दिल्ली में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और पीडीपी-भाजपा सरकार के जम्मू-कश्मीर में सत्तारूढ़ होने के बाद कश्मीर के परिदृश्य में बुनियादी बदलाव आया है।मोदी के सत्तारूढ़ होने के पहले तक केन्द्र और राज्य सरकार का कश्मीर के आतंकवाद-पृथकतावाद को लेकर यह नजरिया था कि पृथकतावादी मांग करने वालों में कुछ कश्मीरी हैं लेकिन आतंकी तो पाक के भेजे लोग ही हैं।लेकिन बुरहान वानी की हत्या के बाद जुलाई से मीडिया में इस तरह की इमेज बनायी गयी कि कश्मीर की जनता में ही आतंकी तत्व छिपे हैं,पहले कश्मीर की जनता और आतंकी के बीच,आतंकी और पृथकतावादी के बीच में केन्द्र अंतर करके चलता था,स्वयं अटलजी की सरकार ने यह अंतर किया था,लेकिन इसबार बुरहान वानी की सैन्यबलों के हाथों हत्या होने के बाद समूचा परिदृश्य बदल चुका है।अब मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती तक कह रही हैं कि पांच प्रतिशत लोग हैं जो अमन-चैन नहीं चाहते।सवाल यह है इस तरह का बयान देकर अप्रत्यक्ष तौर पर केन्द्र और राज्य सरकार ने यह मान लिया है कि ´पत्थरबाज आतंकी´ हैं और ´उनके साथ की जनता है आतंकी´ है,बतर्ज महबूबा कुल मिलाकर ये लोग कश्मीर की जनसंख्या के पांच फीसदी हैं।इस तरह की धारणाओं के प्रचार ने कश्मीर में जल रही आग में घी का काम किया है।अब यदि कश्मीर में पांच फीसदी जनता अशांति में शामिल है तो पहले तो यह बयान ही गलत है,जनविरोधी है।यह कश्मीर की जनता का अपमान करने वाला बयान है।इस तरह के बयान सामान्य स्थिति को बहाल करने में सबसे बड़ी बाधा हैं।
कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल करने में दूसरी सबसे बड़ी बाधा है राज्य प्रशासन के द्वारा उपद्वियों को जनहित में गिरफ्तार न करना। मसलन् राज्य सरकार ने 1000लोगों की सूची बनायी है,जिसमें सबसे खतरनाक 169 लोग हैं, इन लोगों को अशांति पैदा करने वाला,जनता को भड़काने वाले के तौर पर रेखांकित किया गया है। सवाल यह है इस तरह के लोगों की पहले से ही गिरफ्तारी क्यों नहीं की गयी ॽविगत 50दिनों में इनमें किसी भी नेता को क्यों नहीं पकड़ा गया ॽ इन लोगों की गिरफ्तारी न हो पाने का प्रधान कारण है उपद्रवियों के प्रति मोदी सरकार का नरम रूख।
केन्द्र सरकार और उसकी एजेंसियां जानती हैं कश्मीर में कौन लोग हैं जो जनता को भड़का रहे हैं ,उनको यदि समय रहते गिरफ्तार कर लिया गया होता तो परिस्थितियां इतनी खराब न होतीं।केन्द्र सरकार के द्वारा सबसे बड़ी चूक हुई है बुरहान वानी को लेकर।बुरहान वानी के बारे में यह सच है कि वह आतंकी संगठन का सदस्य था लेकिन उसने कोई हिंसक वारदात में हिस्सा नहीं लिया था।वह स्थानीय पुलिस का एजेंट भी था,वह सोशलमीडिया के जरिए प्रचार करता था।उसकी गतिविधि में कहीं पर कोई हिंसा का तत्व पुलिस-सेना किसी को भी नहीं मिला,अचानक उसको मार देने का फैसला करके शांत कश्मीर को नियोजित ढ़ंग से अशान्त किया गया।यह फैसला किसी पुलिस अफसर या सेना के अधिकारी नहीं हो सकता। अब सारी बातें बुरहान पर आकर रूक गयी हैं।
