लोकतंत्र अपने विकास को संविधान से शुरू तो करता है लेकिन संविधान और जनता के बीच में द्वंद्वात्मक संबंध बनाते हुए ,इस क्रम में जनता की चेतना के साथ संविधान भी बदलता है,संविधान कोई जड़ या शाश्वत चीज नहीं है,वह भी परिवर्तनीय है,इसीलिए संविधान संशोधन करने पड़ते हैं।दिल्ली की जनता की चेतना आज १९५२जैसी नहीं है,दिल्ली की जनता बदली है, राजनीतिकचेतना बदली है,संविधान में उसकी संगति में आचरण करने के लिए संशोधन करो,दिल्ली को उसके हक दो।किसने कहा कि दिल्ली की जनता को कभी अपने सपने पूरे नहीं करने देंगे।घिन आती है ऐसी राजनीति से जो जनता के हकों पर डाका डाले। शोभा के पद और जनता के नेता के पद में अंतर करने की तमीज पैदा करो।
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संविधान में यदि कुछ ऐसा लिखा है जो जनता और मौजूदा समाज के अनुकूल नहीं है तो उसे बदलो, संविधान में वही प्रासंगिक है जो जनता के हकों में इजाफा करे।संविधान का मतलब सिर्फ सत्ता के हक ही नहीं होते। सत्ता और जनता के हकों में दिल्ली के संदर्भ में असंतुलन है,अनेक जनविरोधी संवैधानिक प्रावधान भी हैं,जिनको बदलना जरूरी है।दिल्ली की जनता इस समय संविधान की आड़ में चल रहे जनविरोधी खेल को समझ रही है,कांग्रेस और भाजपानेता इस खेल में नंगे हो चुके हैं।सारे देश को दिल्ली की अधिकारहीन जनता,अधिकारहीन मुख्यमंत्री के पक्ष में बोलना चाहिए।
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यह आयरनी ही नहीं जनता का अपमान है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री दैनिक मजूरी तक तय नहीं कर सकता!ऐसे संविधान को बदलो,जो अधिकारहीन बनाए! केन्द्रशासित क्षेत्र के नाम पर , संविधान की आड़ लेकर,अदालत की आड़ लेकर लोकतांत्रिक हकों और चुने गए मुख्यमंत्री पर हमले बंद हों,दिल्ली को स्वायत्तता दो,मुख्यमंत्री का मतलब उपराज्यपाल का गुलाम नहीं है,दिल्ली के विधायक गूंगे बहरे गुलाम नहीं हैं।कुछ तो शर्म करो,संविधान की आड में असंवैधानिक खेल बंद होना चाहिए,हमारे संविधान में अनेक चीजें हैं जो जनता के हकों के खिलाफ हैं,उन सभी को संविधान से विदा करो।संविधान पूजा के लिए नहीं जनता की सेवा के लिए है।
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दिल्ली को नकली दिल्ली कहो!जो जनता ने चुना नहीं,वो जनता पर शासन कर रहा है,जागो दिल्ली की जनता जागो!यह जनता का अपमान है कि जनता के चुने प्रतिनिधि अधिकारहीन हों और हम कहें कि ये दिल्ली के विधायक हैं,यह दिल्ली की विधानसभा है,ये दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं!
विधायक,विधानसभा, मुख्यमंत्री , जनता के हक,वोटर के हकों का अपमान देखना हो तो दिल्ली को देखो!
एक जमाने में ज्योति बसु ने कहा था हमारी विधानसभाओं को नगरपालिका से भी कम अधिकार प्राप्त हैं।दिल्ली सच में उसी अवस्था में है। जनता को अपमानित करना बंद करो।संविधान में दिल्ली को पूरे हक दो,जनता के हकों,विधायक,मुख्यमंत्री के हकों को दिल्ली के संदर्भ में नए सिरे से परिभाषित करो।संविधान की आड़ में जनता पर हमले बंद हों।
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दिल्ली विधानसभा और मुख्यमंत्री का पद अर्थहीन और झूठा पद है,यह जनता को भ्रमित करने के लिए दिये गए खोखले नाम हैं।ये नाम के रीयलसेंस को व्यक्त नहीं करते।मोदी -जंग के संयुक्त हमलों ने इस सत्य को उजागर करके केजरीवाल को रसद दे दी है,दिल्ली विधानसभा या मुख्यमंत्री अधिकारहीन हैं,अधिकार किसी को है तो वो है उपराज्यपाल ।फिर विधानसभा और मुख्यमंत्री नाम खत्म करो।महानगर पालिका घोषित करो दिल्ली को,मुख्यमंत्री को मेयर बनाओ।उपराज्यपाल पद खत्म करो,दिल्ली को सीधे केन्द्र चलाए।
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केजरीवाल ने जब फैसले लिए थे तो वे अनजान नहीं थे,असल में वे दिल्ली के हकों को नए सिरे से परिभाषित करवाने और उस के केजरीवाल ने जब फैसले लिए थे तो वे अनजान नहीं थे,असल में वे दिल्ली के हकों को नए सिरे से परिभाषित करवाने और उसमें इजाफा करने का संवैधानिक खेल में लगे हैं,यह जंग कानून की दृष्टि से जितनी महत्वपूर्ण है,सडकों पर भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।कम से कम वे कांग्रेस और भाजपा के चेहरे को बेनकाब करने में सफल रहे हैं,ये दोनों दल दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने का वायदा करते रहे हैं।केजरीवाल ने अपने फैसलों को सामने रखकर उपराज्यपाल को मिले अबाध अधिकारों को उजागर किया है,साथ ही यह भी बताया है कि वे यदि अपने वायदे पूरे नहीं कर पा रहे हैं तो इसमें संवैधानिक अडचनें हैं,अत: दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को केजरीवाल के प्रचार उपकरण के रूप में देखें,केजरीवाल अपनी मुश्किलों को बताने के लिए अदालत के मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसमें फैसला कुछ भी हो लाभ केजरीवाल को ही मिलेगा।
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केजरीवाल ने जब फैसले लिए थे तो वे अनजान नहीं थे,असल में वे दिल्ली के हकों को नए सिरे से परिभाषित करवाने और उसमें इजाफा करने का संवैधानिक खेल में लगे हैं,यह जंग कानून की दृष्टि से जितनी महत्वपूर्ण है,सडकों पर भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।कम से कम वे कांग्रेस और भाजपा के चेहरे को बेनकाब करने में सफल रहे हैं,ये दोनों दल दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने का वायदा करते रहे हैं।केजरीवाल ने अपने फैसलों को सामने रखकर उपराज्यपाल को मिले अबाध अधिकारों को उजागर किया है,साथ ही यह भी बताया है कि वे यदि अपने वायदे पूरे नहीं कर पा रहे हैं तो इसमें संवैधानिक अडचनें हैं,अत: दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को केजरीवाल के प्रचार उपकरण के रूप में देखें,केजरीवाल अपनी मुश्किलों को बताने के लिए अदालत के मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसमें फैसला कुछ भी हो लाभ केजरीवाल को ही मिलेगा।जरीवाल ने जब फैसले लिए थे तो वे अनजान नहीं थे,असल में वे दिल्ली के हकों को नए सिरे से परिभाषित करवाने और उसमें इजाफा करने का संवैधानिक खेल में लगे हैं,यह जंग कानून की दृष्टि से जितनी महत्वपूर्ण है,सडकों पर भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।कम से कम वे कांग्रेस और भाजपा के चेहरे को बेनकाब करने में सफल रहे हैं,ये दोनों दल दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने का वायदा करते रहे हैं।केजरीवाल ने अपने फैसलों को सामने रखकर उपराज्यपाल को मिले अबाध अधिकारों को उजागर किया है,साथ ही यह भी बताया है कि वे यदि अपने वायदे पूरे नहीं कर पा रहे हैं तो इसमें संवैधानिक अडचनें हैं,अत: दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को केजरीवाल के प्रचार उपकरण के रूप में देखें,केजरीवाल अपनी मुश्किलों को बताने के लिए अदालत के मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसमें फैसला कुछ भी हो लाभ केजरीवाल को ही मिलेगा।में इजाफा करने का संवैधानिक खेल में लगे हैं,यह जंग कानून की दृष्टि से जितनी महत्वपूर्ण है,सडकों पर भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।कम से कम वे कांग्रेस और भाजपा के चेहरे को बेनकाब करने में सफल रहे हैं,ये दोनों दल दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने का वायदा करते रहे हैं।केजरीवाल ने अपने फैसलों को सामने रखकर उपराज्यपाल को मिले अबाध अधिकारों को उजागर किया है,साथ ही यह भी बताया है कि वे यदि अपने वायदे पूरे नहीं कर पा रहे हैं तो इसमें संवैधानिक अडचनें हैं,अत: दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को केजरीवाल के प्रचार उपकरण के रूप में देखें,केजरीवाल अपनी मुश्किलों को बताने के लिए अदालत के मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसमें फैसला कुछ भी हो लाभ केजरीवाल को ही मिलेगा।Like
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