मंगलवार, 24 जून 2014

अंतहीन आंदोलन,हिंसाचार और डीयू


    विश्वविद्यालय स्वायत्त नहीं होते। स्वायत्तता धोखा है।स्वायत्तता कभी नहीं रही।वीसी चमचा होता है।हमेशा अपने चमचों से एसी भर लेता है। एसी का वो मनमानी के लिए दुरुपयोग करता है। सरकार के एजेंट की तरह काम करता है। हठात ये सारे तर्क उनसे सुनने को मिल रहे हैं जो कल तक विश्वविद्यालयों के बारे में हर आंदोलन में यह कहते थे कि हमें हर हालत में विश्वविद्यालय की स्वायत्तता की रक्षा करनी चाहिए। ये सारी बातें दिल्ली विश्वविद्यालय के चारसाला पाठ्यक्रम (FYUA) को यूजीसी द्वारा वैध घोषित किए जाने के कारण नए सिरे से उठी हैं।

मेरी दि वि वि के प्रशासन या उसके चार साला पाठ्यक्रम के साथ कोई निजी सहानुभूति या विरोध नहीं है। मैं वस्तुगत तौर पर एक राजनीतिक नजरिए से देख रहा हूँ। चीजें साफ ढ़ंग से नजर आएं इसके लिए एक अनुभव बताता हूँ।

मैंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर पद पर पदोन्नति हेतु सन्2000 में आवेदन किया और सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद 2001 में मैं प्रोफेसर हो गया।यह मेरा समूचे अकादमिक जीवन में एकमात्र प्रमोशन था। मैं मात्र 11 साल के शैक्षणिक अनुभव के बाद ही प्रोफेसर बन गया। यह सुखद अनुभव इतने कम समय में बहुत कम शिक्षकों को नसीब होता है। जबकि एक शिक्षक तीनबार प्रमोशन पाने का हकदार है। मुझे पदोन्नति का नियुक्ति पत्र मिल गया । बाद में पता चला कि मेरी नियुक्ति प्रक्रिया के सारे कागजात यूजीसी स्वीकृति हेतु भेजे गए हैं और यूजीसी उनको स्वीकृति देगी तब ही मैं प्रोफेसर माना जाऊँगा। मैं परेशान रहने लगा काफी दिन तक यूजीसी का उत्तर नहीं आया ।

एकदिन मैंने कलकत्ता वि .वि .के अधिकारियों से पूछा कि मेरी नियुक्ति पर यूजीसी का स्वीकृति पत्र अभी तक क्यों नहीं आया ? पता चला यह नियम और परंपरा है कि विश्वविद्यालय से नियुक्ति संबंधी जो कागजात यूजीसी भेजे जाते हैं उन पर यदि एक माह के अंदर यूजीसी आपत्ति नहीं भेजती तो मान लिया जाता है कि नियुक्ति वैध है। फलतः यूजीसी से मेरी नियुक्ति बगैर उनके पत्र के एक माह बाद वैध मान ली गयी। यदि मुझसे कोई पूछे कि यूजीसी का नियुक्ति वैधता प्रमाणपत्र दिखाओ तो मैं दिखा नहीं पाऊँगा । यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि दिविवि शिक्षकसंघ बार बार कह रहा है चारसाला पाठ्यक्रम को विजिटर की अनुमति जरुरी है,अब इन ज्ञानी लोगों को कौन बताए कि एक निश्चित समयावधि तक विजिटर आपत्ति नहीं करता तो कोर्स को स्वीकृत मान लिया जाता है और यह कन्वेंशन छह दशक से जारी है। विजिटर यानी राष्ट्रपति ने जब आपत्ति नहीं की तो शिक्षकसंघ के नेताओं की आपत्ति का कोई महत्व नहीं है। विजिटर की स्वीकृति अंतिम होती है।

यूजीसी के फैसले के कारण दि. वि.वि. का चारसाला पाठ्यक्रम आए या जाए, वीसी हटाया जाए या रहे,हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है। यह कोर्स रहेगा या जाएगा इसका फैसला अकादमिक परिषद यानी एसी को ही करना है। यह फैसला बदला भी जा सकता है और बरकरार भी रख सकते हैं।

