बुरहान वानी की हत्या के बाद इंटरनेट से लेकर न्यूज टीवी चैनलों तक,फेसबुक से लेकर ट्विटर तक आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों और उनके सदस्यों ने कश्मीर के बारे में जिस तरह का प्रचार किया है वह हम सबके लिए चिन्ता की बात है।कश्मीरी जनता को सीधे इस प्रचार अभियान के जरिए निशाना बनाया गया। जबकि सच यह है कश्मीर की जनता आतंकियों के साथ नहीं है।जो लोग बुरहान वानी के अंतिम कृत्य में आई बेशुमार भीड़ को देखकर कह रहे हैं कि वहां की जनता आतंकी है,वे गलत कह रहे हैं।बुरहान वानी की मुर्दनी में लोग दुख के कारण शामिल हुए थे,वे आतंकियों के समर्थन में शामिल नहीं हुए।आज भी कश्मीर में चुनाव होगा तो आतंकी जीत नहीं सकते।
समस्या यह है आतंकियों के हथकंडों को राज्य और केन्द्र सरकार सही ढ़ंग से समझने में असमर्थ रही है।उसने आतंकियों-पृथकतावादियों के प्रति आरंभ से ही नरम रूख अपनाया।पचास दिन कर्फ्यू लगने के बाद पृथकतावादी नेताओं की गिरफ्तारियां आरंभ हुईं ,जबकि यह काम बुरहान वानी की हत्या के पहले ही करना चाहिए था।
सवाल यह है वे कौन लोग हैं जिन्होंने पृथकतावादी नेताओं की गिरफ्तारियां नहीं होने दीं ॽ केन्द्र या राज्य में कौन से नेता और अधिकारी हैं जो यह रेखांकित करने में असमर्थ रहे कि कौन-कौन से नेता वहां पर उपद्रव मचा सकते हैं।फिर यह कैसे हो गया कि अचानक 48दिन बाद राज्य सरकार ने 1000लोगों की सूची बना ली,जिसमें 168 खास बड़े नेता हैं जो जनता को भड़काने में लगे हैं,इन नेताओं को पकड़ने के आदेश 50दिन बाद क्यों आए ॽ
बुरहान वानी की हत्या के तत्काल बाद पृथकतावादी नेताओं को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया ॽ क्या मोदीजी-राजनाथ सिंह नहीं जानते थे कि बुरहान वानी की हत्या के बाद स्थिति तनावपूर्ण होगी ! मोदीजी अच्छी तरह जानते थे लेकिन उन्होंने गिरफ्तारी के आदेश नहीं दिए।सब जानते हैं कि केन्द्र में सब कुछ पीएमओ से संचालित हो रहा है,ऐसे में पीएमओ का 50दिन तक सोए रहना,कश्मीर के हालात को लगातार बिगड़ने देना,मोदीजी का चुप रहना,फिर 50दिन बाद मन की बात में बोलना,एक सुनियोजित स्क्रिप्ट के तहत खेला गया नाटक है।
सवाल यह है 50दिन बाद जो बात मोदीजी ने ´मन की बात´में कश्मीर के बारे में कही वही बात उन्होंने बुरहान वानी की हत्या के तत्काल बाद क्यों नहीं कही ॽमोदीजी की 50दिन तक चुप्पी,पृथकतावादी नेताओं की गिरफ्तारी का न होना और निरंतर झगड़े,फायरिंग,पत्थरबाजी आदि का जारी रहना अपने आपमें केन्द्र सरकार को संदेह के दायरे में लाकर खड़ा कर देता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यदि पहले ही दिन बयान दिया होता और सभी नेताओं को पकडकर जेलों में डाल दिया होता तो कश्मीर में जितने बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है उससे बचा जा सकता था।लेकिन मोदीजी मूकदर्शक बने,सारी चीजों को सेना के विवेक पर छोड़ दिया।इससे स्थिति बिगड़ी।
