( यह लेख मैंने दिसम्बर 2010 के अंतिम सप्ताह में लिखा था और यह कोलकाता से प्रकाशित सन्मार्ग में छपा था,उस समय मैंने इसे अपने ब्लॉग पर भी दिया था,अमेरिकी विकीलीक केबल ने हमारे मत की पुष्टि की है ,पाठकों के लाभार्थ हम इस लेख को दोबारा दे रहे हैं। उस समय अनेक मित्रों ने कहा था कि आप किस आधार पर कह रहे हैं अमेरिकी अमीर ममता के साथ हैं, अंग्रेजी दैनिक' हिन्दू' में आज प्रकाशित विकीलीक केबल के अंशों ने हमारे विचारों की पुष्टि की है। हमने हिन्दू से पहले इस तथ्य को सामने रखा था।)
ममता बनर्जी की पिछले दिनों हुई दमदम की जनसभा में खूब भीड़ थी। वहां ममता बनर्जी ने वाम के पिछले विधानसभा चुनाव के नारे ‘उन्नततर वामफ्रंट’ के विकल्प के रूप में ‘ उन्नततर मानुष’ का नारा दिया है। उनका मानना है वे यदि आगामी विधानसभा चुनाव जीतती हैं तो पश्चिम बंगाल में ‘उन्नततर मानुष’ के उत्थान के लिए काम करेंगी। ममता के दमदम भाषण में सबसे आकर्षित करने वाली बात थी उनका आत्मविश्वास कि मैं अब आगामी विधानसभा चुनाव जीतने जा रही हूँ। असल में यह मीडिया निर्मित कारपोरेट इमेज है। नकली इमेज है। ममता के आत्मविश्वास का बड़ा कारण है कारपोरेट घरानों और नव्य उदार अमीरों का उन्हें अंध समर्थन। सवाल यह है नव्य उदार अमीर ममता के पीछे गोलबंद क्यों हैं ?
यह सच है कि पश्चिम बंगाल में नव्य उदार नीतियों को लागू करने की प्रक्रिया को बुद्धदेव पूर्व की वाम सरकारों ने धीमी गति से लागू किया था। इससे राज्य काफी पिछड़ गया। लेकिन विगत पांच सालों में बुद्धदेव सरकार ने नव्य उदार नीतियों के प्रति नरम रूख अपनाया है और उन्हें पहले की तुलना में तेज गति से लागू करने की कोशिश की है। इसका उन्हें विगत विधानसभा चुनाव में लाभ भी मिला था। विगत पांच सालों में अनेक बड़े कारखानों और प्रकल्पों पर काम आरंभ हुआ है। इसके बावजूद नव्यउदार पूंजीपतियों को वे अपने साथ एकजुट रखने में असमर्थ रहे हैं। इस मामले में ममता बनर्जी ने उनसे बढ़त हासिल कर ली है। खासकर सिंगूर आंदोलन ने ममता को नव्यउदार कारपोरेट लॉबी के एक बड़े अंश को अपनी ओर खींचने में मदद की है। ममता बनर्जी ने कारपोरेट जगत में यह उम्मीद पैदा की है वह बुद्धदेव की तुलना में उनके हितों की बेहतर रक्षक है। इस आशा को ममता बनर्जी ने रेलवे मंत्रालय में ‘सरकारी-निजी साझेदारी’की योजना को लागू करके पुख्ता बनाया है। आज भी कारपोरेट घरानों का एक बड़ा हिस्सा वामपंथी दलों और खासकर माकपा को नव्य उदार नीतियों के मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा है। ममता इस धारणा का कारपोरेट लॉबी में दोहन कर रही है। आज कारपोरेट घरानों का मानना है कि ममता यदि चुनाव जीतती है तो पश्चिम बंगाल की सार्वजनिक संपदा की खुली लूट का उन्हें विशेष अवसर मिलेगा। इसके लिए कारपोरेट लॉबी दो स्तरों पर काम करने के लिए ममता बनर्जी पर दबाब डाल रही है। वे चाहते हैं ममता अपने आक्रामक तेवरों और सांगठनिक हमलों से हिंसा का ऐसा वातावरण तैयार करे जिससे वाम संगठनों की स्थानीय कैडर संरचना टूट जाए। माकपा की एक राजनीतिक दल के रूप में साख नष्ट करके उसे गुण्डादल बनाकर प्रचारित किया जाए। ममता इस काम को बड़े सुनियोजित ढ़ंग से कर रही है। कारपोरेट लॉबी जानती है ममता बनर्जी आगामी विधानसभा चुनाव जीत भी जाती है तो उनको पश्चिम बंगाल की सार्वजनिक संपदा को लूटने में तबतक बाधाओं का सामना करना पड़ेगा जब तक माकपा सांगठनिक तौर पर मजबूत है। यही बुनियादी वजह है कि माकपा पर विभिन्न ग्रुपों, संगठनों,आंदोलनों आदि के नाम से संगठित हमले कराए जा रहे हैं। उन इलाकों में हिंसाचार ज्यादा हो रहा है जहां माकपा मजबूत है। यह नंदीग्राम मॉडल है। आज नंदीग्राम में माकपा को खदेड़ दिया गया है। माकपा के सदस्यों के सामने जीवन-मरण का संकट पैदा कर दिया है। नंदीग्राम मॉडल को राज्य के अन्य इलाकों में सुनियोजित ढ़ंग से लागू किया जा रहा है। इस काम में माओवादियों ,अपराधी गिरोहों और सभी विचारधारा के लोगों को माकपा के खिलाफ हमलावर कार्रवाईयों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जिन इलाकों में यह सब हो रहा है वहां असाधारण सामाजिक तनाव है। अनेक स्थानों पर माकपा के लोग भी हथियार उठाने के लिए मजबूर हुए हैं। सामान्य सी बात पर हिंसा भड़क उठती है.बम चलने लगते हैं। विभिन्न दलों के नेताओं में कोई सामान्य संवाद और शिष्टाचार तक नहीं बचा है। दलों में संवादहीनता बढ़ी है। हिंसा बढ़ी है। तनाव में शांति की बजाय बम चलते हैं। यह नंदीग्राम मॉडल है। प्रचार के लिए अब भाषण नहीं होते हिंसा हो रही है। इससे ममता बनर्जी को राजनीतिक लाभ मिला है। यह रणनीति लैटिन अमेरिका में वाम संगठनों के खिलाफ कारपोरेट घराने सफलता के साथ लागू कर चुके हैं। इससे व्यापक जनहानि हुई है।
यह सच हैं कि वाम मोर्चे ने सैंकडों-हजारों एकड़ के ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र ’ यानी ‘सेज’ बनाने की केन्द्र की योजना को अस्वीकार कर दिया है और छोटे एरिया के ‘सेज’ बनाने पर जोर दिया है। नव्य उदार अमीर फलतः वाम से खफा हैं। ममता बनर्जी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह बड़े ‘सेज’ बनाने देगी। इसके अलावा राज्य में भवन निर्माण और नए शहर बसाने की अपार संभावनाएं है इसके कारण भवन -शहर निर्माता कारपोरेट घराने ममता के पीछे गोलबंद हो गए हैं और बड़े पैमाने पर तृणमूल कांग्रेस की आर्थिक मदद कर रहे हैं। यही वह आर्थिक स्रोत है जिसके सहारे ममता ने संसद के चुनाव में बेशुमार पैसा खर्च किया था और यही वह स्रोत है जो आज भी ममता एंड कंपनी की विभिन्न रैलियों और प्रचार सामग्री पर करोड़ों रूपये खर्च कर रहा है। इसी स्रोत के आधार पर ममता ने कई हजार सदस्यों की एक टीम तैयार की है जिन्हें मासिक पगार मिलती है। ये लोग लड़ने से लेकर नारे लगाने तक के हर काम में दक्ष हैं। इनमें लेखकों-कलाकारों से लेकर अपराधी चरित्र के लोग तक शामिल हैं। इसके अलावा अनेक अमेरिकी विदेशी घरानों की भी इस राज्य में दिलचस्पी बढ़ी है। वे चाहते हैं पश्चिम बंगाल में वामदल हारें। वे पहले भी कई बार कोशिश कर चुके हैं लेकिन असफल रहे हैं। लेकिन वामदलों का मजबूत सांगठनिक आधार उन्हें सशंकित किए है। वामदलों का जनसंपर्क आज भी कारपोरेट मीडिया पर भारी पड़ रहा है। वामदलों को इसबार दो मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है पहला,उन्हें अपराधी गिरोहों के हमलों से अपने कैडरों को बचाने के लिए लड़ना पड़ रहा है तो दूसरी ओर जनता के साथ पुख्ता संबंध बनाने पर ध्यान देना पड़ रहा है। ये दोनों बेहद मुश्किल काम हैं। (सन्मार्ग 11जनवरी 2011 को प्रकाशित)
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ममता बनर्जी की पिछले दिनों हुई दमदम की जनसभा में खूब भीड़ थी। वहां ममता बनर्जी ने वाम के पिछले विधानसभा चुनाव के नारे ‘उन्नततर वामफ्रंट’ के विकल्प के रूप में ‘ उन्नततर मानुष’ का नारा दिया है। उनका मानना है वे यदि आगामी विधानसभा चुनाव जीतती हैं तो पश्चिम बंगाल में ‘उन्नततर मानुष’ के उत्थान के लिए काम करेंगी। ममता के दमदम भाषण में सबसे आकर्षित करने वाली बात थी उनका आत्मविश्वास कि मैं अब आगामी विधानसभा चुनाव जीतने जा रही हूँ। असल में यह मीडिया निर्मित कारपोरेट इमेज है। नकली इमेज है। ममता के आत्मविश्वास का बड़ा कारण है कारपोरेट घरानों और नव्य उदार अमीरों का उन्हें अंध समर्थन। सवाल यह है नव्य उदार अमीर ममता के पीछे गोलबंद क्यों हैं ?
यह सच है कि पश्चिम बंगाल में नव्य उदार नीतियों को लागू करने की प्रक्रिया को बुद्धदेव पूर्व की वाम सरकारों ने धीमी गति से लागू किया था। इससे राज्य काफी पिछड़ गया। लेकिन विगत पांच सालों में बुद्धदेव सरकार ने नव्य उदार नीतियों के प्रति नरम रूख अपनाया है और उन्हें पहले की तुलना में तेज गति से लागू करने की कोशिश की है। इसका उन्हें विगत विधानसभा चुनाव में लाभ भी मिला था। विगत पांच सालों में अनेक बड़े कारखानों और प्रकल्पों पर काम आरंभ हुआ है। इसके बावजूद नव्यउदार पूंजीपतियों को वे अपने साथ एकजुट रखने में असमर्थ रहे हैं। इस मामले में ममता बनर्जी ने उनसे बढ़त हासिल कर ली है। खासकर सिंगूर आंदोलन ने ममता को नव्यउदार कारपोरेट लॉबी के एक बड़े अंश को अपनी ओर खींचने में मदद की है। ममता बनर्जी ने कारपोरेट जगत में यह उम्मीद पैदा की है वह बुद्धदेव की तुलना में उनके हितों की बेहतर रक्षक है। इस आशा को ममता बनर्जी ने रेलवे मंत्रालय में ‘सरकारी-निजी साझेदारी’की योजना को लागू करके पुख्ता बनाया है। आज भी कारपोरेट घरानों का एक बड़ा हिस्सा वामपंथी दलों और खासकर माकपा को नव्य उदार नीतियों के मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा है। ममता इस धारणा का कारपोरेट लॉबी में दोहन कर रही है। आज कारपोरेट घरानों का मानना है कि ममता यदि चुनाव जीतती है तो पश्चिम बंगाल की सार्वजनिक संपदा की खुली लूट का उन्हें विशेष अवसर मिलेगा। इसके लिए कारपोरेट लॉबी दो स्तरों पर काम करने के लिए ममता बनर्जी पर दबाब डाल रही है। वे चाहते हैं ममता अपने आक्रामक तेवरों और सांगठनिक हमलों से हिंसा का ऐसा वातावरण तैयार करे जिससे वाम संगठनों की स्थानीय कैडर संरचना टूट जाए। माकपा की एक राजनीतिक दल के रूप में साख नष्ट करके उसे गुण्डादल बनाकर प्रचारित किया जाए। ममता इस काम को बड़े सुनियोजित ढ़ंग से कर रही है। कारपोरेट लॉबी जानती है ममता बनर्जी आगामी विधानसभा चुनाव जीत भी जाती है तो उनको पश्चिम बंगाल की सार्वजनिक संपदा को लूटने में तबतक बाधाओं का सामना करना पड़ेगा जब तक माकपा सांगठनिक तौर पर मजबूत है। यही बुनियादी वजह है कि माकपा पर विभिन्न ग्रुपों, संगठनों,आंदोलनों आदि के नाम से संगठित हमले कराए जा रहे हैं। उन इलाकों में हिंसाचार ज्यादा हो रहा है जहां माकपा मजबूत है। यह नंदीग्राम मॉडल है। आज नंदीग्राम में माकपा को खदेड़ दिया गया है। माकपा के सदस्यों के सामने जीवन-मरण का संकट पैदा कर दिया है। नंदीग्राम मॉडल को राज्य के अन्य इलाकों में सुनियोजित ढ़ंग से लागू किया जा रहा है। इस काम में माओवादियों ,अपराधी गिरोहों और सभी विचारधारा के लोगों को माकपा के खिलाफ हमलावर कार्रवाईयों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जिन इलाकों में यह सब हो रहा है वहां असाधारण सामाजिक तनाव है। अनेक स्थानों पर माकपा के लोग भी हथियार उठाने के लिए मजबूर हुए हैं। सामान्य सी बात पर हिंसा भड़क उठती है.बम चलने लगते हैं। विभिन्न दलों के नेताओं में कोई सामान्य संवाद और शिष्टाचार तक नहीं बचा है। दलों में संवादहीनता बढ़ी है। हिंसा बढ़ी है। तनाव में शांति की बजाय बम चलते हैं। यह नंदीग्राम मॉडल है। प्रचार के लिए अब भाषण नहीं होते हिंसा हो रही है। इससे ममता बनर्जी को राजनीतिक लाभ मिला है। यह रणनीति लैटिन अमेरिका में वाम संगठनों के खिलाफ कारपोरेट घराने सफलता के साथ लागू कर चुके हैं। इससे व्यापक जनहानि हुई है।