मीडिया में कहा गया यूजीसी ने दिविवि के चारसाला बीए पाठ्यक्रम को अवैध घोषित कर दिया है। यह बुनियादी तौर पर सही नहीं है। यूजीसी ने पहले इस कोर्स को स्वीकृति दी इसके बाद ही यह कोर्स आरंभ हुआ। यह अनुमति कैसे और क्यों मिली,यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है इसको यूजीसी द्वारा स्वीकृति देना। यह कोर्स विजिटर और राष्ट्रपति के पास भी भेजा गया था। समय पर न तो यूजीसी ने और नहीं विजिटर ने आपत्ति की।इसलिए मान लिया गया कि सबकुछ ठीकठाक है। लागू करो। इस बीच में कोई अदालत भी नहीं गया।

यह भी सत्य है कि चारसाला पाठ्यक्रम का शिक्षकसंघ ने विरोध किया,अनेक छात्रसंगठनों ने भी विरोध किया। यह भी सच है कि वीसी का शिक्षकों और छात्रों के संगठनों के प्रति अलोकतांत्रिक और हठधर्मीवाला रवैय्या था। इससे चीजें सुलझने की बजाय उलझी ज्यादा हैं। आंदोलनकारियों ने चारसाला कोर्स को खत्म करने के आंदोलन को अंतहीन आंदोलन की तरह चलाकर आत्मघाती आंदोलन की शिक्षाविरोधी मिसाल कायम की है।

माकपा में एकवर्ग रहा है जो अंतहीन आंदोलन की राजनीति में विश्वास करता रहा है। अंतहीन आंदोलन के कारण हमेशा लोकतांत्रिक हकों का क्षय हुआ है। प्रशासन को मनमानी करने,हमले करने का बहाना मिलता है। अंतहीन आंदोलन की राजनीति हमेशा गरम गरम नारों और उत्तेजनापूर्ण अविवेकवाद को अभिव्यंजित करती है। यह विवेकहीन बहादुरी का आदर्श नमूना है।दिविवि शिक्षक संघ ने वस्तुतः इसी मॉडल को अपनाकर आंदोलन किया है और उसके कारण कैम्पस का सारा वातावरण नष्ट हुआ है। अधिकारियों ने मौके का लाभ उठाया है और सभी परंपराओं को तिलांजलि देदी। अंतहीन आंदोलन के मार्ग की ये सामान्य और अपरिहार्य परिणति है।

पश्चिम बंगाल इस तरह के अंतहीन आंदोलनों की सबसे बड़ी प्रयोगशाला रहा है। इस मार्ग पर चलकर पूरे राज्य का शिक्षा ,समाज और उद्योग बर्बाद हो चुका है।ये आत्मघाती आंदोलन की राजनीति है। आज इस मार्ग पर चलने के कारण पश्चिम बंगाल के सारे कॉलेज आज अखाडे बने हुए हैं, राजनीतिक हिंसाचार रोजमर्रा की चीज हो गया है। यही फिनोमिना दिविवि में भी पैदा हो गया है। कल यानी 23जून को आजतक टीवी चैनल के हल्लाबोल कार्यक्रम के प्रसारण के दौरान एक शिक्षक की जिस तरह छात्रनेताओं ने पिटाई की और लहू-लुहान किया वह संकेत है कि दिविवि यदि संभला नहीं तो पश्चिम बंगाल की तरह हर कॉलेज में हिंसा का शासन होगा।

उल्लेखनीय है अंतहीन आंदोलन की धारणा जब भी लागू करेंगे हिंसा होगी और संस्थान या कारखाने बंद होंगे। 23 जून की हिंसा उसकी अभिव्यक्ति है,प्रशासन का हिंसाचार उसकी अभिव्यक्ति है। अंतहीन आंदोलन के कारण पश्चिम बंगाल के सारे उद्योग खत्म हो गए या शिफ्ट होकर अन्य राज्यों में चले गए। अंतहीन आंदोलन के कारण पुलिस और गुण्डों की हिंसा ने रूटिन रुप धारण कर लिया है। यही सिलसिला दिविवि में चल रहा है। अंतहीन आंदोलनकारी नहीं जानते कि आंदोलन वापस कैसे लिया जाय। वे हर संघर्ष को नाक की लडाई या आर-पार की लडाई मानकर लड़ रहे हैं। दिविवि में दुर्भाग्य से यही हुआ है। माकपा के लोग दिविवि में अंतहीन आंदोलन की थ्योरी में फंस गए हैं । अंतहीन आंदोलन की थ्योरी आत्मघाती और हिंसक है।