आज स्थिति यह है कि कश्मीर घाटी में पृथकतावादियों के साथ आम जनता की सहानुभूति है और इसे पैदा किया है मोदी सरकार की निष्क्रियता ने।यह निष्क्रियता बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत पैदा की गयी है.इसका लक्ष्य है हुर्रियत की मदद करना और नेशनल कॉफ्रेस को जनता से काटना। नेशनल कॉफ्रेस की तुलना में पृथकतावादियों की अप्रत्यक्ष ढ़ंग से मदद करके मोदीजी ने वही काम किया जो पाकिस्तान में बैठे आतंकी कर रहे हैं या पाक शासक कर रहे हैं।अंतर ऊपर के नारों में हैं।लेकिन आचरण में पाक के शासक और मोदी सरकार पृथकतावादियों के साथ है।
बुरहान वानी की हत्या के बाद विगत 52 दिनों में सबसे ज्यादा नुकसान उदार राजनीति,देशभक्त राजनीति और उदार कश्मीरी समाज का हुआ है।समूचे कश्मीरी समाज को अरबों की क्षति उठानी पड़ी है।अकेले कश्मीरी उद्योग जगत को 9000 करोड़ रूपये की अब तक क्षति उठानी पड़ी है।कश्मीर के उद्योग को पामाल करके अंततःकश्मीरी मद्यवर्ग को कमजोर बनाया गया है,आम जनता की आर्थिक कमर तोडी गयी है।हम सब जानते हैं कि कश्मीर की अधिकांश जनता मुसलमान है और जो नौ हजार करोड़ की क्षति हुई है वह मुसलमानों की हुई है,आम कश्मीरी की हुई है।इससे कश्मीर कमजोर हुआ है,कश्मीर का मुसलमान कमजोर हुआ है।
मोदी सरकार की कश्मीर मसले को लेकर जो नीति रही है उसका लक्ष्य है कश्मीर को कमजोर करो,वहां की जनता की आर्थिक कमर तोड़ो।यह एक तरह का जनविरोधी नजरिया है।उल्लेखनीय है 2002 के गुजरात दंगों का लक्ष्य जनहानि के अलावा मुसलमानों की आर्थिक हानि ही था।ठीक यही मॉडल कश्मीर में लागू किया गया है।
बुरहान वानी की हत्या के बाद सबसे ज्यादा लाभ पृथकतावादियों को हुआ है,जैसे 2002 के दंगे के बाद आरएसएस को लाभ हुआ था,गुजरात की तरह ही कश्मीर का राज्य प्रशासन वानी की हत्या के बाद वैसे ही कमजोर हुआ है जैसे गुजरात में 2002 के बाद कमजोर हुआ था।गुजरात में 2002 के दंगों के बाद आरएसएस ताकतवर बना, वानी की हत्या के बाद कश्मीर में पृथकतावादी संगठन हुर्रियत ताकतवर बना है।इससे कश्मीर में लोकतंत्र कमजोर हुआ है,जनता कमजोर हुई है।
समस्या यह है आतंकियों के हथकंडों को राज्य और केन्द्र सरकार सही ढ़ंग से समझने में असमर्थ रही है।उसने आतंकियों-पृथकतावादियों के प्रति आरंभ से ही नरम रूख अपनाया।पचास दिन कर्फ्यू लगने के बाद पृथकतावादी नेताओं की गिरफ्तारियां आरंभ हुईं ,जबकि यह काम बुरहान वानी की हत्या के पहले ही करना चाहिए था।
सवाल यह है वे कौन लोग हैं जिन्होंने पृथकतावादी नेताओं की गिरफ्तारियां नहीं होने दीं ॽ केन्द्र या राज्य में कौन से नेता और अधिकारी हैं जो यह रेखांकित करने में असमर्थ रहे कि कौन-कौन से नेता वहां पर उपद्रव मचा सकते हैं।फिर यह कैसे हो गया कि अचानक 48दिन बाद राज्य सरकार ने 1000लोगों की सूची बना ली,जिसमें 168 खास बड़े नेता हैं जो जनता को भड़काने में लगे हैं,इन नेताओं को पकड़ने के आदेश 50दिन बाद क्यों आए ॽ
बुरहान वानी की हत्या के तत्काल बाद पृथकतावादी नेताओं को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया ॽ क्या मोदीजी-राजनाथ सिंह नहीं जानते थे कि बुरहान वानी की हत्या के बाद स्थिति तनावपूर्ण होगी ! मोदीजी अच्छी तरह जानते थे लेकिन उन्होंने गिरफ्तारी के आदेश नहीं दिए।सब जानते हैं कि केन्द्र में सब कुछ पीएमओ से संचालित हो रहा है,ऐसे में पीएमओ का 50दिन तक सोए रहना,कश्मीर के हालात को लगातार बिगड़ने देना,मोदीजी का चुप रहना,फिर 50दिन बाद मन की बात में बोलना,एक सुनियोजित स्क्रिप्ट के तहत खेला गया नाटक है।
