाम बताते हैं कि वामदलों का हिन्दीभाषियों और मुसलमानों के अलावा बंगालियों में भी जनाधार तेजी से खत्म हो रहा है। हिन्दीभाषी लोग और मुसलमान तो तकरीबन माकपा और वामदलों का साथ छोड चुके हैं। हिन्दीभाषी एकमुश्त भाजपा के साथ जा चुके हैं ,जबकि मुसलमानों में बहुत बड़ा अंश तृणमूल कांग्रेस के साथ जा चुका है।

इस बार के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 34,भाजपा 2 , वाममोर्चा 2 और कांग्रेस को 4 सीटें मिली हैं। माकपा की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसने हरामखोर और भ्रष्टनेताओं को अभी तक पार्टी पदों से मुक्त नहीं किया है। जो नेता पार्टी अनुशासन भंग करने और जनता को कष्ट देने के लिए सीधे ज़िम्मेदार हैं उनको दल के पदों से हटाया नहीं गया है। साथ ही पार्टी में लिबरल मूल्यों के प्रति शत्रुताभाव है। 
    माकपा के अधिकांश नेतागण सामंती भावबोध में जीते हैं और सत्ता का सामंती तौर तरीक़ों के ज़रिए संचालन करते रहे हैं और पार्टी का भी उसी तरह संचालन करते रहे है। सामंती भावबोध को जनता नापसंद करती है। इसके अलावा पार्टी पर अपराधीकरण के भी आरोप लगे हैं और इसमें शामिल नेतागण पार्टी में बने हुए हैं । इन सबके कारण पार्टी की जनता की नजरों में कोई इज्जत नहीं रह गयी है। ऐसी स्थिति में माकपा कोई सही आरोप भी लगाती है तो आम जनता उस पर विश्वास नहीं करती। किसी भी दल का जनता का विश्वास खोना बड़ी त्रासदी है।
      ऐसी स्थिति में ममता बनर्जी को वाम के जनाधार तो अपने साथ करने और सारी धांधलियों-हिंसाचार आदि के बावजूद जीत हासिल करने के लिए कोई खास परिश्रम नहीं करना पडा।उसे बेशुमार वोट मिला है। समूचे वोट को चुनावी धाँधली कहकर दरकिनार नहीं कर सकते। माकपा नेताओं की लोकतंत्र भंजक इमेज अभी जनता में घर किए हुए है। ऐसे में माकपा और वाम के निरंतर पराभव को रोकना संभव नहीं है।पश्चिम बंगाल में भाजपा को अभूतपूर्व 17फीसदी वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को 9फीसदी वोट मिले हैं।प.बंगाल में तृणणूल कांग्रेस को 39 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं जबकि माकपा को 24 फीसदी वोट मिले हैं।





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