अन्ना हजारे बड़े हैं। आदरणीय हैं। संघर्षपूर्ण जीवन जीते रहे हैं। लेकिन जन्तर-मन्तर में उन्होंने इसबार आम जनता के साथ आंदोलन का जो नाटक खेला है उसे श्रद्धा को एक तरफ रखकर राजनीतिक भाषा में पढ़ने की जरूरत है। इस बात को कहने का यह अर्थ नहीं है कि उनके प्रति किसी तरह की मेरे मन श्रद्धा कम हो गयी है लेकिन राजनीति की भाषा में कहें तो अन्ना हजारे लोकपाल बिल पर जन्तर-मन्तर में जो खेल कर रहे थे वह कांग्रेस का प्रायोजित खेल था। कांग्रेस ने अन्ना हजारे के माध्यम से यह खेल क्यों खेला इसका जबाब अन्ना हजारे ही दे सकते हैं। हम तो सिर्फ सामने इंटरनेट और मीडिया में जो घट रहा है उसकी ओर ध्यान खींच रहे हैं। अन्ना के आमरण अनशन के बाद की गयी घोषणाएं इस बात की सूचना है कि अन्ना के बहाने विभिन्न स्तरों पर नए सिरे दबाब की राजनीति का अलोकतान्त्रिक खेल भविष्य में होगा। पहले हम संक्षेप में उस राजनीति को पढ़ें जो अन्ना ने की है।
अन्ना हजारे ईमानदार हो सकते हैं। लेकिन उन्हें और उनके समर्थकों को सोनिया गांधीके सत्ता के तंत्र से अलग रखना होगा।सन् 1974 में कम से कम बाबू जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाते समय सत्ता के गलियारों में सक्रिय किसी भी नेता या कांग्रेसी सलाहकार बुद्धिजीवी को अपने साथ नहीं रखा था।इस नजरिए से देखें तो अन्ना की जंग नकली जंग है और सरकार और सोनिया नियंत्रित जंग है। कैसे है यह जंग सरकार नियंत्रित उसका भंडाभोड यहां पर देखें।
अन्ना हजारे की तथाकथित जंग,सत्ता द्वारा प्रायोजित जंग है। सत्ता के द्वारा जो लक्ष्मण रेखा खींची गयी है उसके भीतर ही रहकर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के लोग विभिन्न स्तरो पर और विभिन्न किस्म के एनजीओ में काम कर रहे हैं। यह नव्य उदार राजनीति का नया तरीका है काम करने का। सवाल यह नए लोकपाल बिल पर जब इतना काम आगे बढ़ चुका था तो आमरण अनशन का नाटक करने और आम जनता की आंखों में धूल झोंकने की क्या जरूरत थी ? जिन लोगों को अविश्वस हो वे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की वेबसाइट पर दी गयी लोकपाल बिल संबंधी जानकारी को पढ़ लें और इस नाटक को जान लें।
Lokpal Bill
अन्ना हजारे ईमानदार हो सकते हैं। लेकिन उन्हें और उनके समर्थकों को सोनिया गांधीके सत्ता के तंत्र से अलग रखना होगा।सन् 1974 में कम से कम बाबू जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाते समय सत्ता के गलियारों में सक्रिय किसी भी नेता या कांग्रेसी सलाहकार बुद्धिजीवी को अपने साथ नहीं रखा था।इस नजरिए से देखें तो अन्ना की जंग नकली जंग है और सरकार और सोनिया नियंत्रित जंग है। कैसे है यह जंग सरकार नियंत्रित उसका भंडाभोड यहां पर देखें।
लोकपाल बिल पर जो कमेटी बनी है उसमें अन्ना हजारे के जो लोग हैं वे सोनिया गांधी की अध्यक्षता में काम करने वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में भी हैं। खासकर लोकपाल बिल पर बनी कमेटी में वे सभी लोग हैं जिनको अन्ना ने प्रस्तावित किया है। लोकपाल बिल का नाटक शुरू होने के पहले अन्ना हजारे की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से 15 मिनट बातचीत हुई। इसके पहले लोकपाल बिल के मसौदे पर भी सोनिया गांधी की नजरदारी में बैठक हुई। यह बात राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की वेबसाइट पर दी गयी सूचना में कही गयी है। लोकपाल बिल का मसौदा तैयारी की प्रक्रिया में है और इसे तैयार करने वाली कमेटी में जस्टिस संतोष हेगड़े हैं,प्रशान्तभूषण है,शांतिभूषण है,अरविंद केजरीवाल हैं, सिर्फ अन्ना हजारे इसमें नहीं हैं। बाकी अन्ना हजारे के सुझाए 4 आदमी उस कमेटी में हैं जिसने नए लोकपाल बिल का मसौदा तैयार किया है। लोकपाल बिल की समस्त जानकारी और उन सलाहकारों के नाम यहां सीधे पेस्ट कर रहे हैं जिससे अन्ना हजारे के इस सरकारी नाटक को समझ सकें।