दि वि वि में हमारी दिलचस्पी एक नागरिक के नाते है। हम सत्य और तथ्य जानने में रुचि रखते हैं। यूजीसी के जिस आदेश का हवाला दिया जा रहा है वह क्या है ? क्या यूजीसी ने अपने सदस्यों की राय के आधार पर चारसाला पाठ्यक्रम को अवैध घोषित किया है ? यदि हां तो यही काम विगत एक साल में क्यों नहीं किया गया ?क्यों एक साल पहले कोर्स लागू करने दिया ? या जिस हेकड़ी के साथ सर्कुलर निकाला गया है उसके पीछे यूजीसी नहीं है बल्कि मानव संसाधन मंत्रालय और उसके पीछे संघ के बंदे काम कर रहे हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ की अध्यक्षा की मौजूदगी में कई टीवी चैनलों पर यूजीसी के सदस्य एमएम अंसारी ने बार-बार साफ शब्दों में कहा कि यूजीसी का ताजा सर्कुलर केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के आदेश पर निकाला गया है और उस आदेश का यूजीसी के सर्कुलर में जिक्र भी है, इस तथ्य का डीयू शिक्षक संघ ने खंडन नहीं किया है। क्योंकि यूजीसी का इसमें वे इस्तेमाल कर रहे हैं। कहने का आशय है कि यूजीसी के चारसाला कोर्स को अवैध घोषित करने वाला सर्कुलर यूजीसी की स्वाभाविक राय नहीं है बल्कि नई सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय की राय है। यह एक राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित राय है।

उल्लेखनीय है कि मानव संसाधन मंत्रालय भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में किए गए वायदे को लागू कर रहा है। यह सर्कुलर एक बड़े लक्ष्य की पूर्ति के लिए जारी किया गया है दुखद यह है कि माकपा और उनके सहयोगी इसके पीछे निहित मोदी सरकार के असल मंतव्य को नहीं देख रहे हैं और अपनी नाक की जीत को देख रहे हैं। होसकता है इससे उनको कुछ क्षण के लिए राजनीतिक विजय का सुख मिले लेकिन यह विजय तो आसन्न पराभव की आहटें लेकर आई है ,उन आहटों को वे सुन नहीं पा रहे हैं।

मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि माकपा में इस तरह के तत्व हैं जो अनुदार हैं,कंजरवेटिव हैं जो सहज ही इधर लाल दिखते हैं तो रातों-रात भगवा या हरे या नीले हो जाते हैं। प.बंगाल में तो इस समय लाल के भगवा या नीले या हरे होने का अंधड़ चला हुआ है। स्मृति ईरानी को इसका श्रेय जाता है कि उसने यूजीसी के एक सामान्य सर्कुलर के बहाने माकपा के नेतृत्ववाले शिक्षकसंघ और माकपाके नेताओं को अपने पीछे लामबंद कर लिया। माकपा-भाजपा का यह संयुक्त मोर्चा कितने दूर तक जाता है यह देखना दिलचस्प होगा। यह माकपा के राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा है।

