सोमवार, 11 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे तुम इतने टेढ़े क्यों हो ?


        अन्ना हजारे भले हैं और जो मन में आता है उसे बिना लाग लपेट के बोलते हैं। उनकी इस साफ़गोई पर कोई भी कुरबान हो सकता है। कल उनकी प्रेस कॉफ्रेस थी,उनकी एक तरफं अरविंद केजरीवाल थे दूसरी ओर किरन बेदी बैठी थीं। कुछ अन्ना रह रहे थे कुछ ये दोनों कह रहे थे। इस तरह ये तीनों मिलकर सिविल सोसायटी का भ्रष्टाचार विरोधी नया आख्यान रच रहे थे।
    ये तीनों एक साथ थे। एक दूसरे से सहमत होते हुए बोल रहे थे। उनमें विचार भेद नहीं था। मसलन अन्ना ने जब बिहार और गुजरात के मुख्यमंत्री की प्रशंसा की तो यह मानकर चलना चाहिए कि किरन बेदी और केजरीवाल भी उनके प्रशंसक ही हैं । क्योंकि उन लोगों ने अन्ना की राय का वहां पर विरोध नहीं किया। मैं सोच रहा था मल्लिका साराभाई के बारे में जो अन्ना हजारे को लेकर बेहद उत्साहित थीं और टीवी पर कह रही थीं कि वे अन्ना के मैसेज को गुजरात के गांवों में ले जाएंगी। मैं नहीं जानता कि मोदी की प्रशंसा के बाद मल्लिका के पास क्या बचा है मोदी का विरोध करने के लिए ?  मैं सोच रहा हूँ कांग्रेसनेत्री सोनिया गांधी के बारे में क्या वे मोदी के साथ अन्ना को हजम कर पाएंगी ?
     लोकपाल बिल का सवाल नहीं है वह तो आएगा और उसका स्वरूप ,शक्ति और संभावनाएं क्या होंगी ,इसके बारे में प्रेस कॉफ्रेस में ही अरविन्द केजरीवाल ने बता दिया कि वे एक और सीबीआई जैसा संगठन बनाना चाहते हैं। इसके पास सीबीआई और सीवीसी के अधिकारों को मिलाकर अधिकार होंगे और इसके दायरे को व्यापक रखा जाएगा। इसके पास पुख्ता कानूनी ढ़ांचा होगा।
     इसके अलावा अन्ना हजारे ने प्रेस कॉफ्रेस में एक बेहद अपमानजनक और घटिया बात कही है और यह भारत के नागरिकों के लिए अपमानजनक है। अन्ना से जब पूछा गया कि आप चुनाव लड़ेंगे तो उन्होंने कहा नहीं, मैं चुनाव लडूँगा तो मेरी जमानत जब्त हो जाएगी। इसी क्रम में उन्होंने कहा भारत का मतदाता जागरूक नहीं है। वह सौ रूपये,एक शराब की बोतल में बिक जाता है। सुविधा के लिए टाइम्स ऑफ इण्डिया ( ‍11 अप्रैल 2011) की वह कटिंग यहां पेश कर रहा हूँ-
"His five-day fast for a strong anti-graft law drew groundswell support across the country, but social reformer Anna Hazare feels that if he contested an election, he will lose his security deposit.
"If I stand for election, I will lose my security deposit," Anna Hazare said jest-fully answering a question at a press conference on Sunday.

"(People) Take Rs100 and vote, take bottle of wine to vote, an election costs Rs 6-7 crore," he said.

Anna Hazare stressed that electoral reforms can rectify this situation.

