मोदीजी को पीएम बने दो साल से ऊपर हो गया लेकिन सुरक्षाबलों और जासूसों ने कभी खबर नहीं दी कि उनकी जान को खतरा है,इसलिए वे बहुत बोर महसूस कर रहे हैं ! जान को खतरे की सूचना आती रहती है तो खबरों के जरिए थ्रेट परसेप्शन बनाए रखने में मदद मिलती है। लेकिन इधर हाल यह है कि कोई इस तरह की खबर नहीं बन रही थी तो हैदराबाद में अपने आप ही बोल बैठे कि दलित को नहीं मुझे गोली मारो।अब बताओ थ्रेट परसेप्शन बना या नहीं !
मोदी जी परसेप्शन में रहते हैंं,ये कमबख्त टीवी वाले कई दिनों से गऊ गऊ करके जो कवरेज दिखा रहे थे उसने परसेप्शन बिगाड़ दिया जिसका सुपरिणाम था गोगुंडों के बारे में दिया गया बयान।
साहब की टीवी देखने की आदत है,टीवी में वे अपने को देखना बहुत पसंद करते हैं,लेकिन टीवी वाले उनको न दिखाकर गोगुंडों को दिखा रहे हैं,अतःटीवी से गोगुंडों को भगाने के लिए उनके खिलाफ बयान देना पड़ा।सारा मैनेजमेंट चूंकि प्रचार कंपनियां करती हैं तो उन्होंने भी बताया कि न्यूज फ्लो गऊ और दलित का है तो उसी संदर्भ में कुछ भी बोलिए टीवी पर छा जाएंगे।इसलिए टीवी पर छाने की रणनीति के कारण गोगुंडों और दलितों के बारे में बयान देने पड़े।
वरना आप सोचिए मोदीजी पीएम हैं, वे विपक्ष में नहीं हैं जो बयान देकर कहें कि वे क्या चाहते हैं,वे चाहें तो सीधे एक्शन ले ही सकते हैं,कोई सर्कुलर भेजकर राज्यों को आदेश दे ही सकते हैं,लेकिन वे कोई एक्शन नहीं लेते,वे सिर्फ दलितों और गोगुंडों पर बयान देते हैं,इससे पता चलता है मामला परसेप्शन का है प्रचार का है,एक्शन का नहीं है,वरना पीएम को बोलने के लिए नहीं एक्शन के लिए कुर्सी मिली है लेकिन मोदीजी यह सामान्य सी बात समझने को तैयार नहीं हैं।
मोदीजी पहले दलितों से रोज मिलो,फिर मांग पत्र लो,फिर गाली खाओ,फिर देखते हैं सपने में रामजी आते हैं या दलित !दलित की तो आपके लिए बददुआएं और ब्राह्मणों की गालियां ही काफी हैं।
चलो फंदा कटा अब दलित नहीं मारे जाएंगे,गऊओं के नाम पर नहीं सताया जाएगा।जिसे सताने का मन होगा पीएम के घर की ओर जाएगा,खुशी खुशी उनको सताएगा और मजे में घर लौटेगा।पीएम स्वयं सब दलित उत्पीड़न अपने ऊपर लेने को तैयार हैं.सच में सतयुग आ गया। इसी क्षण का इंतजार था,आज से गाय भी मस्त रहेंगी,हाशिए के लोग भी मस्त रहेंगे।इसे कहते हैं मस्त मोदी की मस्त बातें।मस्ती में राजनीति इसी को कहते हैं,मोदीजी किसी पीडित के घर नहीं गए,किसी उत्पीड़क को दण्डित नहीं किया और सब कुछ मस्ती में बदल दिया,बाकी मस्ती की घूंट चैनल वाले और जनसंपर्क कंपनियां आपके घर तक पहुँचादेंगी।आनंद लो,चिन्ता मत करो।दलित उत्पीड़न खत्म,गऊ उत्पीड़न खत्म।मैं सिर्फ यही सोच रहा हूं जो बात हैदराबाद में मोदीजी ने आज बोली वही बात रोहित वेमुला की माँ के घर जाकर ,रोहित की मौत के बाद क्यों नहीं बोले । असल में पीएम का ग़ुस्सा कितना आरामदायक होता है कि वह विज्ञापन के जिंगल की तरह लगता है! पीएम को गोगुण्डों पर ग़ुस्सा आया है तो कम से कम भाजपा के उन नेताओं को भाजपा से निकाल बाहर क्यों नहीं करते जो गोगुण्डों की टीवी पर हिमायत करते रहे हैं।