कल बुरहान वानी के पिता से आरएसएस के समर्थक संत श्रीश्री रविशंकर मिले हैं,यह अपने आपमें विलक्षण घटना है।उल्लेखनीय है श्रीश्री रविशंकर का मोदी की पिछबाड़े की कूटनीति में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।श्रीश्री से बुरहान के पिता का मिलना और उसी दिन महबूबा मुफ्ती का पीएम नरेन्द्र मोदी से मिलना, बताता है कि केन्द्र सरकार अन्दर से मान चुकी है बुरहान वानी की हत्या करना भूल थी,मुश्किल यह है कि इससे बाहर कैसे निकला जाय,आतंकी-पृथकतावादी बुरहान वानी को शहीद मान रहे हैं,स्वयं महबूबा मुफ्ती उसकी हत्या पर अफसोस का इजहार कर चुकी हैं,लेकिन राजनाथ सिंह ने अफसोस जाहिर नहीं किया है।
इसके विपरीत समूची मोदी सरकार,उनका समर्थक भोंपू मीडिया और आरएसएस के लोग इंटरनेट पर बुरहान वानी को आतंकी करार दे चुके हैं,बार-बार उसकी हत्या को जायज ठहरा चुके हैं,अब अचानक बुरहान वानी के पिता से मुलाकात के जरिए कश्मीरी जनता के आक्रोश को शांत करने की कोशिश की जा रही है।जिस तरह घटनाएं घट रही हैं उसमें लग यही रहा है कि हुर्रियत के नेतागण बुरहान वानी की हत्या के लिए केन्द्र सरकार को घेरना बंद नहीं करेंगे,वे चाहते हैं केन्द्र सरकार बुरहान वानी की हत्या के मामले में अपनी गलती माने,केन्द्र मन भी बना चुका है लेकिन कैसे कहे ,समस्या यहां आकर अटक गयी है।
सवाल यह है कल तक मोदी सरकार बुरहान वानी के परिवार को आतंकी मानकर चल रहे थे,अब अचानक बुरहान के पिता से श्रीश्री रविशंकर मिले हैं,उन्होंने अपनी मीटिंग के बाद बुरहान के पिता के साथ फोटो ट्विट भी किया है।यह सीधे घोषणा है बुरहान का परिवार आतंकी नहीं है,बुरहान आतंकी नहीं था,यह कूटनीति की नई भाषा है जिसे संघ परिवार संतों के इमेज संसार के जरिए रच रहा है।
श्रीश्री रविशंकर और बुरहान के पिता का फोटो स्वयं श्रीश्री द्वारा ट्विटर पर जारी करना महत्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है बुरहान को सोशलमीडिया के पोस्ट के जरिए ही आतंकी की परिभाषा में डाला गया,अब सोशलमीडिया के फोटो इमेजों और संदेशों के जरिए ही बुरहान की हत्या के पाप से मोदी –महबूबा सरकार मुक्त होना चाहते हैं।सवाल यह है कर्फ्यू ग्रस्त कश्मीर में से बुरहान के पिता श्रीश्री रविशंकर से मिलने बंगलौर कैसे पहुँचे ॽकिसने उनके आने-जाने की व्यवस्था की ॽकौन हैं वे लोग जो राजनाथ सिंह या मोदी से मुलाकात न कराकर सीधे श्रीश्री के पास बुरहान के पिता को ले गए ॽक्या बुरहान के पिता की श्रीश्री के साथ बैठक राजनाथ सिंह की कश्मीर यात्रा के दौरान तय हुई ॽ हाल ही में राजनाथ सिंह श्रीनगर में किनसे मिले ॽ उनके नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए ॽये कुछ सवाल है जो लगातार कश्मीर की समस्या को और भी जटिल बना रहे हैं।
कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल करने में दूसरी सबसे बड़ी बाधा है राज्य प्रशासन के द्वारा उपद्वियों को जनहित में गिरफ्तार न करना। मसलन् राज्य सरकार ने 1000लोगों की सूची बनायी है,जिसमें सबसे खतरनाक 169 लोग हैं, इन लोगों को अशांति पैदा करने वाला,जनता को भड़काने वाले के तौर पर रेखांकित किया गया है। सवाल यह है इस तरह के लोगों की पहले से ही गिरफ्तारी क्यों नहीं की गयी ॽविगत 50दिनों में इनमें किसी भी नेता को क्यों नहीं पकड़ा गया ॽ इन लोगों की गिरफ्तारी न हो पाने का प्रधान कारण है उपद्रवियों के प्रति मोदी सरकार का नरम रूख।