"Give the option of dislike, if all candidates are bad, then voters will not vote for anyone," he said "
अन्ना नहीं जानते कि वे क्या कह रहे हैं ? अथवा बहुत ही सुचिंतित ढ़ंग से बोल रहे हैं ? इस बयान में वर्तमान लोकतंत्र को लेकर गहरी घृणा झलक रही है और भारत के मतदाताओं का अपमान भी झलक रहा है।
   अन्ना भारत के अधिकांश वोटर घूसखोर नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो 60 साल में लोकतंत्र में गर्व करने लायक कुछ नहीं होता। बहुत छोटा सेक्शन है जो घूस खाता है। लेकिन अधिकांश जनता बिना 100 रूपया लिए और शराब की बोतल लिए ही वोट देने जाती है। अन्ना अपनी झोंपड़ी से बाहर निकलो और पूछो मनमोहन सिंह -सोनिया-मोदी-नीतीश से क्या उन्होंने 100 रूपये और बोलत बांटी है ?
    अन्ना तुमको आज जो कुछ मिला है वह लोकतंत्र के कारण मिला है। सिविल सोसायटी के कारण नहीं। सिविल सोसायटी में गरीब नहीं रहते अन्ना। बहुत पहले अनेक समाजशास्त्री बता गए हैं कि सिविल सोसायटी में किस वर्ग के लोग रहते हैं। सिविल सोसायटी खाए-अघाए  और लोकतंत्र से भागे हुए लोगों का समाज है। ये लोकतंत्र के फल खाना चाहते हैं लेकिन लोकतंत्र के लिए कुर्बानी देने को तैयार नहीं हैं।
     अन्ना एक बात पर गंभीरता से सोचो यदि वोटर भ्रष्ट हो गया है और जैसा आप मानते हैं तो अब तक लोकतंत्र चल कैसे रहा है ? अन्ना क्या अमेरिका में लोकतंत्र की दोषरहित,मनी पावर रहित व्यवस्था है ? अन्ना आप जानते हैं लोकतंत्र कमजोर का अस्त्र है लेकिन इसकी कमाण्ड अभिजन और पूंजीपतियों के हाथों में है।
     अन्ना आप कल्पना में रहते हैं लोकतंत्र कल्पना से नहीं चलता। लोकतंत्र महज नियमों से भी नहीं चलता। लोकतंत्र में जनता की शिरकत और लोकतांत्रिक संरचनाएं ही हैं जो उसे ताकतवर बनाती हैं। लोकतंत्र की धुरी है लोकतांत्रिक मनुष्य। आपकी सिविल सोसायटी और उससे जुड़े चिंतक अपने को डेमोक्रेट नहीं सुपर डेमोक्रेट समझते हैं।
     मेरा सवाल है आप चुनाव में भाग क्यों नहीं लेते ? आपकी बात मानी जाए लोकतंत्र मनीतंत्र से मुक्त हो जाए तब क्या आप और सिविल सोसायटी वाले भाग लेंगे ? लोकतंत्र कैसा होगा यह इस बात से तय होगा कि भारत के लोग कैसे हैं ? लोकतंत्र में जैसा मिट्टी-पानी-सीमेंट लगाएंगे वैसा ही लोकतंत्र बनेगा। लोकतंत्र का कच्चा माल विदेश से नहीं आएगा,स्वर्ग से भी नहीं आएगा। यह काम मात्र चुनाव सुधारों से होने वाला नहीं है। लोकतंत्र मात्र चुनाव सुधार का मसला नहीं है। कितने भी चुनाव सुधार कर लिए जाएं पैसे की सत्ता बनी रहेगी।
  पैसे की सत्ता ,भ्रष्टाचार आदि को खत्म करने का एक ही सुझाव है अन्ना जो किसी जमाने में मार्क्स ने दिया था व्यक्तिगत संपत्ति का खात्मा। अन्ना आप मार्क्स के इस सुझाव को मानेंगे ? जब व्यक्तिगत संपत्ति का स्वामित्व ही नहीं होगा तो संपत्ति से जुड़ी बहुत सारी बीमारियां भी नहीं होगी।
     लेकिन मैं जानता हूँ अन्ना आपको मार्क्स से नफ़रत है। कम्युनिस्टों से घृणा है। आपको तो मोदी से प्यार है। आपके अनुसार मोदी ने ग्रामीण विकास के लिए सुंदर काम किए हैं । अन्ना हम जानना चाहते हैं नरेन्द्र मोदी ने कितने एकड़ जमीन गुजरात के भूमिहीन किसानों में भूमि सुधार कार्यक्रम के तहत वितरित की ? अन्ना इस मामले मे आप नीतीश कुमार से भी पूछ लें कि गांव के गरीबों को क्या उन्होंने फाजिल जमीन दी है ? अन्ना  जरा एनडीए की सभी सरकारों से पूछें कि क्या उन्होंने भूमिसुधार कार्यक्रमों के तहत खेतिहर मजदूरों को जमीन दी है ? नहीं अन्ना नहीं। आप इतनी जल्दी अपने असली अभिजन रंग में सामने क्यों आ गए ?
     अच्छा अन्ना बताओ हिटलर के विकास मॉडल पर आपके क्या विचार हैं ? मोदी ने गुजरात में जो किया है उसे किसी भी कीमत पर माफ नहीं किया जा सकता । मोदी का विकास मॉडल अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारहनन पर आधारित है। क्या आप ऐसे विकास मॉडल को पसंद करते हैं जहां अल्पसंख्यक आतंकित,असुरक्षित रहें ? उनके खिलाफ लगातार घृणा का प्रचार किया जाए ? अन्ना आप कभी गुजरात में हुए अल्पसंख्यक विरोधी हमलों के खिलाफ गुजरात में मोमबत्ती जुलूस लेकर क्यों नहीं निकले ? आपने गुजरात की हिंसा के खिलाफ आमरण अनशन का मन भी नहीं बनाया। अन्ना क्या गांधी ऐसे ही साम्प्रदायिकता से लड़े थे जैसे आप लड़ रहे हैं ?
