सोमवार, 31 अगस्त 2009

राजेन्‍द्र यादव के 80वें जन्‍मदि‍न के साहि‍त्‍यि‍क पटाखे के जबाव में

राजेन्‍द्र यादव को 80वें जन्‍मदि‍न पर बधाई । साहि‍त्‍य का उन्‍होंने अगर जाति‍वादी आधार बनाया है और खासकर कवि‍ता का तो उन्‍ाकी बुद्धि‍ की दाद देनी होगी, क्‍योंकि‍ उनको मालूम है भक्‍ि‍त आंदोलन दलि‍तों से भरा है,उत्‍तर ही नहीं दक्षि‍ण के भक्‍त कवि‍यों में दलि‍त हैं, भक्‍ति‍ आंदोलन के दलि‍त कवि‍यों का बाकायदा इति‍हास में सम्‍मानजनक स्‍थान है,साथ ही उन पर जमकर आलोचनाएं भी लि‍खी गयी हैं। कवि‍ता की आधुनि‍क सूची में आपने जि‍न बडे लोगों के नाम लि‍ए हैं वे तो हैं ही, इसी तरह कथासाहि‍त्‍य के बारे में उनकी समझदारी गड़बड़ है,यशपाल,वृन्‍दावनलाल वर्मा,जगदीश चन्‍द्र,भीष्‍म साहनी,सुभद्रा कुमारी चौहान,होमवती देवी,कमला चौधरी, कृष्‍णा सोबती,मन्‍नूभंडारी आदि‍ अनेक बडे लेखकों के नाम उपलब्‍ध हैं जो संयोग से ब्राह्मण नहीं हैं। असल में राजेन्‍द्र यादव की दि‍क्‍कत है पटाका छोडने की, वे साहि‍त्‍य में एटमबम छोड ही नहीं सकते। आपके संवाददाता की रि‍पोर्ट यदि‍ दुरूस्‍त है तो राजेन्‍द्र यादव ने औरतों के लेखन को अपनी सूची से बाहर कर दि‍या है। क्‍या वे महादेवीवर्मा के अलावा कि‍सी भी लेखि‍का को देख नहीं पा रहे हैं ? इसी को कहते हैं रचनाकार की दृष्‍टि‍ पर हि‍न्‍दी की पुंसवादी आलोचनादृष्‍टि‍ का गहरा असर। औरतों के साथ इति‍हासग्रंथों में यही हुआ है वही अब राजेन्‍द्र यादव ने कि‍या है।

(देशकाल डाट काम पर राजेन्‍द्र यादव के 80वें जन्‍मदि‍न की एक रि‍पोर्ट छपी है जि‍समें उन्‍होंने जाति‍ के आधार पर साहि‍त्‍य को देखने की कोशि‍श की है, उस रि‍पोर्ट में राजेन्‍द्र यादव के वि‍चारों पर व्‍यक्‍त प्रति‍क्रि‍या,वि‍स्‍तार से जानने के लि‍ए देशकाल डाट काम को देखें )

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