यह सच हैं कि वाम मोर्चे ने सैंकडों-हजारों एकड़ के ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र ’ यानी ‘सेज’ बनाने की केन्द्र की योजना को अस्वीकार कर दिया है और छोटे एरिया के ‘सेज’ बनाने पर जोर दिया है। नव्य उदार अमीर फलतः वाम से खफा हैं। ममता बनर्जी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह बड़े ‘सेज’ बनाने देगी। इसके अलावा राज्य में भवन निर्माण और नए शहर बसाने की अपार संभावनाएं है इसके कारण भवन -शहर निर्माता कारपोरेट घराने ममता के पीछे गोलबंद हो गए हैं और बड़े पैमाने पर तृणमूल कांग्रेस की आर्थिक मदद कर रहे हैं। यही वह आर्थिक स्रोत है जिसके सहारे ममता ने संसद के चुनाव में बेशुमार पैसा खर्च किया था और यही वह स्रोत है जो आज भी ममता एंड कंपनी की विभिन्न रैलियों और प्रचार सामग्री पर करोड़ों रूपये खर्च कर रहा है। इसी स्रोत के आधार पर ममता ने कई हजार सदस्यों की एक टीम तैयार की है जिन्हें मासिक पगार मिलती है। ये लोग लड़ने से लेकर नारे लगाने तक के हर काम में दक्ष हैं। इनमें लेखकों-कलाकारों से लेकर अपराधी चरित्र के लोग तक शामिल हैं। इसके अलावा अनेक अमेरिकी विदेशी घरानों की भी इस राज्य में दिलचस्पी बढ़ी है। वे चाहते हैं पश्चिम बंगाल में वामदल हारें। वे पहले भी कई बार कोशिश कर चुके हैं लेकिन असफल रहे हैं। लेकिन वामदलों का मजबूत सांगठनिक आधार उन्हें सशंकित किए है। वामदलों का जनसंपर्क आज भी कारपोरेट मीडिया पर भारी पड़ रहा है। वामदलों को इसबार दो मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है पहला,उन्हें अपराधी गिरोहों के हमलों से अपने कैडरों को बचाने के लिए लड़ना पड़ रहा है तो दूसरी ओर जनता के साथ पुख्ता संबंध बनाने पर ध्यान देना पड़ रहा है। ये दोनों बेहद मुश्किल काम हैं। (सन्मार्ग 11जनवरी 2011 को प्रकाशित)
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Published: April 21, 2011 03:36 IST | Updated: April 21, 2011 05:44 IST
U.S. government should ‘continue to cultivate' Mamata
Consulate found ‘encouraging signs' her regime would be ‘friendlier' than Left Front
American diplomats pushed United States government officials to cultivate the All India Trinamool Congress leader Mamata Banerjee, following her party's success in West Bengal in the 2009 Lok Sabha election, even while recording scepticism about whether she had changed from being a political maverick to being able to lead the State as Chief Minister.
“Her party's public rhetoric, devoid of any anti-Americanism, and private outreach to post's officers are encouraging signs that a Banerjee-led West Bengal government will be friendlier to the United States than the current CPI-M one,” the Kolkata Consulate reasoned in an October 20, 2009 cable (230353: unclassified) sent under the name of Consul General Beth A. Payne. “Post recommends USG officials continue to cultivate Banerjee, who has not yet visited the United States, in her current capacity as Railways Minister and the likely next Chief Minister of West Bengal.”
