बुधवार, 26 अगस्त 2009

प्रभाष जोशी का कचरा इति‍हास ज्ञान

प्रभाष जोशी के पूरे साक्षात्‍कार पर एक बात रेखांकि‍त करना बेहद जरूरी है इस साक्षात्‍कार में उन्‍होंने अपना जो इति‍हास ज्ञान प्रदर्शित कि‍या है, उसका इति‍हास के तथ्‍यों से कोई लेना देना नहीं है बल्‍कि‍ यह इति‍हास के बारे में गलतबयानी है। इस गलतबयानी की जड़ है इति‍हास की गलत समझ। कुछ नमूने दखें और गंभीरता के साथ वि‍चार करें कि‍ प्रभाष जोशी कि‍तना सच बोल रहे हैं।
प्रभाष जी ने कहा है ''मारिया मिश्रा नाम की एक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की महिला हैं, उन्होंने एक अच्छी किताब लिखी है India since the Rebellion: Vishnu's Crowded Temple. उसमें उन्होने कहा है कि जवाहर लाल नेहरू तो आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल थे. क्योंकि उन्होंने उन्हीं चीजों को कंटिन्यू किया जो कि गवर्नर जनरल करते थे।''
क्‍या यह बयान तथ्‍यों से पुष्‍ट होता है ? क्‍या‍ भारत की आज जो आत्‍मनि‍र्भर देश की छवि‍ है वह क्‍या अंग्रेजों के मार्ग पर चलने के कारण संभव थी ? सार्वजनि‍क क्षेत्र का जो वि‍शाल तंत्र खड़ा कि‍या गया वैसा क्‍या अंग्रेजों की नीति‍यों पर चलते हुए संभव था ? आज स्‍थि‍ति‍ यह है अमेरि‍का को आर्थि‍क मंदी के संकट से नि‍कालने में भारत प्रमुख आर्थि‍क मददगार है। अमरीकी बैंकों के चीन के बाद सबसे ज्‍यादा बॉण्‍ड भारत ने खरीदे हैं । आज ब्रि‍टेन अपनी भी मदद करने की स्‍थि‍ति‍ में नहीं हैं। सार्वजनि‍क क्षेत्र में नेहरू ने ऐसे समय पर नि‍वेश शुरू कि‍या जब भारत में कोई इसके पक्ष में नहीं था,सि‍वाय पूंजीपति‍यों के। नेहरू ने बुनि‍यादी उद्योगों का नि‍र्माण कि‍या और आज हम उसी फि‍क्‍स डि‍पोजि‍ट को बेच बेचकर देश चला रहे हैं। अर्थशास्‍त्र की भाषा में इसे वि‍नि‍वेश कहते हैं। जबकि‍ यह सार्वजनि‍क संपत्‍ति‍ की खुली लूट है। भारत के लोकतंत्र में हजार कमि‍यां नि‍काल सकते हैं किंतु यह अपने आपमें यूनि‍क है, इसका संवि‍धान वि‍शि‍ष्‍ट है। यह ब्रि‍‍टेन के संवि‍धान की नकल नहीं है।
प्रभाष जी ने कहा है ''कम्युनिस्टों ने भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ अंग्रेजों की मुखबिरी की थी।'' यह वक्‍तव्‍य एकसि‍रे से आधारहीन है,प्रभाष जोशी को चुनौती है कि‍ वे उन कम्‍युनि‍स्‍टों के नाम बताएं जो मुखबि‍री करते थे,कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टी के सदस्‍य स्‍वाधीनता संग्राम की अग्रणी कतारों में थे, खासकर 1940- 41 के बाद कांग्रेस संघर्ष कर रही थी या कम्‍युनि‍स्‍ट संघर्ष कर रहे थे ? प्रभाष जी चाहें तो अपने प्रि‍य धर्मनि‍रपेक्ष इति‍हासकारों के लेखन पर एक एक नजर डालकर देख लें, ज्‍यादा न सही यशपाल की कि‍ताबें ही पढ़ लें, कम से कम यशपाल उनसे कम देशभक्‍त नहीं थे, लेखक भी उनसे कमजोर नहीं थे,कम से कम जसवंत सिंह की कि‍ताब पढ़ने से ज्‍यादा आनंददायक पाठ है उनका।
प्रभाष जोशी के अनुसार ''जब अंग्रेज यहां आकर औद्योगिकरण कर रहे थे तो मार्क्स ने कहा कि वो भारत की उन्नति कर रहे हैं।'' भारत में अंग्रेजों औद्योगि‍कीकरण नहीं कि‍या बल्‍कि‍ नि‍रूद्योगीकरण कि‍या,भारत के कच्‍चे माल के दोहन से औद्योगि‍क क्रांति‍ ब्रि‍टेन में हो रही थी, भारत के वि‍कास के जो आंकड़े प्रभाष जी ने दि‍ए हैं, वे भी सही नहीं हैं। अंग्रेजों की नीति‍यों के चलते भारत के कि‍सान की कृषि‍दासता बढ़ी, पामाली बढ़ी,अनगि‍नत अकाल पढ़े। इन सभी पहलुओं पर मार्क्‍सवादि‍यों ने ही सबसे पहले रोशनी डाली थी, गांधीजी ने नहीं। प्रभाष जोशी जानते हैं कि‍ दादाभाई नौरोजी पहले बड़े देशभक्‍त थे जि‍न्‍होंने अंग्रेजों की कि‍सान वि‍रोधी नीति‍यों पर जमकर लि‍खा था, उनके लेखन में आए आंकड़े भी प्रभाष जोशी के मत की पुष्‍टि‍ नहीं करते। जोशी जी जान लें अंग्रेजों के आने के बाद सन् 1770 में पहला अकाल पड़ा था जि‍सने लगभग एक करोड लोगों की जान ले ली,तब से अकाल,हैजा,प्‍लेग,संक्रामक बीमारि‍यों के हमले आम बात हो गए। कार्ल मार्क्‍स पहले वि‍चारकों में थे जि‍नके द्वारा पहलीबार ब्रि‍टेन के साम्राज्‍य का भयावह चि‍त्रण सामने आया था, उनके सारे लेख अब हिंदी में भी हैं। मार्क्‍स ही पहले व्‍यक्‍ति‍ थे जि‍न्‍होने यह रेखांकि‍त कि‍या था कि‍ आखि‍रकार भारत में अंग्रेज क्‍यों आने में सफल रहे।
( यह टि‍प्‍पणी 'deshkal.com पर प्रकाशि‍त प्रभाष जोशी के वि‍वादास्‍पद साक्षात्‍कार पर लि‍खी गयी )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...