अन्ना हजारे यदि सचमुच में ईमानदारी से संघर्ष करना चाहते हैं तो उन्हें और उनके सलाहकारों को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से अपने को अलग करना चाहिए।सत्ता के तमाम पापों को विभिन्न किस्म के नामों से पुण्य में बदलने का यह परिषद काम कर रही है। यह सत्ता की सलाहकार परिषद है। जनता के हितों की संरक्षक परिषद नहीं है। इस परिषद का काम वही है जिसे एक जमाने में कांग्रेस में युवा तुर्क अंजाम दिया करते थे। उन्होंने कांग्रेस में समाजवादी मंच बनाया हुआ था,संयोग से उसके अवशेष के रूप में शशिभूषण आज भी कांग्रेस के इस मंच में मौजूद हैं। अन्ना हजारे का संघर्ष किसी भी अर्थ में तब ही प्रामाणिक और ईमानदार बनेगा जब वे और उनके सलाहकार सत्ता की इस परिषद से बाहर आकर लड़ें।अन्ना हजारे की तथाकथित जंग,सत्ता द्वारा प्रायोजित जंग है। सत्ता के द्वारा जो लक्ष्मण रेखा खींची गयी है उसके भीतर ही रहकर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के लोग विभिन्न स्तरो पर और विभिन्न किस्म के एनजीओ में काम कर रहे हैं। यह नव्य उदार राजनीति का नया तरीका है काम करने का। सवाल यह नए लोकपाल बिल पर जब इतना काम आगे बढ़ चुका था तो आमरण अनशन का नाटक करने और आम जनता की आंखों में धूल झोंकने की क्या जरूरत थी ? जिन लोगों को अविश्वस हो वे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की वेबसाइट पर दी गयी लोकपाल बिल संबंधी जानकारी को पढ़ लें और इस नाटक को जान लें।
Lokpal Bill
The National Advisory Council (NAC) took a decision on February 26, 2011 to examine the Lokpal Bill by the Transparency, Accountability & Governance Working Group. The NAC Working Group on Transparency, Accountability and Governance held its first consultation with civil society groups on the Lokpal Bill under the convenership of Smt. Aruna Roy on 4th April, 2011. The meeting discussed the draft prepared by various people’s movements and groups. After exhaustive discussions, there was consensus on most of the general principles underlying the draft Bill, though some provisions need to be examined further. The NAC WG on TA & G, will finalize the principles and framework, on the basis of this discussion. Another meeting of the WG is scheduled before the National Advisory Council meets on April 28, 2011. The attendees included S/Shri/Ms: Shanti Bhushanji, Prabhat Kumar, Aruna Roy, Trilochan Sastry, Jagdeep Chhokar, Kamal Jaswal, Zaware, Santosh Hegde, Narendra Jadhav, Nikhil Dey, Shekhar Singh, Vrinda Grover, Harsh Mander, Wajahat Habibullah, Arvind Kejriwal, Swami Agnivesh, Sarvesh Sharma, Usha Ramanathan, Amitabh Mukhopadhyay, Santosh Mathew, Shanti Narain, Prashant Bhushan, Sandeep Pandey and members of the NAC Secretariat
बाप भी और बेटा भी ?
जवाब देंहटाएंकुछ यह भी स्पष्ट करते कि आखिर इसका दूसरा विकल्प कैसे और क्या हो सकता था...
जवाब देंहटाएंक्या चुने गए प्रतिनिधियों को किनारे कर पूरी तरह बाहर के लोग इसमें शामिल होते...
और बाहर के लोगों को रखा भी जाता तो उनकी अकाउंटेबिलिटी कैसे सेट होती...
समझने के लिए पूछ रहा हूं..
जनता सब देख भी रही है समझ भी रही है ..फ़िर यदि ऐसा ही है और मान भी लिया जाए तो भी आप शायद एक और शख्स को बिल्कुल सिरे से ही किनारे करके भूल रहे हैं ..क्या किरन बेदी भी इसका हिस्सा बन गईं क्या वे सचमुच ही इतनी नासमझ हैं कि ये सब समझ नहीं पाईं । तर्कों और बहस के परे भी कुछ चीज़ें होती हैं । यूं विश्लेषण कर देना बहुत ही आसा्न होता है सर जी ...और खुद ऐसा काम करना कि कोई आपका भी विश्लेषण करने का मौका पाए जरा कठिन है । अन्ना ह्ज़ारे भी अगर प्रायोजित थे और उनका ये आंदोलन भी प्रायोजित था तो फ़िर तो इस देश को अब रसातल में जाने ही दिया जाए । क्योंकि जैसा कि सिद्दार्थ भाई ने कहा कि बेहतर हो कि आप कोई विकल्प भी सुझाएं । सिर्फ़ नकारात्मक दृष्टिकोण भर रखने से कुछ नहीं हो सकता कभी न कभी तो इससे आगे बढना ही होगा फ़िर चाहे इसके लिए देश में दूसरा अन्ना हज़ारे ढूंढना पडे ।
जवाब देंहटाएंसवाल यह है कि जब सोनिया गांधी के नेतृत्ववाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद लोकपाल बिल पर काम कर रही है और उसे लाना चाहते हैं तो फिर समस्या कहां थी जो अन्ना हजारे को आमरण अनशन करना पड़ा ?
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