However, the Consulate remained unsure whether Ms. Banerjee had really made the transition from firebrand to able administrator.
The cable, accessed by The Hindu through WikiLeaks, offers this interesting assessment: “Skepticism remains whether Banerjee's makeover truly represents a new product — cooler, more level-headed, and willing to accept outside advice — or simply the season's new political makeup. Consensus exists that she is conscientiously trying to transform her image from political maverick and firebrand to a woman ready, able and willing to lead India's fourth most populous state.”
The Kolkata Consulate cable, headlined “Trinamool's Mamata Banerjee: from oppositional street fighter to West Bengal Chief Minister-in-waiting,” described how Ms. Banerjee sought to re-brand herself. “Since the May 2009 parliamentary elections elevated West Bengal's regional party, All India Trinamool Congress, from obscurity to the second largest constituent party in the United Progressive Alliance, its leader, Mamata Banerjee, has conscientiously sought to re-brand herself as West Bengal's Chief Minister-in- waiting. She is using the considerable administrative resources at her disposal as Railway's Minister, political resources as leader of the state opposition party, and personal resources to initiate this transformation. Supporters and critics acknowledge the new image, but question whether it is indeed a new product, or simply new packaging.”
The cable noted that with the backing of a large parliamentary constituency and allied with the ruling Congress party, “Banerjee's Trinamool is well placed to win the 2011 state assembly elections if she can continue along her current path of self-restraint and avoid making any mistakes along the way.”
The Kolkata Consulate appears to have been impressed with Ms. Banerjee's efforts to woo business, notwithstanding the “anti-industry” label she acquired after opposing land acquisition in Singur and Nandigram.
Under a section, “Mamata Courts Industry and Vice Versa,” the cable reported how Ms. Banerjee “assiduously courted Kolkata's business community through outreach and appointment of respected business advisors” to combat her perceived ‘anti-industry' label. “While the business community has not forgiven her for driving Tata Motors small car project out of the state, they are warming up to her, as they too see which way the winds are blowing.”
In a segment titled “Change That West Bengal Can Believe In,” echoing President Barack Obama's “Change we can believe in” election campaign of 2008, the cable said Ms. Banerjee was “inspiring the faithful, and convincing the agnostic, that the Communist Party of India — Marxist's 33 year-uninterrupted rule of West Bengal is set to end.” Describing her as the most popular politician in the State, the Consulate cable added that Ms. Banerjee was widely viewed as the “only one that can lead the charge for change.”