केन्द्र सरकार और उसकी एजेंसियां जानती हैं कश्मीर में कौन लोग हैं जो जनता को भड़का रहे हैं ,उनको यदि समय रहते गिरफ्तार कर लिया गया होता तो परिस्थितियां इतनी खराब न होतीं।केन्द्र सरकार के द्वारा सबसे बड़ी चूक हुई है बुरहान वानी को लेकर।बुरहान वानी के बारे में यह सच है कि वह आतंकी संगठन का सदस्य था लेकिन उसने कोई हिंसक वारदात में हिस्सा नहीं लिया था।वह स्थानीय पुलिस का एजेंट भी था,वह सोशलमीडिया के जरिए प्रचार करता था।उसकी गतिविधि में कहीं पर कोई हिंसा का तत्व पुलिस-सेना किसी को भी नहीं मिला,अचानक उसको मार देने का फैसला करके शांत कश्मीर को नियोजित ढ़ंग से अशान्त किया गया।यह फैसला किसी पुलिस अफसर या सेना के अधिकारी नहीं हो सकता। अब सारी बातें बुरहान पर आकर रूक गयी हैं।
कल बुरहान वानी के पिता से आरएसएस के समर्थक संत श्रीश्री रविशंकर मिले हैं,यह अपने आपमें विलक्षण घटना है।उल्लेखनीय है श्रीश्री रविशंकर का मोदी की पिछबाड़े की कूटनीति में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।श्रीश्री से बुरहान के पिता का मिलना और उसी दिन महबूबा मुफ्ती का पीएम नरेन्द्र मोदी से मिलना, बताता है कि केन्द्र सरकार अन्दर से मान चुकी है बुरहान वानी की हत्या करना भूल थी,मुश्किल यह है कि इससे बाहर कैसे निकला जाय,आतंकी-पृथकतावादी बुरहान वानी को शहीद मान रहे हैं,स्वयं महबूबा मुफ्ती उसकी हत्या पर अफसोस का इजहार कर चुकी हैं,लेकिन राजनाथ सिंह ने अफसोस जाहिर नहीं किया है।
इसके विपरीत समूची मोदी सरकार,उनका समर्थक भोंपू मीडिया और आरएसएस के लोग इंटरनेट पर बुरहान वानी को आतंकी करार दे चुके हैं,बार-बार उसकी हत्या को जायज ठहरा चुके हैं,अब अचानक बुरहान वानी के पिता से मुलाकात के जरिए कश्मीरी जनता के आक्रोश को शांत करने की कोशिश की जा रही है।जिस तरह घटनाएं घट रही हैं उसमें लग यही रहा है कि हुर्रियत के नेतागण बुरहान वानी की हत्या के लिए केन्द्र सरकार को घेरना बंद नहीं करेंगे,वे चाहते हैं केन्द्र सरकार बुरहान वानी की हत्या के मामले में अपनी गलती माने,केन्द्र मन भी बना चुका है लेकिन कैसे कहे ,समस्या यहां आकर अटक गयी है।
सवाल यह है कल तक मोदी सरकार बुरहान वानी के परिवार को आतंकी मानकर चल रहे थे,अब अचानक बुरहान के पिता से श्रीश्री रविशंकर मिले हैं,उन्होंने अपनी मीटिंग के बाद बुरहान के पिता के साथ फोटो ट्विट भी किया है।यह सीधे घोषणा है बुरहान का परिवार आतंकी नहीं है,बुरहान आतंकी नहीं था,यह कूटनीति की नई भाषा है जिसे संघ परिवार संतों के इमेज संसार के जरिए रच रहा है।
श्रीश्री रविशंकर और बुरहान के पिता का फोटो स्वयं श्रीश्री द्वारा ट्विटर पर जारी करना महत्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है बुरहान को सोशलमीडिया के पोस्ट के जरिए ही आतंकी की परिभाषा में डाला गया,अब सोशलमीडिया के फोटो इमेजों और संदेशों के जरिए ही बुरहान की हत्या के पाप से मोदी –महबूबा सरकार मुक्त होना चाहते हैं।सवाल यह है कर्फ्यू ग्रस्त कश्मीर में से बुरहान के पिता श्रीश्री रविशंकर से मिलने बंगलौर कैसे पहुँचे ॽकिसने उनके आने-जाने की व्यवस्था की ॽकौन हैं वे लोग जो राजनाथ सिंह या मोदी से मुलाकात न कराकर सीधे श्रीश्री के पास बुरहान के पिता को ले गए ॽक्या बुरहान के पिता की श्रीश्री के साथ बैठक राजनाथ सिंह की कश्मीर यात्रा के दौरान तय हुई ॽ हाल ही में राजनाथ सिंह श्रीनगर में किनसे मिले ॽ उनके नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए ॽये कुछ सवाल है जो लगातार कश्मीर की समस्या को और भी जटिल बना रहे हैं।
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