चलिए देखते हैं राजस्थान, मध्यप्रदेश गुजरात और महाराष्ट्र में कितने गोगुण्डों को राज्य सरकार गिरफ़्तार करती है।
काला धन वापस आएगा और हर नागरिक के बैंक खाते में 15लाख जमा होंगे,यह बात सुनने के बाद लोग उत्तेजित हो गए और मोदीजी को वोट भी दे आए।ये बुद्धिहीन लोग नहीं थे,बल्कि लोभ में पड़कर बुद्धि का उपयोग नहीं करना चाहते। अच्छे दिन आएंगे लेकिन नहीं वह दिन नहीं आए,इसका प्रधान कारण है हमारे मन का हमेशा लोभ के नशे में डूबे रहना,नशे के कारण सहज रूप में सोच ही नहीं पाते।अभी भी बहुत बड़ी संख्या है जो नशे में डूबी हुई है
कश्मीर में कर्फ़्यू लगे तीस दिन हो गए। ५४ लोग मारे जा चुके हैं। छह हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं। लेकिन पीएम के पास एक बयान देने का समय नहीं है। जनता में गए वहाँ पर कल और आज उनको कश्मीर की याद नहीं आई । सवाल यह है कि पीएम मोदी जनता की तकलीफ़ के समय सक्रिय क्यों नहीं होते? बयान क्यों नहीं देते ? जनता से तकलीफ़ में कन्नी काटना तानाशाह भाव है। कश्मीर और कोकराझार पर पीएम नरेन्द्र मोदी चुप्पी अर्थपूर्ण है! नरेन्द्र मोदी वहाँ चुप रहते हैं जहाँ असफल रहते हैं!
मोदी जी परसेप्शन में रहते हैंं,ये कमबख्त टीवी वाले कई दिनों से गऊ गऊ करके जो कवरेज दिखा रहे थे उसने परसेप्शन बिगाड़ दिया जिसका सुपरिणाम था गोगुंडों के बारे में दिया गया बयान।
साहब की टीवी देखने की आदत है,टीवी में वे अपने को देखना बहुत पसंद करते हैं,लेकिन टीवी वाले उनको न दिखाकर गोगुंडों को दिखा रहे हैं,अतःटीवी से गोगुंडों को भगाने के लिए उनके खिलाफ बयान देना पड़ा।सारा मैनेजमेंट चूंकि प्रचार कंपनियां करती हैं तो उन्होंने भी बताया कि न्यूज फ्लो गऊ और दलित का है तो उसी संदर्भ में कुछ भी बोलिए टीवी पर छा जाएंगे।इसलिए टीवी पर छाने की रणनीति के कारण गोगुंडों और दलितों के बारे में बयान देने पड़े।
वरना आप सोचिए मोदीजी पीएम हैं, वे विपक्ष में नहीं हैं जो बयान देकर कहें कि वे क्या चाहते हैं,वे चाहें तो सीधे एक्शन ले ही सकते हैं,कोई सर्कुलर भेजकर राज्यों को आदेश दे ही सकते हैं,लेकिन वे कोई एक्शन नहीं लेते,वे सिर्फ दलितों और गोगुंडों पर बयान देते हैं,इससे पता चलता है मामला परसेप्शन का है प्रचार का है,एक्शन का नहीं है,वरना पीएम को बोलने के लिए नहीं एक्शन के लिए कुर्सी मिली है लेकिन मोदीजी यह सामान्य सी बात समझने को तैयार नहीं हैं।
मोदीजी पहले दलितों से रोज मिलो,फिर मांग पत्र लो,फिर गाली खाओ,फिर देखते हैं सपने में रामजी आते हैं या दलित !दलित की तो आपके लिए बददुआएं और ब्राह्मणों की गालियां ही काफी हैं।
चलो फंदा कटा अब दलित नहीं मारे जाएंगे,गऊओं के नाम पर नहीं सताया जाएगा।जिसे सताने का मन होगा पीएम के घर की ओर जाएगा,खुशी खुशी उनको सताएगा और मजे में घर लौटेगा।पीएम स्वयं सब दलित उत्पीड़न अपने ऊपर लेने को तैयार हैं.सच में सतयुग आ गया। इसी क्षण का इंतजार था,आज से गाय भी मस्त रहेंगी,हाशिए के लोग भी मस्त रहेंगे।इसे कहते हैं मस्त मोदी की मस्त बातें।मस्ती में राजनीति इसी को कहते हैं,मोदीजी किसी पीडित के घर नहीं गए,किसी उत्पीड़क को दण्डित नहीं किया और सब कुछ मस्ती में बदल दिया,बाकी मस्ती की घूंट चैनल वाले और जनसंपर्क कंपनियां आपके घर तक पहुँचादेंगी।आनंद लो,चिन्ता मत करो।दलित उत्पीड़न खत्म,गऊ उत्पीड़न खत्म।मैं सिर्फ यही सोच रहा हूं जो बात हैदराबाद में मोदीजी ने आज बोली वही बात रोहित वेमुला की माँ के घर जाकर ,रोहित की मौत के बाद क्यों नहीं बोले । असल में पीएम का ग़ुस्सा कितना आरामदायक होता है कि वह विज्ञापन के जिंगल की तरह लगता है! पीएम को गोगुण्डों पर ग़ुस्सा आया है तो कम से कम भाजपा के उन नेताओं को भाजपा से निकाल बाहर क्यों नहीं करते जो गोगुण्डों की टीवी पर हिमायत करते रहे हैं।
चलिए देखते हैं राजस्थान, मध्यप्रदेश गुजरात और महाराष्ट्र में कितने गोगुण्डों को राज्य सरकार गिरफ़्तार करती है।
काला धन वापस आएगा और हर नागरिक के बैंक खाते में 15लाख जमा होंगे,यह बात सुनने के बाद लोग उत्तेजित हो गए और मोदीजी को वोट भी दे आए।ये बुद्धिहीन लोग नहीं थे,बल्कि लोभ में पड़कर बुद्धि का उपयोग नहीं करना चाहते। अच्छे दिन आएंगे लेकिन नहीं वह दिन नहीं आए,इसका प्रधान कारण है हमारे मन का हमेशा लोभ के नशे में डूबे रहना,नशे के कारण सहज रूप में सोच ही नहीं पाते।अभी भी बहुत बड़ी संख्या है जो नशे में डूबी हुई है
कश्मीर में कर्फ़्यू लगे तीस दिन हो गए। ५४ लोग मारे जा चुके हैं। छह हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं। लेकिन पीएम के पास एक बयान देने का समय नहीं है। जनता में गए वहाँ पर कल और आज उनको कश्मीर की याद नहीं आई । सवाल यह है कि पीएम मोदी जनता की तकलीफ़ के समय सक्रिय क्यों नहीं होते? बयान क्यों नहीं देते ? जनता से तकलीफ़ में कन्नी काटना तानाशाह भाव है। कश्मीर और कोकराझार पर पीएम नरेन्द्र मोदी चुप्पी अर्थपूर्ण है! नरेन्द्र मोदी वहाँ चुप रहते हैं जहाँ असफल रहते हैं!
Who made u a professor....?
जवाब देंहटाएंU don't deserve