उल्लेखनीय है पश्चिम बंगाल में शिक्षा में हुए तमाम किस्म के अ-लोकतांत्रिक कामों की दिल्ली विश्वविद्यालय के माकपा शिक्षकनेताओं ने कभी न तो निन्दा की और नहीं आलोचना की। मैं य़हां अशोक मित्र कमीशन की अप्रकाशित रिपोर्ट का संकेत में जिक्र करना चाहता हूँ। यह कमीशन पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु सरकार ने बनाया था जिसने निष्कर्ष के रुप में कहा कि वामशासन ने उच्चशिक्षा के समूचेतंत्र को बर्बाद करके रख दिया है। आश्चर्य की बात है कि वामशिक्षक संगठनों ने कभी अशोक मित्र कमीशन की रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं होने दिया.जबकि अशोकमित्र तो उनके ही मित्र थे।यह बात में इसलिए कह रहा हूँ कि माकपा में लंबे समय से एक वर्ग रहा है जो स्वभाव से कठमुल्ला,पढ़ने-लिखने से नफरत करने वाला, पढ़ने-लिखने वालों का उपहास करने वाला,एंटी इंटेलेक्चुअल। यही वर्ग संयोग से दिविवि में शिक्षकों में फिलहाल नेतृत्व कररहा है। यही वह वर्ग है जो कल तक कांग्रेस शासन के साथ माल-मिठाई उडा रहा था , अब ये ही लोग विभिन्न बहानों से मोदी सरकार में विभिन्न संस्थानों में सरकारी कृपापदों पर बैठे नजर आएंगे।

दिल्ली विश्वविद्यालय का चारसाला कोर्स का आंदोलन और उसके बहाने स्मृति ईरानी के कृपाकटाक्षों का गिरना तो शुरुआतभर है। आनेवाले समय में ये लोग और भी सघनभाव से देशभक्ति और शिक्षा सुधार की आड़ में मोदी,भाजपा और संघ के एजेण्डे के साथ नजर आएंगे।

मंत्री से गुहार लगाना उचित है लेकिन मंत्री का दुरुपयोग करके विश्वविद्यालय की मान-मर्यादाओं पर हमले करना गलत है। मंत्री की मदद लो, लेकिन अकादमिक दंगल यूजीसी में नहीं होगा। यह दिलचस्प खोज का विषय है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह,शिक्षामंत्री (सिब्बल और राजू),यूजीसी,संसद और राष्ट्रपति तक वामनेतृत्व वाला शिक्षक संघ गया और कहीं पर भी उनकी बात नहीं मानी गयी। लेकिन मोदी सरकार आते ही एक साल बाद हठात उनके इशारे पर भाजपा मंत्री काम करने लगी और कल तक जो चीज सभी संस्थान वैध कह रहे थे, यूजीसी वैध कह रही थी, वह अचानक अवैध कहने लगी। राजनीतिक मेनीपुलेशन और सरेंडर का इससे बड़ा उदाहरण मिलना असंभव है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के चारसाला कोर्स का मौजूदा विवाद मोदीयुग का शिक्षा में आरंभ है । यह मोदी सपने की अभिव्यंजना है। वे अब सीधे उच्चशिक्षा को ऊपर से तोड़ने जा रहे हैं,माहौल बनना आरंभ हो गया है। लामबंदी शुरु हो गयी है। कंजरवेटिव एकजुट होने लगे हैं। भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में साफ कहा गया है वे विश्वविद्यालय आयोग को खत्म करेंगे। मनमोहन सरकार में भी इस तरह की कोशिशें हुई थीं लेकिन वे दबा दी गयीं।

मोदी सरकार का असल लक्ष्य है मनमोहन सरकार के अधूरे कामों को पूरा करना। मनमोहन सरकार ने चारसाला कोर्स की अनुमति देकर जो काम आरंभ किया था वह अधूरा पड़ा है। इस कोर्स का लक्ष्य वह नहीं है जो विश्वविद्यालय दावा कर रहा है।इस कोर्स का लक्ष्य है विदेश की सप्लाई लाइन को तेज करना। निजी विदेशी विश्वविद्यालयों के आने का मार्ग प्रशस्त करना। मोदी सरकार भी यही काम मुस्तैदी से करना चाहती है लेकिन शैली भिन्न रहेगी। मोदी शैली होगी उच्चशिक्षा के मौजूदा ढाँचे को ऊपर से तोड़ा जाय। चारसाला कोर्स नव्य-उदार लक्ष्यों की संगति में बनाया गया था, वे इसे अंशतः रखना चाहते हैं यह बात शिक्षक संघ भी कह रहा है। असल में हमें मोदी शिक्षा स्वप्न के नव्य उदार लक्ष्यों से मुठभेड़ के लिए तैयार रहना चाहिए।यह शुरुआत है।













1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - पुण्यतिथि आदरणीय श्री पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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