"प्रथम बाधा अहम् का मोह है, जब तक व्यक्ति पूर्णतया अपने अहम् में रहता है, प्रत्येक भड़कीली चीज का पीछा करता है, जिनके विषय में वह व्यर्थ ही यह सोचता है कि वे उसके हृदय की अभिलाषा की तृप्ति व संतुष्टि कर देंगी, तब तक उसको आर्य मार्ग नहीं मिलता। जब उसकी आंखें इस तथ्य को देखकर खुलती हैं कि वह इस असीम व अनंत का एक बहुत छोटा सा अंश है, तब वह यह अनुभूति करने लगता है कि उसका व्यक्तिगत अस्तित्व कितना नश्वर है, तभी वह इस संकीर्ण मार्ग में प्रवेश कर सकता है।
दूसरी बाधा संदेह तथा अनिर्णय की स्थिति है। जब मनुष्य अस्तित्व के महान रहस्य, व्यक्तित्व की नश्वरता को देखता है तो उसके अपने कार्य में भी संदेह तथा अनिर्णय की स्थिति की संभावना होती है, अमुक कार्य किया जाए या न किया जाए, फिर भी मेरा व्यक्तित्व अस्थाई नश्वर है, ऐसी कोई चीज प्रश्न क्यों बन जाती है, जो उसे अनिर्णायक, संदेही या निष्क्रिय बना देती है, परंतु वह चीज जीवन मंर काम नहीं आएगी। उसे अपने शिक्षक का अनुसरण करने, सत्य को स्वीकार करने तथा संघर्ष की शुरुआत करने का निश्चय कर लेना चाहिए अन्यथा उसे और आगे कुछ नहीं मिलेगा।
तीसरी बाधा संस्कारों तथा धर्मानुष्ठानों की क्षमता पर निर्भर करती है। किसी भी उत्तम संकल्प से वह चाहे जितना दृढ़ हो, किसी चीज की प्राप्ति उस समय तक नहीं होगी, जब तक मनुष्य कर्मकांड से छुटकारा नहीं पाएगा, जब तक वह इस विश्वास से मुक्त नहीं होगा कि कोई बाह्य कार्य, पुरोहिती शक्ति तथा पवित्र धर्मानुष्ठान से उसे हर प्रकार की सहायता मिल सकती है। जब मनुष्य इस बाधा पर काबू पा लेता है, केवल तभी यह कहा जा सकता है कि वह ठीक धारा में आ गया है और अब देर-सवेर विजय प्राप्त कर सकता है।
चौथी बाधा शारीरिक वासनाएं हैं। पांचवीं बाधा दूसरे व्यक्तियों के प्रति द्वेष व वैमनस्य की भावना है छठी भौतिक वस्तुओं से मुक्त भावी जीवन के प्रति इच्छा का दमन है और सातवीं भौतिकता से मुक्त संसार में भावी जीवन के प्रति इच्छा का होना है। आठवी बाधा अभिमान है और नौवीं दंभ है। ये वे कमजोरियां हैं, जिन पर मनुष्य के लिए विजय प्राप्त करना बहुत कठिन है और जिनके लिए विशेष रूप से श्रेष्ठ व्यक्ति उत्तरदायी हैं। यह उन लोगों के लिए निंदा की बात है, जो अपने आप से कम योग्य तथा कम पवित्र हैं।दसवीं बाधा अज्ञानता है। यद्यपि अन्य सब कठिनाइयों व बाधाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है, फिर भी यह बनी ही रहेगी, बुद्धिमान तथा अच्छे व्यक्ति के शरीर में कांटे के समान चुभती रहेगी। यह मनुष्य की अंतिम तथा सबसे बड़ी शत्रु है।"(बुद्ध अथवा मार्क्स,निबंध से)
दूसरी बाधा संदेह तथा अनिर्णय की स्थिति है। जब मनुष्य अस्तित्व के महान रहस्य, व्यक्तित्व की नश्वरता को देखता है तो उसके अपने कार्य में भी संदेह तथा अनिर्णय की स्थिति की संभावना होती है, अमुक कार्य किया जाए या न किया जाए, फिर भी मेरा व्यक्तित्व अस्थाई नश्वर है, ऐसी कोई चीज प्रश्न क्यों बन जाती है, जो उसे अनिर्णायक, संदेही या निष्क्रिय बना देती है, परंतु वह चीज जीवन मंर काम नहीं आएगी। उसे अपने शिक्षक का अनुसरण करने, सत्य को स्वीकार करने तथा संघर्ष की शुरुआत करने का निश्चय कर लेना चाहिए अन्यथा उसे और आगे कुछ नहीं मिलेगा।
तीसरी बाधा संस्कारों तथा धर्मानुष्ठानों की क्षमता पर निर्भर करती है। किसी भी उत्तम संकल्प से वह चाहे जितना दृढ़ हो, किसी चीज की प्राप्ति उस समय तक नहीं होगी, जब तक मनुष्य कर्मकांड से छुटकारा नहीं पाएगा, जब तक वह इस विश्वास से मुक्त नहीं होगा कि कोई बाह्य कार्य, पुरोहिती शक्ति तथा पवित्र धर्मानुष्ठान से उसे हर प्रकार की सहायता मिल सकती है। जब मनुष्य इस बाधा पर काबू पा लेता है, केवल तभी यह कहा जा सकता है कि वह ठीक धारा में आ गया है और अब देर-सवेर विजय प्राप्त कर सकता है।
चौथी बाधा शारीरिक वासनाएं हैं। पांचवीं बाधा दूसरे व्यक्तियों के प्रति द्वेष व वैमनस्य की भावना है छठी भौतिक वस्तुओं से मुक्त भावी जीवन के प्रति इच्छा का दमन है और सातवीं भौतिकता से मुक्त संसार में भावी जीवन के प्रति इच्छा का होना है। आठवी बाधा अभिमान है और नौवीं दंभ है। ये वे कमजोरियां हैं, जिन पर मनुष्य के लिए विजय प्राप्त करना बहुत कठिन है और जिनके लिए विशेष रूप से श्रेष्ठ व्यक्ति उत्तरदायी हैं। यह उन लोगों के लिए निंदा की बात है, जो अपने आप से कम योग्य तथा कम पवित्र हैं।दसवीं बाधा अज्ञानता है। यद्यपि अन्य सब कठिनाइयों व बाधाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है, फिर भी यह बनी ही रहेगी, बुद्धिमान तथा अच्छे व्यक्ति के शरीर में कांटे के समान चुभती रहेगी। यह मनुष्य की अंतिम तथा सबसे बड़ी शत्रु है।"(बुद्ध अथवा मार्क्स,निबंध से)
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