       अन्ना क्या यह बताने की जरूरत है कि आपने मुंबई और महाराष्ट्र के दूसरे ठिकानों पर राजठाकरे के दल के लोगों के जो बिहारियों पर विगत में जो हिंसक हमले किए थे उस समय आपने हिन्दीभाषियों के महाराष्ट्र में आने पर आपत्ति जतायी थी। आपकी मराठी अंधक्षेत्रीयतावाद के प्रति गहरी आस्थाएं हैं। आप मानते हैं महाराष्ट्र सिर्फ मराठियों के लिए है।
   अन्ना आप कैसे बांधेगे देश को एकसूत्र में ? क्या इस देश को सिविल सोसायटी वाले एकजुट रखे हुए हैं ? क्या राजठाकरे और नरेन्द्र मोदी के विचारों के आधार पर नया भारत बनाना चाहते हैं ? अन्ना आप अच्छी तरह जानते हैं भारत को एकजुट बनाए रखने और लोकतंत्र को गतिशील बनाए रखने में 100 रूपये लेकर वोट देने वाले या शराब की बोतल लेकर वोट देने वाली अनपढ़-जाहिल जनता की केन्द्रीय भूमिका है। सिविल सोसायटी वाले कारपोरेट गुलामों और मीडियावीरों को तो भारत का सही में भूगोल और संस्कृति तक का ज्ञान नहीं है । वे बातों के वीर हैं।कर्मवीर नहीं हैं। सिविल सोसायटी आपके लिए ठीक हैं,लोकतंत्र के लिए नहीं।    
      अन्ना यह सही है आपने राजठाकरे और उनके दल की हिंसा का समर्थन नहीं किया लेकिन हिंसा करने वालों को दण्डित कराने के लिए भी आपने बयान तक नहीं दिया। यह भी सच है आपने मोदी की साम्प्रदायिक हिंसा का समर्थन नहीं किया लेकिन इतने भयानक गुजरात के दंगे देखकर भी आपकी आत्मा बेचैन नहीं हुई और मोदी और उनके लठैतों के खिलाफ आप गुजरात की सड़कों पर नहीं उतरे ?  अन्ना आपने ऐसी कायरता क्यों दिखाई ? गुजरात के दंगाईयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को लेकर आपका दिल नहीं मचला ? लोकपाल बिल से ज्यादा दंगों में मारे गए आम आदमी की समस्या महत्वपूर्ण है अन्ना । दंगे सीधे मानवाधिकारों पर हमला है । मानवाधिकारों पर क्रूरतम हमलावर के रूप में मोदी को सारी दुनिया जानती है लेकिन आपने मोदी को ही श्रेष्ठ मुख्यमंत्री का खिताब दे दिया। मोदी के शासन में देवालय,मजार,मस्जिद,चर्च आदि सब पर हमले हुए। अन्ना नहीं यह नहीं चलेगा।
      मोदी मानवाधिकार हनन का नायक है वह विकास पुरूष नहीं है। उसने गुजरात को साम्प्रदायिक आधार पर बांटा है और आप उसको आदर्श बता रहे हैं। अन्ना क्षमा करें मोदी गुजरात में आतंक का पर्याय है। अल्पसंख्यकों के मन और समाज को उसने तबाह किया है। आपको अल्पसंख्यकों की तबाही नहीं दिखाई दी,मेरे लिए इसमें आश्चर्य नहीं हुआ ।क्योंकि आप अपने तथाकथित सर्वजन प्रेम के मुहावरे पर चल रहे हैं। आप जिस भाव में हैं वह कम से कम गांधी का भाव नहीं है। अन्ना इस समय सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार करने वाले कारपोरेट घरानों के संगठन भी आपके साथ हैं। फिक्की से लेकर एस्सोचैम तक सभी ने आपका समर्थन किया है। मनमोहन से लेकर आडवाणी तक,माओवादियों से लेकर मोदीतक,ममता से लेकर माकपा तक भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल बिल के सवाल पर आपके साथ हैं और ये सभी राजनीतिक दल किसी न किसी बहाने कभी न कभी लोकपाल बिल को संसद में आने देने से रोकते रहे हैं।
   अन्ना एक बात का जबाब जरूर दो क्या लोकतंत्र में पैसे के बिना चुनाव लड़ सकते हैं ? क्या अमेरिका-ब्रिटेन -जापान-जर्मनी में लोकतंत्र में पैसा खर्च होता है ? आप जानते हैं लोकतंत्र पैसातंत्र है। इसे लेकर आम जनता को आप कल्पना की लंबी उड़ानों में क्यों ले जा रहे हैं ? आपकी टीम में संतोष हेगडे साहब हैं, ये जजसाहब आरक्षण विरोधी फैसला देने के कारण नाम कमा चुके हैं। जिन श्रीश्री रविशंकर को आपने अनशन तोड़ते धन्यवाद दिया वे भी आरक्षण के विरोधी हैं। अन्ना ध्यान रहे सामाजिक न्याय के बिना लोकपाल बेकार है। लोकपाल पैसे की लूट को कुछ हद तक रोक सकता है लेकिन सामाजिक असमानता,खासकर जातिभेद तो सामाजिक कोढ़ है और इस भेद को कम करने का यदि कोई उपाय सुझाया जाता है तो आपके समर्थकों की तलवारें म्यान से बाहर निकल आ जाती हैं। अन्ना आपकी सिविल सोसायटी में दलितों और मुसलमानों के लिए कोई एजेण्डा है ? आप 60 सालों से इन समुदायों के बारे में खामोश क्यों हैं ?  



















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