सवाल यह है 50दिन बाद जो बात मोदीजी ने ´मन की बात´में कश्मीर के बारे में कही वही बात उन्होंने बुरहान वानी की हत्या के तत्काल बाद क्यों नहीं कही ॽमोदीजी की 50दिन तक चुप्पी,पृथकतावादी नेताओं की गिरफ्तारी का न होना और निरंतर झगड़े,फायरिंग,पत्थरबाजी आदि का जारी रहना अपने आपमें केन्द्र सरकार को संदेह के दायरे में लाकर खड़ा कर देता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यदि पहले ही दिन बयान दिया होता और सभी नेताओं को पकडकर जेलों में डाल दिया होता तो कश्मीर में जितने बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है उससे बचा जा सकता था।लेकिन मोदीजी मूकदर्शक बने,सारी चीजों को सेना के विवेक पर छोड़ दिया।इससे स्थिति बिगड़ी।
आज स्थिति यह है कि कश्मीर घाटी में पृथकतावादियों के साथ आम जनता की सहानुभूति है और इसे पैदा किया है मोदी सरकार की निष्क्रियता ने।यह निष्क्रियता बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत पैदा की गयी है.इसका लक्ष्य है हुर्रियत की मदद करना और नेशनल कॉफ्रेस को जनता से काटना। नेशनल कॉफ्रेस की तुलना में पृथकतावादियों की अप्रत्यक्ष ढ़ंग से मदद करके मोदीजी ने वही काम किया जो पाकिस्तान में बैठे आतंकी कर रहे हैं या पाक शासक कर रहे हैं।अंतर ऊपर के नारों में हैं।लेकिन आचरण में पाक के शासक और मोदी सरकार पृथकतावादियों के साथ है।
बुरहान वानी की हत्या के बाद विगत 52 दिनों में सबसे ज्यादा नुकसान उदार राजनीति,देशभक्त राजनीति और उदार कश्मीरी समाज का हुआ है।समूचे कश्मीरी समाज को अरबों की क्षति उठानी पड़ी है।अकेले कश्मीरी उद्योग जगत को 9000 करोड़ रूपये की अब तक क्षति उठानी पड़ी है।कश्मीर के उद्योग को पामाल करके अंततःकश्मीरी मद्यवर्ग को कमजोर बनाया गया है,आम जनता की आर्थिक कमर तोडी गयी है।हम सब जानते हैं कि कश्मीर की अधिकांश जनता मुसलमान है और जो नौ हजार करोड़ की क्षति हुई है वह मुसलमानों की हुई है,आम कश्मीरी की हुई है।इससे कश्मीर कमजोर हुआ है,कश्मीर का मुसलमान कमजोर हुआ है।
मोदी सरकार की कश्मीर मसले को लेकर जो नीति रही है उसका लक्ष्य है कश्मीर को कमजोर करो,वहां की जनता की आर्थिक कमर तोड़ो।यह एक तरह का जनविरोधी नजरिया है।उल्लेखनीय है 2002 के गुजरात दंगों का लक्ष्य जनहानि के अलावा मुसलमानों की आर्थिक हानि ही था।ठीक यही मॉडल कश्मीर में लागू किया गया है।
बुरहान वानी की हत्या के बाद सबसे ज्यादा लाभ पृथकतावादियों को हुआ है,जैसे 2002 के दंगे के बाद आरएसएस को लाभ हुआ था,गुजरात की तरह ही कश्मीर का राज्य प्रशासन वानी की हत्या के बाद वैसे ही कमजोर हुआ है जैसे गुजरात में 2002 के बाद कमजोर हुआ था।गुजरात में 2002 के दंगों के बाद आरएसएस ताकतवर बना, वानी की हत्या के बाद कश्मीर में पृथकतावादी संगठन हुर्रियत ताकतवर बना है।इससे कश्मीर में लोकतंत्र कमजोर हुआ है,जनता कमजोर हुई है।