कार्ल मार्क्स का नाम और विचार भारत के लिए नया नहीं है।भारत में लंबे समय से मार्क्सवाद जनप्रिय रहा है।लेकिन विगत नव्य-आर्थिक उदारीकरण और समाजवादी सरकारों के पराभव के बाद के विगत 25-26 सालों में इसकी लोकप्रियता कम हुई है।लेकिन अभी भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण समूह है जो मार्क्सवाद को मानता और जानता है।लेकिन नए जनमाध्यमों के रूप में सोशलमीडिया में जो युवावर्ग या अन्य समुदाय के लोग सक्रिय हैं उनमें बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो मार्क्सवाद को नहीं जानते लेकिन उनके पास मार्क्सवाद विरोधी प्रचार निरंतर पहुँच रहा है।हम विनम्रता के साथ कहना चाहते हैं मार्क्सवाद विरोधी प्रचार वस्तुतः मानवता विरोधी है,मानवाधिकार विरोधी प्रचार है।
मार्क्सवाद का लक्ष्य है मानवता और मानवाधिकारों की रक्षा करना उनका प्रचार-प्रसार करना।हमारे बीच में ऐसे भी संशयवादी लोग हैं जो मानवता की बातें सुनते ही आग बबूला हो जाते हैं और नमूने के तौर पर कम्युनिस्ट पार्टी शासित सरकारों के मानवताविरोधी कामों का हवाला देकर मार्क्सवाद को खारिज करते रहते हैं,मार्क्सवाद के प्रति घृणा फैलाते रहते हैं।हम साफ कहना चाहते हैं कि कम्युनिस्ट शासित सरकारों का मार्क्स के विज़न के साथ कोई संबंध नहीं है।
मार्क्सवाद पर जब बातें हों तो कार्ल मार्क्स और एंगेल्स के लेखन को केन्द्र में रखकर बातें होनी चाहिए। हमें अखबारी कतरनों,कम्युनिस्ट नेताओं,पूर्व समाजवादी सरकारों आदि के कारनामों की कसौटी पर मार्क्सवाद को परखने से बचना चाहिए। कार्ल मार्क्स पर जब बातें हों तो हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि ´मार्क्सिज्म´पदबंध से स्वयं मार्क्स अपरिचित थे।संक्षेप में वाकया यह है कि जब मार्क्स के दामाद पॉल लाफ़ार्ज ने मार्क्स को यह कहा कि आपने जो लिखा है उससे सिद्धांत के तौर पर ´मार्क्सिज्म´ निकलता है।मार्क्स ने तत्काल कहा कि मेरे लेखन से यदि मार्क्सिज्म जैसी सैद्धांतिक व्यवस्था निकलती है तो मैं इसे नहीं मानता।कार्ल मार्क्स जिस समय यह सब लिख रहे थे तब तक उनके विश्व दृष्टिकोण का सुंगत ढ़ंग से विकास नहीं हो पाया था।लेकिन लाफार्ज पहले विद्वान थे जिन्होने ´मार्क्सिज्म´पदबंध का प्रयोग किया गया।इसके बाद जी.प्लेखानोव ने पहलीबार द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या के क्रम में ´मार्क्सवाद समग्र विश्वदृष्टि´ पदबंध का इस्तेमाल किया।मार्क्स के नजरिए का मूल संबंध सर्वहारा के नजरिए से राजनीतिक अर्थशास्त्र की मीमांसा से जुड़ा हुआ है।इसके अलावा इतिहास की भौतिकवादी अवधारणा के विकास को उन्होंने प्राथमिकता के साथ विश्लेषित किया।इस क्रम में सम-सामयिक और पुरानी भाववादी विचारधाराओं की आलोचना विकसित की।मार्क्स ने राजनीतिक अर्थशास्त्र की आलोचना के लिए इतिहास की भौतिकवादी अवधारणा का बुनियादी तौर पर इस्तेमाल किया।
हम इस पखवाड़े भर चलने वाले आयोजन में समाज, इतिहास, राजनीति,संस्कृति,कला,न्याय,दर्शन आदि के क्षेत्र में जो अवैज्ञानिक विचारधाराएं प्रचलन में हैं उनकी हम क्रमशः पड़ताल करेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें