आमतौर पर मीडिया को हम लोग हजम कर रहे हैं,कम से कम विश्लषण और विवेचन कर रहे हैं। मीडिया विशेषज्ञों को छोड़कर आम लोगों में मीडिया साक्षरता बढ़ी है। सवाल उठता है कि क्या मीडिया का कोई मार्क्सवादी नजरिया संभव है ? यदि हां तो उसके पैमाने क्या हो सकते हैं ? मीडिया अनुसंधान करने वालों की चिंता के दायरे में मार्क्सवादी नजरिए के प्रति दिलचस्पी बढ़े और वे गंभीरता के साथ मार्क्सवादी औजारों का इस्तेमाल करें इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर यह लेखमाला आरंभ कर रहे हैं। भारत में जनसंख्या ज्यादा मीडिया कम है। संचार माध्यमों की पहुँच के दायरे में क्रमशः विस्तार हो रहा है। इसके बाबजूद आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा मीडिया के दायरे के बाहर है।
इस प्रसंग में मीडिया विशेषज्ञ मार्क पोस्टर ने 'आज की दुनिया में सूचना पद्धति' में लिखा है " संचार के अधिकाधिक हिस्से आज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सुपुर्द होते जा रहे हैं। लोग टेलीविजन देखते हैं, फोन करते हैं, रेडियो सुनते हैं, फिल्म देखने जाते हैं, कंप्यूटर, फैक्स मशीनों, वी.सी.आर. और स्टीरियो इत्यादि का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार का संचार प्रत्येक संस्था और सामाजिक समूह में फैलता जा रहा है। राजनीति, काम-काज, उपभोग, परिवार, फौज, चर्च, शिक्षा, मनोरंजन इत्यादि क्षेत्रों में संचार के लिए इलेक्ट्रॉनिक तंत्रों का कमोबेश उपयोग किया जा रहा है।"
मीडिया के चौतरफा विस्तार ने सूचना प्रवाह को बढ़ा दिया है। इस प्रक्रिया में मीडिया के जरिए एकदम नयी भाषा निर्मित हो रही है। मीडिया भाषा के किन रूपों का निर्माण हो रहा है और यह भाषा किस तरह अन्य सर्जनात्मक और विचारधारात्मक क्षेत्रों को प्रभावित कर रही है। इस पर गंभीरता के साथ सोचने की जरूरत है। नई भाषा संकेतों से बन रही है। ये संकेत बाइटस के जरिए आ -जा रहे हैं। बिजली,उपग्रह प्रणाली ,कम्प्यूटर आदि के जरिए नए भाषा अनुभव का जन्म हुआ है। यह अनुभव दैनंदिन जीवन की भाषा को भी प्रभावित कर रहा है। एक जमाने में प्रेस ने सीमित रूप में यह काम किया है,लेकिन कम्प्यूटर,सैटेलाइट, मोबाइल .इंटरनेट आदि ने एक नए किस्म के भाषा प्रयोग और अनुभव को जन्म दिया है।
मार्क पोस्टर ने लिखा है " कुछ लोगों का विचार है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रयोग से संचार के स्वरूप में कोई खास अंतर नहीं आया है। आखिर राजनीतिज्ञ टी.वी. के जरिए प्रचार करता हुआ आम लोगों के वोट संवैधानिक जनतंत्र के अनुसार ही तो मांगने की कोशिश करता है। उस मजदूर को जो फैक्टरी की असेंबली लाइन कंप्यूटर के सहारे नियंत्रित करता है या चिट्ठी टाइप करता है, पहले के ही समान अपने काम के लिए पैसा मिलता है। टी. वी. देखने वाले उपभोक्ता को उससे उन वस्तुओं के बारे में जानकारी मिलती है जिन्हें वह दूकानों से खरीद सकता है। यह तो अखबार पढ़ने के समान ही होता है। सिपाही कंप्यूटर का प्रयोग करके अपना गोला या बम या मिसाइल निशाने पर साधता है। वह शत्रु पर वार करने की कला बेहतर बनाता है। इस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक उपकरण या यंत्र संचार-माध्यमों की क्षमता बढा भर देते हैं। इस दृष्टि से यदि देखा जाए तो भाषा सक्रिय मानवों के लिए एक जरिया-मात्र है। वह निश्चित संस्थाओं की सीमाओं के अंदर व्यक्तियों के इरादे मात्र पूरा करती है।"
"इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक यंत्र संचार माध्यमों के स्वरूपों संबंधी सिध्दांतों में अन्य कोई परिवर्तन नहीं लाते हैं। मार्क्सवादियों की दृष्टि में नए संचार माध्यमों को भी वर्गीय दृष्टि से ही देखा जाना चाहिए अर्थात हमें सूचना समाज में हमारी वर्गीय स्थिति के अनुरूप ही प्राप्त होती है। नवमार्क्सवादियों की दृष्टि से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्कृति-उद्योग को बढ़ावा देता है। इससे विचारधारा का प्रभुत्व बढ़ता है। अर्थशास्त्री के अनुसार बाजार के नियम तय करते हैं कि कंप्यूटर का प्रयोग कौन करेगा, कौन टेलीविजन में विज्ञापन देगा, रेडियो से किनके गीत प्रसारित होंगे। एक वेबरवादी की दृष्टि में इलेक्ट्रॉनिक संचार समाज में विभेदीकरण बढ़ाता है और उप-प्रणालियों का निर्माण करता है। साथ ही वह नौकरशाही की ताकत बढ़ाता है। एक उदारवादी की दृष्टि में वह विभिन्न दलों के बीच सत्ता-संघर्ष का उद्देश्य बनता है। टेक्नोलॉजिकल निर्णयवादी भी संचार साधनों में कुछ नया नहीं देख पाते : वे मात्र मशीनों के विकास की प्रगति की पुष्टि ही करते हैं जो श्रम को हलका बनाते हैं और प्रकृति को मानव की इच्छाओं के अनुरूप ढालते हैं। इस प्रकार, भले ही जिसका जो भी विचार हो, अकाटय रूप से नतीजा यही निकलता दीख पड़ता है कि इलेक्ट्रॉनिक संचार कोई मूल परिवर्तन नहीं लाता है।"
"उपर्युक्त सारे परिप्रेक्ष्य इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा एक परिवर्तन अवश्य स्वीकार करते हैं और उसकी व्याख्या करते हैं : मानवों के बीच संकेतों का आदान-प्रदान अब देश (स्थान) और काल की सीमाओं से कहीं कम बंधे हैं। सिध्दांत रूप में अब सूचना सारी धरती के पैमाने पर तुंरत उपलब्ध हो जाती है और उसे तब तक भंडारित किया जा सकता है तथा हासिल किया जा सकता है जब तक बिजली उपलब्ध है। काल और स्थान (देश) अब सूचना का आदान-प्रदान सीमित नहीं करते।"एक जमाने में मैकलुहान कीधारणाओं को लोग गंभीरता के साथ नहीं लेते थे,लेकिन आज ऐसा नहीं है। मैकलुहान की ग्लेबल विलेज की धारणा का व्यापक प्रभाव देखा जा रहा है। इसी संदर्भ में मार्क पोस्टर ने लिखा "मैकलुहान का 'विश्व ग्राम' अब तकनीकी रूप से संभव है। यह बड़े ही महत्व का है जो वर्तमान सिध्दांतों और स्थितियों की पर्याप्तता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। 1960 के दशक के अंत में अमरीकी घरों में वियतनाम की घटनाओं के दृश्यों के प्रसारण का राजनीति पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा था। 1985 में फिलीपाइंस के विद्रोहियों द्वारा एक सरकारी टेलीविजन स्टेशन पर कब्जे तथा उसके बाद वहां से जनता को अपनी सफलता के आश्वासन ने मारकोस की सत्ता के भाग्य-निर्णय पर गहरा प्रभाव डाला। टेलीविजन प्रत्यक्ष खुदरा व्यापार उपभोक्ता सामानों की खरीद-बिक्री के तौर-तरीकों में क्रांति का आधार तैयार करता है। उंगलियों की छाप के कंप्यूटर विश्लेषण के जरिए संदेहास्पद अपराधियों का पता किया जा सकता है। इससे कानून-व्यवस्था संस्थाओं को नया रास्ता मिला। त्वरित और सार्वत्रिक सूचना ने जिसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जन्म दिया, स्पष्ट रूप से समाज को प्रभावित किया है। इसकी व्यापकता अभी भी पूरी तरह आंकी नहीं गई है। लेकिन स्थान और काल पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विजय संचार की नई तरंगों के साथ विचारों और व्यवहार का मात्र थोड़ा तालमेल ही नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में यह क्रांति सामाजिक संस्थाओं एवं विचारों के लिए और भी काफी मायने रखती है।"
इंटरनेट आने केबाद वायरस का तंत्र सामने आया है उसने जहां ए ओर सूचना क्षमताओं के विकास ,सुरक्षा और संरचनाओं की सुरक्षा की ओर ध्यान खींचा है तो दूसरी ओर मीडिया और इंटरनेट की अन्तर्कियाओं को जन्म दिया है। उलत वाइरस कम्प्यूटर के साथ मीडियातंत्र पर भी असर छोड़ने लगता है।
पोस्टर ने लिखा है " 'वाइरस' एक छोटा 'प्रोग्राम' या निर्देशों का तंत्र होता है जो कंप्यूटरों के अन्य प्रोग्रामों या फाइलों से जुड़ जाता है। फिर वह कार्य के दौरान समूचे प्रोग्राम में फैलता जाता है। यह वाइरस एक कंप्यूटर के अंदर भी फैलता है और जब एक कंप्यूटर से अन्य में संदेश या फाइलें स्थानांतरित की जाती हैं तब भी फैलता हैॅ वाइरस में विभिन्न प्रकार के कमांड (निर्देश) हो सकते हैं बिना हानि वाला अर्थहीन 'स्क्रीन पर 'गोत्चा दर्शाइए' से लेकर खतरनाक 'हार्ड डिस्क की सारी फाइलें मिटा दीजिए' तक! नवंबर '88 के उक्त वाइरस ने लगातार प्रसार करते हुए कंप्यूटरों की मेमोरी को ही जाम कर दिया। कंप्यूटरों पर काम करना दूभर हो गया। हालांकि कोई फाइल नष्ट नहीं हुई, कोई सूचना खोई नहीं और न ही कोई अपराध किए गए, लेकिन इसे फैलाने वाले की खोज में एफ.बी.आई को बुलाना पड़ा।"
"वाइरस वह जीव होता है जो जीवों में बीमारियां फैलाता है। कंप्यूटरों के संदर्भ में इस शब्द का सांकेतिक प्रयोग किया जा रहा है क्योंकि कंप्यूटर नेटवर्क की जीवित प्रणालियों से तुलना की जाती है : कंप्यूटर परस्पर इतने अधिक अंतरसंबंधित होते हैं कि वे जीवित शरीर के अंगों के समान कार्य करते हैं। वैसी मशीनें जो यांत्रिक रूप से एक दूसरे के साथ जुड़ी होती हैं आम तौर पर अपनी भौतिक शक्ति दूसरी मशीनों को हस्तांतरित नहीं कर पातीं। फलस्वरूप यदि किसी बिंदु पर कोई खराबी पैदा हो जाती है तो उसका प्रभाव उन तक नहीं पहुंच पाता। कंप्यूटर आपस में सूचना के सहारे जुड़े होते हैं। इसलिए वे जीवित प्रणालियों के समान होते हैं जो जटिल निर्देशों को एक से दूसरे तक पहुंचाते हैं। इनमें वे सूचनाएं भी होती हैं जिनके सहारे समूची कंप्यूटर प्रणाली (नेटवर्क) निष्क्रिय बना दी जा सकती है। आज अधिकाधिक संस्थाएं कंप्यूटर नेटवर्कों के सहारे परस्पर जुड़ती जा रही हैं और उन पर निर्भर होती जा रही हैं। इस प्रकार समाज ने ऐसी इलेक्ट्रॉनिक सूचना-प्रणालियों ('जीवों') को जन्म दिया है जो मानव समुदायों के ही समान 'छुआछूत की बीमारियों' का शिकार बनती हैं। जहां एक ओर मानव समाज एड्स से पीड़ित है वहीं कंप्यूटरों का समाज 'वाइरसों' से पीड़ित है।"
"साइबर-विश्लेषण एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण परस्पर संबंधित क्षेत्र बन सकते हैं। कंप्यूटर वाइरस अब व्यापक और सामान्य हो चुके हैं और बार-बार आ रहे हैं। जनवरी और फरवरी 1989 में कुल 3,000 वाइरस पाए गए हैं। फ्रायडवादी ऑडिपसवादी घटना के बजाए वाइरसों को कंप्यूटर सूचना का नियंत्रण करने वालों के खिलाफ प्रतिरोध का एक स्वरूप भी माना जा सकता है।"
मार्क पोस्टर ने लिखा है कि " ऐसी रिपोर्ट मिल रही हैं कि एक अन्य स्तर पर, कंप्यूटर मानीटर, यहां तक कि समूचा कंप्यूटर तंत्र, स्वयं काम करने वाले व्यक्ति के शरीर के डी.एन.ए. (शरीर के जीन का मुख्य रसायनअनु.) को ही प्रभावित कर रहा है। यदि वाइरस का प्रतीक कंप्यूटर नेटवर्क को एक नई सामाजिक प्रणाली के सदृश्य रखता है तो कंप्यूटर मानीटर के उपयोग को करने का परिणाम कंप्यूटर और कंप्यूटर के प्रयोगकर्ता के बीच विकिरण के रूप में गहरे संबंध के रूप में होता है। मानव और मशीन के बीच ऐसा एकीकरण होता दिखाई दे रहा है जिसमें दोनों परस्पर एक दूसरे पर निर्भर होते जा रहे हैं। फलस्वरूप हमारे आप-पास की दुनिया में हमारे शरीर की सीमाएं लुप्त होती प्रतीत होती हैं। हो सकता है कि मानव द्वारा कंप्यूटरों के निर्माण के बाद अब कंप्यूटर मानवों की नई प्रजाति का निर्माण कर रहे हैं। इस विषय पर कई फिल्में बन चुकी हैं जैबे रोबोकॉप और काल्पनिक वैज्ञानिक कहानियां लिखी जा चुकी हैं जैसे फिलिप के डिक द्वारा। इन संभावित घटनाओं संबंधी कल्पनाओं औरअटकलबार्जियों के कारण हमें मुख्य विषय से नहीं भटकना चाहिए हालांकि उनके भी महत्वपूर्ण परिणाम हो रहे होंगे।"
"जिस तेजी से कंप्यूटर वाइरसों का फैलाव हो रहा है वह सूचना-पध्दति के युग में समाज की नाजुक स्थिति का पता चलता है। वाइरस के प्रसारित होते ही समूचे नेटवर्क बंद होने लगे। इसी प्रकार अक्टूबर 1987 में स्टॉक मार्केट के धराशाई होने की खबर न्यूयॉर्क से तुरंत लंदन और टोकियो पहुंच गई और उतनी ही तेजी से उनकी प्रतिक्रिया तुरंत न्यूयॉर्क वापस पहुंच गई। इन दूरियों के बीच कोई ऐसा अवकाश बिंदु नहीं था जिसमें घटनाओं के प्रति प्रतिक्रिया निर्मित होने का समय मिले। वित्तीय अफरा-तफरी एक स्थान से दूसरे स्थान तक वैसे ही फैल गई जैसे पशुओं के किसी झुंड में खतरे का आभास फैल जाता है। न्यूयॉर्क टाइम्स में इस घटना की रिपोर्ट में स्टॉक कीमतों में गिरावट पर कंप्यूटरों का प्रभाव नोट किया गया। विश्व भर के वित्तीय केंद्र त्वरित सूचनाएं पाने के लिए एक दूसरे से संचार माध्यमों से जुड़े रहते हैं। लेकिन ये ही माध्यम उनके त्वरित आर्थिक पतन का कारण भी बनते हैं। इस प्रकार भाषा के अतिद्रुत प्रेषण का सरल और उपयोगी साधन मात्र अत्यधिक गति के कारण एक नई सामाजिक घटना बन जाती है जिसमें मात्र 'द्वंद्वात्मक' रूप से गुण में परिवर्तित हो जाता है। और कदाचित यह सामाजिक प्रक्रिया हमें अभूतपूर्व रूप से संस्कृति के भाषा पहलू पर सावधानी से विचार करने और उसकी जांच करने पर मजबूर कर देती है।"
बहुत कुछ महत्वपूर्ण है आपकी इस लेखकीय दीठ में...बधाई!
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