(This article is a part of the series "The India Cables" based on the US diplomatic cables accessed by The Hindu via Wikileaks.)
SUBJECT: TRINAMOOL'S MAMATA BANERJEE: FROM OPPOSITIONAL STREET FIGHTER TO WEST BENGAL CHIEF MINISTER-IN-WAITING
REF: KOLKATA 79
1. (SBU) Summary: Since the May 2009 parliamentary elections elevated West Bengal's regional party, All India Trinamool Congress, from obscurity to the second largest constituent party in the United Progressive Alliance, its leader, Mamata Banerjee, has conscientiously sought to re-brand herself as West Bengal's Chief Minister-in-Waiting. She is using the considerable administrative resources at her disposal as Railway's Minister, political resources as leader of the state opposition party, and personal resources to initiate this transformation. Supporters and critics acknowledge the new image, but question whether it is indeed a new product, or simply new packaging. Backed by a large parliamentary constituency and allied with the ruling Congress party, Banerjee's Trinamool is well placed to win the 2011 state assembly elections if she can continue along her current path of self-restraint and avoid making any mistakes along the way.
A Railway's Minister's Purse for West Bengal
2. (SBU) As India's Railways Minister, Banerjee has promised a large share of the nation's "railway rupees" to her home state of West Bengal with a railways budget that is both populist - emphasizing subsidized passenger fairs - and pragmatic - inviting public/private partnerships in new facilities. She has maintained her opposition to forcible land acquisition - a position that propelled her party into parliament - but invited development on the railway-owned land. Critics have expressed concern over the overwhelming focus on passenger vice freight traffic, but understand the electoral motivations of her actions.
Change That West Bengal Can Believe In
3. (SBU) As leader of the largest opposition party in the state, Banerjee is inspiring the faithful, and convincing the agnostic, that the Communist Party of India - Marxist (CPI-M)'s 33 year-uninterrupted rule of West Bengal is set to end. Her July 21 rally in the heart of Kolkata, with crowds estimated up to half a million, was this summer's largest political demonstration and dwarfed the CPI-M's August 31 timid and lackluster response. She is currently the most popular politician in the state and is widely viewed as the only one that can lead the charge for change.
Mamata Courts Industry and Vice Versa
4. (SBU) Banerjee has assiduously courted Kolkata's business community through outreach and appointment of respected business advisors to combat her perceived "anti-industry" label. Her August 22 interactive session with West Bengal's business leaders drew wide applause and drove home the message that business should as a matter of practice reach out to today's opposition for a bipartisan consensus, which, in this case, was well on its way to becoming tomorrow's government. While the business community has not forgiven her for driving Tata Motors small car project out of the state, they are warming up to her, as they too, see which way the winds are blowing.
Trinamool and Congress: Strategic and Tactical Allies
5. (SBU) According to parliamentarian Keshav Rao, Congress' general secretary for West Bengal, his party decided to ally with Trinamool in order to defeat CPI-M in West Bengal and diminish its significance as a national party or convener of a possible third political front. At the same time, Trinamool needs Congress' support to win in West Bengal and avoid a
KOLKATA 00000276 002 OF 002
triangulation of the anti-CPI-M vote. Trinamool also enjoys the legitimacy and ministerial power that a tie-up with the national partner confers. Both Trinamool and Congress politicians expect the tie-up to last through the 2011 state assembly elections.
Comment
6. (SBU) Skepticism remains whether Banerjee's makeover truly represents a new product - cooler, more level-headed, and willing to accept outside advice - or simply the season's new political makeup. Consensus exists that she is conscientiously trying to transform her image from political maverick and firebrand to a woman ready, able and willing to lead India's fourth most populous state. Her party's public rhetoric, devoid of any anti-Americanism, and private outreach to post's officers are encouraging signs that a Banerjee-led West Bengal government will be friendlier to the United States than the current CPI-M one. Post recommends USG officials continue to cultivate Banerjee, who has not yet visited the United States, in her current capacity as Railways Minister and the likely next Chief Minister of West Bengal.
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